Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 30
________________ भाईके साथ विमलकुमारकों लेकर पाटण आई, भोजन शयन स्थान आदि सर्ववस्तुएँ तयार कराइ गइ, मंडप रचाया गया । शहरके और अन्यस्थलोंके स्वजनसंबंधीलोगोंको आमत्रण दिया गया। उधर नगरशेठके वहांभी सब तरहकी तयारियें होने लगी, राज्यकी मददसे उन्हें जिस जिस वस्तुकी जरूरत थी अनायास मिलगई । निर्धारित शुभदिनमें बडे आडंबरके साथ वर. कन्याका पाणिग्रहण हुआ, नगरशेठने अपनी कन्याकों और जामाताकों अखुट संपत्ति दी, श्रीदेवीने श्वशुरपक्षके सर्व वृद्धोंको नमन किया । सासु वगैरहने हर्षभरे हृदयसे वहुकों अनेक आशीर्वाद दिये, विमलकुमारने इस प्रसंगपर महाराज भीमदेवकोंभी आमत्रण किया, राजा उनके भाग्य सौभाग्यसें उनकी कीहुइ सेवा शुश्रूषासें बडे प्रसन्न हुए, उन्होंने कुछ दिनोंके बाद उनकों एक राज्याधिकारी बनाया, उस अधिकारसें विमलकुमारने वडी प्रशंसा और श्लाघा कमाई । राजाने उन्हे उनके पिताकी जगहपर अपना मंत्री वनालिया, कुमार ज्युं ज्युं ऊंचे अधिकारपर चढने लगा त्यु त्यु उसमे संसारभरके प्रशंसनीय सद्गुणोंका संचार होने लगा। विमलकुमारके छोटी उमरसें धार्मिक दृढ संस्कार थे, इसलिये इस बाह्य संपत्तिकों वोह धर्म कल्पवृक्षके फल समझकर देवाधिदेव परमात्माकी पूजा, निग्रेन्थ साधुमहाराजाओंकी भक्तिसेवा, समानधर्मिलोगोंकी सारसंभालमें एकचित्तसें लगा रहता था, धर्मार्थ काम और मोक्षकों वोह अवाधितपणे आराधन किया

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