Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 68
________________ ५० दूसरे दिन फिर लडाई शुरु हुई, आज तेजपाल और धुंधलका मुकाबला था, तेजपालपर धुंधल एकदम टूट पडा) उस वक्त तो तेजपालने अपना बचाव करलिया, परन्तु आगे निभनी मुशकिल थी, तथापि मंत्रीश्वरका पुण्योदय बलिष्ठ था । उसने गुरुमहाराजके दिये "भक्तामरस्तोत्र" के दो श्लोकोंको आम्नायसहित याद किया। ___“अचिन्त्यप्रभावो हि मणिमत्रौपधीनाम् ।" स्मरणमात्रसेही तेजपालने देखा तो अपने दोनो खंभोंपर बैठे हुए कपर्दियक्ष और अम्बिकामाताके दर्शन हुए, इससे उसको निश्चय होगया कि-मेरा जय होगा । प्रचण्ड पवनसे वादलोंकी तरह धुंधलकी फौज भागगई और तेजपालने उछल कर धुंधलको पकडा । बन्धनोंसे बान्धकर उसे पिञ्जरेमे डालदिया और वहां अपने स्वामीकी आज्ञाको वरता कर १८ क्रोड अशरफियां, चार हजार घोडे, मूढक प्रमाण मोती, दिव्यशस्त्र, अस्त्र, लेकर मत्रीश्वर गुजरातको रवाना हुआ, रास्तेमे उन्होंने बडोदामें आदीश्वर प्रभुके मन्दिरका उद्धार कराया । डभोईमे महादेवके मन्दिरमे लाखों रु. भेट दिये, पार्श्वनाथस्वामीका नवा मन्दिर करवाया, नगरका कोट वनवायाचांपागढ और पावागढपर अनेक जिनमन्दिर बनवाये । मंत्रीराज अपने स्वामीके आदेशसे इन्तजामके वास्ते - - १ यह दोनोंशहर बडौदा शहरसे करीवन (२०) कोसके फांसलेपर बडौदासे ईशान कूणमे आजभी इसीही नामसे मशहूर शून्य पडे है, बडौदाके जैन लोग यहा यात्राके लिये जाया करते हैं।

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