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आचार्य श्रीलक्ष्मी सागर सूरिजीने सुधानन्दसूरि सोमजयसूरि महोपाध्याय जिनसोमगणि आदि शिष्य परिबार सहित इस प्रतिमाकी प्रतिष्ठाकी । _इस प्रतिष्ठाके करानेवाले श्रीलक्ष्मीसागर सूरिजीका और उनके सहचारी शिप्यमंडलका वर्णन गुरुगुण-रत्नाकर काव्यमे चर्णित है।
प्रतिमाजीके बनवानेवाले गदाशाहका वर्णनभी इसी काव्यके तीसरे सर्गमे संक्षेपसे लिखा है।
भाग्यवान् गदा शाह मंत्री गुजरात देशके प्रसिद्ध नगर अमदावादके रहनेवाले थे। महाजन जातिके आगेवान और सुलतानके सन्मानपात्र मंत्री थे । गदाशाह उससमयके प्रभावक श्रावक थे। इन्होने बहुत वर्षांतक चतुर्दशीका उपवास श्रद्धापूर्वक किया था। __ पारणेमे आप अकेले भोजन कभी नही करते थे। दोसौ तीनसौ सधी भाइयोंको साथ बैठाकर आप प्रसन्नतासे भोजन करते थे। ' इस पुण्यवान श्रावकने इस प्रभुप्रतिमाकी प्रतिष्ठाके लिये अहमदावादसे एक वडा संघ निकाला था, जिसमे हजारों मनुष्य, सैंकडों घोडे, और सातसौ (७०० ) गाडे थे । उस सर्वसामग्रीके साथ आवुतीर्थपर आके एक लाख सोना मोहरें खर्चकर संघ भक्ति-अठाही महोत्सव शांतिक पौष्टिक क्रिया सहित सहस्रों याचकोंको दान देकर उनके आशीर्वाद पूर्वक प्रभुप्रतिष्ठा करवाई थी।