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उसके खुदवाये हुये लेखोंमें जैन कवियोंने उसके गुणोंकी बड़ी प्रशंसा की है। __इतिहासकी दृष्टिसे आबू-पर्वतके जैनमंदिरोंमें खुदेहुये लेख बड़े महत्त्वके हैं । उनमें चालुक्य और परमार वंशी राजाओंका विस्तारपूर्वक वर्णन है । ये लेख बड़े २ हैं। इनकी संख्या २०८ है । इनमेंसे ६८ लेख अकेले एकही मंदिरमें हैं । इस मंदिरका नाम है "लूणसिंह वसहिका ।" आबूके प्राचीन लेखों से कुछ तो भिन्न २ कई पुस्तकोंमें पहिलेभी प्रकाशित हो चुके हैं । पर सब लेख कहीं नहीं छपे । वे सब पहिलीही वार इस पुस्तमें संगृहीत हुये हैं। आबूमेंभी गिरिनारकी तरह पूर्वोक्त बंधुद्वय, वस्तुपाल और तेजपाल की तूती बोल रही है । यह दोनों भाई आबूमेंभी अतुल धन खर्च करके मन्दिरोंका निर्माण और मूर्तियोंकी संस्थापना कर गये हैं । इन मंदिरोंकी कारीगरी गजबकी है। बड़े बड़े इंजीनियर और शिल्पकलाकुशल लोगभी इन्हें देखकर हैरतमें आजाते हैं । इन लेखोंकी कोईकोई कविता बड़ीही हृदयहारिणी है। उसके दो एक उदाहरण लीजिये।
तस्यानुजो विजयते विजितेन्द्रियस्य
सारस्वतामृतकृताद्भुतहर्षवर्षः । श्रीवस्तुपाल इति भालतलस्थितानि
दौस्थ्याक्षराणि सुकृती कृतिनां विलुम्पन् । अर्थात् वस्तुपाल अमृतवर्षी कवि है और विद्वानोंके भालतलपर लिखे गये दुरक्षरोंको मिटानेवाला है।
आयु०८