Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 107
________________ विद्यमानथे, इतनाही नहीं वह सब इस कार्यमें सम्मन थे, इन सर्वकी पूर्ण इच्छासे यह शासन पत्र लिखा गया है। इन सर्वमहाशयोंने हर्पपूर्वक इस बातको खीकार किया है कि, हम खुद जहांतक जीते रहेंगे वहांतक दिलोजानसे इस धर्मस्थानकी संभाल रखेंगे । हमारे सुपूत संतानोंकामी कर्तव्य होगा कि वहभी इस धर्मस्थानका रक्षण पालन करें। चंद्रावतीके नरेश सोमसिंहदेवने लूणसिंह वसतिकी पूजाके लिये डवाणी नामक गाम देवदानमें दिया है। इसलिये सोमसिंह देवकी यह प्रार्थना है कि, परमार वंशमें जो जो कोई रक्षक नरेश होवें वह सब इस परम पवित्र स्थानके रक्षण पालन द्वारा इस मर्यादाका निर्वाह करें। तेजपालके मंदिरके पास जो 'भीमसिंह' का मंदिर कहा जाता है. उसमे मूलनायक-श्रीऋपभदेवस्वामीकी पित्तलमयी मूर्ति विराजमान है. उसमूर्तिपर और परिकरकी मूर्तियोंपर जो लेख हैं उनका भावार्थ यह है "वि. संवत् १५२५ फाल्गुण सुदि सप्तमी,शनिवार रोहिणी "नक्षत्रके दिन आबु पर्वत उपर देवडा श्रीराज्यधरसागर "डूंगरसीके राज्यमे शा. भीमाशाहके मंदिर में गुजरात"निवासि श्रीमालज्ञातीय-राजमान्य-मंत्री मंडणकीभार्या"मोली के पुत्र महं सुंदर और सुंदरके पुत्ररत्न मंत्री गदाने "अपने कुटुंब सहित १०८ मण प्रमाणवाली परिकर सहित "यह जिन प्रतिमा बनवाई है। और तप गच्छनायक-श्रीसोमसुंदरसूरिजीके पट्टधर

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