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जैनोंके इस तरहके सैकड़ों प्राचीन लेखोंका संग्रह, संपादन और आलोचन विदेशी और कुछ स्वदेशी विद्वानोंके द्वारा हो चुका है । उनका अंगरेजी अनुवादभी, अधिकांशमें, प्रकाशित होगया है । पर किसी खदेशी जैन पण्डितने इन सबका संग्रह, आलोचनापूर्वक, प्रकाशित करनेकी चेष्टा नहीं कीथी । महाराजा गायकवाड़के कृपाकटाक्षकी व दौलत पुरानी पुस्तकोंके प्रकाशनका जो कार्य बड़ौदे में, कुछ समय से, हो रहा है उसके कार्य कर्त्ताओंने भी इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया, यद्यपि जैनोंके कितनेही प्राचीन मंदिर, लेख और ग्रंथ बड़ौदा राज्य में विद्यमान हैं । इस काममें हाथ लगाया है एक साधु-मुनि जिनविजयने । गुजरात विद्यापीठने, अहमदाबादमें, एक गुजरात पुरातत्त्वसंशोधनमंदिरकी संस्थापना की है । मुनि महाशय उसी मंदिरके आचार्य हैं । आपका पता है - हलीस ब्रिज, अहमदावाद । यद्यपि भारतवर्ष में जैनग्रंथ और जैनमंदिर थोड़े बहुत सब कहीं पाये जाते हैं, तथापि दक्षिणी भारत, गुजरात और राजपूतानेही में उनका आधिक्य है । क्योंकि जैनधर्म्मका प्राबल्य उन्हीं प्रान्तों में रहा है और अबभी है । अत एव अहमदाबादमेंही इसप्रकारके संशोधन - मन्दिरकी स्थापना होना सर्वथा समुचित हैं । इंडियन ऐंटिकरी, इपिग्राफिआ इंडिका, सरकारी गैज़ेटियरों और आर्कियालाजिकल रिपोर्टों तथा अन्य पुस्तकोंमें जैनोंके कितनेही . प्राचीन लेख प्रकाशित हो चुके हैं । वूलर, कौसेंस, किर्स्ट, विलसन, हुल्ट्श, केलटर और कीलहार्न आदि विदेशी