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८७ श्रीमाल) समस्त महाजनका, और विशेप करके महं० तेजपालकी धर्मपत्नी अनुपमादेवीके भाई ४० श्रीखीवसिंह. ठ० श्रीआंवसिंह और ठ० श्रीउदयसिंह. ठ० श्रीलीलाके पत्र महं श्रीलणसिंह तथा भाई ठ० श्रीजगसिंह और ठ० श्रीरनसिंहके कुल परिवारका उनकी वंश परंपराका जरूरी फरज है कि वह धर्मस्थानकी सार संभाल करें, और करावें । इस कार्यके निर्वाह करनेमें समस्त श्वेताम्बर श्रावक श्राविका कटिबद्ध रहें । यह स्थान सकल श्रीसंघका है इसवास्ते उन महाशयोंको उचित है कि, वह अपने जीवनके समान अपने पुत्र पौत्रोंके समान इस जिन चैत्यकी सार संभाल रखें।
(१) आगे जा करके एक मर्यादा ऐसी बांधी गई है कि इस मंदिरकी वर्षगांठका महोत्सव उवरणी और किसरउली गामके श्रीसंघने करना।
प्रतिवर्ष प्रतिष्ठाके दिन जो महोत्सव किया जाता है उसको वर्ष गांठ कहते हैं इस मंदिरकी प्रतिष्ठा फागण यदि ३ रविवारको हुई थी।
(२) ऐसेही दूसरे दिनका अर्थात् फा. कृ, चतुर्थीके दिनका उत्सव कासिंदरा गामको करना होगा। .
(३) फा. वदि पंचमी-बामणवाडाके लोगोंका फर्ज होगा कि तीसरे दिनका उत्सव वह करें।
(४) चौथे दिनका महोत्सव धवली गामके लोग करें।
(५) पांचवें दिनका अर्थात् फा. वदि सप्तमीके दिनकी पूजा मुंडस्थल महातीर्थके रहनेवाले और फीलिणी गामके रहनेवाले करें।