Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 103
________________ विमलवसति नामक प्रासादकी एक भीतपर वि. संवत् १३५० माघ सुदि १ मंगलबारका एक लेख है जो कि आज्ञापत्रिकाके रूपमें है। जिसमें लिखा है कि-"चंद्रावती नगरीके मंडलेश्वर वीसलदेवको वहांके वाशिंदा-महाजन शा. हेमचंद्र, महाजन भीमाशा, महाजन सिरिधर, शेठ जगसिंह, शेठ श्रीपाल, शेठ गोहन, शेठ वरता महाजन वीरपाल आदि समस्त महाजनोंने प्रार्थना की कि आबु तीर्थके रक्षण (खर्च) वास्ते कुछ प्रबंध करना चाहिये । उनकी उस अर्जपर ध्यान देकर मंडलेश्वर वीसलदेवने-विमलवसति और लूणिगवसति इन दोनों मंदिरोंके खर्च के लिये और कल्याणकादि महोत्सवोंके करनेकेवास्ते व्यापारियोंपर और धंधेदारोंपर अमुक लाग लगाया है इत्यादि । विमलमंत्रीके समय जैन धर्मका बड़ा उत्कर्ष था । इसलिये भाविकालमें क्या होगा इस बातकी चिन्ता उस वक्त थोडीही की जाती थी । परंतु वस्तुपाल तेज: पालके समयमें तो इस विषयका पूर्ण रूपसे विचार करना आवश्यक था; और उनं निर्माताओंने इस विषय पर खूब गौर किया भी हैं । कालके दोपसे रक्षकही भक्षक होगये हों यह बात और है परंतु उन्होंने किसी किसमकी त्रुटि नहीं रखी थी । इस विषयकी विशेष विज्ञताके लिये वस्तुपाल तेजपालके मंदिरके संवत् १२८७ फाल्गुन वदि ३ रविवारके एक लेखका संक्षिप्त सार नीचे दिया जाता है।

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