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बड़े आसान तरीके घड दिये थे कि - जिनसे उन मंदिरोंकी पूजा होती रहे । वह तरीके आजके समाजको वडे अनुकरणीय - और आदरणीय हैं ।
कतिपय वाचक महाशयोंने मेरा लिखा " महावीर शासन" नामक हिन्दी पुस्तक देखा होगा, उसके प्रारंभ में "रातामहावीरका मंदिर" इस नामसे विख्यात एक दर्शनीय स्थानका और तगत श्रीमहावीर प्रभुकी प्रतिमाका फोटोभी दिया गया है । उस प्राचीन चैत्यकी पूजाके लिये मर्यादा पत्र लिखा गया था, जिसका संक्षिप्त सार यह है - "बलभद्रसूरि" जीके उपदेशसे "विदग्धराज" नामक राजाने यह मंदिर बनवाया, उत्सव पूर्वक प्रतिष्ठा करवाई, संवत् ९७३ आषाढ मासमें राजाने अपने राज्यके अच्छे अच्छे आदमियोंको बुलाकर उनकी सलाहसे यह आज्ञापत्र लिखा कि- जो जो व्यापारीलोग क्रयाणा लायें या लेजावें उनको चाहिये कि, वो वीस पोठिये बैलोंके पीछे एक रुपया देवें । मालके गाडेपर एक रुपया, ऐसेही तेलीयोंपर खेती करनेवालोंपर अनाजके वेचने और खरीदनेवालोंपर, दुकानदारोंपर, प्रत्येक वस्तुपर ऐसा हलका कर डाला गया था कि, जो देनेवालोंको कुछ मुश्किल नहीं पडता था । इस आमदनीमेंसे ( तीसरा भाग) मंदिरजीके लिये और ३ ( बाकी दो भाग) विद्या - ज्ञानकी वृद्धिमें खरच किया जाता था । संवत् ९९६ माघ वदि ११ को मम्मट राजाने पुन: इस आज्ञापत्रका समर्थन किया था ।
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