Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 93
________________ पीतलकी मूर्ति है जिसपर वि० सं० १६८६ 'आषाढादि (ई० स० १६३०) वैशाख सुदि ५ का लेख हैं। नंदीसे कुछ दूर लोहका बनाहुआ एक बहुतही बडा त्रिशूल है जिसपर वि० सं० १४६८ (ई० स० १४१२ फाल्गुन सुदि १५ का लेख है । यह त्रिशूल राणा लाखा ठाकुर मांडण तथा कुंवर भादाने घाणेराव गांवमें बनवाकर अचलेश्वरको अर्पण किया था । लोहका ऐसा वडा त्रिशूल दूसरे किसी स्थानमें देखने में नहीं आया। __ अचलेश्वरके मन्दिरके अहातेमें छोटे छोटे कई एक मन्दिर हैं जिनमें विष्णु आदि अलग अलग देवताओंकी मूर्तियां हैं मंदाकिनीकी तरफके कोनेपर महाराणा कुंभकर्ण (कुंभा) का बनवाया हुआ कुंभस्वामीका सुन्दर मन्दिर है। अचलेश्वरके मन्दिरके बाहर मंदाकिनी नामका बड़ा कुंड है जिसकी लंबाई ९०० फीट और चौडाई २४० फीटके करीब है इसके तटपर पत्थरकी बनीहुई परमार राजा धारावर्षकी धनुषसहित सुन्दर मूर्ति है जिसके आगे पूरे कदके तीन मैंसे एक दूसरे के पास खडेहुए हैं जिनके शरीरके आरपार एक एक छिद्र है जिसका आशय यह है कि धारावर्ष ऐसा पराक्रमी था कि पास पास खडेहुए तीन भैंसोंको एकही .. आषाढादि गुजरातकी गीणनाके अनुसार आसाढ राजपूतानाके हिसावसे श्रावणसे प्रारभ होनेवाला वरस या संवत इस लेखको वि० सं० १६८६ को आसाढादि माननेका कारण यहहै कि लेखमे वि० सं० के साथ सक सवत १५८२ लिखा है जिससे स्पष्ट है कि यह मूर्ति चैत्रादि वि० सं० १६८७ आसाढादि १६८६ मे वनी थी।

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