Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 99
________________ परिशिष्ट-नम्बर २. आवुतीर्थपर छोटे बड़े अनेक जैनमंदिर हैं परंतु उन सबमे विमलमंत्रीका वनवाया "विमलवसहि" नामक __ मंदिर है, जिसको "ऋपभदेव" स्वामीका मंदिर कहते हैं। और तेजपालके पुत्र लूणसिंहके कल्याणके वास्ते बनवाये हुए लूणगवसहिके नामसे प्रसिद्ध वस्तुपाल तेजपालका बनवाया हुआ मंदिर है, जिसको "नेमिनाथ" स्वामीका मंदिर कहते हैं। ___ यद्यपि इनके अतिरिक्त आबुतीर्थके ऊपर औरभी अनेक जिनमंदिर वर्तमान कालमें विद्यमान हैं जिनके नाम परिशिष्ट नंबर १ में आचुके हैं और यहांभी लिखे जायेंगे तोभी मुख्य और विशाल मंदिर येही दो हैं । पहले श्रीऋषभदेवजीके मंदिरका नाम "विमलवसहि" इसवास्ते है कि यह विमलमंत्रीका बनवाया हुआ है। दूसरे मंदिरका नाम "लूणगवसहि" इसवास्ते है कि वह वस्तुपालके भाई तेजपालके लडके लूणसिंहके कल्याण के निमित्त बनवाया गया है। विमलमंत्रीका मंदिर पहले बना है, और वस्तुपाल तेजपालका पीछे बना है, "विमलवसहि"की प्रतिष्ठा वि. सं. १०८८ में हुई है। और "लूणगवसहि"की प्रतिष्ठा वि. आयु.६

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