Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 97
________________ ७९ ७०० सीढियां नीचे उतरनेपर वशिष्ठऋषिका आश्रम आता है जो बडाही रमणीयस्थान है । यहांपर पत्थरके बने हुए गौके मुखमेंसे एक कुण्डमें सदा जल गिरता रहता है इसीसे इस स्थानको गौमुख कहते हैं। यहांपर वशिष्ठका प्राचीन मंदिर है जिसमें वसिष्ठकी मूर्ति है और उसकी एक तरफ रामचन्द्रकी और दूसरी और लक्ष्मणकी मूर्ति हैं । यहां पर वशिष्ठकी स्त्री अरुंधतीकी तथा पुराणप्रसिद्ध नन्दिनीनामक कामधेनुकी बछडेसहित मूर्ति भी है । मंदिर के सामने एक पीतलकी खडीहुई मूर्ति है जिसको कोई इन्द्रकी और कोई परमार राजा धारावर्षकी बतलाते हैं। यहां वशिष्ठ ऋषिका प्रसिद्ध अग्निकुण्ड है जिसमेंसे परमार पडिहार सोलंकी और चौहान वंशों के मूलपुरुषोंका उत्पन्न होना लोगों में माना जाता है वशिष्ठके मंदिरके पास वराहअवतार, शेषशायी नारायण, सूर्य, विष्णु, लक्ष्मी आदिकी कई एक मूर्तियां रखीहुई हैं मंदिर के द्वारके पासकी दीवार में एक शिलालेख वि० सं० १३९४ (ई० स० १३३७ वैशाखसुदि १ का लगा हुआ हैं जो चंद्रावतीके चौहान राजा तेजसिंहके पुत्र कान्हडदेव के समयका है । इसीके नीचे महाराणा कुंभाका वि० सं० १५०६ ( ई० स० १४४९ ) का लेख खुदा है । गौतम - शिष्ट मंदिर से अनुमान ३ माइल पश्चिममें जाने बाद कई सीढियां उतरनेपर गौतमऋपिका आश्रम आता है यहांपर गौतमका एक छोटासा मंदिर है जिसमें विष्णुकी मूर्तिके पास गौतम तथा उनकी स्त्री अहिल्या की मूर्तियां हैं।

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