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इन मन्दिरोंके सिवाय देलवाडेमें श्वेतांबर जैनोंके दो मन्दिर और हैं । चौमुखजीका तिमंजिला मन्दिर और शांतिनाथका मन्दिर । तथा एक दिगंबर जैनमन्दिरभी है। इन जैनमन्दिरोंसे कुछ दूर गांवके बाहर कितनेक टूटेहुए पुराने मंदिर औरभी हैं जिनमेंसे एकको लोग रासिया वालमका मंदिर कहते हैं । इस टूटेहुए मंदिरमें गणपतिकी मूर्तिके निकट एक हाथमें पात्र धरेहुए एक पुरुषकी खडीहुई मूर्ति है जिसको लोग रसियावालमेकी और दूसरी स्त्रीकी खडीहुई
है जिसको कुंवारी कन्याकी मूर्ति बतलाते हैं । कोई कोई रसि__ यावामको ऋषि वालमीक अनुमान करते हैं । यहांपर वि० स० १४५२( ई० स० १३९५)का एक लेखभी खुदाहुआ है
अचलगढ-देलवाडेसे अनुमान ५ माइल उत्तर पूर्वमें अचलगढ नामका प्रसिद्ध और प्राचीन स्थान है । पहाडके नीचे समान भूमिपर अचलेश्वर महादेवका जो आबूके अधिष्ठाता देवता माने जाते हैं प्राचीन मन्दिर है । आबूके परमार राजाओंके ये कुलदेवता माने जाते थे और जबसे वहांपर चौहानोंका अधिकार हुआ तबसे चौहानोंकेभी इष्टदेव माने जाने लगे । अचलेश्वरका मन्दिर बहुत पुराना है और कईबार इसका जीर्णोद्धार हुआ है । इसमें शिवलिंग नहीं किन्तु शिवके पैरके अंगूठेका चिन्हमात्रही है जिसका पूजन होता है । इस मन्दिरमें अष्टोत्तरशत शिवलिंगके नीचे एक बहुत बड़ा शिलालेख वस्तुपाल तेजपालका खुदवाया हुआ है । उसपर जल गिरनेके कारण वह बहुतही विगड गया है तोभी उसमें