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पाल, तेजपाल, जैत्रसिंह और लावण्यसिंह ( लूणसिंह ) की बैठी हुई मूर्तियां थी परंतु अब उनमेंसे एकभी नहीं रही। इन हथिनियोंके पीछेकी पूर्वकी दीवार में १० ताक बनेहुए हैं जिनमें इन्हीं १० पुरुषोंकी स्त्रियों सहित पत्थर की खडी हुई मूर्तियां बनी हैं जिन सबके हाथों में पुष्पों की माला हैं और वस्तुपालके सिरपर पाषाणका छत्रभी हैं । प्रत्येक पुरुष तथा स्त्रीका नाम मूर्तिके नीचे खुदाहुआ है । अपने कुटुंबभरका इस प्रकारका स्मारक चिन्ह बनानेका काम यहांके किसी दूसरे पुरुषने नहीं किया । यह मन्दिर शोभनदेवनामके शिल्पीने बनाया था । मुसल्मानोंने इसको भी तोड़े डाला जिससे इसका जीर्णोद्धार पेथड ( पीथड) नामके संघपतिने करवायथा । जीर्णोद्धारका लेख एकस्तंभपर खुदाहुआ है परन्तु उसमें संवत् नही दिया । वस्तुपालके मन्दिरसे थोडे अंतरापर भीमासाहका जिसको लोग भैंसासाह कहते हैं बनवायाहुआ मन्दिर है जिसमें १०८ मन तोलकी पीतल ( सर्वधात ) की बनी हुई आदिनाथकी मूर्ति है जो वि० सं० १५२५ ( ई० स० १४६९ ) फाल्गुण सुदि ७ को गूर्जर श्रीमाल - जातिके मंत्री मंडन के पुत्र मत्री सुन्दर तथा गढ़ाने वहां पर स्थापित की थी ।
१ आयुके इन मंदिरोको किस मुसलमान सुलतानने तोडा यह मालुम नही हुआ । तीर्थकरूपमे जो वि० स० १३४९ ई० स० १२९२ के आसपास वननाशरू हुवा और विक्रम स १३८४ ई० स० १३२७ के आसपास समाप्त हुआ था मुसलमानोका इनमदिरोंको तोडना लिखा है जिससे अनुमान होता है अलाउदीन खिलजीकी फोजने जालौर के चउआणराजा कानडदेपर वि० सं १३६६ इ० स० १३०९ के लगभग चढाइकी उसवक्त यहाके मंदिरों को तो - डाहो जीर्णोद्धार मे जितना काम बना है वह सबका सब भद्दा है
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