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किये जाते थे। येह चामर किसीको राजाकी तर्फसे और किसीको श्रीसंघकी तर्फसे मिले हुए थे।
४५०५ पालकियां थीं । १८०० सामान्य गाडियां थीं। २२०० तपस्विसाधु साथमे थे। ११०० दिगंबर साधु थे। ४०८ वडे रथ थे जिनको घोडे खींचतेथे । ३३० रथ ऐसे थे जिनको वैल खींचते थे । १८०० सुखासन थे।
सव मिलाकर सात लाख मनुष्य थे । ३०३ मागध थे । ४००० घोडे थे । हजारों तंबु थे। सबके मध्यभागमे देवविमानके समान वस्तुपाल तेजपालका तंबु था । तोरण सहित ७०० देवालय थे।
विशेष अलौकिक घटना यह थी कि श्रीसंघके आगे सिंह पर सवार होकर अंबिका माता चलती थी। उन्हीके साथ हाथीकी सवारी पर चढे हुए कपर्दी यक्ष चलते थे। याचक लोग चारो तर्फसे-"सरस्वतीकंठाभरण १ षट्दर्शनकल्पतरु २ औचित्यचिन्तामणि ३ संघपति ४ कविचक्रवर्ती ५ अर्हद्धर्म-धुरन्धर ६ भोजकल्प ७ समस्तचैत्योद्धारक ८ दानवीर ९ कलिकालवलनिवारक १०जिनाज्ञापालक ११ इत्यादि विरुदावलियोसें आकाश गुंजा रहे थे।
इस अलौकिक समारोहके साथ महामात्यने आनन्दाद्वैतसे सिद्धक्षेत्र और गिरनारतीर्थकी यात्रा करके अपने सम्यक्त्व रनको विशद बनाया और लाखों भव्यात्माओंको बोधिबीजका दान दिया।