Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 81
________________ ६३ ॥ अनन्य संपत् ॥ संघ लेकरके मंत्री जब सोरठकी तर्फ जा रहे थे रास्तेमे वढवाण शहर आया, वहां अनेकगुणसंपन्न "रत्नशेठ" नामक शाहुकार था, उसके पास दक्षिणावत्तं शंख था । संघपति वस्तुपालके आनेसे कुछ दिन पहले दक्षिणावर्त्तके अधिष्ठायकने अपने स्वामी रत्नशेठको कहा कि-"मै सात पीढियांसे आपके घर रहता हूं, अब वस्तुपालका भाग्य सितारा तेज है, मैभी उसी ही पुण्याढ्यकी सेवा करूंगा, इसलिये तुम संघपतिको आदर पूर्वक घर बुलाना और सत्कार सन्मान पूर्वक भोजन कराकर भेटमे यह शंख उनको दे देना" रतशेठ वडा संतोपी था, उसने वैसाही किया और संसारमें अपूर्व यश प्राप्त करलिया। ___ वस्तुपाल बड़े विचारशील थे, उनकी बुद्धि शास्त्रसे परिष्कृत थी, उनके मनमे यही कामना रहती थी कि किसी तरहसे भी अपने स्वामीके मनको धर्ममे जोडाजाय तो अच्छा हो । उनका वह मनोरथ सफल हुआ, राजा वीरध. वलने मद्य १ मांस २ और पर्वदिनोंमे रात्रीभोजन ३ का त्याग करदिया। विशेष आनन्दकी बात यह कि उस राजाधिराजने सर्व पापोंके सरदार "परस्त्रीगमन" रूप घोर पापकोंभी छोड दिया। ॥मूल विषय । अभीतक जो कुछ कहा गया है वह सब वस्तुपाल तेजपालके संबंधमे कहागया है, परन्तु हमारा असली वक्तव्य तो

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