Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 67
________________ ४९ ' इधर वस्तुपाल तेजपाल इसी ही यत्नमें थे कि-अपना आधा राज्य देकर भी सामन्तपाल वगैरहको भीमसिंहसे पृथक जरूर करना उनकी आशा सफल हुई, साम-दाम-दण्डभेद-जिस किसीभी नीतिसे कार्य सिद्ध होसका उन्होंने किया, आखीर एकदिन उनके उस उद्यमका यह फल आया कि सामन्तपाल आदि ३ ही भाई भीमसिंहको छोडकर वीरधवलके पास आगये, राजाने उनको बडे बडे गाम इनाम दिये। भीमसिंहसे फिर लडाई शुरु हुई, भीमसिंहकी हार हुई। भद्रेश्वरकी फतहमें राजाको ७ क्रोड सोनामोहरें-दशहजार घोडे मिले। ___ अब चारों ओर वीरधवलकी विजयपताका फरकने लगी, दिशा दिशासे हाथी घोडे गाम मणि माणिक सोना रुपया वगैरहकी भेटें आने लगी, तमाम राजा वीरधवलकी आज्ञाको मान देने लगे। __ गोधरेका राजा धुंधल पहले गुजरातके महीपतियोंको भलीभांति मान देता था, परंतु अब कुछ अरसेसे परामुख हुआ बैठा था, राजा वीरधवलने उसको परास्त करनेके लिये अपनी फौज देकर तेजपालको भेजा। धुंधलको क्रोध आया कि यह बकाल चणिक मुझपर हथियार चलायेगा ? मेरा सामना यह करेगा ? हुआ भी ऐसाही कि धुंधलके सिंहनादको सुनकर वीरधवलके वीर योद्धे संग्रामके मैदानको छोडकर भाग चले । तेजपालने सायंकाल सबको बुलाकर इनाम वांटा और उन्हे उत्साहित किया। आवु०४

Loading...

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131