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अनेक तरह समझाया कि खामिनाथ ! संग्रह कीहुई निर्माल्य वस्तुभी कभी काम देती है तो यह चौहाण राजपुत्र आपके आश्रय आकर आजीविकाके संकोचसे अन्यत्र चले जावें यह राजाधिराज गुर्जरपतिकी विशद कीर्तिमे कलङ्क है । इतना कहनेपर भी राजाने उधर लक्ष्य नहीं दिया । वह लोग गुर्जरसीमाको छोडकर भद्रेश्वर नगरमे राजा भीमसिंहकी सेवामें पहुंचे । भीमसिंह पहलेही वीरधवलका विरोधी था। उसने जब सुना कि यह राजकुमार वीरधवलका अपमान खाकर आये हैं तो उसने एक एक भाईको चार चार लाखका वर्षासन देकर अपनेपास रखलिया !!!
दैवयोग-चीरधवल और भीमदेवमें लडाई शुरु हुई, लडाईका कारण सिर्फ इतनाही था कि-भीमसिंहके भाटने आकर वीरधवलकी सभामे अपने स्वामीके गीत गाये जिससे वीरधवलको गुस्सा आया । वीरधवलको लडाईमे आए सुनकर जालोरी सुभटोंने कहलाया कि-"तुमने हमारा अपमान किया है इसलिये कल सवेरे हम युद्धभूमिमें उस वैरका बदला लेंगे ! (६) लाख द्रम्म खर्चकर तुमने जो योद्धे तयार किये हों उन्हे खूब सन्नद्धवद्ध कर रखना ।" वीरधवलने उसवक्त भी इस बातको हांसीमें निकाल दिया। दूसरे दिन युद्ध शुरु हुआ, सामन्तपाल और उसके दोनो भाइयोंने गुर्जरपतिके सामन्तोंको मार भगाया। सामने आये हुए वीरधवलके सिरमे भाला मारकर उसकोभी जमीनपर गिरादिया ।
१ आजीविका।