Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 31
________________ १३ करता था । प्रथम अवस्था - राज्यसन्मान - शरीर सुन्दर-बलिष्ट इन सब विकारी कारणोंके होनेपर भी वोह अपने सदाचारकों मनसें भी नहीं भूलताथा, इसीलिये राज्य और प्रजामें उसका सन्मान प्रतिदिन बढता जाताथा । श्रीदेवी जैसी सुरूपा और अच्छे घरानेकी स्त्री मिलनेपर भी विमल कुमारको किसी किसमका गर्व नहींथा, प्रिय पत्तीके साथ वोह जब कवी एकान्तमें बैठकर बात चीत करताथा तब भी वोह इस मनोवांछित सकल सामग्रीके मिलनेमें श्रीजिनशासनकी सेवाकाही फल मानकर उसीही परमात्माका उपकार माना करताथा । श्रीदेवीको योग्य और धर्मिष्ठ वोहभी कई दिनोंसें प्रार्थित पतिका लाभ होनेसें जो हर्प था उसकी रूपरेखा कौन चित्र - सक्ताथा ? घरके उचित आवश्यकीय कार्यों में श्रीदेवीकों किसीकी शिक्षाकी जरूरत नहीं पडती थी, वोह स्वतोहि इन कार्यों में कुशल थी, श्वशुरगृहमें श्रीदेवीने वडा सन्मान पायाथा इसलिये विमलकुमारका भी उसपर अखंड प्रेम था, वीरमतीभी अनेक प्रसंगोंमें बहुकी सलाह लेकर काम किया करतीथी, श्रीदेवीकी उमर छोटी होनेपरभी पिताके घरमें मिलीहुई शिक्षा उसके गौरवकों बढा रही थी । जब वोह घरके कामोंसें फारग होती तब सामायिक लेकर धर्मके पुस्तक वाँचकर अपनी सासुकों सुनाया करतीथी । इस वक्त पतिके घरका सब भार उसने उठालिया था और प्रत्येक कार्यकों वोह ऐसा नियमित कर लेती थी, कि

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