Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 39
________________ २१ इसी प्रकार चेदीराज और मालवपति भोजके साथ संग्राम करके भी विमलकुमारकी सहायतासे प्रस्तुत नरेशको विजय मिली । || पश्चात्ताप ॥ विमलकुमारको राजाकी ओरसे मंत्रीपद मिला हुआ था इस वास्ते पाटणके राज्यमे उनकी बडी पूछथी यद्यपि सत्यप्रतिज्ञाशाली और युद्धकुशल देखकर राजाने उनको सेनानायक बनाया था तो भी सदाके लिये वह मंत्रीपदके ही अधिकारी थे, राजा भीमदेव विमलमंत्री पर सर्वथा तुष्ट थे इस वास्ते उनकी दी हुई सलाहको बडे आदरसे स्वीकारते थे, परन्तु दुर्जन अपना मंत्र फूंके विना कैसे टल सक्ते थे । एक दिन किसी देवीके मन्दिरमे यज्ञ हो रहाथा, उसमे पांच बकरे भी मंगवाये हुए थे, अभी उनके प्राण नष्ट नही किये थे कि उन जीवोंके भाग्यवशसे विमलकुमार उसदेवीके मन्दिरमे जा पहुंचे । वें वें करते उन अनाथ पशुओंपर उनको दया आई, उन्होने उन ब्राह्मणोंको अर्थात् पुजारियोंको समझा बुझाकर बकरे छुडादिये, अगर कोई नही मानताथा तो उसे जरा धमकी भी दीगई । दूसरे दिन ब्राह्मणमंत्री, राजगुरु पंडित और अन्यान्य उनके अनुयायी लोगोंका एक मंडल एकत्र होकर सभा मे आया, उनमे मुख्य " दामोदर" मंत्री था, जो कि विमलकुमारका सदासे विरोधी था । उन्होने अगली पिछली वातें समझाकर राजाके मनमे यह ठसा दिया कि विमल हमारे धर्मका अपमान करता है, इतनाही नही बल्कि सिंधराजको

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