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• भीमदेवने उक्त समाचारको आद्योपान्त ध्यानपूर्वक सुना उन्होंने क्रोधके आवेशमें आकर संग्रामसिंहकी तर्फ देखा, संग्रामसिंह बडा चतुर था,उसने खडे होकर अरज की, साहिब! महाराजाकी आज्ञा हो तो दोनों राज्योंपर चढाई करनेको सेवक तैय्यार है । राजाने कहा वेशक मेरी इच्छा यही है कि मालवपति चेदीराज और सिन्धुनरेशको अपना हाथ दिखाना जरूरी है मगर बहुत अरसेसे अपने सैनिकोंको युद्धका काम नहीं पड़ा इस वास्ते तमाम योद्धाओंको कवायदका हुकम देकर प्रथम उनकी परीक्षा करली जाय, अस्त्रशस्त्रादिकी जो जो श्रुटि होवे उसकोभी पूर्णकर लिया जाय, इस कार्यमें अपने नामके अनुसार यशोवाद और सफलता प्राप्त हो सकती है ।
राजाकी यह सलाह सबको पसंद आई, तमाम सभासदोंने महाराजकी गंभीरताको आदरपूर्वक वधालिया और थोडेही समयमें सैनिक योद्धोंके साथ हाथी-घोडे-चैल-ऊंट-शस्त्र-अस्त्रअन्न-इन्धन-कपडा-लत्ता वगैरह एकठा करलिया गया।
ज्योतिषीके दिये शुभ लग्नमें शुभ शकुनोंसे सूचित आशीर्वचनोंसे उत्साहित राजा भीमदेवने सिन्धाधिपति पर चढाई की।
भीमदेवकी फौज सिन्धदेशके पाटनगरके किनारेपर जापडी, सिन्धखामी भी अपने फौजी सैनिकोंको साथ लिये श्रावणके वादलकी तरह गर्जता हुआ सामने आ डटा।
दोनो तर्फसे युद्धका प्रारंभ हुआ, चिरकालकी प्रतीक्षित भाटोंकी प्रशस्तियोंके सुश्लोक योद्धाओंके कानोंको सुहावने लगने लगे।