Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 28
________________ दिन प्रतिदिन अनिष्ट होता जाता था। वोह रातदिन सच्चे दिलसे विमलकुमारकोंही चाहतीथी, उसकोंही देखती और ढूंढती थी, उसके विना अन्य युवकका नामभी उसे अनिष्ट था। जब उसे ललिताकी जुबानी यह समाचार मालूम हुआ कि तुमारे लिये यह योजना निश्चित हुई है तो उसने अपने दिलसे अपनी भाभीकों कोटि आशीर्वाद दिये, और उस दिनसें वह अपने मनोरथकों सफल मानकर आनन्दमें दिन गुजारने लगी। श्रीदेवी जैसी एक सुशीला स्त्रीकों विमलकुमार जैसे बरसे युक्त करना विधिका अत्युत्तम कौशल था । चन्द्रकुमार अपने पिताकी आज्ञाऽनुसार साथमें कुछ स्वजनोंको लेकर विमलके मौसाल गया, और वीरमतिसे अपना आशय प्रकट किया, वीरमति और उसका भाई, दोनों बडे प्रसन्न हुए परन्तु कन्या देखे पीछे निश्चय कहसकेंगे, यह कहकर वीरमतीका भाई पाटण आया, उसने जब श्रीदेवीको देखा तो उसको पूर्ण सन्तोष हुआ, लग्नदिनका निश्चय किया गया, घर जाकर बहिनसें सब बात की। और कहाकि-श्रीदेवी तो खास श्रीदेवीकाही अवतार है, विमलकुमारको ऐसी कन्याका मिलाप यह सुयोग्य संबंध है इसलिये इस विषयमें किसी वातकी न्यूनता नहीं है, विमलके पुण्यसेंही यह उत्तम घटना बनी है, वीरमतीकों बडी खुशी हुई पुत्रका लग्न करना है, पाटणके नगरशेठकी लडकीकों व्याहनें जाना है, आज हमारी जैसी चाहिये वैसी अच्छी स्थिति नहीं है, इन बातोंको

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