Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 26
________________ पति सासु श्वशुर और छोटे बड़े सभी कुटुंवियोंसे अतिउत्तम व्यवहार रखतीथी, विमलकुमार भाग्यवान् था, उसके ग्रामान्तर चले जानेपरभी पाटणके प्रत्येक घरमें उसकी कीर्त्तिके गान होरहे थे। नगर शेठने कन्याके लिये सुन्दर वरकी तलाशका काम .एक सुप्रसिद्ध ज्योतिषीकों सोंपा हुआ था, ज्योतिषीजीने श्रीदेवीके वरके लिये बहुत घड मथल की, परन्तु उसे कोई सुयोग्य वर नजर न आया, श्रीदत्तकों इस बातकी चिन्ता विशेष बाधित करने लगी, ऐसी दशामें ज्योतिषीजीकों वरकी शोधके लिये फिर भी आग्रह किया, तब उन्होंने अनेक अनुभवियोंसे अनेक बातोंका निर्णय करके विमलकुमारको श्रीदेवीका वर कायमकर श्रीदत्तको आकर वधाई दी और कहा कि आपकी आज्ञासे मैं जिसकार्यमें फिरता था आज मेरा प्रयास पूर्णरूपसें सफल हुआ है । श्रीदत्तने उनकी बातपर पूरा ध्यान देकर पूछा वरराज किस खानदानके हैं ? । ज्योतिषीजी बोले वीरमंत्रीकी कीर्त्तिको संसारमें कौन नहीं जानता ? उस की गैर हाजरीमें उसकी कीर्तिको कोटिगुणी अधिकाधिक वढानेवाला विमलकुमार उनका पुत्र संसारमें जयवंता है, उसके रूपपर देवताभी मोहित होते हैं, वह अपने सदाचारसें जगत्के प्रमाणपुरुषोंमें मुकुट समान होनेवाला है, संसारकी प्रायः सर्व उत्तम कलाएँ उसने अपने नामकी तरह याद कर रखी हैं। उसकी जन्मकुंडली मेरे हाथकी बनी हुई है, आजके संसारमें मैं विमलकुमारकों सर्वोत्तम पुण्यवान मानता हूं, इसी लिये

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