Book Title: Aatm Samikshan
Author(s): Nanesh Acharya
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 13
________________ अर्थ सहयोगी शिक्षाप्रेमी, दानवीर लूणिया परिवार : एक संक्षिप्त परिचय संघ को साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में उदारमना, दानी-मानी महानुभावों का सहयोग सदैव सहज ही सुलभ रहा है। प्रस्तुत पुस्तक 'आत्मसमीक्षण' के पुनः प्रकाशन में भी संघ को देशनोक के शिक्षाप्रेमी, दानवीर लूणिया परिवार का उदात्त अर्थ सहयोग प्राप्त हुआ है। वस्तुतः स्व. श्री करणीदान जी लूणिया की इच्छा थी कि 'आत्मसमीक्षण' ग्रन्थ के प्रकाशन हेतु अर्थ सहयोग प्रदान किया जावे। वे अपने पिताजी श्री सुगनचंदजी लूणिया और माताजी श्रीमती कस्तूरी देवी जी लूणिया की स्मृति में प्रकाशित करवाना चाहते थे किन्तु दिनांक २० जनवरी १६६३ को उनका देहावसान हो गया। श्री करणीदान जी लूणिया के सुपुत्रों ने अपने पिताजी की सइच्छा को पूर्ण करने हेतु इस ग्रन्थ का प्रकाशन कराने हेतु मुक्तहस्त अर्थ सहयोग प्रदान किया। यह अर्थ सहयोग लूणिया परिवार के सुसंस्कारों और मातृ-पितृ भक्ति का एक ज्वलन्त उदाहरण है। परमपूज्य आचार्य गुरुदेव श्री १००८ श्री नानालालजी म. सा. के प्रति अनन्य निष्ठा और समर्पण के प्रतीक लूणिया परिवार ने श्रावक धर्म का आदर्श पालन करने की दिशा में सदैव अग्रणी भूमिका निभाई है। स्व. श्री सुगनचंदजी लुणिया और उनकी धर्मपत्नी स्व. श्रीमती किस्तूरीदेवी जी लूणिया के धर्म संस्कार उनके यशस्वी सुपुत्र स्वर्गीय श्री करणीदान जी लूणिया में साकार देखे जा सकते थे। स्वर्गीय श्री करणीदान जी लूणिया का जन्म सं. १६७५ की कार्तिक. बदी १४ को हुआ था और उनका स्वर्गवास सं. २०४६ की माघ बदी १३ को हुआ। इस प्रकार आपने यशस्वी ७४ वर्ष की आयु प्राप्त की। आपने ४० वर्ष तक रात्रिभोजन का त्याग रखा और ३० वर्ष तक चौविहार का पालन किया। अत्यन्त सरल जीवन के धनी श्री लूणिया जी के दिन भर में २१ द्रव्य की मर्यादा थी। सं. २०३२ में आपने आजीवन शीलव्रत अंगीकार किया। संवत् २००६ में आपने वर्ष भर में कपड़ों पर १०० रुपये व्यय करने की मर्यादा ग्रहण की और उसे दृढ़तापूर्वक आजीवन निभाया। इस महंगाई और उपभोक्तावादी युग में उनका यह व्रत भारतीय संस्कृति के 'सम्पत्ति भगवान की' अर्थात् न्यास वृत्ति (ट्रस्टीशिप) का मूर्तिमन्त आदर्श था। आप श्री सु. कु. सांड शिक्षा सोसायटी के उपाध्यक्ष, श्री जैन जवाहिर मंडल के उपाध्यक्ष, श्री करणी गौशाला देशनोक के उपाध्यक्ष व संरक्षक तथा श्री करणी सुबोध शिक्षालय के अध्यक्ष रहे। वस्तुतः आपका जीवन सेवा समर्पित था। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती सिरिया देवी जी लूणिया आदर्श सुश्राविका हैं। इस ग्रंथ के प्रकाशन में श्रीमती सिरिया देवी जी और उनके दोनों पुत्रों की धर्म प्रेरणा निर्णायक रही है। आपके दोनों पुत्र भी समाजसेवी और उदारमना हैं। ज्येष्ठपुत्र श्री दीपचंद जी लूणिया देशनोक नगरपालिका के अध्यक्ष रहे व समता युवा संघ देशनोक के भी अध्यक्ष रहे। आपके द्वितीय पुत्र श्री डालचन्द जी लूणिया भी साधुमार्गी जैन श्रावक संघ सूरत के कोषाध्यक्ष हैं। आपके ३ पौत्र व ८ पौत्रियों का भरा-पूरा परिवार है। सारा परिवार सुसंस्कृत व जिनशासन को समर्पित है। इस शासननिष्ठ परिवार द्वारा इस ग्रन्थ को प्रकाशनार्थ प्रदत्त अर्थ सहयोग हेतु संघ साधुवाद और आभार ज्ञापित कर हर्ष का अनुभव करता है। संयोजक

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