Book Title: Aagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 03
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 234
________________ आगम (४०) । "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः ) भाग-३ अध्ययनं [-], नियुक्ति: [७८२-७८३], वि०भा गाथा [२३९३-२३९५], भाष्यं [१३२-१३३], मूलं [-/गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सत्राक दीप श्रीआव-पाजे पाइयगा ते वोच्छिन्ना पुर्व चेव, (तुम्ह) सिद्धृतो एस, अतो तुम्भे अण्णे केऽवि चौरा, ते भणति-मा मारेह, एवं तेहिंसामुच्छ श्यक मल- संबोहिया पडिवन्ना सम्मत्तं ॥ अमुमेवार्थमुपसमिथुराहया वृत्ती|| मिहिलाए लच्छिघरे महगिरि कोडिन आसमित्त अनेउणियणुप्पबाए रायगिहे खंडरक्खा य ॥१३शा(भा.) उपोद्घाते | मिथिलायां नगर्या लक्ष्मीगृहे चैत्ये महागिरय आचार्यास्तेषां शिष्यः कौण्डिन्यः, तस्यापि शिष्योऽश्वमित्रः, सोऽनुप्र-18 सवादाभिघाने पूर्वे नैपुणिकं वस्तु पठन् छिन्नच्छेदनकनयवतच्यतायामालापकानधीयानो मिथ्यात्वमगमत् , स च समुच्छेद ॥४०९॥ प्ररूपयन् काम्पिल्यपुरं राजगृहापरनामकं गतः, तत्र खण्डरक्षकाभिधानाः श्रमणोपासकास्तैः प्रतिबोधितः ॥ उक्तश्चतुर्थो | |निहवः, सम्पति पञ्चमं निहवमभिधित्सुराहI अट्ठावीसा दो वाससया तइया सिद्धिं गयस्स वीरस्स। दोकिरियाणं दिट्ठी उल्लुगतीरे समुप्पन्ना ॥१३॥(भा.) यदा भगवतो द्वे वर्षशते अष्टाविंशत्युत्तरे गते तदा द्विक्रियाणां दृष्टिरुल्लुकातीरे समुत्पन्ना ॥ यथोत्पन्ना तथा प्रदश्यतेउल्लुका नाम नदी, तीए तीरे एगम्मि खेडवाणं, बीयम्मि उल्लुगातीरं नगरं, तत्थ महागिरीणं आयरियाणं सीसो धण || गुत्तो नाम आयरितो; तस्सवि सीसो गंगो नाम, सो आयरिओ, सो तीसे नदीए पुषिमे तडे, आयरिया से अवरिमे तडे, ततो सो सरयकाले मायरियवंदतो उच्चलितो, सो य खल्लीडो, तस्स खल्ली उण्हेण डज्झइ, हेट्ठा य सीयलेण पाणिएण | *सीयं, ततो सो चिंतेइ-जहा सुत्ते भणियं-एगेण समएण एगा किरिया वेइजइ, सीया वा उसिणा वा, अहं च दो किरि-टू यातो-वेएमि, अतो दो किरियातो एगेण समएण वेइज्जति, ताहे आयरियाण साहइ, प्रमाणयति च-भवतो द्वावपि युग अनुक्रम %ERRC-RS-+ 1 ॥४०९॥ JanEthicsonn inamainana For Per t h ~234

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