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आराधना गगा
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पन्यास प्रवर श्री अजयसागरजी
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योगनिष्ठ आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी
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श्रुतसमुद्धारक आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
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हमारे कुलदीपक पंन्यासप्रवर
श्री अजयसागरजी
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आराधना गंगा
(२४ तीर्थंकर आराधना, जिन मंदिर विधि, पंचसूत्र - सार्थ आदि)
: शुभाशिव :
राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
米
: संपादक :
पंन्यास प्रवर श्री अजयसागरजी
嵌
: Stepteres :
शा हुकमीचंदजी मेधाजी खींवेसरा मांडाणी, चेन्नई, मदुरै
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आराधना गंगा (२४ तीर्थकर आराधना, जिन मंदिर विधि, पंचसूत्र-सार्थ आदि)
प्रथम आवृत्ति
: उपलक्ष: श्रीमति निर्मलादेवी व कुमारी आंचल यशवंतकुमार
उपधान तप मालारोपण ता. २१-१-२०१२
: प्रकाशक: शा हुकमीचंदजी मेधाजी खींवेसरा
मांडाणी, चेन्नई, मदुरै
: प्राप्तिस्थान : Rajasthan Metal House 189, Mint Street, Chennai-3.
Rajasthan Metals 2/A, Lakshmipuram, 1st Street
Madurai
मुद्रक - अरिहंत ग्राफिक्स
साबरमती, अहमदाबाद. मोबाइल : +९१ ९९९८८ ९०३३५
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ਧ87ਢੀਤ...
ਫਸਦੇ ਝmਵੀ¤ਚ ਦਰਜ ਧਕਦ ਜੀ ਬਹਾਦਰੀ ਸਫਰ ਚ ੨ਤ ਕਰ ਕੇ ਫ਼ਰਦ ਨੇ ਕਵ ਵਧ? q ਧਵਧ . ਕੱਦ, ਵਾਹਦ ਚ ਬਚੇ ਕਰਜ਼ ਚ ਕਫ ਦੀਆਂ ਕਿਵਦ ਦਰੇ ਛੂਤ ਸਫੂਦੈ ਬਲਰਦੇ, ਕਣ ਫਸਦੇ ਜਰਦੇ ਕਰਦੇ ਵੇਂ ਕਫ ਕ ਹCCਲ ਦੀ ਜਲਦ ਗ ਗਊ, ਹਦੜੀ ਦੀ ਦਰ 9 ਫਿਕ ਸਚੈ ਮੈਂ ਛੂ, ਫੂਦੈ ਵੇਂ ਧ ਨ ਜੇ ? ਕ ਕਸ਼ ਜ਼ ਫ਼ ਵੀ ਹg?.
ਹਰੋਂ ਫਿਕ-ਧਰਿਫਿਕ ਸਦ ਕੁ ਹਰਿ ਕਫ਼ਨੇ ਵੀ ਹy. “ਕਣਧਮਕੀ 82 82 ਨੂੰ 5 77ਕਫ਼ਦ ਚੜਹਰ ਛੂ ਯੂਕ ਜੈਕ ਨ ਕਰੰਸਕ ਹਯਰ ਬਣਦਾ ਹੀ ਜੇ ਜੀ ਕੜੇ ਵੀ ਥਾਕੀ ॥੧ਯ ਛੁਡਾ.
ਬਥੇ ਕਵ ਹਦਲੀ ਕਿਵਦ ਚਰੇ ਛੁ ਕਬੀਰਥ ਧਰਦ ਝਰਕੇ ਫੇਕ ਕੇਸ਼ਨੂੰ ਦੇ, ਦਲੀਏ ਚ ਬਦਕੇ ਜੇ ਬਛੁ ਧਦ ਸੀ ਫਰਦੇ ਦੇ ਇਕ # ਕੂਇ ਗ ਗਨੂੰ, ਦਬਕ ਤਕ ਵੇਂ ਕੜੇ ਰਰ ਈ ਹਦ ? ? - cc ਸਦਕਿਵਹਾਦਰੀ ਐਵਿ ਧਾਰ?-ਟ ਕੇ ਲਈ ੨ਕੁਲ ੧੧੬ ਫੂ. ਬਸ ਫਿਕ ਜੇ ਵੀ
ਦਲ ਦੀ ਕੁੜੀ ਹੀ ਹਰਫ਼ੀ. ਯਾਰ ਬਝ ਕੇ ਧਮਕਬ07 ਦੀ ਹਰ ਕਮੀ,
ਕਦਕਾ ਮੈਂ ਬਾਹਰਚਰਨ ਝ ਦਵਿਚ ਚਰਨੀ ਜਦਿਕ 5 ਕਰਣੀ ਕਰ ਕ?. ਹਰ ਬਥਕ ਮੈਂ ਕੀ ਹਰ ਕੁੜੀ ਦਾ ਵੇਂ ਉ. . | ਕਸਰ ਚੇ ਕਦੇ ਕੜੇ ੧੪ ਚਣੇ ਬਦਨ ਦਰਿਦ ਚ ਕਿਓਧ ਕਿਉਟ ਦੇ ਚਰਜ ੨ ਲਈ ਸ਼ਨ, ਹਵੇਂ ਸੀ ਜਦਕਰੀ ਹਾਲ ੧ ਕੜ੧੪ਦ ਹਧਾਰਕ ਰੜਕ ਉਰਦਸਫੈਦ ਚਨੇ, ਕੀ ?ਹਿਬ ਹਾਕਯ ਨੀ
¤ ਕੀ ਕੜੀ ਵਦ ਦਫ਼ੀ.
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पर्युषण नजदीक आते-आते सकल संघ व हमारे परिवार में तप का माहौल खड़ा होने लगा. परिवार की तीन पुत्रवधू श्रीमति विमलादेवी नरपतकुमार, श्रीमति निर्मलादेवी यशवंतकुमार एवं श्रीमति संगीतादेवी अरविंदकुमार ने अति उग्र ऐसी मासक्षमण की तपस्या की और साथ ही पहिवाट एवं अन्य संबंधीयों में भी छोटी बड़ी तपस्या की झड़ी लग गई, हमारा परिवार धन्य हो गया.
इसी चातुर्मास दौडान और भी एक ऐतिहासिक कार्य हुआ, चेन्नई संघ का श्री विजयहीरसूरीश्वरजी ज्ञान भंडार, चंदनबाला भवन में बरसों से उपेक्षित हालत में पड़ा था. ट्रस्टीयों द्वारा किये गये अनेक प्रयत्नों के बावजूद भी उसका उद्धार नहीं हो रहा था. चातुर्मास दौरान ही पूज्यश्री की सतत प्रेरणा होती हद्धी व मार्गदर्शन होता डा. उसके फलस्वरूप समर्पित युवक-युवतियों की एक टीम गठित हो गई और बड़े सुंदर तटीके से ज्ञानभंडार के उद्वार का कार्य प्रारंभ हो गया. चंदनबाला भवन एवं नया मंदिराजी में वांधणालय प्रारंभ कराने का भी तय हुआ. उसमें हो चंदनबाला भवन का वाचनालय प्रारंभ हो गया है. चतुर्विध श्री संघ की हाजरी में ज्ञानभंडार का बड़े धामधूम से ज्ञानपंचमी के शुभ दिन उद्घाटन भी हुआ,
साथ ही और भी एक नई ऐतिहासिक बात का सूत्रपात हुआ. नाम की एक बहु-उद्देशीय website भी पूज्यश्री के मार्गदर्शन में प्रारंभ की गई, जिसमें इस ज्ञानभंडार की सूची पृथ्वी जा रही है. सो विश्व के किसी भी कोने में एह कह कोई भी जिज्ञासु देख सकता है. इस website की सबसे बड़ी खासीयत यह है कि इसमें विश्व का कोई भी जैन ज्ञानभंडार सदस्य बनकर अपनी सूची इस पर upload कर सकता है, चेई के ही अनेक भंडाहो ने इस website पह अपनी सूची upload करने की रूचि दिखाई है. क्रमशः यह काम भी साकार होगा.
ज्यूँ ज्यूँ इस website पर ज्ञानभंडारों की संख्या व पुस्तक संख्या बढ़ती जाएगी, त्यूँ त् समया जैन संघ के लिए इसकी उपयोगिता भी बढ़ती जाएणी, पुस्तक समीप के माह में होने के बावजूद भी पूज्य साधुसाध्वीजी भगवंतों को ओठ विद्वानों को कूट-बूट के ज्ञानभंडारों से पुस्तके मंगाने का जो परिश्रम करना पड़ता है वह नहीं करना पड़ेगा. पूज्यश्री ने कोबा में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में दी सेवा के व्यापक अनुभव का लाभ आज आहे चेशई संघों एवं विश्व के संघों एवं विद्वानों को इस तरह से मिला है.
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चातुर्मास के पूर्व से ही हमारे परिवार की भावना थी कि यदि चातुर्मास बाद उपधान होते हो तो अवश्य बड़ा लाभ लेना, प्रथष्ट हमारे परम स्नेही मंडल शिरोमणी श्री चंद्रप्रभु जैन मंडल की भी पूज्यश्री को विजाती थी कि मंडल द्वारा संचालित श्री दक्षिण पावापुरी तीर्थ श्री एयरपोर्ट मंदिर में उपधान तप हो, पहले पूज्यश्री का रुकने का कार्यक्रम नहीं था. परंतु बाद में संयोग पलटने पक्ष पूज्यश्री ने उपधान में विरा देने हेतु हाँ अह दी, और देखते ही देखते उपधान की तैयाही प्रारंभ हो गई, उपधान तप के मुख्य सहयोगी बनने का लाभ हमारे परम सौभाग्य से हमें मिला. कुल ९२ तपस्वी उपधान में जुड़े उसमें से 99 पुण्यवान मोक्षमाला वाले जुड़े.
इसी उपथान में हमारे परिवार से श्रीमती निर्मलादेवी यशवंतकुमार एवं कुमारी भाँचल यशवंतकुमार ने उपधान कर के खुद के जीवन और हमारे परिवार को धन्य बनाया है.
पूज्य पिताजी की लंबे समय की प्रभु भक्तिमय आराधना उपयोगी संग्रह धराने वाली पुस्तिका प्रकाशित करवाने की भावना थी. उन्होंने पूज्यश्री से खुद की यह भावना दर्शाई. पूज्यश्री ने ऐसी पुस्तिका के संकलन-संपादन के कार्य को सम्हालने की हमें हर्ष अनुमति प्रदान की. और उसी का फल है कि उपधान तप मालारोपण के प्रसंग पर यह सुंदर आराधना पुस्तिका प्रकाशइत होने जा रही है.
इस पुस्तक की एक सबसे बड़ी खासीयत यह है कि पूज्यश्रीने पंचसूत्र के प्रथम सूत्र का एकदम नई व भाववाडी शैली में अनुवाद कर संपादन किया है. भाराभा है भात्मार्थीयों के लिए यह पुस्तक एक पुष्टिदायक संबल का काम करेगी.
हम आभारी है राष्ट्रसंत आचार्य देव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के, कि जिन्होंने पूज्यश्री को दक्षिण में चातुर्मासर कहने की अनुमति प्रदान कर हम पर असीम उपकार किया.
हम प्रार्थना करते है कि पूज्य पंण्यास प्रवर श्री अजयसागरजी हम पर इसी तरह कृपा दृष्टि बनाए रखेंगे, और हमारी धर्मभावना में निरंतर वृद्धि कहते होंगे
विश्वास है कि भाराधकों को यह "आराधना गंगा" पुस्तिका उनके कर्ममल धोने के लिए पावनकारी सिद्ध होगी.
विनीत युकमीचंदजी मेधाजी खींवेसरा परिवार
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भामुख...
मेरे जन्मदाता संस्कारदाता, धर्मदाता व दीक्षा दिलवाने वाले ठपकाही पूज्य पिताश्री हुकमीचंदजी व मातुश्री गंगादेवी की मांडाणी बजट में हुए उनके जीवित महोत्सव के समय से ही निरंतर भावणाची कि हमारे रहते आपका एक चातुर्मास चेाई में हो जाय तो हमारे मन की एक तमना पूरी हो जाय. देव-गुरू-धर्म की कृपा से उनकी यह भावना पूरी हुई. पूज्य गुरूदेव राष्ट्रसंत आचार्य देव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी का निर्देश हुआ कि तुम्हें दक्षिण में चातुर्मास करने जाना है, और हमारा विहार इस ओर हो गया. चेन्नई चातुर्मास मेरे जीवन का अविष्मरणीय चातुर्मास बा
पू. पिताश्री की भावना इस तरह की पुस्तक छपवाने की थी, और काफी समय से मुझे कह भी रहे थे. व्यस्तता आदि कारणों से यह कार्य टल रहा था. अब अंततः “आराधना गंगा" की रूप में यह कार्य पूर्ण हो रहा है. आशा है कि मैं किसी हद तक उनकी अपेक्षा को न्याय दे पाया हूँ.
इस पुस्तक में जो कुछ भी है ज्यादातर वह अलग-अलग जगहों से संकलित कर सम्मार्जित किया हुआ है. मैं उन सब आधार प्रदाताओं का यहाँ ऋण स्वीकार करता हूँ.
यदि इस पुस्तक में मेडा कोई योगदान है तो वह है पंचसूत्र का अनुवाद. दीक्षा के प्रथम वर्ष से पंचसूत्र के पांचों सूत्रों का अनेकों बार भावन किया है. प्रथम व चतुर्थ सूत्र का तो सेंकड़ों बार भावन किया है बड़ी मस्ती से किया है, अलग-अलग मनोदशाओं मे किया है. बोध, अनुभव व परिपक्वता की विविध भूमिकाओं में किया है. प्रथम सूत्र व अन्य सूत्रों के कुछ चुने हुए अंशों की वांचना देने का भी उत्तम आत्मिक पुकार धराने वालों को देने का गत तीन वर्षों में अनेकबार अवसर बना है. हर बार पंचसूत्र मुझे नये-नये आयामों और गायों में से ही उभ कर मिला है. इसका फायदा मुझे और श्रोताओं दोनों को बहोत अलग किस्म का हुआ है,
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ਦੇ?? ਲੈ ਕਫ ਦਿਨ ਦਾ ਰਸ ਦਿਲਫ ਫ. ਕਸ ਦੀ ਧਕ ਬਣਾਈ ਚ ਓ ਬਛੁ ਕੁਦਰਤ ਕ ਕਚੀ ਕਿਰ s, ਕਬਜ਼ ਵੇਂ ਜਾਗ ਧਬਦ ਦੇ ਫੁਕ ਰ ਕੁਦਰਲ ਚ ਕਿਧਰ ਜੇ ਲਾ ਕੇ , ਕੈਸੇ ਬਛੁ ਤਬ ਚਿੰਤਕ ੪ ਕਰ ਸਕੇ? ਕਣੀ ਵੀ ਧਾਰਣਾ ਫ਼ਜ਼ ਕੁਵ ਰਵੇਂ ਰ ਦਰ sਦਿਰਫ਼ਬਦੀ-ਬੜੀ ਚ ਟੀਚਰ ਕੇ ਜਥਾ ਲੀ ਵੀ ਕਰਦਿਰ ਦਕੇ 7 ਬਦ ਕਿਧਰ ਫੈ, ਦੇਵ ਕਿ ਜੇਠ ਦਿੰਰਕ ਦ੨ਕ ਫੇਰੂ ਧਝ ਰਚ ਕੀਯ ਧ ਕ ਹz.
ਫ਼ਜ਼ ਦਰਦ ਧ ਸੈਂ ਰਝੇਵਿ ਸਦ ਯਾਰ ਨੂੰ.. 57 ਫਰਦ ੧੪ਦਰ ਨੂੰ... ਦਿਨਹਣੀ ਹਾਰ, ਹਾਈ ਫੇਕ ਲੀ ਦਿਸਦੇ, ਦ-ਫ਼ਰ ਦੀ ਕਣੀ ਬਾਣੀ ਵੇਕ ਕੀ ਧਦਰਦ ,
੨ ॥ ਕਿ੬੧ ੴਧਰ ਕੇ ਕਰਜੇ ਦੀ ਬਦ ਤੇ ਫ਼ਤਿਹਾਬੜੀ ਹੀ ਧ-ਧਰ ਜਬਨ ਲੀ ਜਗਨੂੰ, ਦੇਸ਼ ਕਰਕੇ, ਜੇਦੇ ਵੀਰ ਵਰ ਧਿਰ ਕੀ ਛੁਸੀਵਰੀ, ਹਰ ਸ਼ਨੀ ਗਰਕ
ਵੈਦ ਹਕ ਚ ਹਕ ਸੀ ਅਰਕ , ਕਿ ਉਕਲੀ ਕਿ ਗੇੜਲਦ ਕੇ ਜੇਦੇ ਸੀਰਦ ਫ਼ਜ਼ ਧੜਕ ਚ ਫਦ ਉਰਫ਼ ੨ ਕਬ ਚ ਕਈ-ਕਈ ਸ ਣਦ ਕਰਦੇ
ਹ ਨ ਕਿy. ਯੂ ਯੂ ... ਅੱਜ ਮੈਂ, ਕਲ ਝ ਚ ਟਣ-ਝ ਕੁਝਟਕੇ ਜੇ ਸੀ ਡੀ ehਲ ਕਈ ਇਕ ਉਫ਼ ਧਾਰ ਵੀ ਬਣੀ ਲੜਕ, ਬਾਈਕ?...
ਉਜਕੜ ਕਿਨਫ਼ ਝਲ ਮੈ? ਜਦਕਾ ਹਈ? ਉਥਲ-ਉਕਿਲ ਗਿਰਿ ਫੂਕਣ.
? ਲੈ ਕਿ ਜ ਤੁਰਨ ਚ ਬਣਾ ਕੇ ਸ਼ਾ-ਥਿਰ ਕਝਹੁ ੪ gਚ ਟੇ ਜੇ ? ਜੇ ਨ ਧਰ ਨੂੰ
※※※眾※※※※※※※※架 ※※※※※※※※
दक्षिण पावापुरी तीर्थ एयरपोर्ट मंदिर, चेन्नई ੧੨-੧-੧੨
गुरुपाद पद्मरेणु ੧. ਜਦ
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[अनुक्रमणिका
प्रकाशकीय ........
आमुख....... प्रभु दर्शन के समय बोलने की स्तुतियाँ. जिनमंदिर में प्रवेश और पूजा का क्रम ............. जिन पूजा हेतु सात शुद्धियाँ ............. परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा में बोलने के दोहे ................ परमात्मा की अष्टप्रकारी पूजा... चैत्यवंदन विधि ............ सचित्र २४ भगवान के चैत्यवंदन, स्तवन, स्तुति ....... कलर पृष्ठ जिनालय में ध्यान रखने योग्य सुचनाएँ ..
...............३३ पञ्चसूत्रकम् .. ........... नित्य भावना ................ चित्र विचित्र जीव संसार.. पच्चक्खाण सातवाँ भोगोपभोग परिमाण व्रत (१४ नियम) ....................८१ पच्चक्खाण समय दर्शिका-चेन्नई ................................८४-९५ पच्चक्खाण समय दर्शिका-बेंग्लोर ......................... ९६-१०७ पच्चक्खाण समय दर्शिका-मदुरै ...................... १०८-११९
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स्थापना सूत्र नवकार महामंत्र नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं
नमो लोए सव्व-साहूणं एसो पंच-नमुक्कारो, सव्व-पाव-प्पणासणो; मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं.
पंचिंदिय सूत्र पंचिंदिय-संवरणो, तह नव-विह-बंभचेर-गुत्तिधरो चउविह-कसाय-मुक्को, इअ अट्ठारस-गुणेहिं संजुत्तो १ पंच-महव्वय-जुत्तो, पंच-विहायार-पालण-समत्थो पंच-समिओ तिगुत्तो, छत्तीस-गुणो गुरू मज्झ २
699069069 • प्रभु दर्शन के समय बोलने की स्तुतियाँ . प्रभु दरिशन सुख संपदा, प्रभु दरिशन नव-निध. प्रभु दरिशनथी पामीए, सकल पदारथ सिद्ध. भावे जिनवर पूजीए, भावे दीजे दान. भावे भावना भावीए, भावे केवल-ज्ञान. जीवडा! जिनवर पूजीए, पूजानां फल होय. राजा नमे प्रजा नमे, आण न लोपे कोय. फूलडां केरा बागमां, बेठा श्री जिनराय. जेम तारामां चन्द्रमा, तेम शोभे महाराय.
धन सम्हाले वह मंसारी, मन संभाले वह संयमी.
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त्रि-भुवन नायक तुं धणी, मही मोटो महाराज. मोटे पुण्ये पामीयो, तुम दरिशन हुं आज. आज मनोरथ सवि फल्या, प्रगट्या पुण्य कल्लोल. पाप करम दूरे टल्यां, नाठां दुःख दंदोल. पंचम काले पामवो, दुलहो प्रभु देदार. तो पण तेना नामनो, छे मोटो आधार. प्रभु नामनी औषधि, खरा भावथी खाय. रोग शोक आवे नहीं, सवि संकट मिट जाय. पांच कोडीने फूलडे, पाम्या देश अढार. राजा कुमारपालनो, वो जय-जय-कार. छे प्रतिमा मनोहारिणी, दुःखहरी श्री वीर जिणंदनी; भक्तोने छे सर्वदा सुखकरी, जाणे खीली चांदनी. आ प्रतिमाना गुण भाव धरीने, जे माणसो गाय छे; पामी सघलां सुख ते जगतनां, मुक्ति भणी जाय छे. आव्यो शरणे तमारा जिनवर! करजो आश पूरी अमारी; नाव्यो भवपार मारो तुम विण जगमां सार ले कोण मारी?. गायो जिनराज! आजे हरख अधिकथी परम आनंदकारी; पायो तुम दर्श नासे भव-भय-भ्रमणा नाथ! सर्वे अमारी. भवोभव तुम चरणोनी सेवा, हं तो मांग छं देवाधिदेवा, सामु जुओने सेवक जाणी, एवी उदयरत्ननी वाणी. दादा तारी मुखमुद्राने, अमिय नजरे निहाळी रह्यो, तारा नयनोमांथी झरतुं, दिव्य तेज हुँ झीली रह्यो; क्षणभर आ संसारनी माया, तारी भक्तिमां भूली गयो, तुज मूर्तिमा मस्त बनीने, आत्मिक आनंद माणी रह्यो. देखी मूर्ति श्री पार्श्वजिननी, नेत्र मारा ठरे छे, ने हैयुं आ फरी फरी प्रभु, ध्यान तारुं धरे छे,.
परमात्मा की भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ ति है.
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आत्मा मारो प्रभु तुज कने, आववा उल्लसे छे, आपो एबुं बळ हृदयमां, माहरी आश ए छे. दया सिंधु दया सिंधु, दया करजे दया करजे, हवे आ जंजीरोमांथी, मने जल्दी छूटो करजे; नथी आ ताप सहेवातो, भभूकी कर्मनी ज्वाळा, वरसावी प्रेमनी धारा, हृदयनी आग बुझवजे. आबु अष्टापद गिरनार, समेतशिखर शत्रुजय सार, ए पांचे तीरथ उत्तम ठाम, सिद्धि गया तेने करुं प्रणाम. प्रभु माहरा प्रेमथी नमुं, मूर्ति ताहरी जोईने ठरूं, अरर! ओ प्रभु पाप में कर्या, शुं थशे हवे माहरी दशा, माटे प्रभुजी तुमने विनवू, तारजो हवे जिनजीने स्त, दीनानाथजी दुःख कापजो, भविक जीवने सुख आपजो. पार्श्वनाथजी स्वामि माहरा, गुण गाउ हुं नित्य ताहरा. प्रभु जेवो गणो तेवो, तथापि बाळ तारो छु, तने मारा जेवा लाखो, परंतु एक मारे तुं; नथी शक्ति नीरखवानी, नथी शक्ति परखवानी, नथी तुज ध्याननी लगनी, तथापि बाळ तारो छु. सुण्या हशे पूज्या हशे, निरख्या हशे पण को क्षणे: हे जगत-बंधु! चित्तमां, धार्या नहि भक्तिपणे. जन्म्यो प्रभु ते कारणे, दुःखपात्र आ संसारमां; हा! भक्ति ते फलती नथी, जे भाव शून्याचारमां. जे दृष्टि प्रभु दर्शन करे, ते दृष्टिने पण धन्य छे; जे जीभ जिनवरने स्तवे, ते जीभने पण धन्य छे. पीए मुदा वाणी सुधा, ते कर्ण-युगने धन्य छे; तुज नाम मंत्र विशद धरे, ते हृदयने नित धन्य छे. हे देव तारा दिलमां, वात्सल्यनां झरणां भर्या, हे नाथ तारा नयनमां, करुणातणां अमृत भर्या;
धर्म कठिन लगता है? समस्या धर्म नहीं, कुसंस्कार है.
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वीतराग तारी मीठी मीठी, वाणीमां जादु भर्या, तेथी ज तारा शरणमां, बाळक बनी आवी चडया. बहुकाळ आ संसार सागरमां, प्रभु! हुं संचर्यो; थई पुण्यराशि एकठी, त्यारे जिनेश्वर तुं मळ्यो; पण पापकर्म भरेल में, सेवा सरस नव आदरी, शुभ योगने पाम्या छतां, में मूर्खता बहु ये करी. शत कोटी कोटी वार वंदन, नाथ मारा हे तने, हे तरण तारण नाथ तुं, स्वीकार मारा नमनने; हे नाथ शुं जादु भर्या, अरिहंत अक्षर चारमां, आफत बधी आशिष बने, तुज नाम लेता वारमा. सागर दयाना छो तमे, करुणा तणा भंडार छो, ने पतितोने तारनारा, विश्वना आधार छो; तारे भरोसे जीवननैया, आज में तरती मूकी, कोटी कोटी वंदन करूं, जिनराज तुज चरणे झूकी.
690699069 दर्शनं देव-देवस्य, दर्शनं पाप-नाशनम्. दर्शनं स्वर्ग-सोपानं, दर्शनं मोक्ष-साधनम्. अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम. तस्मात् कारुण्य-भावेन, रक्ष रक्ष जिनेश्वर!. मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमः प्रभुः; मंगलं स्थूलभद्राद्या, जैनो धर्मोस्तु मंगलम्. पूर्णानन्द-मयं महोदय-मयं, कैवल्य-चिट्टङ्मयम्; रूपातीत-मयं स्वरूप-रमणं, स्वाभाविकी-श्रीमयम्. ज्ञानोद्योत-मयं कृपा-रस-मयं, स्याद्वाद-विद्यालयमा श्री सिद्धाचल-तीर्थराज-मनिशं, वन्देह-मादीश्वरम्.
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धर्म मे दूर भागते हो/ कौन? तुम या कुसंस्कार?
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नेत्रानन्द-करी भवोदधि-तरी, श्रेयस्तरोर्मंजरी; श्रीमद्धर्म-महा-नरेन्द्र-नगरी, व्यापल्लता-धूमरी. हर्षोत्कर्ष-शुभ-प्रभाव-लहरी, राग-द्विषां जित्वरी; मूर्तिः श्रीजिन-पुंगवस्य भवतु, श्रेयस्करी देहिनाम्. अद्या-भवत् सफलता नयन-द्वयस्य; देव! त्वदीय-चरणांबुज-वीक्षणेन. अद्य त्रिलोक-तिलक! प्रति-भासते मे; संसार-वारिधि-रयं चुलुक-प्रमाणः. तुभ्यं नमस्त्रि-भुवनार्ति-हराय नाथ; तुभ्यं नमः क्षितितला-मल-भूषणाय. तुभ्यं नमस्त्रि-जगतः परमेश्वराय, तुभ्यं नमो जिन! भवोदधि-शोषणाय. प्रशम-रस-निमग्नं, दृष्टि-युग्मं प्रसन्नम्। वदन-कमल-मंकः, कामिनी-संग-शून्यः. कर-युगमपि यत्ते, शस्त्र-संबंध-वंध्यम्; तदसि जगति देवो, वीतराग-स्त्वमेव. अद्य मे सफलं जन्म, अद्य मे सफला क्रिया; अद्य मे सफलं गात्रं, जिनेंद्र! तव दर्शनात्. दर्शनाद् दुरित-ध्वंसी, वंदनाद् वांछित-प्रदः; पूजनात् पूरकः श्रीणां, जिनः साक्षात् सुरद्रुमः. अर्हन्तो भगवंत इन्द्रमहिता, सिद्धाश्च सिद्धिस्थिता, आचार्या जिनशासनोन्नतिकरा, पूज्या उपाध्यायका; श्री सिद्धांत सुपाठका मुनिवरा, रत्नत्रयाराधका, पंचै ते परमेष्ठिनं प्रतिदिनं, कुर्वन्तु वो मंगलं. पाताले यानि बिंबानि, यानि बिंबानि भूतले, स्वर्गेपि यानि बिंबानिं, तानि वंदे निरंतरम्.
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जिसकी हम उपेक्षा करते है, बिगाड़ते है वह वस्तु हमें पुनः नहीं मिलती. ही धर्म भी/X
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जिनमंदिर में प्रवेश और पूजा का क्रम
'पहेलुं ज्ञान ने पछी किरिया, नहि कोई ज्ञान समान रे...' १. दूर से जिनालय का ध्वज देखते ही दोनों हाथ जोड़कर मस्तक नमा कर
'नमो जिणाणं' कहे. २. प्रथम निसीहि बोलकर जिनालय के मुख्य द्वार से प्रवेश करें. (इस निसीहि
से संसार संबंधी सभी कार्यों का और विचारों का त्याग होता है.) परमात्मा का मुख देखते ही दो हाथ जोड़कर मस्तक पर लगाकर सिर
झुकाकर 'नमो जिणाणं' कहें. ४. जीव हिंसा न हो उस प्रकार से तीन प्रदक्षिणा दें. ५. पुरुष वर्ग परमात्मा की दाई ओर तथा स्त्री वर्ग बाई ओर खड़े रहकर कमर
से आधा अंग झुकाकर 'अर्धावनत प्रणाम' करके मधुर कंठ से स्तुति बोले. ६. आठ मोड़(तह) वाला मुखकोश बाँधकर बरास-केसर अपने हाथ से घिसने
का आग्रह रखें. ७. 'परमात्मा की आज्ञा मस्तक पर चढाता हूँ' ऐसी भावना के साथ पुरुष वर्ग
दीपक की शिखा या बादाम के आकारका और स्त्रीवर्ग समर्पण भावना के
प्रतीक जैसा सौभाग्यसूचक गोल तिलक करें. ८. आठ मोड(तह) वाला मुखकोश बाँधकर; केसर, पुष्प धूप से धूप कर दूसरी
निसीहि बोलकर गर्भगृह में प्रवेश करें. ९. प्रतिमाजी पर से निर्माल्य निकालकर मोरपीछी करें. १०. पानी के कलश से मुलायम भीने वस्त्र से प्रभुजी के अंग पर रहा हुआ
केसर दूर करे. वालाकुंची का उपयोग हितावह नहीं है. फिर भी आवश्यक
हो तो ही करें. ११. पंचामृत से प्रभुजी का अभिषेक करे. (अभिषेक करते हुए घंटनाद, शंखनाद
करे, दोहे बोले, चामर दुलाये. फिर जल से अभिषेक करे.) १२. जल से प्रभुजी को स्वच्छ कर हलके हाथ से प्रभुजी को तीन अंगलूछने
करे. (जरूरत हो तो वालाकुंची का उपयोग करें.) १३. बरास - चंदन का विलेपन करें... Xधर्म मे खिलवाड़ मत करो. उममे पाप ही नहीं अत्यंत पापानुबंध भी होता है.
म
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१४. फिर क्रमशः चंदन पूजा, पुष्प पूजा करें.
१५. प्रभुजी को मुकुट, हार आदि आभूषण चढ़ाने रूप आभूषण पूजा करें. १६. गर्भगृह के बाहर खड़े रहकर धूप पूजा और दीपक पूजा करें. पंखा ढोले, दर्पण में प्रभुजी का दर्शन करें.
१७. चामर नृत्य करें. १८. क्रमशः अक्षत पूजा, नैवेद्य पूजा और फल पूजा करें..
१९. नाद पूजा के रूप में घंटनाद करें.
२०. योग्य स्थान पर अवस्थात्रिक भायें.
२१. तीन बार दुपट्टे से भूमि की 'प्रमार्जना' कर... तिसरी निसीहि बोलकर
चैत्यवंदन करें.
२२. दिशात्याग, आलंबन मुद्रा और प्रणिधान त्रिक का पालन करें.
२३. चैत्यवंदन पूरा करने के बाद 'पच्चक्खाण' लें.
२४. विदा होते समय स्तुति बोले.
२५. अक्षत, नैवेद्य, फल, बाजोट, पूजा के उपकरण योग्य स्थान पर रखें.
२६. अंत में प्रभुदर्शन तथा पूजन से संप्राप्त हर्ष को व्यक्त करने के लिये धीरे से 'घंट' बजायें.
२७. प्रभुजी को पीठ न हो वैसे जिनालय से बाहर निकले.
२८. न्हवण ( स्नात्र) जल लें.
२९. चौतरे पर बैठकर आँखें बंद कर तीन नवकार का स्मरण कर हृदय में भक्तिभावों को स्थिर करें.
३०. आज जो सुकृत हुआ है उसके आनंद के साथ और प्रभु विरह के दुःख
के साथ गृह के प्रति गमन करें.
गाय का शुद्ध घी नित्य मंदिर में समर्पित करना.
घी के दीये से- (१) अज्ञान दूर होता है (२) प्रभु को जो अंजन किया होता है वह तेज घटता नहीं है (३) शुद्ध प्राण ऊर्जा से साधक पुष्ट
| होता है. लाईट सुविधा जनक होगी, फायदे जनक हरगीज नहीं.
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अनुबंध की
' में बंध यह बड़ी सामान्य चीज है.
तुलना
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जिन पूजा हेतु सात शुद्धियाँ १. अंग शुद्धि- देह के सभी अंग शुद्ध करें. तालाब में, कुएं में, होज में गिरकर के
अथवा नल के नीचे बैठकर स्नान करने से अनेक जीवों की विराधना होती है.
छाना हुआ पानी बालटी में लेकर स्नान करना चाहिये. यह प्रथम शुद्धि हैं. २. वस्त्र शुद्धि- सुगंधित धूप से वासित करके पूजा के वस्त्रों को धारण करना
चाहिए. परमात्मा की पूजा के लिए वस्त्र स्वच्छ, सुन्दर बिना फटे, बिना सिले और बिना लघु शंका व बड़ी शंका वाले पहनने चाहिए. वस्त्र नित्य धोने
चाहिए क्योंकि अपने पसीने आदि से गंदे होने पर आशातना होती है. ३. मन शुद्धि- मन को साध लेने वाला सर्व को साध लेता है. मन के प्रसन्नता
भावों में पूजा को अखंडित समझना क्योंकि परमात्मा की पूजा से ही मन प्रसन्न होता है. विषय विकार और आकांक्षाओ रहित प्रभु की शरण में सरल
भावों से (निष्कपटी होकर) समर्पित हो जाना, ये मन शुद्धि है. ४. भूमि शुद्धि- नया मंदिर बनवाते समय भूमि लक्षण युक्त लेनी चाहिए, व देने
वाले के दिल की प्रसन्नता पूर्वक की लेनी चाहिए, और काफी गहराई तक नींव खोदनी चाहिए. जमीन के नीचे रही हुई हड्डी, क्लेवर आदि अशुचि पदार्थों को बहार करना चाहिए. मंदिर में स्वच्छता होनी चाहे. जिससे पूजा
भक्ति में आनंद आए. ५. पूजा उपकरण शुद्धि- पूजा हेतु उत्तम व शुद्ध साधनों के उपयोग से भी भावों
की वृद्धि होती है एवं चैत्य व प्रतिमा का तेज बढ़ता है. जैसे स्वर्ण थाली में भोजन करने पर अलग ही आनंद होता है, वैसा आनंद स्टील, पीतल
की थाली में भोजन करने से नहीं आता है. ६. द्रव्य शुद्धि- प्रभु की सेवा भक्ति में न्याय से उपार्जित किया हुआ द्रव्य होना चाहिए, अगर न्याय से अर्जित किया थोड़ा भी द्रव्य परमात्मा की पूजा व भक्ति में लगता है तो वह वृद्धि वाला व सुफल को देने वाला
होता है. ७. विधि शुद्धि- महिलाए रसोई बनाते समय विधि का ख्याल रखती है, तो रसोई कितनी सुंदर और स्वादिष्ट बनती है. इसी तरह विधिपूर्वक देवाधिदेव की पूजा, भक्ति करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है, और आध्यात्म की अनुभूति होती है. परमात्मा की पूजा तथा चैत्यवंदन आदि शास्त्रोक्त विधिपूर्वक शुद्ध भावों के त्रिकरण योग से करने चाहिए.
दुनिया में काव्यको मुची कोण? मिले दुष्ट भोजन के लिए प्रभु के सिवाय जिसे किसी का SITE मामले की जमत मो.X
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१७
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सूचना- क्रमशः तीन अंग-लुछनीयों से प्रतिमा के उपर के जलादि को साफ करें.
परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा में बोलने के दोहे काळ अनादि अनंतथी, भव भ्रमणानो नहीं पार; ते भ्रमण निवारवा, प्रदक्षिणा दउंत्रण वार भमतिमां भमतां थकां, भव भावठ दूर पलाय; दर्शन ज्ञान चारित्र रूप, प्रदक्षिणा त्रण देवाय २ जन्म मरणादि भय टळे, सीझे जो दर्शन काज; रत्नत्रयी प्राप्ति भणी, दर्शन करो जिनराज ज्ञान वडुं संसारमा, ज्ञान परम सुख हेत; ज्ञान विना जग जीवडा, न लहे तत्त्व संकेत चय ते संचय कर्मनो, रिक्त करे वळी जेह; चारित्र नाम निर्युक्ते कह्यु, वंदो ते गुण गेह दर्शन ज्ञान चारित्र ए, रत्नत्रयी निरधार; त्रण प्रदक्षिणा ते कारणे, भवदुःख भंजनहार
- - - निसीहि... निसीहि... निसीहि... अर्थात्.... निषेध संसार संबंधी समस्त पापकार्यों.... विचारों का त्याग तीन निसीहि कहाँ बोलनी चाहिए? १. मंदिर में प्रवेश करते समय. २. गर्भगृह में प्रवेश करते समय. ३. चैत्यवंदन (भावपूजा) का प्रारंभ करने से पहले...
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मंदिर के उपर कौए चील आदि बैठे रहते हो तो समझना कि चैत्य की प्राण ऊर्जा | | कमजोर हुई है, चैत्य बिमार हुआ है. उसे पुनः प्राणवान करने के तीन उपाय है.
१. विधि सह १८ अभिषेक कराने.
२. कोई योगी पुरुष चैत्य में बैठ प्रभु का ध्यान करें. । ३. शुद्ध घी झरते नैवेद्य से भावपूर्वक प्रभु की पूजा करनी.
- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - *ज्ञानी के पास भावग्रह मुक्त मुले मन जाने पर जिजामा आत होती है व पूटा फायदा मिलता है.
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अष्टप्रकारी पूजा तीन लोक के नाथ एसे तीन जगत के देव, परमकृपालु, जिनेश्वर परमात्मा की पूजा करते समय सात प्रकार से शुद्धि रखने का खास ध्यान रखना चाहिये. ये सात शुद्धि निम्नोक्त है- (१) अंगशुद्धि, (२) वस्त्रशुद्धि, (३) मनःशुद्धि, (४) भूमिशुद्धि, (५) उपकरण शुद्धि, (६) द्रव्यशुद्धि, (७) विधिशुद्धि. प्रभु एक पूजा अनेक....
१. जलपूजा २. चंदन पूजा ३. पुष्प पूजा ४. धूप पूजा
५. दीपक पूजा ६. अक्षत पूजा ७. नैवेद्य पूजा ८. फल पूजा अष्टप्रकारी पूजा के स्थान
तीन पूजा... जिनबिंब के उपर दो पूजा... जिनबिंब के आगे तीन पूजा... रंगमंडप में
गर्भगृह के बाहर... चौकी के ऊपर... पूजात्रिक अंग पूजा- जलपूजा, चंदनपूजा, पुष्पपूजा.
परमात्मा के अंग को स्पर्श कर जो पूजा की जाती है उसे अंग पूजा कहते हैं. जीवन में आते विघ्नों के नाश करने वाली और महाफल देने वाली इस
पूजा को विघ्नोपशमिनी पूजा कहते हैं. अग्र पूजा- धूप पूजा, दीपक पूजा, अक्षत पूजा, नैवेद् पूजा, फल पूजा.
परमात्मा की सन्मुख खड़े रहकर जो पूजा की जाय वह अग्र पूजा कहलाती है. मोक्षमार्ग की साधना में सहायक ऐसी सामग्री का अभ्युदय प्राप्त
करानेवाली इस पूजा को अभ्युदयकारिणी पूजा कहते हैं. भाव पूजा- स्तुति, चैत्यवंदन, स्तवन, गीत, गान, नृत्य... जिसमें किसी द्रव्य की जरूरत नहीं है, ऐसी आत्मा को भावविभोर करनेवाली पूजा को भाव पूजा कहते हैं. मोक्षपद की प्राप्ति अर्थात् संसार से निवृत्ति देने वाली इस पूजा को
निवृत्तिकारिणी पूजा कहते हैं. Rकाण और बलाला, कोणों के व्यीय का बना मेक है. वेळाला है तो सफलता व निष्फलता में यह स्पष्ट किया जाएगा.X
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धूप, दीपक आदि अग्र पूजा करने के बाद अंग पूजा करनी उचित नहीं है. और अंत में चैत्यवंदन की क्रिया अर्थात् भाव पूजा करने के बाद अंग या अग्र पूजा करना उचित नहीं हैं. अंग पूजा एवं अग्र पूजा करने के बाद अंत में भाव पूजा करने का शास्त्रोक्त क्रम है उसे निभाना चाहिये.
आठ कर्मों का क्षय करनेवाली ऐसी
परमात्मा की अष्टप्रकारी पूजा विधि १. जल पूजा
पंचामृत- शुद्ध दूध, दही, घी, मिश्री और जल का मिश्रण (दूसरे भी शुद्ध सुगंधी द्रव्य उसमें मिलायें जा सकते हैं.)
जल पूजा का रहस्य पाप कर्म रूपी मेल को धोने के लिए प्रभु की जल पूजा की जाती है. हे परमात्मन्! समता रूपी रस से भरे ज्ञान रूपी कलश से प्रभु की पूजा के द्वारा भव्य आत्माओं के सर्व पाप दूर हो. हे प्रभु! आप के पास सारी दुनिया की श्रेष्ठ सुख-समृद्धि है वैसी ही सुख-समृद्धि हमें प्राप्त हो. सारी मलीनता दूर हो. आत्मा के उपर का मल प्रभु प्रक्षाल से धो लिया है; हृदय में अमृत को भरा है.
नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः (यह सूत्र सिर्फ पुरुषों को हर पूजा के पहले बोलना चाहिये)
(कलश दो हाथों में लेकर बोलने का मंत्र) ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय
श्रीमते जिनेन्द्राय जलं यजामहे स्वाहा. (२७ डंके बजाये) दूध का (पंचामृत का) प्रक्षाल करते समय बोलने के दोहे
मेरुशिखर नवरावे हो सुरपति, मेरुशिखर नवरावे; जन्मकाळ जिनवरजी को जाणी, पंचरूप करी आवे. हो... सु. १ रत्नप्रमुख अडजातिना कळशा, औषधि चूरण मिलावे; क्षीरसमुद्र तीर्थोदक आणी, स्नात्र करी गुण गावे, हो.... सु. २ एणी परे जिन प्रतिमा को न्हवण करी, बोधिबीज मानुं वावे;
अनुक्रमे गूण रत्नाकर फरसी, जिन उत्तम पद पावे हो... स.३ *सत्य के अस्वीकार को व्यढ़ कर कोई कुख्यदाटी कुश्मण गाठी. सत्य के लवीकार को व्यन कार कोई मुकायी मित्र माळी
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जल (पानी) का प्रक्षाल करते समय बोलने का दोहा
२. चंदन पूजा
चंदन पूजा का रहस्य
हे प्रभु! परमशीतलता हमारे ह्रदय में हमारे भीतर में आए अपनी आत्मा को शीतल करने के लिए वासनाओं से मुक्त होने के लिए प्रभुजी की चन्दन पूजा उत्तम भावों से करता हूँ.
ज्ञान कळश भरी आतमा, समतारस भरपूर; श्री जिनने नवरावतां, कर्म थाये चकचूर!
नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः
ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय चंदनं यजामहे स्वाहा. (२७ डंके बजाये )
बरास विलेपन पूजा के समय बोलने का दूहा
शीतल गुण जेहमां रह्यो, शीतल प्रभु मुख रंग,
आत्मशीतल करवा मणी, पूजो अरिहा अंग.
(चंदन से विलेपन-पूजा करनी चाहिये और फिर केसर से नव अंगों की पूजा करनी चाहिये. नाखून केसर में न डूबे और नाखून का प्रभुजी को स्पर्श न हो इसका ध्यान रखना चाहिए.)
प्रभुजी के नव अंगो पर पूजा करने के दोहे
अंगूठा
घुटनेः
कलई:
खभाः
जलभरी संपुट पत्रमा युगलिक नर पूर्जत, ऋषभ चरण अंगूठडे, दायक भवजल अंत. जानुबळे काउस्सग्ग रह्या, विचर्या देश विदेश, खडा खडा केवळ लह्युं, पूजो जानु नरेश. लोकांतिक वचने करी, वरस्यां वरसीदान, कर कांडे प्रभु पूजना, पूजो भवि बहुमान. मान गयुं दोय अंशथी, देखी वीर्य अनंत, भुजा बले भवजल तर्या, पूजो खंध महंत. सिद्धशिला गुण ऊजळी, लोकांते भगवंत, वसिया तिणे कारण भवि, शिरशिखा पूजंत.
सा की सेवा न करने वाली बहु को यह अधिकार नहीं की वह अपनी भाभी से माँ की सेवा करने को कहे.
मस्तकः
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३
४
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कंठः
कपालः तीर्थकर पद पुन्यथी, त्रिभुवन जन सेवंत,
त्रिभुवन तिलक समा प्रभु, भाल तिलक जयवंत. सोळ पहोर प्रभु देशना, कंठे विवर वर्तुल,
मधुर ध्वनि सुरनर सुणे, तिणे गळे तिलक अमूल. ७ हृदयः हृदय कमल उपशम बळे, बाल्या राग ने रोष,
हिम दहे वन खंडने, हृदय तिलक संतोष. नाभिः रत्नत्रयी गुण उजळी, सकल सुगुण विश्राम,
नाभि कमळनी पूजना, करतां अविचल धाम. उपसंहारः उपदेशक नव तत्त्वना, तिणे नव अंग जिणंद,
पूजो बहुविध रागथी, कहे शुभवीर मुणींद.
नवांगी पूजा करते समय करने योग्य भावना १. अंगूठे पर पूजा करते समय भावना करें कि हे प्रभु!
युगलिकों ने आपश्री के चरण के अंगूठे का अभिषेक कर विनय प्रदर्शित कर आत्मकल्याण किया, उसी प्रकार संसार सागर से तारने वाले आपके चरण के
अंगूठे की पूजा करने से मुझ में भी विनय, नम्रता और पवित्रता का प्रवाह बहो. २. जानु (घुटना) पर पूजा करते समय भावना करें कि हे प्रभु!
इन घुटनों के बल पर खड़े रहकर आपने अप्रमत्तपने से साधना कर केवलज्ञान प्राप्त किया. इन घुटनों के बल पर देश-विदेश विचरण कर अनेक भव्य आत्माओं का कल्याण किया. आपके घुटनों की पूजा करते हुए मेरा प्रमाद दूर हो और मुझे अप्रमत्तता से आराधना कर आत्मकल्याण करने की शक्ति संप्राप्त हों. हाथ पर पूजा करते समय भावना करें कि हे प्रभु! दीक्षा लेने से पहले आपने इन हाथों से स्वेच्छापूर्वक लक्ष्मी, अलंकार, वस्त्र आदि का एक वर्ष तक दान दिया. केवलज्ञान के बाद इन हाथों से अनेक मुमुक्षुओं को रजोहरण का दान दिया. आपके हाथों की पूजा करने से मेरी कृपणता,
लोभवृत्ति का नाश हो, और यथाशक्ति दान देने के भाव मुझे पैदा हो. ४. कंधे पर पूजा करते समय भावना करें कि हे प्रभु!
अनंत ज्ञान और अनंत शक्ति के स्वामी हे प्रभ! भजाबल से आपने स्वयं *मत्य बोलने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि पहले जो हम बोले थे वह याद पने का श्रम नहीं करना पड़ता.
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संसार सागर पार किया फिर भी आप में मान, अहंकार का किंचित् अंश दिखायी नहीं देता. आपने इन कंधों से अभिमान को दूर भगाया, इसी प्रकार इन कंधों की पूजा करने से मेरे भी अहंकार का नाश हो और नम्रता गुण
का मुझ में वास हों. ५. मस्तक शिखा पर पूजा करते समय भावना करें कि हे प्रभु!
आत्मसाधना और परहित में सदा लयलीन ऐसे आपने लोकाग्र में सिद्धशीला पर सदा के लिये वास किया. आपके शरीर के सबसे ऊपर रही हुई मस्तक शिखा के पूजन से मुझे ऐसा बल संप्राप्त हो कि मैं भी प्रतिक्षण आत्मसाधना
और परहित के चिंतन में लीन रहकर शीघ्र ही लोक के अंत में निवास कर आप जैसा हो सकूँ. ललाट पर पूजा करते समय भावना करें कि हे प्रभु! तीर्थंकर नामकर्म- पुण्य के प्रभाव से तीनों लोक में आप पूजनीय हैं. आप तीन लोक की लक्ष्मी के तिलक समान है. आपके ललाट की पूजा के प्रभाव से मुझे ऐसा बल मिलो कि जिससे मैं ललाट के लेख अर्थात् कर्मानुसार संप्राप्त सुख में राग या दुःख में द्वेष न करूँ, अविरत आत्मसाधना करते
हुए मैं आपकी तरह पुण्यानुबंधी पुण्य का स्वामी बनूँ. ७. कंठ में तिलक करते हुए भावना करे कि हे प्रभु!
आपने इस कंठ में से जग-उद्धारक वाणी प्रगट करके जगत पर अनुपम करुणा एवं उपकार किया है. आपके कंठ की पूजा से मैं इस वाणी की करुणा को ग्रहण करने वाला बनूं और मुझ में ऐसी शक्ति प्रगट हो कि जिससे मेरी वाणी से मेरा और सब का भला हो. हृदय पर पूजा करते समय भावना करे कि हे प्रभु! राग-द्वेष आदि दोषों को जलाकर आपने इस हृदयमें उपशमभाव छलकाया है. निःस्पृहता, कोमलता और करुणाभरित आपके हृदय की पूजा के प्रभाव से मेरे हृदय में भी सदा निःस्पृहता-प्रेम-करुणा और मैत्री आदि भावना का
प्रपात बहता रहे. मेरा हृदय भी सदा उपशम भाव से भरपूर रहो. ९. नाभि पर पूजा करते समय भावना करे कि हे प्रभु!
आपने अपने श्वासोच्छवास को नाभि में स्थिर कर, मन को आत्मा के शुद्ध
के जीवन का wfण कोणे? जीना अच्छा लगे वैसा, या देखना भी पद न आए वै०१/ मम ही wofs .x
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स्वरूप में लगाकर, उत्कृष्ट समाधि सिद्ध कर अनंत दर्शन-ज्ञान-चारित्र के गुणों को प्रगट किया है. आपकी निर्मल नाभि के पूजन से मुझे भी अनंत दर्शन-ज्ञान-चारित्र आदि गुणों को प्रगट करने का सामर्थ्य प्राप्त हो. नाभि के आठ रुचक प्रदेश की तरह मेरे भी सर्व आत्मप्रदेश शुद्ध हो.
उपसंहार- अपने आत्मा के कल्याण के लिये, नवतत्त्व के उपदेश ऐसे प्रभुजी के अंगों की पूजा विधिपूर्वक राग से, भाव से करे ऐसा पू. उपाध्याय वीरविजयजी महाराजने कहा है. ३. पुष्प पूजा
पुष्प पूजा का रहस्य हे परमात्मा! सुगंधित पुष्पों से अपने अंतर मन को सुगंधित बनाकर मैं आधिव्याधि-उपाधि को नष्ट करना चाहता हूँ.
नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय पुष्पं यजामहे स्वाहा. (२७ डंके बजाये)
पांच कोडीने फूलडे, पाम्या देश अढार,
राजा कुमारपाळनो, वो जय जयकार! (सुंदर सुगंधवाले और अखंड पुष्प चढाने चाहिये, नीचे गिरे हुए और बासी पुष्प चढ़ायें नहीं जा सकते.) ४. धूप पूजा
धूप पूजा का रहस्य हे परमात्मा! जिस प्रकार से ये धूप की घटाएँ ऊँची ऊँची उठ रही है वैसे ही मुझे भी उच्च गति पाकर सिद्धशिला को प्राप्त करना है. इसलिए आपकी धूप-पूजा कर रहा हूँ. हे तारक! आप मेरे आत्मा की मिथ्यात्व रूपी दुर्गंध दूर करके शुद्ध आत्मस्वरूप को प्रगटाओ.
नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय __ श्रीमते जिनेन्द्राय धूपं यजामहे स्वाहा. (२७ डंके बजाये)
*माधक कौन? कार्य में अ-परपीड़क, कुछ में अ-हीन, मुख में अ-लीन, मान्यता में अ-कदााठी.*
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अमे धूपनी पूजा करीए रे, ओ मन मान्या मोहनजी, प्रभु! ध्यानघटा प्रगाटावीए रे! ओ मन मान्या मोहनजी! प्रभु! अमे धूपघटा अनुसरीये रे, ओ मन मान्या मोहनजी, प्रभु! नहीं कोई तमारी तोले रे, ओ मन जान्या मोहनजी,
प्रभु! अंते छे शरण तमारुं रे, ओ मन मान्या मोहनजी, (गर्भगृह के बाहर खड़े रहकर शुद्ध और सुगंधी धूप से धूप पूजा करनी चाहिये.) ५. दीपक पूजा
दीपक पूजा का रहस्य हे परमात्मा! ये द्रव्य दीपक का प्रकाश धारण कर मैं आपके पास आया हूँ! मेरे अन्तर मन में केवलज्ञान रूपी भाव दीपक प्रगट हो और अज्ञान का अंधकार दूर हो जाय, ऐसी प्रार्थना करता हूँ. जिस प्रकार यह दीपक चारों ओर प्रकाश फैलाता है उसी प्रकार मैं भी अपनी आत्मा की अज्ञानता को दूर कर आत्मा में ज्ञान का प्रकाश करना चाहता हूँ.
नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय
श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं यजामहे स्वाहा. (२७ डंके बजाये) (गर्भगृह के बाहर खड़े रह कर दीपक पूजा करनी चाहिये.)
६. अक्षत पूजा
अक्षत पूजा का रहस्य हे प्रभु! जैसे अक्षत फिर से उगता नहीं है, वैसे ही इस संसार में मेरा पुनः जन्म न हो. अक्षत अखण्ड है वैसे मेरी आत्मा विविध जन्मों के पर्यायों से रहित अखण्ड शुद्ध ज्ञानमय अशरीरी हो..
स्वस्तिक के स्थान पर सुंदर गहुंली भी आलेखित की जा सकती है. (थाली में चावल ले कर बोलने का दोहा)
नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः
अधर्ममित्र हमारे अनादि कुसंस्कारों को ज्वाला की तरह भड़का देते है. बच के रहो.४
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ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय
श्रीमते जिनेन्द्राय अक्षतं यजामहे स्वाहा. (२७ डंके बजाये )
(सूचना- अक्षत पूजा में चावल की सिद्धशिला की ढेरी, उसके बाद दर्शनज्ञान - चारित्र की ढेरी और अंत में स्वस्तिक की ढेरी करनी चाहिये. आलंबन करने में पहले स्वस्तिक और अंत में सिद्धशिला करे.) स्वस्तिक करते समय बोलने के दोहे
अक्षत पूजा करतां थकां सफळ करूं अवतार; फळ मागुं प्रभु आगळे, तार तार मुज तार. सांसारीक फल मांगीने रझळ्यो बहु संसार; अष्ट कर्म निवारवा, मांगुं मोक्षफळ सार
चिहुंगति भ्रमण संसारमां जन्म मरण जंजाळ; पंचमगति विण जीवने, सुख नहि त्रिहुं काळ. तीन ढेरी और सिद्धशीला करते समय बोलने का दोहा
दर्शन-ज्ञान-वारित्रनां, आराधनाथी सार
सिद्धशिलानी उपरे, हो मुज वास श्रीकार.
७. नैवेद्य पूजा
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नैवेद्य पूजा का रहस्य
हे प्रभो! मैंने विग्रह गति में आहार बिना का अणाहारी पद अनन्त बार किया है, लेकिन अभी तक मेरी आहार की लोलुपता नहीं मिटी है. आहार से निद्रा बढ़ती है. इसलिए आहार संज्ञा को तोड़ने के लिए और सात भय से मुक्त होने के लिए उत्तम नैवेद्य से पूजा करता हूँ.
नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः
न करी नैवेद्य पूजना, न धरी गुरुनी शीखः, लेशे परभवे अशाता, घर घर मांगशे भीख !
पुण्य से अर्थ मिलता है, धर्म से परमार्थ....
ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा- मृत्यु- निवारणाय
श्रीमते जिनेन्द्राय नैवेद्यं यजामहे स्वाहा. (२७ डंके बजाये )
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(स्वस्तिक पर मिश्री, और घर की बनाई हुई शुद्ध मीठाई चढायें. बाजार की मीठाई, पीपर, चोकलेट या अभक्ष्य चीज न रखें.) ८. फल पूजा
फल पूजा का रहस्य हे प्रभु! मेरे नाथ, मैं आपकी फल पूजा कर रहा हूँ, जिससे मुझे मोक्ष रूपी फल प्राप्त हो. धर्म कर के बदले में संसारिक फल तो बहुत माँगा प्रभु! और उसके कड़वे फल मैं भोगता रहा. अब बस प्रभु! अब तो मोक्ष का ही मधुर फल दीजिए, ताकि फिर कुछ भी माँगना बाकी न रह जाय.
नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय
श्रीमते जिनेन्द्राय फलं यजामहे स्वाहा. (२७ डंके बजाये) (श्रीफल, बादाम, सोपारी और पके हुए उत्तम फल सिद्धशिला पर रखें.) चामर पूजा का दुहा
बे बाजु चामर ढाळे, एक आगळ वज्र उलाळे, जई मेरु धरी उत्संगे, इंद्र चोसठ मळीया रंगे,
प्रभु पासर्नु मुखडु जोवा, भवो भवनां पातिक खोवा. दर्पण पूजा का दुहा
प्रभु दर्शन करवा भणी, दर्पण पूजा विशाल;
आत्म दर्पणथी जुए, दर्शन होय तत्काल. पंखा पूजा का दुहा
अग्नि कोणे एक यौवना रे, रयणमय पंखो हाथ, चलत शिबिका गावती रे, सर्व सहेली साथ, नमो नित्य नाथजी रे.
690690699
*
धर्म-निंदा के कारण मत बनो. इममे मोह नहीं, महामोह बंधता है.
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चैत्यवंदन विधि विभाग चैत्यवंदन की मुद्राएँ
मुद्रात्रिक (१) योग मुद्रा- इरियावहियं, चैत्यवंदन, नमुत्थुणं, स्तवन, अरिहंत चेइयाणं...
१. दो हाथ जोड़ कर दोनों हाथ की अंगुलियाँ एक-दूसरे के बीच में नख परस्पर सटते हो इस तरह स्थापित करें. २. दोनों हाथ की कुहनियाँ पेट पर लगायें. ३. मस्तक थोड़ा झुकाकर रखने की इस मुद्रा को योगमुद्रा कहते
(२) मुक्ताशुक्ति मुद्रा- जावंति चेइआई, जावंत के वि साहु और आभवमखंडा तक
का आधा जयवीयराय... १. अंजली बनाने के लिए दो हाथ जोड़कर दशों अंगुलियों के सिरे एक दूजे को आमने-सामने छू जाये. २. दोनों हथेलियों में अंदर से पोलापन रहे और बाहर से मोती की सीप जैसा आकार बनायें. ३. दो हाथ ऊँचे कर
ललाट को छूने की इस मुद्रा को मुक्ताशुक्ति मुद्रा कहते हैं. (३) जिन मुद्रा- नवकार अथवा लोगस्स आदि कायोत्सर्ग में..
पैरों की एड़ी के बीच आगे से चार अंगुल और २. पीछे से इससे कुछ कम, करीब तीन अंगुल अंतर रखें. ३. दोनों हाथों के पंजे घुटनों की और रहे वैसे लटकते रखें. ४. दृष्टि को जिनबिंब अथवा नासिका के अग्र भाग में स्थिर रखें. इस मुद्रा को जिन मुद्रा कहते हैं.
चैत्यवंदन विधि (प्रथम नीचे अनुसार इरियावहि करने हेतु निम्न सूत्र बोलकर एक खमासमण दे.
इच्छामि खमासमण सूत्र इच्छामि खमा-समणो! वंदिउं, जावणिज्जाए निसीहिआए', मत्थएण वंदामि १.
(भावार्थ- इस सूत्र द्वारा देवाधिदेव परमात्मा को तथा पंचमहाव्रतधारी साधु भगवंतों को वंदन किया जाता है.)
(फिर निम्न सूत्र खड़े रहकर बोलें) * हम जैसा जीते है वैसा हमारा जीवन बनता जाता है.
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२८
इरियावहियं सूत्र
इच्छा-कारेण संदिसह भगवन्! इरियावहियं पडिक्कमामि ? इच्छं, इच्छामि पडिक्कमिउं १. इरियावहियाए, विराहणाए २. गमणागमणे ३. पाण-क्कमणे, बीयक्कमणे, हरिय क्कमणे, ओसा उलिंग पणग-दंग-मट्टी-मक्कडा-संताणा-संकमणे ४. जे मे जीवा विराहिया ५. एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया ६. अमिया, बत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया परिवाविया, किलामिया, उहविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ७.
(भावार्थ - इस सूत्र से चलते-फिरते जीवों की अज्ञान से विराधना हुई हो या पाप लगे हों वे दूर होते हैं.)
तस्स उत्तरी सूत्र
तस्स उत्तरी- करणेणं, पायच्छित्त करणेणं, विसोही-करणेणं, विसल्ली - करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्धायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं.
(भावार्थ- इस सूत्र से इरियावहियं सूत्र से बाकी रहे हुए पापों की विशेष शुद्धि होती हैं .)
अन्नत्थ सूत्र
अन्नत्थ- ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्त-मुच्छाए १. सुहुमेहिं अंग-संचालेहिं, सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठि संचालेहिं २ एवमाइएहिं आगारेहिं, अ-भग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो ३. जाव अरिहंताणं भगवंताणं, नमुक्कारेणं न पारेमि ४ वाव कार्य ठाणेणं मोणेणं झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि ५.
(भावार्थ- इस सूत्र में कायोत्सर्ग के सोलह आगारों का वर्णन तथा कैसे काउसग्ग करना वो बताया है.)
( फिर एक लोगस्स का 'चंदेसु निम्मलयरा' तक का और न आता हो तो चार नवकार का जिनमुद्रा में कायोत्सर्ग करें, फिर प्रगट लोगस्स बोलें.)
लोगस्स सूत्र
लोगस्स उज्जोअ-गरे, धम्म- तित्थ-यरे जिणे.
अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसं पि केवली
१.
जो भव की भयानकता को जानता है वह धर्म की महानता को जानता है.
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उसभ-मजिअं च वंदे, संभव-मभिणंदणं च सुमई च. पउम-प्पहं सुपासं, जिणं च चंद-प्पहं वंदे
सुविहिं च पुप्फ-दंतं, सीअल-सिज्जंस-वासु-पुज्जं च. विमल-मणतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदानि
कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणि-सुव्वयं नमि-जिणं च . वंदामि रिट्ठ-नेमिं पास तह वद्धमाणं च
एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय- मला पहीण-जर-मरणा. चउ-वीस पि जिणवरा, तित्थ-यरा मे पसीयंतु
कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा. आरुग्ण-वोहि-लाभं समाहि-वर-मुत्तमं दितु
( कहकर बायाँ घुटना खड़ा करें, योग मुद्रा में) सकल कुशलवल्ली, पुष्करावर्त मेघो, दुरित तिमिर भानुः कल्पवृक्षोपमानः भवजलनिधि पोतः सर्व संपत्ति हेतुः स भवतु सततं वा श्रयसे शांतिनाथा श्रेयसे पार्श्वनाथः
सामान्य जिन चैत्यवंदन
तुज मूरतिने निरखवा, मुज नयणां तरसे, तुज गुणगाणने बोलवा, रसना मुज हरखे.
१
२.
धर्म का हर स्वरूप असीम परोपकार से भरा हुआ है.
३.
चंदेसु निम्मल-यरा, आइच्चेसु अहियं पयास-यरा. सागर-वर-गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु
७.
(भावार्थ- इस सूत्र में चौबीस तीर्थंकरों की नामपूर्वक स्तुति की गई है.) चैत्यवंदन करने की विधि इच्छामि खमा-समणो! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए. मत्थारण वंदामि १. ( इस प्रकार से तीन खमासमण देकर )
इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूँ' इच्छं.
४.
५.
६.
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३०
काया अति आनंद मुज, तुम युग पद फरसे, तो सेवक तार्या विना कहो किम हवे सरशे. एम जाणीने साहिबा ए, नेक नजर मोही जोय, ज्ञान विमल प्रभु नजरथी, तेह शुं जे नवि होय.
२
जंकिंचि
( योगमुद्रा में)
जंकिंचि नाम तित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए, जाइं जिण बिंबाई, ताइं सव्वाइं वंदामि
नमुत्थु णं सूत्र
नमुत्थु णं, अरिहंताणं, भगवंताणं, आइ-गराणं, तित्थ-यराणं, सयं-संबुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं, पुरिस-सीहाणं, पुरिस वर पुंडरी आणं, पुरिस-वर-गंध-हत्थीर्ण, लोगुत्तमाणं, लोग-नाहाणं, लोग-हिआणं, लोग-पईवाणं, लोग-पज्जोअ-गराणं, अभय-दयाणं, चक्छु-दयाणं मग्ग- दयाणं, सरण- दयाणं, बोहि दयाणं, धम्म- दयाणं, धम्म-देसयाणं, धम्म-नायगाणं, धम्म-सारहीणं, धम्म-वर चाउरंत - चक्कवट्टीणं, अप्पडिहय-वर-नाण-दंसण-धराणं, वियट्ट-छउमाणं, जिणाणं, जावयाणं, तिन्नाणं, तारयाणं, बुद्धाणं, बोहयाणं, मुत्ताणं, मोअगाणं सव्वभ्रूणं, सव्य-दरिसीणं, सिवमयल-मरुअ-मणंत-मक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति सिद्धिगइ-नामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं, जिअ भयाणं, जे अ अईया सिद्धा, जे अ भविस्संति-नागए काले, संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे ति-विहेण वंदामि.
7
जायंति येइआई सूत्र
जावंति चेइआइं, उड्ढे अ अहे अ तिरिअ-लोए अ. सव्वाई ताई वंदे, इह संतो तत्थ संताई १.
इच्छामि खमा-समणो! वंदिरं, जावणिज्जाए निसीहिआए, मत्थएण वंदामि १.
जावंत के दि साहू
(मुक्ताशुक्ति मुद्रा में)
जावंत के वि साहू, भरहेरवय-महा-विदेहे अ.
सव्वेसिं तेसिं पणओ, ति-विहेण ति-दंड- विरयाणं १.
घर में आए पागल कुत्ते का क्या करते हो? बस! अशुभ विचार भी कुछ ऐसे ही है.
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३१
'नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः'
कह कर स्तवन बोलें. सामान्य जिन स्तवन
(योग मुद्रा में) जिन तेरे चरण की शरण ग्रहुं हृदय कमल में ध्यान धरत हुं, शिर तुज आण वहुं...
जिन १ तुम सम खोळ्यो देव खलक में, पेख्यो नहि कबहुं.... जिन २ तेरे गुण की जपुं जप माला, अहोनिश पाप दहुं... जिन ३ मेरे मन की तुम सब जानो, क्या मुख बहोत कहुं.... जिन ४ कहे जस विजय करो त्युं साहिब, ज्युं भव दुःख न लहुं... जिन ५
श्री उवसग्गहरं स्तवन्
(योग मुद्रा में) उवसग्ग-हरं पासं, पासं वंदामि कम्म-घण-मुक्कं. विसहर-विस-निन्नासं, मंगल-कल्लाण-आवासं विसहर-फुलिंग-मंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ. तस्स गह-रोग-मारी, दुट्ठ-जरा जंति उवसामं२. चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहु-फलो होइ. नर-तिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख-दोगच्चं ३. तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि-कप्प-पायव-महिए. पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं
४. इय संथुओ महायस! भत्ति-भर-निब्मरेण हिअएण. ता देव! दिज्ज बोहिं, भवे भवे पास! जिण-चंद! ५. (दो हाथ मस्तक पर रखे, स्त्रियाँ कोहनी ऊंची न करें)
जय वीयराय
(मुक्ताशुक्ति मुद्रा में) जय वीयराय! जग-गुरु!, होउ ममं तुह प्पभावओ भयवं!.
भव-निव्वेओ मग्गाणुसारिआ इट्ठफल-सिद्धी १. *मन का स्वभाव है, जितनी ना उतनी हाँ, कुनेह मे उसे शुभ में लगाए रखो.
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३२
लोग-विरुद्ध-च्चाओ गुरु-जण-पूआ परत्थ- करणं च सुह-गुरु-जोगो तब्वयण-सेवणा आ-भवमखंडा
२.
( योग मुद्रा में)
३.
वारिज्जइ जइ वि नियाण-बंधणं वीयराय! तुह समये. तह वि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं दुक्ख क्खओ कम्म-क्खओ, समाहि-मरणं च बोहि-लाभो अ. संपज्जउ मह एअं, तुह नाह! पणाम करणेणं ४.
सर्व मंगल मांगल्यं, सर्व-कल्याण-कारणम्. प्रधानं सर्व-धर्माणां जैन जयति शासनम् (फिर खड़े होकर)
अरिहंत चेइयाणं
५.
अरिहंत चेइयाणं, करेमि काउस्सग्गं वंदण वत्तिआए, पूअण वत्तिआए, सक्कार. वत्तिआए, सम्माण - वत्तिआए, बोहि-लाभ वत्तिआए, निरुवसग्ग-वत्तिआए, सद्धाए, मेहाए, धिईए, धारणाए, अणुप्पेहाए वड्ढमाणीए ठामि काउस्सग्गं.
"
अन्नत्थ सूत्र
अन्नत्थ-ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्त-मुच्छाए १. सुहुमेहिं अंग-संचालेहिं, सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं सुमेहिं दिट्ठि संचालेहिं २ एवमाइएहिं आगारेहिं अ-भग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो ३. जाव अरिहंताणं भगवंताणं, नमुक्कारेणं न पारेमि ४ वाव कार्य ठाणेणं मोणेणं झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि ५.
फिर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर, पार कर 'नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः'
कह कर थोय कहें।
थोय
7
शंखेश्वर पासजी पूजिए, नरभवनो लाहो लीजिए; मनवांछित पूरण सुरतरु, जय वामासुत अलवेसरुं.
जीवन में दृढ़ बनना, जड़ नहीं.
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UNI
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Kaasனுஜனுதுனுதுமேதுைருத
טו יו יש אישור (יאיר וטא ! אני אוהיו
יש אזור
यमलालबत्तया
आदिमं पृथिवीनाथ-मादिमं निष्परिग्रहम आदिमं तीर्थनाथं च, ऋषभ-स्वामिनं स्तुम:. .३. ।
१ | २ | ३ |
४
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श्री ऋषभदेव भगवान च्यवन : आषाढ कृष्णा ४
(अयोध्या) जन्म : चैत्र कृष्णा ८
(अयोध्या) दीक्षा : चैत्र कृष्णा ८
(अयोध्या-विनीतानगरी) केवलज्ञान : फाल्गुन कृष्णा ११
(पुरिमताल) निर्वाण : माघ कृष्णा १३ ।
(अष्टापद पर्वत)
| १ | ३ | १ | ३ | २ | ४ | ५ | ३ | १ | २ | ४
२ | ३ | १ | ४ | ३ | २ | १ | ४
A
GETSAAD
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श्री ऋषभदेव भगवान
चैत्यवंदन आदिदेव अलवेसरु, विनीतानो राय; नाभिराया कुल मंडणो, मरुदेवा माय. पांचसें धनुषनी देहडी, प्रभुजी परम दयाल; चोरासी लख पूर्व-, जस आयु विशाल. वृषभ लंछन जिन वृषभ-धरुए, उत्तम गुणमणी खाण; तस पद पद्म सेवन थकी, लहीए अविचल ठाण.
माता.१
माता.२
स्तवन माता मरुदेवीना नन्द, देखी ताहरी मूरति; मारुं मन लोभापुंजी, के मारुं चित्त-चोराणुं जी. करुणा-नागर करुणा-सागर, काया-कंचन-वान; धोरी-लंछन पाउले कांई,धनुष पांचसें मान. त्रिगडे बेसी धर्म कहंता, सुणे पर्षदा बार; । योजन गामिनी वाणी मीठी, वरसन्ती जलधार. ऊर्वशी रूडी अपसराने, रामा छे मनरंग; पाये नेपूर रणझणे कांई, करती नाटारम्भ. तुंही ब्रह्मा, तुंही विधाता, तुं जग-तारणहार; तुज सरीखो नहि देव जगतमां, अडवडिया आधार. तुंही भ्राता, तुंही त्राता, तुंही जगतनो देव; सुर-नर-किन्नर-वासुदेवा, करता तुज पद सेव. 'श्री सिद्धाचल तीरथ केरो, राजा ऋषभ जिणंद; कीर्ति करे माणेक मुनि ताहरी, टालो भव-भय फंद
माता.३
माता.४
माता.५
माता.६
स्तुति आदि जिनवर राया, जास सोवन्न काया; मरुदेवी माया, धोरी लंछन पाया. जगत स्थिति निपाया, शुद्ध चारित्र पाया; केवल सिरी राया, मोक्ष नगरे सिधाया.१।
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समयमा मायालयमा
अर्हन्त-मजितं विश्व-कमलाकर-भास्करम्. अम्लान-केवलादर्श-संक्रान्त-जगतं स्तुवे..४.
श्री अजीतनाथ भगवान च्यवन : वैशाख सुद १३
(अयोध्या) जन्म
: माघ शुक्ला ८
(अयोध्या) दीक्षा : माघ शुक्ला ९
(अयोध्या-विनीतानगरी) केवलज्ञान : पौष शुक्ला ११
(अयोध्या) निर्वाण : चैत्र शुक्ला ५
(सम्मेतशिखर)
| १ | ४ | २ | ३ | ५ |
| ४ | २ | १ | ३ | ५
ORON MOON MORE
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श्री अजितनाथ भगवान
चैत्यवंदन अजित अजित पद आपता, भव्यजीवने जेह; पुरुषार्थने भाखता, हेतु मुख्य छे तेह.। जड-परिणामी यत्नथी, जड साथे छे बन्ध; शुद्धात्मिक परिणामना, पुरुषार्थे नहि बन्ध. । पुरुषार्थ शिरोमणि ए, सहजयोग शिरदार; शुद्धातम उपयोग छे, अजित निर्धार.
स्तवन प्रीतलडी बंधाणी रे अजित जिणंदरों, प्रभु पाखे क्षण एके मन न सुहाय जो; ध्याननी ताली रे लागी नेहशुं, जलद घटा जिम शिव सुत वाहन दाय जो. प्रीत.१. नेह घेखें मन मारूं रे प्रभु अलजे रहे, तन मन धन ए कारणथी प्रभु मुज जो; । मारे तो आधार रे साहिब रावलो, अंतरगतनी प्रभु आगल कहुं गुंज जो. प्रीत.२. साहेब ते साचो रे जगमां जाणीए, सेवकनां जे सहजे सुधारे काज जो; एहवे रे आचरणे केम करीने रहुं, बिरुद तमारं तारण तरण जहाज जो. प्रीत.३. तारकता तुज माहे रे श्रवणे सांभली, ते भणी हुं आव्यो छु दीनदयाल जो; तुज करुणानी लहेरे रे मुज कारज सरे, शुं घणुं कहीए जाण आगल कृपाल जो. प्रीत.४. करुणा दृष्टि कीधी रे सेवक उपरे, भव भव भावट भांगी भक्ति प्रसंग जो; मन वांछित फलीयां रे तुज आलंबने, कर जोडीने मोहन कहे मनरंग जो. प्रीत.५.
स्तुति
विजया सुत वंदो, तेजथी ज्युं दिणंदो, शीतलताए चंदो, धीरताए गिरीदो; मुख जिम अरविंदो, जास सेवे सुरिंदो लहो परमाणंदो, सेवतां सुख कंदो. १
4
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PADDARATHEDARIDABADDIDARIOME
विश्व भव्य-जनाराम-कुल्या-तुल्या जयन्ति ताः. देशना-समये वाचः, श्रीसंभव-जगत्पतेः.. ५
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श्री संभवनाथ भगवान च्यवन : फाल्गुन शुक्ला ८
(श्रावस्ती) जन्म मार्गशीर्ष शुक्ला १४
(श्रावस्ती) दीक्षा : मार्गशीर्ष शुक्ला १५
(श्रावस्ती) केवलज्ञान : कार्तीक कृष्णा ५
(श्रावस्ती) निर्वाण : चैत्र शुक्ला ५
(सम्मेतशिखर)
| १४ | ३ | २५ ४ | १३२५ ३ ४ १२५
MURUWAHANUSHMUKONKAROO SARA
ASEAN
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श्री संभवनाथ भगवान
चैत्यवंदन संभवजिनने सेवतां, संभवती निज ऋद्धि; क्षायिक नव लब्धि मळे, थती आत्मनी शुद्धि घातीकर्मना नाशथी, अर्हन पदवी पाम्या; आधि व्याधि उपाधिने, तुज ध्यानारा वाम्या. आतमा ते परमातमा ए, व्यक्तिभावे करवा; संभवजिन उपयोगथी, क्षण क्षण दिलमां स्मरवा
सभव०१
संभव०२
स्तवन संभव जिनवर विनति, अवधारो गुणज्ञाता रे; खामी नहीं मुज खिजमते, कदीय होशो फळदाता रे. कर जोडी ऊभो रहुं, रात दिवस तुम ध्याने रे; जो मनमां आणो नहि, तो शुं कहीए छानो रे.. खोट खजाने को नहीं, दीजीए वांछित दानो रे; करुणा नजर प्रभुजी तणी, वाधे सेवक वानो रे. काळ लब्धि मुज मति गणो, भाव लब्धि तुम हाथे रे; लडथडतुं पण गजबच्चुं, गाजे गयवर साथे रे. देशो तो तुम ही भलुं, बीजा तो नवि जाचुं रे; वाचक यश कहे सांईशुं, फळशे ए मुज साचुं रे.
संभव०३
संभव०४
संभव०५
स्तुति संभव सुखदाता, जेह जगमां विख्याता, षट् जीवना त्राता, आपता सुखशाता; माता ने भ्राता, केवलज्ञान ज्ञाता, दुःख दोहग वाता, जास नामे पलाता.
* ONAKOROKHORODAMAKORANGAROKARANORUM
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DELEDEREDEOनामा
SEGREGREGGFEGFEFECTE
अनेकान्त-मताम्भोधि-समुल्लासन-चन्द्रमाः. दद्यादमन्द-मानन्दं, भगवा-नभिनन्दनः..६.
| ३ | २ | ४ | १ | ५
श्री अभिनंदन स्वामी च्यवन : वैशाख शुक्ला ४
(अयोध्या) जन्म : माघ शुक्ला २
(अयोध्या) दीक्षा : माघ शुक्ला १२
(अयोध्या) केवलज्ञान : पौष शुक्ला १४
(अयोध्या) निर्वाण : वैशाख शुक्ला ८
(सम्मेतशिखर)
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श्री अभिनंदनस्वामि भगवान
चैत्यवंदन नंदन संवर रायना, चोथा अभिनंदन, कपि लंछन वंदन करो, भवदुःख निकंदन. सिद्धारथा जस मावडी, सिद्धारथ जिन ताय, साडा त्रणशें धनुषमान, सुंदर जस काय. विनीतावासी वंदीए ए, आयु लख पचास, पूरव तस पद पद्मने, नमतां शिवपुर वास
स्तवन श्री अभिनंदनस्वामी हमारा अभिनंदन स्वामि हमारा, प्रभु भव दुःख भंजनहारा; ये दुनिया दुःख की धारा, प्रभु इनसे करो निस्तारा. अभि.१ हुंकुमति कुटिल भरमायो, दुरनीति करी दुःख पायो; अब शरण लीयो है तारो, मजे भवजल पार उतारो..। अभि .२ प्रभु शीख हैये नवि धारी, दुर्गतिमां दुःख लीयो भारी; इन कर्मो की गति न्यारी, करे बेर बेर खुवारी... अभि.३ तुमे करुणावंत कहावो, जगतारक बिरुद धरावो, मेरी अरजीनो एक दावो, इन दुःख से क्युं न छुडावो..अभि.४ मे विरथा जनम गुमायो, नहीं तन धन स्नेह निवार्यो; अब पारस प्रसंग पामी, नहीं वीरविजय कुं खामी..... अभि.५
स्तुति
आत्मानंद प्रगट करी अभिनंदे जेह, अभिनंदन छे आतमा गुणपर्याय गेह; आतम अभिनंदन थतो अभिनंदन ध्याई,ध्यान समाधि एकता लीनता पद पाई.१
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asசைதையைனுகலைதுடைதுகை
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PEDHATHEDARIDABADDIDAMOME
धुसत्किरीट-शाणाग्रो-त्तेजिताघ्रि-नखावलिः. भगवान सुमतिस्वामी, तनोत्व-भिमतानि वः..७.
श्री समतिनाथ भगवान च्यवन : श्रावण शुक्ला २
(अयोध्या) जन्म : वैशाख शुक्ला ८
(अयोध्या) दीक्षा P: वैशाख शुक्ला ९
(अयोध्या) केवलज्ञान : चैत्र शुक्ला ११
(अयोध्या) निर्वाण : चैत्र शुक्ला ९
(सम्मेतशिखर)
| १ | २|३| ५ | ४
२ १३ | ५ | ४ | १३ | २५४ | ३ | १२ | ५ | ४ २ ३ | १ | ५ | ४
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U6Ukh6AMOKAROONAMOKAMUK
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श्री सुमतिनाथ भगवान
चैत्यवंदन सुमतिनाथ सुहंकरूं, कोसल्ला जस नयरी, मेघराय मंगला तणो, नंदन जितवयरी. क्रौंच लंछन जिनराजियो, त्रणशें धनुषनी देह, चाळीश लाख पूरवतणुं, आयु अति गुणगेह. सुमति गुणे करी जे भर्या ए, तर्या संसार अगाध तस पदपद्म सेवा थकी, लहो सुख अव्याबाध.
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सोभागी०१
सोभागी०२
स्तवन सुमतिनाथ गुणशुं मिलीजी, वाधे मुज मन प्रीति, तेल बिंदु जिम विस्तरेजी, जलमांहे भली रीति, सोभागी जिन शुं लाग्यो अविहड रंग सज्जनशुं जे प्रीतडीजी, छानी ते न रखाय; परिमल कस्तुरी तणोजी, महीमांहे महकाय. आंगळीए नवि मेरु ढंकाये, छाबडीए रवि तेज; अंजलीमां जिम गंग न माये, मुज मन तिम प्रभु हेज. हुओ छीपे नहीं अधर अरुण जिम, खातां पान सुरंग; पीवत भर भर प्रभु गुण प्याला, तिम मुज प्रेम अभंग. ढांकी ईक्षु पराळशुंजी, न रहे लही विस्तार; 'वाचक यश' कहे प्रभु तणोजी, तिम मुज प्रेम प्रकार.
सोभागी०३
सोभागी०४
सोभागी०५
6 स्तुति सन्मति धारे दुर्मति, त्यागी जे नरनारी,सुमति प्रभु भक्तो खरा, नीतिरीति धारी; सुमति ग्रही शुद्ध भावथी, आत्मभावे रमंता,निश्चयनय सुमति प्रभु, आपोआप नमंता. १
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MONDONOMजातजातजातमा
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पद्मप्रभ-प्रभोर्देह-भासः पुष्णन्तु वः श्रियम्. | अन्तरङ्गारि-मथने, कोपाटोपादि-वारुणा:..८.
श्री पदमप्रभ स्वामी च्यवन : माघ कृष्णा ६
(कौशाम्बी) जन्म : कार्तिक कृष्णा १२
(कौशाम्बी) कार्तिक कृष्णा १३
(कौशाम्बी) केवलज्ञान : चैत्र शुक्ला १५
(कौशाम्बी) निर्वाण : मार्गशीर्ष कृष्णा ११
(सम्मेतशिखर)
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दीक्षा
२ | १ | ५ | ३ | ४ १ | ५ | २ | ३ | ४ ५ | १
२ | ५ | १ | ३ | ४ | ५ | २ | १ | ३ | ४ |
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श्री पद्मप्रभस्वामि भगवान
चैत्यवंदन
नवधा भक्तिथी खरी, पद्मप्रभुनी सेवा; सेवामां मेवा रह्या, आप बने जिनदेवा. नवधा भक्तिमां प्रभु, प्रगटपणे परखाता, आठ कर्म पडदा हठे, स्वयं प्रभु समजाता. पद्मप्रभुने ध्यावतां ए, पूर्ण समाधि थाय; हृदय पद्ममां प्रकटता, आत्मप्रभुजी जणाय.
स्तवन
पद्म प्रभु प्राण से प्यारा, छुडावो कर्म की धारा. कर्म-फंद तोडवा धोरी, प्रभुजी से अरज है मोरी. लघु वय एक थे जीया, मुक्ति में वास तुम किया. न जानी पीड थे मोरी, प्रभु अब खेंच ले दोरी. विषय सुख मानी मोरे मन में, गयो सब काल गफलत में. नरक दु:ख वेदना भारी, निकलवा ना रही बारी. परवश दीनता कीनी, पाप की पोट सिर लीनी. भक्ति नहीं जाणी तुम केरी, रह्यो निश दिन दुःख घेरी. इण विध विनती मोरी, करूं में दोय कर जोरी. आतम आनंद मुज दीजो, वीर नुं काम सब कीजो.
१
२
३
पद्म.१.
पद्म.२.
पद्म.३.
पद्म.४.
पद्म.५.
स्तुति
पद्मप्रभुने देखतां देखवानुं न बाकी, पद्मप्रभुने ध्यावतां बने आतम साखी; पद्मप्रभुमय थई जातां, कोई कर्म न लागे. देह छतां मुक्ति मळे, जीत डंको वागे. १
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श्री सुपार्श्वनाथ भगवान
: भाद्रपद कृष्णा १२ (बनारस)
: ज्येष्ठ शुक्ला १२ (बनारस)
दीक्षा
: ज्येष्ठ शुक्ला १३ (बनारस)
केवलज्ञान : फाल्गुन कृष्णा ३ (बनारस)
निर्वाण
: फाल्गुन कृष्णा ७ (सम्मेतशिखर)
च्यवन
श्रीसुपार्श्व-जिनेन्द्राय, महेन्द्र-महिताङ्घये. नमश्चतुर्वर्ण-सङ्घ- गगनाभोग- भास्वते..९.
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४
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श्री सुपार्श्वनाथ भगवान
चैत्यवंदन सुपार्श्वनाथ छे सातमा, तीर्थंकर जिनराजा; पासे प्रभु सुपार्श्व तो, आतम जगनो राजा. १ आतममां प्रभु पास छे, बाहिर मूर्खा शोधे; अंतरमां प्रभु ध्यानथी, ज्ञानी भक्तो बोधे. द्रव्यभावथी वंदीए ए, ध्याईजे प्रभु पास; एकवार पाम्या पछी, टळे नहीं विश्वास.
में विश्वास.
३
१
स्तवन अहा सुंदर शी छबी तारी रे, श्री सुपार्श्व जिणंद मनोहारी... तुज चोत्रिस अतिशय छाजे रे, गुण पांत्रीश वाणी ए गाजे रे, तुज अद्भुत कांति सारी रे.... प्रभु आंखडी कामणगारी, अति हर्षने उपजावनारी संसारने छेदनकारी रे..... प्रभु मायामां मनडु लाग्युं, मारुं भवनुं दुखडु भांग्युं रे, हुं भक्ति करुं नित्य ताहरी रे... हुं विषय रसमांही राच्यो, आठे मदमांही माच्यो रे प्रभु आव्यो शरण ल्यो उगारी रे... तुज पदकज सेवा पामी, विजय गुलाब सवि दुख वामी रे, मणीविजयने आनंद भारी रे....
स्तुति सुपास जिन वाणी, सांभळे जेह प्राणी, हृदये पहेंचाणी, ते तर्या भव्य प्राणी: पांत्रीश गुण खाणी, सूत्रमा जे गुंथाणी, षट् द्रव्यशुं जाणी, कर्म पीले ज्यु घाणी.
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יהוה את זה באור יו דור י
ו זה באור זה שווה
י ותר עבורו
चन्द्रप्रभ-प्रभोश्चन्द्र-मरीचि-निचयोज्ज्वला. मूर्तिमूर्त्त-सितध्यान-निर्मितेव श्रियेस्तु वा..१०.
च्यवन
श्री चन्द्रप्रभ स्वामी
कृष्णा ५
(चंद्रपुरी) जन्म पौष कृष्णा १२
(चंद्रपुरी) दीक्षा पौष कृष्णा १३
(चंद्रपुरी) केवलज्ञान : फाल्गुन कृष्णा ७
(चंद्रपुरी) निर्वाण भाद्रपद कृष्णा ७
(सम्मेतशिखर)
२ | ३ | ५ | १ | ३ | २ | ५ | १ | ४
२ | ५ | ३ | १ | ४
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श्री चंद्रप्रभस्वामि भगवान
१
चैत्यवंदन अनंत चंद्रनी ज्योतिथी, अनंत ज्ञानथी ज्योतः चंद्रप्रभु प्रणमुं स्तवं, करता जग उद्योत असंख्य चंद्रो भानओ इन्द्रो जेने ध्याय 'परब्रह्म चंद्रप्रभु, जगमां सत्य सुहाय. शुद्धप्रेमथी वंदतां ए, असंख्यचंद्रनो नाथ, बुद्धिसागर आतमा, टाळे पुद्गल साथ.
स्तवन 'देखण दे रे सखि मने देखण दे, चन्द्रप्रभु मुखचंद उपशम रसनो कंद सखि०, सेवे सुरनर इंद गत कलिमल दुःख दंद, सखि मुने देखण दे। सुहम निगोदे न देखियो सखि०, बादर अतिहि विशेष पुढवी आउ न पेखियो सखि०, तेउ वाउ न लेश वनस्पति अति घण दीहा सखि०, दीठो नहींय दीदार बि-ति-चउरिंदि जललिहा सखि०, गतसन्नि पण धार 'सुर-तिरि-निरय निवासमां सखि०, मनुज अनारज साथ अपज्जत्ता प्रतिभासमां सखि०, चतुर न चढीयो हाथ एम अनेक थल जाणिये सखि०, दरिसण विणु जिनदेव। आगमथी मति आणीये सखि०, कीजे निर्मल सेव। निर्मल साधु भगति लही सखि०, योग-अवंचक होय किरिया-अवंचक तिम सही सखि०, फळ-अवंचक जोय प्रेरक अवसर जिनवरु सखि०, मोहनीय क्षय थाय। कामितपूरक सुरतरु सखि०, आनंदघन प्रभुपाय
सखि० सखि० सखि०१ सखि० सखि०२ सखि० सखि०३ सखि सखि०४ सखि० सखि०५ सखि सखि०६ सखि० सखि०७
स्तुति
चंद्रप्रभु विभु उपदेशे, जैनधर्म ते साचो; नय सापेक्षाए खरो, तेमां भव्यो राचो आत्मज्ञान ने ध्यानथी, करो आत्मनी शुद्धि, शुद्धातम चंद्रप्रभु, थातां आनंद ऋद्धि. १
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विधिलायला
करामलकवद्विश्वं कलयन केवल-श्रिया. अचिन्त्य-माहात्म्य-निधिः, सुविधिर्बोधयेस्तु वः..११.
श्री सुविधिनाथ भगवान च्यवन : फाल्गुन कृष्णा ९
(काकंदी) जन्म : मार्गशीर्ष कृष्णा ५
(काकंदी) दीक्षा : मार्गशीर्ष कृष्णा ६
(काकंदी) केवलज्ञान : कार्तिक शुक्ला ३
(काकंदी) निर्वाण : मार्गशीर्ष कृष्णा ६
(सम्मेतशिखर)
| २ | १४५३ १ | ४ | २ | ५ ३
२४१५३
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श्री सुविधिनाथ भगवान
१
चैत्यवंदन सुविधिनाथ सुविधि दिये, आत्मशुद्धि हेत; श्रावक साधु धर्म बे, तेना सहु संकेत. द्रव्य-भाव व्यवहारने, निश्चय सुविधि बेश; जैनधर्मनी जाणतां, करतां रहे न क्लेश. शुद्धातम परिणाममां ए, सर्व सुविधि समाय; आतम सुविधिनाथ थै, चिदानंदमय थाय.
२
३
स्तवन में कीनो नहीं, तुम बिन ओरशुं राग. दिन दिन वान चढत गुन तेरो, ज्युं कंचन परभाग...
ओरन में हैं कषाय की कलिमा, सो क्यु सेवा लाग. मैं.१ राजहंस तुं मान सरोवर, और अशुचि रुचि काग.. विषय भुजंगम गरुड तु कहिये, और विषय विषनाग. मैं.२
और देव जल छिल्लर सरिखे, तुं तो समुद्र अथाग. तुं सुरतरु जग वंछित पूरण, और तो सूके साग. मैं.३ तुं पुरुषोत्तम तुं ही निरंजन, तुं शंकर वडभाग. तुंब्रह्मा तुं बुद्ध महाबल, तुं ही ज देव वीतराग. सुविधिनाथ तुम गुन फुलनको, मेरो दिल है बाग. जस कहे भ्रमर रसिक होइ तामें, लीजे भक्ति पराग. मैं.५
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स्तुति नरदेव भाव देवो, जेहनी सारे सेवो, जेह देवाधिदेवो, सार जगमां ज्युं मेवो; जोतां जग एहवो, देव दीठो न तेहवो, 'सुविधि' जिन जेहवो, मोक्ष दे ततखेवो.
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सत्त्वानां परमानंद - कन्दोभेद - नवाम्बुदः. स्याद्वादामृत-नि:स्यन्दी, शीतलः पातु वो जिनः..१२
|
|
श्री शीतलनाथ भगवान च्यवन : वैशाख कृष्णा ६
(भदिलपुर) जन्म : माघ कृष्णा १२
(भदिलपुर) दीक्षा : माघ कृष्णा १२
(भदिलपुर) केवलज्ञान : पौष कष्णा १४
(भदिलपुर) निर्वाण : वैशाख कृष्णा २
(सम्मेतशिखर)
| २ | १ | ५ | ४ | ३ |
१ | ५ | २ | ४ | ३ ५ | १२ | ४ | ३
२ | ५ | १ | ४ | ३ | ५ | २ | १ | ४ | ३|
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श्री शीतलनाथ भगवान
चैत्यवंदन नंदा दृढरथ नंदनो, शीतल शीतलनाथ; राजा भद्दिलपुर तणो, चलवे शिवपुर साथ. लाख पूरवनुं आउखु, नेवू धनुष प्रमाण; काया माया टालीने, लह्या पंचम नाण. 'श्रीवत्स लंछन सुंदरुं ए, पद पर्दो रहे जास; ते जिननी सेवा थकी, लहिये लील विलास.
स्तवन शीतलजिन! मोहे प्यारा साहिबा! शीतलजिन! मोहे प्यारा. भुवन विरोचन पंकज लोचन, जिउ के जिउ हमारा...। ज्योति शुं ज्योत मिलत जब ध्यावे, होवत नहि तब न्यारा, बांधी मुठी खुले भव माया, मिटे महाभ्रम भारा. तुम न्यारे तब सबहि न्यारा, अंतर कुटुंब उदारा, तुमही नजीक नजीक है सबहि, ऋद्धि अनंत अपारा विषय लगन की अगन बुझावत, तुम गुण अनुभव धारा, भई मगनता तुम गुण रस की, कुण कंचन कुण दारा... शीतलता गुण होड करत तुम, चंदन कांही बिचारा? नाम ही तुमचा ताप हरत है, वाकुं घसत घसारा... करहु कष्ट जन बहुत हमारे, नाम तिहारो आधारा, जस कहे जनम-मरण भय भांगो, तुम नामे भवपारा...
त अपारा३
स्तुति शीतल प्रभु शीतल करे, भजे शीतलभावे; शम शीतलता धारतां, सहुं संताप जावे; रागद्वेष निवारीने आप, शीतल थावो; आतमने शीतल करो, सत्य निश्चय लावो. १
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எதுகலைலைலைலைலைலைதுதை
בודאי ? לא יהיו שני יום וילה ורונה ובריאוף דה ידניין
भव - रोगात - जन्तूना - मगदंकार - दर्शन:. निःश्रेयस-श्रीरमणः, श्रेयांस: श्रेयसेस्तु वः..१३.
श्री श्रेयांसनाथ भगवान च्यवन : ज्येष्ठ कृष्णा ६
(सिंहपुरी) जन्म : फाल्गुन कृष्णा १२
(सिंहपुरी) दीक्षा : फाल्गुन कृष्णा १३
(सिंहपुरी) केवलज्ञान : माघ कृष्णा ३
(सिंहपुरी) निर्वाण : श्रावण कृष्णा ३
(सम्मेतशिखर)
४ | १ | ५ | २ | ३ १ | ५ | ४ | २ | ३
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श्री श्रेयांसनाथ भगवान
चैत्यवंदन सर्व भाव श्रेयो वर्या, श्री श्रेयांस जिनंद; आत्मशीतलता धारीने, टाळ्या मोहना फंद. उपशम क्षयोपशम अने, क्षायीक भावे जेह; सत्य श्रेयने पामतो, स्वयं श्रेयांस ज तेह. श्री श्रेयांस प्रभु समो ए निज आतमने करवा; वंदो ध्यावो भविजना, धरो न जडनी परवा.
श्री०१
श्री०२
स्तवन श्री श्रेयांस जिन अंतरजामी, आतमरामी नामी रे; अध्यातम मत पूरण पामी, सहज मुगति गति गामी रे.. सयल संसारी इन्द्रियरामी, मुनिगण आतमरामी रे; मुख्यपणे जे आतमरामी, ते केवळ निःकामी रे.. निज स्वरूप जे किरिया साधे, तेह अध्यातम लहिये रे; जे किरिया करी चउगति साधे, ते न अध्यातम कहिये रे. नाम अध्यातम ठवण अध्यातम, द्रव्य अध्यातम छंडो रे; भाव अध्यातम निज गुण साधे, तो तेहशुं रढ मंडो रे. शब्द अध्यातम अर्थ सुणीने, निर्विकल्प आदरजो रे; शब्द अध्यातम भजना जाणी, हान ग्रहण मति धरजो रे. अध्यातम जे वस्तु विचारी, बीजा जाण लबासी रे; वस्तुगते जे वस्तु प्रकाशे, 'आनंदघन' मतवासी रे.
श्री०३
श्री०४
श्री०५
श्री०६
स्तुति विष्णु जस मात, जेहना विष्णु तात; प्रभुना अवदात, तीन भुवने विख्यात; सुरपति संघात, जास निकटे आयात; करी कर्मनो घात, पामीया मोक्ष शात. १
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विश्वोपकारकी - भूत - तीर्थकृत्कर्म - निर्मितिः. सुरासुर-नरैः पूज्यो, वासुपूज्यः पुनातु वः..१४.
7|
श्री वासुपूज्य स्वामी च्यवन : ज्येष्ठ शुक्ला ६
(चंपापुरी) जन्म फाल्गुन कृष्णा १४
(चंपापुरी) दीक्षा फाल्गुन कृष्णा ३०
(चंपापुरी) केवलज्ञान : माघ शुक्ला २
(चंपापुरी) निर्वाण : आषाढ़ शुक्ला १४
(चंपापुरी)
| २ | ४ | ५ | १ | ३ |
४ | २ | ५ | १ ३ २ | ५ | ४ | १ | ३ ५ | २ | ४ | १ ४ | ५ | २ | १ | ३
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श्री वासुपूज्यस्वामि भगवान
चैत्यवंदन वासव वंदित वासुपूज्य, चंपापुरी ठाम; वसुपूज्य कुल चंद्रमा, माता जया नाम. महिष लंछन जिम बारमा, सित्तेर धनुष प्रमाण; काया आयु वरस वली, बहोंतेर लाख वखाण. संघ चतुर्विध थापीने ए, जिन उत्तम महाराय; तस मुख पद्म वचन सुणी, परमानंदी थाय.
३
स्तवन स्वामी! तुमे कांई कामण कीर्छ, चित्तडु अमाकं चोरी लीधुं; साहिबा वासुपूज्य जिणंदा, मोहना वासुपूज्य जिणंदा. अमे पण तुम शुं कामण करशुं, भक्ते ग्रही मनघरमां धरशुं, साहिबा०१ मनघरमां धरीया घर शोभा, देखत नित रहे थिर शोभा; मन वैकुंठ अकुंठित भगते, योगी भाखे अनुभव युक्ते.
साहिबा०२ क्लेश वासित मन संसार, क्लेश रहित मन ते भवपार; जो विशुद्ध मन घर तुमे आया, प्रभु तो अमे नवनिधि-ऋद्धि पाया. साहिबा० ३। सात राज अलगा जई बेठा, पण भगते अम मनमा पेठा; अलगाने वलग्या जे रहे, ते भाणा खडखड दुःख सहे. साहिबा०४ ध्याता ध्येय ध्यान गुण एके, भेद छेद करशुं हवे टेके; क्षीरनीर परे तुम शुं मिळशें, 'वाचक यश' कहे हेजे हलशुं. साहिबा०५
स्तुति आतम वासुपूज्य छे, करो आविर्भावे, निश्चय नयदृष्टिबळे, ब्रह्मभावना दावे; वासुपूज्यना ध्यानथी, वासुपूज्यजी थावो, ध्यान समाधि एकता, लीनताथी सुहावो. १
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துனுகைலைனுலமைதை
विमल-स्वामिनो वाचः, कतक-क्षोद-सोदरा:. जयन्ति त्रिजगच्चेतो-जल-नैर्मल्य-हेतवः..१५.
श्री विमलनाथ भगवान च्यवन : वैशाख शुक्ला १२
(कंपिलपुर) जन्म : माघ शुक्ला ३
(कंपिलपुर) दीक्षा
: माघ शुक्ला ४
(कंपिलपुर) केवलज्ञान : पौषध शुक्ला ६
(कंपिलपुर) निर्वाण : आषाढ़ कृष्णा ७
(सम्मेतशिखर)
३ | १४ | ५२ | १ | ४ | ३ | ५ | २
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| ३ | ४ | १ | ५ २ | ४ | ३ | १ | ५ | २ |
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श्री विमलनाथ भगवान
चैत्यवंदन आत्मिक सिद्धि आठ जे, आठ वसुना भोगी; आत्मवसु प्रगटावीने, निर्मल थया अयोगी. करी विमल निज आतमा, थया विमल जिनराज; प्रभु पेठे निज विमलता, करवी ए छे काज. आत्मविमलता जे करे ए, स्वयं विमल ते थाय; विमल प्रभु आलंबने, विमलपणुं प्रगटाय.
प्रभुजी.
प्रभु.१.
प्रभु.२.
स्तवन मुज अवगुण मत देखो. राग दशाथी तुं रहे न्यारो, हुं मन रागे वालुं । द्वेष रहित तुं समता भीनो, द्वेष मारग हं चालू. मोह लेश फरस्यो नहि तुंही, मोह लगन मुज प्यारी. तुं अकलंकी कलंकित हुं तो, ए पण रहेणी न्यारी. तुं हि निरागी भाव-पद साधे, हुं आशा-संग विलुद्धो. तुं निश्चल हुं चल, तुं सूद्धो हुं आचरणे ऊंधो. तुज स्वभावथी अवला मारा, चरित्र सकल जग जाण्या. एहवा अवगुण मुज अति भारी, न घटे तुज मुख आण्या. प्रेम नवल जो होय सवाई, विमलनाथ मुख आगे. कान्ति कहे भवरान उतरतां, तो वेला नवि लागे.
प्रभु.३.
प्रभु.४.
प्रभु.५
स्तुति विमल जिन जुहारो, पाप संताप वारो, श्यामांब मल्हारो, विश्व कीर्ति विफारो, योजन विस्तारो, जास वाणी प्रसारो, गुणगण आधारो, पुण्यना ए प्रकारो
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स्वयम्भू - रमण - स्पर्द्धि - करुणारस - वारिणा. अनन्त-जिदनन्तां वः, प्रयच्छतु सुख-श्रियम्..१६
श्री अनंतनाथ भगवान च्यवन : श्रावण कृष्णा ७
(अयोध्या) जन्म : वैशाख कृष्णा १३
(अयोध्या) दीक्षा वैशाख कृष्णा १४
(अयोध्या) केवलज्ञान : वैशाख कृष्णा १४
(अयोध्या) निर्वाण चैत्र शुक्ला ५
(सम्मेतशिखर)
| १३ ५४ | २ | ३ | १५ | ४ | २ | १ | ५ ३ | ४ | २
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श्री अनंतनाथ भगवान
चैत्यवंदन विमलात्मा करीने प्रभु, थया अनंत जिनेश; अनंत ज्योतिर्मय विभु, नहीं राग ने द्वेष. अनंत जीवन ज्ञानमय, आनंद सहज स्वभावे; द्रव्य क्षेत्र ने कालथी, भावथी सत्य सुहावे. अनंत रत्नत्रयी वर्या ए, अनंत जिनवर देव; बुद्धिसागर भावथी.करवी भक्ति सेव
धार.१.
धार.२.
धार.३.
स्तवन धार तलवारनी सोहिली दोहिली, चउदमा जिन तणी चरण सेवा धार पर नाचता देख बाजीगरा, सेवना धार पर रहे न देवा. एक कहे सेविये विविध किरिया करी, फल अनेकांत लोचन न देखे. फल अनेकांत किरिया करी बापडा, रडवडे चार गतिमांहि लेखे. गच्छना भेद बहु नयण निहालतां, तत्त्वनी वात करतां न लाजे. उदर भरणादि निज काज करतां थकां, मोह नडिया कलिकाल राजे. वचन निरपेक्ष व्यवहार झूठो कह्यो, वचन सापेक्ष व्यवहार साचो. वचन निरपेक्ष व्यवहार संसार फल, सांभली आदरी कांइ राचो. देव गुरु धर्मनी शुद्धि कहो किम रहे, किम रहे शुद्ध श्रद्धा न आणो. शुद्ध श्रद्धान विण सर्व किरिया करी,छार पर लींपणुंतेह जाणो. पाप नहिं कोइ उत्सूत्र भाषण जिस्यो, धर्म नहीं कोई जग सूत्र सरिखो. सूत्र अनुसार जे भविक किरिया करे, तेहनुं शुद्ध चारित्र परिखो. एह उपदेशनो सार संक्षेपथी, जे नरा चित्तमां नित्य ध्यावे.. ते नरा दिव्य बहु काल सुख अनुभवी, नियत आनंदघन राज पावे.
धार.४.
धार.५.
धार.६.
धार.७.
स्तुति अनंत आतम द्रव्यथी, क्षेत्र काल ने भावे; जाणे अंत न थाय छे, आठ कर्म अभावे; द्रव्य क्षेत्र काल भावथी, अनंत कर्मनो आवे; अनंतनाथ जणावता, ब्रह्म अंत न थावे. १
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כל דור ודור וילה בניו
कल्पद्रुम-सधर्माण-मिष्टप्राप्तौ शरीरिणाम. चतुर्धा धर्म-देष्टारं, धर्मनाथ-मुपास्महे..१७.
श्री धर्मनाथ भगवान च्यवन : वैशाख शुक्ला ६
(रत्नपुरी)
१५ ४ | ३ | २
जन्म
: माघ शुक्ला ३
(रत्नपुरी) दीक्षा : माघ शुक्ला १३
(रत्नपुरी) केवलज्ञान : पौष शुक्ला १५
(रत्नपुरी) निर्वाण : ज्येष्ठ शुक्ला ५
(सम्मेतशिखर)
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श्री धर्मनाथ भगवान
चैत्यवंदन । भानुनंदन धर्मनाथ, सुव्रता भली मात; वज्र लंछन वज्री नमे, त्रण भुवन विख्यात. १ दश लाख वरसनु आउखुं, वपु धनुष पिस्तालीस; रत्नपुरीनो राजीयो, जगमां जास जगीस. धर्म मारग जिनवर कहे ए, उत्तम जन आधार; । तिणे तुज पाद पद्मतणी, सेवा करुं निरधार. ३।
स्तवन धर्म जिनेश्वर! गाउं रंगशुं, भंग म पडशो हो प्रीत जिनेश्वर! बीजो मनमंदिर आणुं नहि, ए अम कुलवट रीत जिनेश्वर! धर्म०१ धर्म धर्म करतो जग सहु फिरे, धर्म न जाणे हो मर्म जिने० धर्म जिनेश्वर चरण ग्रयां पछी, कोई न बांधे हो कर्म जिने धर्म०२ प्रवचन अंजन जो सद्गुरु करे, देखे परम निधान जिने । हृदय नयण निहाळे जगधणी, महिमा मेरु समान जिने० दोडत दोडत दोडत दोडियो, जेती मननी रे दोड जिने । प्रेम प्रतीत विचारो ढूंकडी,गुरुगम लेजो रे जोड जिने । धर्म०४ एक पखी किम प्रीति परवडे, उभय मिल्या हुए संध जिने । हं रागी हुं मोहे फंदियो, तुं नीरागी निरबंध जिने । परम निधान प्रगट मुख आगळे, जगत उल्लंघी हो जाय जिने० ज्योति विना जुओ जगदीशनी, अंधोअंध पलाय जिने० धर्म०६ निर्मळ गुण मणि रोहण भूधरा, मुनिजन मानस हंस जिने० धन्य ते नगरी, धन्य वेला घडी, मात पिता कुलवंश जिने० धर्म० ७ मनमधुकर वर कर जोडी कहे, पदकज निकट निवास जिने । घननामी आनंदघन सांभळो, ए सेवक अरदास जिने० । धर्म०८
धर्म०३
धर्म०५
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धरम धमर धोरी, कर्मना पास तोरी; केवल श्री जोरी, जेह चोरे न चोरी; दर्शन मद छोरी, जाय भाग्या सटोरी; नमे सुरनर कोरी, ते वरे सिद्धि गोरी
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सुधासोदर-वाग्ज्योत्स्ना-निर्मलीकृत-दिङ्मुख:. मृगलक्ष्मा तमःशान्त्य, शान्तिनाथ-जिनोस्तु वः..१८.
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श्री शांतिनाथ भगवान च्यवन : भाद्रपद कृष्णा ७
(हस्तिनापुर) जन्म : ज्येष्ठ कृष्णा १३
(हस्तिनापुर) दीक्षा : ज्येष्ठ कृष्णा १४
(हस्तिनापुर) केवलज्ञान : पौष शुक्ला ९
(हस्तिनापुर) निर्वाण : ज्येष्ठ कृष्णा १३
(सम्मेतशिखर)
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श्री शांतिनाथ भगवान
चैत्यवंदन दर्शन ज्ञान चारित्रथी, साची शांति थावे; शांतिनाथ शांति वर्या, रत्नत्रयी स्वभावे. तिरोभाव निज शांतिनो, अविर्भाव जे थाय शुद्धातम शांति प्रभु, स्वयं मुक्तिपद पाय. बाह्य शांतिनो अंत छे ए, आतम शांति अनंत; अनुभवे जे आत्ममां, प्रभुपद पामे संत.
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स्तवन हम मगन भये प्रभु ध्यान में, बिसर गई दुविधा तन-मन की, अचिरा सुत गुणगान में. हरिहर ब्रह्मा पुरन्दर की ऋद्धि, आवत नहीं कोउ मान में; चिदानन्द की मोज मची है, समता रस के पान में. इतने दिन तुम नाहीं पिछान्यो, मेरो जन्म गमायो अजान में; अब तो अधिकारी होई बैठे, प्रभु गुण अखय खजान में. गयी दीनता अब सब ही हमारी, प्रभु तुझ समकित दान में; प्रभु गुण अनुभव रस के आगे, आवत नहीं कोई मान में. जिनहीं पाया तिनही छिपाया, न कहे कोउ के कान में; ताली लागी जब अनुभव की, तब समझे कोइ सान में. प्रभु गुण अनुभव चन्द्रहास ज्यूं, सो तो न रहे म्यान में; वाचक जस कहे मोह महा अरि, जीत लिओ हे मेदान में.
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स्तुति शांति सुहंकर साहिबो, संयम अवधारे; सुमित्रने घेर पारj, भव पार उतारे विचरंता अवनीतले, तप उग्र विहारे; ज्ञान ध्यान एक तानथी, तिर्यंचने तारे.१
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श्रीकुन्थुनाथो भगवान्, सनाथो-तिशयर्द्धिभिः. सुरासुर-नृनाथाना-मेकनाथोस्तु वः श्रिये..१९.
श्री कुंथुनाथ भगवान च्यवन : श्रावण कृष्णा ९
(हस्तिनापुर) जन्म वैशाख कृष्णा १४
(हस्तिनापुर) दीक्षा
वैशाख कृष्णा ५
(हस्तिनापुर) केवलज्ञान : चैत्र शुक्ला ३
(हस्तिनापुर) निर्वाण : वैशाख कृष्णा १
(सम्मेतशिखर)
| २ | ३ | ४ | ५ | १ | ३ | २४ ५ १ | २ | ४ | ३ ५ १ | ४ | २ | ३ | ५ | १ | ३ | ४ २ ५ | १
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श्री कुंथुनाथ भगवान
चैत्यवंदन शुद्ध स्वभावे शांतिने, पाम्या कुंथु जिनंद; कुंथुनाथ निज आतमा, समजे नहि मतिमन्द मननी गति कुंठित थतां, वैकुंठ मुक्ति पासे; क्रोधादिक दूरे करी, वर्ते हर्षोल्लासे.. बाहिर दृष्टि त्यागथी, आतमदृष्टियोगे; कुंथुनाथ ध्यावो सदा, निजना निज उपयोगे.
स्तवन मनडुं किम ही न बाजे हो कुंथुजिन, मनईं किम ही न बाजे जिम जिम जतन करीए राखू, तिम तिम अळगुं भाजे.
हो .कुंथु०१ रजनी वासर वसती उज्जड, गयण पायाले जाय; साप खाय ने मुखडं थोथु, एह उखाणो न्याय हो.
हो.कुंथु०२ मुक्तितणा अभिलाषी तपीया, ज्ञान ने ध्यान अभ्यासे; वयरीडु कांई एह चिंते, नांखे अवळे पासे हो.
हो.कुंथु०३ आगम आगमधरने हाथे, नावे किण विध आंकू किहां कणे जो हठ करी हटकुं, तो व्याल तणी परे वांकुं हो;
हो.कुंथु०४ जो ठग कहुं तो ठगतो न देखु, शाहुकार पण नाहि; सर्व माहे ने सहुथी अलगुं, ए अचरिज मनमांहि हो.
हो.कुंथु०५ जे जे कहुं ते कान न धारे, आप मते रहे कालो; सुरनर पंडित जन समजावे, समजे न मारो सालो हो.
हो.कुंथु०६ में जाण्यु ए लिंग नपुंसक, सकल मरदने ठेले; बीजी वाते समरथ छे नर, एहने कोई न झेले हो.
हो.कुंथु०७ मन साध्युं तेणे सघळु साध्युं, एह वात नहीं खोटी; एम कहे साध्युं ते नवि मानु, एहि ज वात छे मोटी.
हो कुंथु०८ मनडुं दुराराध्य तें वश आण्यु, ते आगमथी मति आणुं, आनंदघन प्रभु! माहरु आणो, तो साचुं करी जाणुं.
हो.कुंथु०९
(स्तुति कुंथुनाथमय थै ने भव्यो, कुंथुनाथ आराधोजी; आतमरूपे थै ने आतम, सिद्धिपदने साधोजी; आसक्तिवण कर्मो करतां, आतम नहीं बंधायजी; करे क्रिया पण अक्रिय पोते, उपयोगे प्रभु थायजी.
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च्यवन
अरनाथस्तु भगवाँ-श्चतुर्थार-नभोरविः. चतुर्थ-पुरुषार्थ-श्रीविलासं वितनोतु वः .. २०.
: फाल्गुन शुक्ला २ (हस्तिनापुर)
: मार्गशीर्ष शुक्ला १० (हस्तिनापुर)
दीक्षा
: मार्गशीर्ष शुक्ला ११ (हस्तिनापुर)
केवलज्ञान : कार्तिक शुक्ला १२ (हस्तिनापुर)
निर्वाण
: मार्गशीर्ष शुक्ला १० (सम्मेतशिखर)
जन्म
श्री अरनाथ भगवान
२ ३
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श्री अरनाथ भगवान
१
चैत्यवंदन रागद्वेषारि हणी, थया अरिहंत जेह. अर जिनेश्वर वंदतां, कर्म रहे नहीं रेह. आतमना उपयोगथी, रागद्वेष न होय; सर्वकार्य करतां थकां, कर्म बंध नहीं जोय. आत्मज्ञान प्रकाशथी ए, मिथ्यातम पलटाय; बुद्धिसागर आत्ममां, सहु शक्ति प्रगटाय.
२
३
अर०१
स्तवन अरनाथकुं सदा मोरी वंदना रे, मेरे नाथकुं सदा मोरी वंदना. जग उपकारी घन ज्यों वरसे, वाणी शीतल चंदना. रूपे रंभा राणी श्री देवी, भूप सुदर्शन नंदना. भाव भगति शुं अहनिश सेवे, दुरित हरे भव फंदना. छ खंड साधी भीति द्वेधा कीधी, दुर्जय शत्रु निकंदना. 'न्यायसागर' प्रभु सेवा-मेवा, मागे परमानंदना.
अर०२
अर०३
अर०४
अर०५
स्तुति कर्म करो पण कर्मथी, रहो निर्लेप भव्यो, जिन थातां परमार्थनां, थातां कर्तव्यो; जैन दशामां कर्मने, करो स्वाधिकारे, अर जिनवर एम भाखता, शक्ति प्रगटे छे त्यारे.१
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सुरासुर - नराधीश - मयूर - नव - वारिदम्. कर्मद्रून्मूलने हस्ति-मल्लं मल्लि-मभिष्टुमः..२१.
| ४ | २ ५३ | १
श्री मल्लिनाथ भगवान च्यवन : फाल्गुन शुक्ला ४
(मिथिला) जन्म
मार्गशीर्ष शुक्ला ११ (मिथिला) मार्गशीर्ष शुक्ला ११
(मिथिला) केवलज्ञान : मार्गशीर्ष शुक्ला ११
(मिथिला) निर्वाण : फाल्गुन शुक्ला १२
(सम्मेतशिखर)
2013
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दीक्षा
| ५ | ४ | २ | ३ | १ |
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श्री मल्लिनाथ भगवान
चैत्यवंदन
मल्ल बनी भवरणविषे, जीत्या राग ने द्वेष; मल्लि प्रभु तेथी थया, टाळ्या सर्वे क्लेश.. रागद्वेष न जेहने, परमातम ते जाण; देह छतां वैदेही ते, केवली छे भगवान्. मल्लिनाथ प्रभु ध्याईने ए, भावमल्लता पामी; कर्म करो प्रारब्धथी, बनी अंतर निष्कामी.
स्तवन
मल्लिजिन सहज स्वरूपनुं, वर्णन कहो केम थायरे; वैखरी वर्णन शुं करे, कंइ परामांही परखायरे. परमब्रह्म पुरुषोत्तम, अनंगी अनाशी सदायरे; विमल परम वितरागता, अक्षय अचल महारायरे. निर्भयदेशना वासी जे, अजर अमर गुणखाणरे; सहज स्वतंत्र आनन्दमां, भोगवो शिव निर्वाणरे. चेतन असंख्यप्रदेशमां, वीर्य अनंत प्रदेशरे; छती शुं सार्मथ्य भावथी, वापरो समये निःक्लेशरे. त्रिभुवनमुकुट शिरोमणि, परम महोदय धर्मरे; जगगुरु परमबंधु विभु, सादि-अनन्त सुशर्मरे. अलख अगोचर दिनमणि, अविचल पुरुष पुराणरे; सत्य एक देव! तुं जगधणी, धारुं हुं शिर तुज आणरे. मल्लिजिन शुद्ध आलंबने, सेवक जिनपणुं पायरे; बुद्धिसागर रस रंगमां, भेटिया चिद्घनरायरे.
१
२
३
मल्लि० १
मल्लि० २
मल्लि० ३
मल्लि० ४
मल्लि० ५
मल्लि० ६
मल्लि० ७
स्तुति
मल्लिनाथ घट जेहना, सर्व मल्लने जीत; आतममल्ल जे जाणतो, शुद्धधर्म प्रतीते; हारे न जगमां कोईथी, कोई तेने न मारे; मोहशत्रुने मारतो, तेने देव छे व्हारे. १
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जगन्महा-मोहनिद्रा-प्रत्यूष-समयोपमम्. मुनिसुव्रत-नाथस्य, देशना-वचनं स्तुमः..२२.
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श्री मुनिसुव्रत स्वामी च्यवन : श्रावण शुक्ला १५
(राजगृही) जन्म
: ज्येष्ठ कृष्णा ८
(राजगृही) दीक्षा : फाल्गुन शुक्ला १२
(राजगृही) केवलज्ञान : फाल्गुन कृष्णा १२
(राजगृही) निर्वाण : ज्येष्ठ कृष्णा ९
(सम्मेतशिखर)
३ | ५ | ४ | २ | १ ५ | ३ | ४ | २ | १ ४ | ५ | ३ | २ | १
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श्री मुनिसुव्रतस्वामि भगवान
चैत्यवंदन
मुनिसुव्रत जिन वीशमा, कच्छपनुं लंछन, पद्मा माता जेहनी सुमित्र नृप नंदन.
राजगृही नयरी धणी, वीश धनुष शरीर,
कर्म निकाचित रेणु व्रज, उद्दाम समीर. त्रीस हजार वरसतणुं ए, पाली आयु उदार, पद्मविजय कहे शिव लह्या, शाश्वत सुख निरधार.
स्तवन
मुनिसुव्रत जिन वंदतां, अति उल्लसित तन मन थाय रे; वदन अनोपम निरखतां, मारां भव भवनां दुःख जाय रे; मारां भव भवनां दुःख जाय, जगतगुरु जागतो सुखकंद रे; सुखकंद अमंद आनंद, परमगुरु दीपतो सुखकंद रे. निशदिन सुतां जागतां, हैडाथी न रहे दूर रे; जब उपकार संभारीए, तव उपजे आनंदपूर रे. प्रभु उपकार गुणे भर्या, मन अवगुण एक न माय रे; गुणगुण अनुबंध हुआ, ते तो अक्षयभाव कहाय रे. अक्षय पद दीए प्रेम जे, प्रभुनुं ते अनुभवरूप रे; अक्षर-स्वर-गोचर नहि, ए तो अकल अमाय अरूप रे. अक्षर थोडा गुण घणा, सज्जनना ते न लिखाय रे; वाचकयश कहे प्रेमथी, पण मनमांहे परखाय रे.
१
२
३
१
२
३
४
५
स्तुति
मुनिसुव्रत नामे, जे भवि चित्त कामे; सवि संपत्ति पामे, स्वर्गनां सुख जामे; दुर्गति दुःख वामे, नवि पडे मोह भामे; सवि कर्म विरामे, जई वसे सिद्धि धामे.
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लुठन्तो नमतां मूर्ध्नि, निर्मलीकार-कारणम्. वारिप्लवा इव नमः, पान्तु पाद-नखांशवः..२३.
| १ | २ | ३ | ४ | ५|
१ | ३ | २ | ४
श्री नमिनाथ स्वामी च्यवन : अश्विन शुक्ला १५
(मिथिला) जन्म : श्रावण कृष्णा ८
(मिथिला) दीक्षा : आषाढ़ कृष्णा ९
(मिथिला) केवलज्ञान : मार्गशीर्ष शुक्ला ११
(मिथिला) निर्वाण : वैशाख कृष्णा १०
(सम्मेतशिखर)
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श्री नमिनाथ भगवान
चैत्यवंदन आतममां प्रणमी प्रभु, थया नमि जिनराज; नमवू उपशम क्षायिके, क्षयोपशमे सुखकाज. नम्या न जे ते भव भम्या, नमी लह्या गुणवृंद; नमि प्रभुजीए भाखियुं, सेवा छे सुख कंद. | आतममां प्रणमी रही ए, स्वयं नमी घट जोवे; ध्यानसमाधि योगथी, आत्मशक्ति नहीं खोवे. ।
स्तवन 'श्री नमिनाथने चरणे नमतां, मनगमतां सुख लहीए रे; भव-जंगलमा भमतां रहीए, कर्म निकाचित दहीए रे. श्री. १ समकित शिवपुरमांहि पहोंचाडे, समकित धरम आधार रे; श्री जिनवरनी पूजा करीए, ए समकितनो सार रे. श्री. २ जे समकितथी होय उपरांठा, तेना सुख जाये नाठा रे; । जे कहे जिनपूजा नवि कीजे, तेहगें नाम न लीजे रे. श्री. ३ वप्राराणीनो सुत पूजो, जिम संसारे न धूजो रे; भवजलतारक कष्ट निवारक, नहि कोई एहवो दूजो रे. श्री. ४ कीर्तिविजय उवज्झायनो सेवक, विनय कहे प्रभु सेवो रे; । त्रण तत्त्व मनमांहि धारी, वंदो अरिहंतदेवो रे. श्री.
स्तुति नमि जिनेश्वर सेवा भक्ति, जगनी सेवा भक्तिजी, निज आतमनी सेवा भक्ति, एक स्वरूपे शक्तिजी; नाम रूपथी भिन्न निजातम, धारी प्रभु जे ध्यावेजी, प्रारब्धे कर्मनो भोगी, तो पण भोगी न थावेजी.१।
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यदुवंश - समुद्रेन्दुः, कर्मकक्ष - हुताशनः. अरिष्ट-नेमि-भगवान्, भूयाद्वो-रिष्ट-नाशनः..२४
| २ | १
३
| ४| ५|
श्री नेमिनाथ स्वामी च्यवन : कार्तिक कृष्णा १२
(शौरीपुर) जन्म : श्रावण शुक्ला ५
(शौरीपुर) दीक्षा : श्रावण शुक्ला ६
(शौरीपुर) केवलज्ञान : आश्विन कृष्णा ०))
(गिरनार-सहस्राम्रवन) निर्वाण : आषाढ़ शुक्ला ८
(गिरनार)
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श्री नेमिनाथ भगवान
चैत्यवंदन नेमिनाथ बावीसमा, शिवादेवी माय: । 'समुद्र विजय पृथ्वीपति, जे प्रभुना ताय. दश धनुषनी देहडी, आयु वर्ष हजार; शंख लंछन धर स्वामीजी, तजी राजुल नार. सौरीपुरी नयरी भली ए, ब्रह्मचारी भगवान; जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां अविचल ठान
स्तवन निरख्यो नेमि जिणंदने अरिहंताजी, राजीमती को त्याग भगवंताजी, ब्रह्मचारी संयम ग्रह्यो अरि., अनुक्रमे थया वीतराग भग. चामर चक्र सिंहासन अरि., पादपीठ संयुक्त भग.. छत्र चाले आकाशमां अरि., देव दुंदुभि वर उत्त भग. सहस जोयण ध्वज सोहतो अरि., प्रभु आगल चालंत भग.; कनक कमल नव उपरे अरि., विचरे पाय ठवंत भग. चार मुखे दीये देशना अरि.,त्रण गढ झाक-झमाल भग.; केश रोम श्मश्रु नखा अरि., वाधे नहीं कोइ काल भग. कांटा पण ऊंधा होय अरि.,पंच विषय अनुकूल भग., षट् ऋतु समकाले फले अरि., वायु नहिं प्रतिकूल भग. पाणी सुगंध सुर कुसुमनी अरि., वृष्टि होय सुरसाल भग.; पंखी दीये सुप्रदक्षिणा अरि., वृक्ष नमे असराल भग. जिन उत्तम पद पद्मनी अरि., सेव करे सुर कोडी भग.; चार निकायना जघन्यथी अरि., चैत्य वृक्ष तेम जोडी भग.
स्तुति द्रव्य भावथी नेमि सरखा, बळिया जैनो थावेजी; जैनधर्म प्रसरावे जगमां, शुभपरिणामना दावेजी; शुभ ते धर्म प्रशस्य कषायो, करतां पुण्यने बांधेजी; शुद्ध परिणामे वर्ततां, मुक्ति क्षणमां साधेजी.
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कमठे धरणेन्द्रे च, स्वोचितं कर्म कुर्वति. प्रभुस्तुल्य-मनोवृत्तिः, पार्श्वनाथः श्रियेस्तु वः..२५.
२ | १३ | ४ ५ १ | ३ | २ | ४ | ५
श्री पार्श्वनाथ भगवान च्यवन : चैत्र कृष्णा ४
(काशी-बनारस) जन्म : पौष कृष्णा १०
(काशी-बनारस) दीक्षा : पौष कृष्णा ११
(काशी-बनारस) केवलज्ञान : चैत्र कृष्णा ४
(भेलुपुर-काशी) निर्वाण : श्रावण शुक्ला ८
(सम्मेतशिखर)
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श्री पार्श्वनाथ भगवान
चैत्यवंदन जय चिंतामणी पार्श्वनाथ, जय त्रिभुवन-स्वामी; अष्ट-कर्म रिपु जीतीने, पंचम गति पामी प्रभु नामे आनंद-कंद, सुख संपत्ति लहीये; प्रभु नामे भव भव तणां, पातक सवि दहीये ॐ ह्रीं वर्ण जोडी करी ए, जपीए पारस नाम: विष अमृत थइ परिणमे, लहीए अविचल ठाम
स्तवन आई बसो भगवान मेरे मन आई, में निर्गुणी इतना मांगत हुं, होवे मेरो कल्याण मेरे मन की तुम सब जाणो, क्या करुं आपसे ब्यान; विश्वहितैषी दीन दयालु, रखीये मुजपर ध्यान. । भोगाधीन होवत मन मेलु, बिसरी तुम गुणगान; वहांसे छुडाओ हृदये आयी, अरिभंजनक भगवान. आप कृपासे तर गये केई, रह गया मैं दर्दवान । निगाह रखके निर्मल कीजीए, धनवंतरी भगवान. श्री शंखेश्वर पार्श्व जिनेश्वर, दीजिए तुम गुणगान इनही सहारे चिद्धन सेवा, बनूंगा आप समान.
स्तुति शंखेश्वर पासजी पूजीए, नर भवनो लाहो लीजिए. मन वांछित पूरण सुर-तरु, जय वामासुत अलवसरु.
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श्रीमते वीरनाथाय, सनाथायाद्भुत-श्रिया. महानन्द- सरोराज-मरालायार्हते नमः .. २६.
श्री महावीरस्वामी
च्यवन - आषाढ़ शुक्ला ६
(ब्रह्माणकुंड)
जन्म - चैत्र शुक्ला १३ (क्षत्रियकुंड) दीक्षा - मार्गशीर्ष कृष्णा १० (क्षत्रियकुंड)
केवलज्ञान - वैशाख शुक्ला १० (ऋजुवालुका नदी का तट)
निर्वाण - कार्तिक (अश्विन) कृष्णा ३० (पावापुरी)
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श्री महावीरस्वामि भगवान
. चैत्यवंदन प्रभु महावीर जगधणी, परमेश्वर जिनराज; श्रद्धा भक्ति ज्ञानथी, सार्या सेवक काज. काल स्वभाव ने नियति, कर्म ने उद्यम जाण; " पंच कारणे कार्यनी, सिद्धि कथी प्रमाण. २ पुरुषार्थ तेमां कह्यो, कार्य सिद्धि करनार; शुद्धात्मा महावीर जिन, वंदु वार हजार. महावीरने ध्यावतां ए, महावीर आपोआप; 'बुद्धिसागर वीरनी, साची अंतर छाप. |
स्तवन व्हाला त्रिशलानंदन, वीरजिनेश्वर तारजो रे; जाणी बाल तमारो, विनतडी अवधारजो रे।
व्हाला०१ रमतगमतमां जीवन गाळु, कामक्रोधथी मनडुं बाळु प्यारा! करूणामृत सिंचनथी, ताप निवारजो रे
व्हाला०२ ज्ञान विना हृदये अंधारूं, करशे तुम विण कोण आजवाळु?; ' सुखकर! कामक्रोध विषयादिक, अरि संहारजो रे व्हाला०३ भक्ति करूं भावे शिर साटे, वळवा मोक्ष नगरनी वाटे; । बाळक कहीने मुजने, तुज अंके बेसाडजो रे
व्हाला०४ प्रेम विना लुखी छे भक्ति, गुण पर्याय विना जेम व्यक्ति; प्रभुजी दीनदयाळु, अशुभ वृत्ति संहारजो रे
व्हाला०५ शरण एक तारूं छे साचुं, निशदिन तुज भक्तिथी राचुं । प्रेमे बुद्धिसागर, बाळकने उगारजो रे
व्हाला०६
स्तुति वीर प्रभुमय जीवन धारो, सर्व जाति शक्तिथी; दोषो टाळी सद्गुण लेशो, बनशो महावीर व्यक्तिथी; स्वप्ने पण हिम्मत नहि हारो, कार्योनी सिद्धि करो; वीर प्रभु उपदेशे कांई, अशक्य नहि निश्चय धरो.
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श्री सम्मेतशिखरजी महातीर्थ
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जिनालय में ध्यान में रखने योग्य सूचनाएँ १. पूजा करते समय पुरुषों को दुपट्टे से ही आठ तहवाला मुखकोश बाँधना
चाहिये. रूमाल का प्रयोग उचित नहीं हैं. आठ तहवाला मुखकोश बाँधे बिना गर्भगृह में प्रवेश नहीं किया जा सकता. गर्भगृह में दोहे ऊँची आवाज से
न बोलकर मन में बोलने चाहिये. २. पूजा करने का हाथ पानी से धोकर धूप से धूप कर पवित्र करने के बाद
गर्भगृह की देहली, शरीर या कपड़ों से न छू कर सीधी पूजा करने का
आग्रह रखना चाहिये. ३. पूजा करते समय घड़ी पहनना उचित नहीं है. हाथ की अंगुलीयों पर अंगुठी
तथा शरीर पर आभूषण अवश्य पहनें. ४. पंचधातु के प्रभुजी को एक हाथ से न पकड़ते हुए दोनों हाथ से
बहुमानपूर्वक थाली में लेना चाहिये. ५. दूध के पक्षाल की धारा प्रभुजी की मस्तक शिखा से ही करनी चाहिये.
नवांगी पूजा की तरह प्रत्येक अंग पर करने का विधान नहीं है.. प्रभुजी के अंगलूछने मुलायम एवं स्वच्छ होने चाहिये. प्रभुजी के अंग लुछणियों को, मोर पिंछी को, पाट लुछणियों आदि सामग्री को अलग ही रखें. देव-देवी
आदि हेतु न वापरे, प्रभु की सामग्री प्रभु के उपयोग में ही लेवें. ७. पूजा का क्रम इस प्रकार है- पहले मूलनायकजी, फिर दूसरे भगवान तथा
सिद्धचक्रजी का गट्टा, फिर गुरूमूर्ति. अंत में देव-देवियों के मस्तक पर
दाये अंगूठे से बहुमान के रूप में एक ही तिलक करना चाहिये. ८. पूजा करते समय प्रभुजी को नाखून न छुए और नाखून को केसर न लगे तथा
पूजा करने के बाद नाखून में केसर न रह जाय इसका खास ध्यान रखना चाहिये. भगवान के दाये अंगूठे पर सकल संघ की ओर से मात्र एक तिलक किया जा सकता है. नव अंग के सिवाय प्रभुजी की हथेली में, लंछन में या परिकर
में रहे हुए हाथी-घोड़े-वाघ की पूजा करने का विधान नहीं हैं. १०. पूजा करने की अंगूली या हथेली सिवाय कोई भी अंग या पूजा के वस्त्र
का प्रभुजी को स्पर्श होना उचित नहीं है. प्रभुजी की गोद में सिर रखना या छूना नहीं चाहिये.
भाहार शुब्दों, मत्वशुद्धिः
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११. पार्श्वनाथ भगवान की फेन नौ अंगों में नहीं गिनी जाती. अतः फेन की पूजा
आवश्यक नहीं है. फिर भी इच्छा हो तो अनामिका अंगुली से पूजा की जा
सकती है. १२. प्रभुजी की पूजा में अच्छे, सुगंधी, ताजे, जमीन पर न गिरे हुए अखंड पुष्प
ही चढ़ाने चाहिये. पुष्प का पत्ता अलग न करे. पुष्प पानी से नहीं धोने
चाहिये. १३. अष्टमंगल की चौकी (पाटली) का मांगलिक के तौर पर प्रभु सन्मुख
स्वस्तिक की तरह आलेखन करना चाहिये. १४. अक्षत पूजा में तंदुल की सिद्धशिला की ढेरी, उसके बाद दर्शन-ज्ञान-चारित्र
की ढेरी और अंत में स्वस्तिक की ढेरी करनी चाहिये. आलंबन करने में
पहले स्वस्तिक और अंत में सिद्धशिला करनी चाहिये. १५. नैवेद्य पूजा में पीपरमेंट, चोकलेट, बाजारू मिष्टान या अभक्ष्य चीज रखना
उचित नहीं है. १६. विलेपन आँगी व नव अंग की पूजा के अलावा अपनी इच्छा से बार-बार
प्रभुजी को स्पर्श (टच) नहीं करना चाहिए. भावुक होकर प्रभुजी की गोद
में सिर नहीं रखना चाहिए. १७. पूजा करते समय शरीर को खुजालना नहीं, छींक, खाँसी करना नहीं,
उबासी या आलस नहीं करना, ऐसी कोई शंका होती हो तो तुरंत गम्भारे
के या रंग मण्डप के बाहर हो जायें. १८. साधना, पूजा के वस्त्र बंद किनारों वाले न पहनें. किनारों पर दशी-गुच्छे
होते हैं वे वस्त्र शुभ ऊर्जा वर्धक होते है. १९. स्त्री को पुरुष का वेश पहन कर पूजा नहीं करना चाहिए. पूजा के लिए
पुरुष को दो वस्त्र अखण्ड सिले बिना के, एवं स्त्रियों को तीन वस्त्र पहनने
की आज्ञा है. २०. पूजा के वस्त्र पहनकर खाना-पीना नहीं चाहिए. २१. पूजा के वस्त्र पहनकर सामायिक प्रतिक्रमण नहीं करना चाहिए. २२. पूजा के वस्त्र से हाथ-पैर, मुँह आदि शरीर के अंग नहीं पौंछना चाहिए.
699699069 अभयदान देने वाले मे भय स्वयं भयभीत रहता है.
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चिरंतनाचार्यविरचितं
पञ्चसूत्रकम् महर्षि चिरंतनाचार्य कृत पंचसूत्र और उसकी आचार्य श्री हरिभद्रसूरि कृत टीका, दोनों ही अनुपम, अलौकिक है. जीव की अत्यंत प्रारंभिक कक्षा से ले कर अध्यात्म जगत के सर्वोच्च शिखरों को सर करने का ‘अत्यंत प्रभावी मार्गदर्शन इसमें दिया हुआ है. प्रभावी यानी प्रभावी! बताई प्रक्रिया को बताए ढंग से करो और क्रमशः परिणाम आएगा ही... और आस्था दृढ़ होती चली जाती है.
यूँ तो पांचों के पांच सूत्र (अध्याय) अलग अलग भूमिका के लोगों के लिए अपनी-अपनी विशेषताएँ लिए हुए हैं, फिर भी पाप-प्रतिघात-गुणबीजाधान नाम का प्रथम सूत्र तो गज़ब का है. खास कर प्रारंभिक कक्षा के जीवों के लिए, और उसमें भी आज के तनाव, भय व कटुता के संक्लेशों से भरे अशांत जीवों के लिए तो यह सूत्र वाकई अमृत रस का काम करता है.
इस सूत्र की सबसे बड़ी खासीयत यह है कि यह मात्र सतही स्तर पर ही परिवर्तन, शांति व आनंद नहीं लाता, किंतु ठेठ जड़ों तक जा कर गहराई से काम करता है, और हमेशा के लिए जीव की योग्यता को ही बदल कर धर देता है. यह मात्र तात्कालिक इक्का-दुक्का परिणामों तक काम नहीं करता, परंतु अंतिम परिणति तक की, परिणामों (results) की सारी परंपरा को ही, जीव की योग्यता को पलटने के माध्यम से, नियंत्रित कर देता है. मात्र अशुभ कर्मों को ही नहीं पलटता, बल्कि जिनकी वजह से जीव अनंत बार दुःख पाता है वैसे अशुभ अनुबंधों को भी पलट देता है.
और यही इसकी अनन्य खासीयत है, जो इसे बिल्कुल अलग कक्षा में ले जाती है. बड़ी दुर्लभ है यह प्रक्रिया! और सरल भी इतनी ही है. सोने में मानो सुगंध...
जहाँ हमारा सामर्थ्य व पुण्य कम पड़ता हो वहाँ शक्तिशाली व पुण्यवान का आसरा बड़ा काम आता है. अरिहंत आदि चार का शरण यही काम करता है. हमारे सारे दुःखों की जड़ है पाप में खुशी व पाप की रूचि. जीव को इन्हीं की आदत अनादि से है. इन्हीं से पाप का बंध व अनुबंध दोनों ही होते रहते
जानी के पास भावाह मुक्त खुले मन जाने पर जिजामात होती है व पूरा फायदा मिलता है.*
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है. उपाय है पाप में नाखुशी व पाप की अरूचि, और यह शक्य बनता है प्रभु के शरण में रह कर बार-बार की गई दुष्कृत गर्दा से. तो, दूसरी ओर हमारे सभी सुखों की वज़ह है सुकृतों में खुशी व सुकृतों की रूचि. जीव को आदतन यह अनुकूल नहीं. अतः पुण्य व पुण्यानुबंध दोनों का ही दुष्काल बना रहता है.
उपाय है जगत के सभी जीवों के सुकृतों की भाव से सेवना, अनुमोदना... प्रभु की ही शरण में रह कर बार-बार की गई सुकृत अनुमोदना हमारे संस्कारों को पलट कर रख देती है, जीव की योग्यता को पलट कर रख देती है. अब जीव शुद्ध धर्म की प्राप्ति के लायक बनता है, और अब सही मायनों में दुःखमुक्ति व सुखप्राप्ति की जीव की यात्रा प्रारंभ हो सकती है. शुद्ध धर्म हेतु योग्यता की प्राप्ति, यही जीव की सबसे बड़ी उपलब्धि है. योग्यता के बिना भी जीव को कहने को तो धर्म मिलता रहा है, लेकिन वह अपना प्रभाव नहीं बता सका.
चार शरण, दुष्कृत गर्दा व सुकृत अनुमोदना रूपी यह प्रक्रिया कैसे जीवंत व सफल बनाएँ वह रहस्य, वह प्रक्रिया भी 'प्रणिधान-प्रार्थना' व 'प्रणिधि शुद्धि' के तहत बड़े ही प्रभावी तरीके से बताई गई है. यह प्रक्रिया भी अपने आप में इस सूत्र को एक खास दरज्जा प्राप्त करवाती है. साधक की साधना में मानों यह गज़ब का प्राण भर देती है.
इस समग्र प्रक्रिया की असरकारकता की चावी सूत्र-पठन पारायण मात्र नहीं है, बल्कि पूरी गहराई से, हृदय के तीव्र-तीव्रतम भावों से सूत्र के हर शब्द व वाक्य का बार-बार भावन है.
इस प्रक्रिया से तात्कालिक फायदे भी बहोत लिए जा सकते है. जिस बात का संक्लेश सतत मन में रहा करता हो, जो दोष जीवन में अखरता हो, उसके निवारण के लिए सूत्र में बताए गए अरिहंत आदि के जो विशेषण उस दोष हेतु लागु पड़ते हो, जो बातें दुष्कृत-गर्दा की लागू पडती हो, और जो प्रतिपक्षी गुण अनुमोदना करने जैसे लगते हो, उन बातों को ही केन्द्र में रख कर, ज्यादा से ज्यादा भार दे कर यह प्रक्रिया बार-बार की जा सकती है. एक ही बेठक में यह प्रक्रिया तब तक भाव से दोहराते रहें जब तक कि मन में से वह संक्लेश शांत न हो जाय. कृपया ध्यान रखें, कि मन के भीतर का संक्लेश अन्य बात है, एवं जिनकी वजह से संक्लेश जग रहा है, वे बाहरी संयोग अलग बात है. यह प्रक्रिया मुख्य रूप से मन के भीतर के संक्लेशों पर काम करती है.
परमात्मा की भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ भांति है.
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अशांति मन के भीतर ही है, जो सब से ज्यादा परेशान कर रही है. मन की अशांति हेतु हकीकत में बाहरी निमित्त बहोत कम या नगण्य प्रभाव धराते है, संस्कार व नजरिया ज्यादा असर धराते है. गहराई से सोचें! बात समझ में आ जाएगी. मन के शांत होते ही यह देखा गया है कि बाहरी संजोग असर होते चले जाते है, और कई बार तो वे पलट भी जाते है, या उनका फल पलट जाता है.
दुःख व संक्लेश मुक्ति की तरह जीवन में सुख व प्रसन्नता बढ़ाने के लिए भी इसी प्रक्रिया का उपयोग किया जा सकता है. इस हेतु अरिहंत आदि के इस तरह के गुणों एवं सुकृत अनुमोदना के उन अंशों पर ज्यादा भार देना होगा. अलग-अलग मनोदशाओं में अलग-अलग शब्द महत्त्वपूर्ण लगेंगे. नई-नई मंजिलों की यात्रा जारी रखें.
पठन व भावन की रीतः मूल व उसके साथ अर्थ को शांत-चित्त, एकएक शब्द व वाक्य हृदय की संवेदनाओं को झंकृत करे, इस तरह धीरे-धीरे पढ़ें. एक बार अर्थ चित्त में भावित हो जाय, तब मात्र मूल का अर्थ जो कि अर्थ के बीच ही जरा बड़े व काले अक्षरों में दिया गया है, उसे पढ़ें, और उन भावों की स्पर्शना करें. एक अलग ही संवेदना होगी. आवश्यक लगे वहाँ विस्तृत अर्थ भी बीच-बीच में देख सकते हैं.
मूल प्राकृत शब्दों के साथ भी अर्थ को बैठाने का प्रयास करें. एक बार अर्थ बैठ जाय, फिर मात्र प्राकृत पाठ से ही मन को भावित करने का प्रयास करें. आनंद अलग ही होगा. अर्थ चिंतन-भावन के समय बीच-बीच में खुद के अंदर से भी यदि कोई भाव-संवेदन उठते हैं, तो उनका भी संवेदन कर के आगे बढ़ें. आपके अंतःकरण की जो पुकार होगी वैसे आप आगे बढ़ेंगे. सौंप दे अपने आप को अरिहंत आदि के अचिन्त्य सामर्थ्य के हवाले... इस सारी प्रक्रिया के हवाले... मार्गदर्शन, सहयोग मिलता चलेगा; पुरुषार्थ जारी रखें... हमारे लिए प्रभु की सदाकाल आज्ञा है पुरुषार्थ की.
මංගලං
*
ग्रह पीड़ा के निवारण बहुत है, पूर्वाग्रह का कोई उपाय नहीं.
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प्रथमं पापप्रतिघात-गुणबीजाधानसूत्रम् णमो वीतरागाणं सवण्णूणं देविंद-पूइयाणं जहट्ठिय-वत्थुवाईणं तेलोक्कगुरुणं अरुहंताणं भगवंताणं. नमस्कार हो...
नमस्कार का भाव यह चाबी है. आगे के भगवंताणं तक के शब्द के साथ इसे बड़ी प्रबलता से जोड़ना है. शेष सारे सूत्र में प्रवेश में इससे सरलता रहेगी.
वीतरागों को... जो सभी तरह की आसक्तियों और नाराजगीयों से पूर्णतः मुक्त है, किसी बात के मजबूर नहीं; सर्वज्ञों को... जो विश्व के जड़-चेतन सब की, हर बात की सभी सच्चाईयों को जानते है; जिन्हें स्वयं को भी महासमर्थ व समृद्धिशाली असंख्य देव नमते है, वैसे देवेन्द्रों से परम उल्लास पूर्वक पूजितों को; हर वस्तु को जैसी है वैसी ही - यथास्थित बताने वालों को; तीन लोक के सही में हितकारी गुरूओं को; अब पुनः नये जन्म का बंधन धारण नहीं करने वाले अरुहंतों को; परम शक्ति, ऐश्वर्य और तेज को धारण करने वाले भगवंतों को...
नमस्कार हो... नमस्कार हो... नमस्कार हो... जे एवमाइक्खंति- इह खलु अणाइजीवे, अणादिजीवस्स भवे अणादि-कम्मसंजोग-णिव्वत्तिए; दुक्खरुवे, दुक्खफले, दुक्खाणुबंधे. १
मेरे ये परम हितकारी प्रभु इस तरह से बताते हैं कि, १. इस जगत में जीव सच ही अनादि काल से है, हमेशा से रहा हुआ है. २. जीव के तरह-तरह के जन्म-मरणमय भव भी अनादि से है. ३. जीव का यह भव-संसार अनादि के कर्म संजोगों की वजह से है. * घर में मब सेट है, मगर व्यक्ति स्वयं अपसेट है। उफ।।
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और जीव की यह अवस्था भी हमेशा से४. दुःखरूप रही है. ५. फल में भी दुःख को ही देने वाली रही है. ६. अनुबंध- परंपरा में भी दुःख ही खड़ा करनेवाली रही है.
सच में देखे तो इस वक्त भी जीव की दशा ऐसी ही दुःख भरी है. एयस्स णं वोच्छित्ती सुद्ध-धम्माओ. सुद्धधम्म-संपत्ती पावकम्मविगमाओ. पावकम्म-विगमो तहा-भव्वत्तादि-भावाओ. २
कुछ उपाय? हाँ है. इस दुःख का नाश है. कैसे? ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप शुद्ध धर्म से. हाँ! यह धर्म औचित्य के साथ सत्कार व विधिपूर्वक सतत सेवन करना होगा. यह शुद्ध धर्म मुझे सही में मिलेगा कहाँ? अंदर से मिलेगा! बाहर से नहीं. कैसे? इस धर्म को ढंक कर बैठे विपरीत श्रद्धा व आचरण रूप मोहनीय नाम के पापकर्म के विगमन से, चले जाने से.
और, पाप कर्मों का विगमन होता है तथा-भव्यत्व आदि भावों के परिपाक से. (मोक्ष में जाने का जीव का स्वभाव यह भव्यत्व स्वभाव है, परंतु हर जीव के इस स्वभाव का परिपाक भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है. जिसे तथा-भव्यत्व कहते है. काल, नियति- भवितव्यता, कर्म और पुरूषार्थप्रयत्न के परिपाक की भिन्नता के आधार पर तथा-भव्यत्व की भिन्नता तय
होती है). तस्स पुण विवागसाहणाणि-चउसरणगमणं, दुक्कड-गरिहा, सुकडासेवणं.
इस तथा भव्यत्व के भी विपाक- परिपाक के साधन है... १. इस साधना की सिद्धि में आने वाली आपदाओं के सामने रक्षण देने व आगे
बढ़ने हेतु मार्गदर्शन, समर्थन देने में पूर्ण रूप से समर्थ ऐसे अरहंत, सिद्ध,
साधु व जिन धर्म; इन चार की शरण में गमन करना. २. स्वयं के इस जन्म व गत जन्मों के सभी दुष्कृतों की पाप व पापों की
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गुण दिवे, ले लो... हमें फूलों में मतलब, कांटों मे क्या निस्बत?
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अनुबंध-परंपरा को हटाने में अप्रतिहत-कभी निष्फल न जाय ऐसी, गर्दा,
उनका एकरार. ३. सभी के सुकृतों की, अच्छाईयों की, जीव को कुशल व कल्याणकारी भावों
के साथ अनुबंध करवाने में समर्थ ऐसी अनुमोदना. अओ कायव्वमिणं होउ-कामेणं सया सुप्पणिहाणं, भुज्जो भुज्जो संकिलिसे, तिकाल-मसंकिलिसे. ३
अतः इन दुःखों से मुक्ति की इच्छा वालों को यह प्रक्रिया सदा सुप्रणिधान वाले हो कर, लक्ष्य व प्रक्रिया की पूर्ण एकाग्र चाहना वाले हो कर, चित्त के राग-द्वेष आदि संक्लेश वाली अवस्था में बारंबार- जब तक कि चित्त का संक्लेश शांत न हो जाय, और चित्त की असंक्लेश वाली अवस्था में तीनों काल करने योग्य है. ताकि तथा-भव्यत्व के परिपाक से शुद्ध धर्म प्राप्ति की योग्यता प्रकट हो सकें.
चार शरण
अरिहंत का शरण जावज्जीवं मे भगवंतो परम-तिलोग-णाहा अणुत्तर-पुण्ण-संभारा खीण-रागदोसमोहा अचिंत-चिंतामणी भव-जलहि-पोया एगंतसरण्णा अरहंता सरणं. ४
दुर्गति आदि सभी भयों के सामने सभी जीवों का रक्षण-पालन करने वाले होने से जो तीनों लोक के परम नाथ हैं; सभी तरह की अनुकूलताओं की हितकारी प्राप्ति करवाने वाले सर्वोच्च पुण्य के असीम भंडार हैं; राग, द्वेष व मूढ़ता जनक मोह-अज्ञान जिनके समाप्त हो चुके हैं; जो सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाले है, व जिस सुख की कल्पना भी नहीं की जा सकती ऐसे मोक्ष सुख की प्राप्ति कराने वाले अचिंत्य चिंतामणि रत्न हैं:
छोटों के सामने शक्ति का प्रदर्शन स्वयं कमजोटी है.
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जन्म-मरण रूप अनंत दुःखों से भरे भव सागर में अनेक तरह से पीड़ित हो रहे प्राणियों को सुरक्षित पार उतारने के लिए पोत-नौका हैं; सभी आश्रितों का हमेशा हित ही करने वाले होने से एकांत शरण लेने योग्य है. ऐसे अरहंत भगवंत मुझ असहाय के लिए यावत्-जीवन- जब तक जीवन है तब तक, शरण हैं... आश्रय हैं...
सिद्ध का शरण तहा पहीण-जरामरणा अवेय-कम्मकलंका पणठ्ठ-वाबाहा केवल-नाणदंसणा सिद्धिपुरवासी णिरुवम-सुह-संगया सव्वहा कयकिच्चा सिद्धा सरणं. ७
तथा, जिनके जरा- बुढ़ापा व मरण आदि प्रक्षीण हो चुके हैं, पूरी तरह नाश हो चुके हैं; कर्मरूपी कलंक- कालिमा पूरी तरह साफ हो चुके होने से जिनकी सारी शक्तियाँ खिल उठी हैं; जिनके पूर्ण सुख के बीच की सारी बाधाएँ प्रनष्ट हो चुकी हैं; जो केवलज्ञान और केवलदर्शन रूप हैं; लोक के सर्वोच्च भाग पर आए हुए सिद्धिपुर यानि मुक्ति के स्थाई रूप से निवासी हैं; पराई वस्तुओं के संयोग से ही उत्पन्न होने वाले संयोगिक सुखों के साथ जिसकी कोई उपमा नहीं हो सकती ऐसे असंयोगिक अनुपम सुख से जो संगत हैं, युक्त हैं। संसारी जीव के कार्य तो अनंत जन्मों में भी कभी पूरे नहीं हुए हैं, फिर भी करने योग्य सब कुछ जो सर्वथा कर चुके है, कृतकृत्य हैं; ऐसे आत्मा की सर्वोच्च अवस्था को हमेशा के लिए पाए सिद्ध भगवंत
यावत्-जीवन मेरे लिए शरण हैं, आश्रय हैं: *
दृष्टि-दोष मे दोष-दृष्टि कहीं ज्यादा खतरनाक है. *
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साधु का शरण तहा पसंत-गंभीरासया सावज्जजोग-विरया पंचविहायायारजाणगा परोवयार-निरया पउमाइ-णिदंसणा झाणज्झयणसंगया विसुज्झमाण-भावा साहू सरणं. ६
जिन का आशय- मन के भाव प्रशांत है, (क्षमा के बल से जिसमें कभी कोई चंचलता नहीं आती) और सहज रूप से गहन-गंभीर है (कभी छलकते नहीं):
जो करण-करावण-अनुमोदन रूप मन-वचन-काया के सभी सावद्य-पाप योगों से विरत है, मुक्त है; जो पूर्णरूप से परोपकार में ही निरत है, लगे हुए है। कामभोगों से अलिप्तता व निर्मलता आदि के कारण जो पद्म-कमल, शरद ऋतु के सरोवर आदि से तुलना प्राप्त है; जो एकाग्रता पूर्वक विशुद्ध ध्यान व शास्त्रों के अध्ययन में लगे रहते हैं; आगमोक्त अनुष्ठानों के बल से जिनके हृदय के भाव मलिनता का त्याग कर निरंतर विशुद्धता को पा रहे है, ऐसे सम्यग् दर्शन आदि के बल से सिद्धि को साधने वाले साधु भगवंत यावत्-जीवन मेरे शरण है, आश्रय है.
धर्म का शरण तहा सुरासुर-मणुय-पूइओ मोहतिमि-रंसुमाली, रागदोस-विसपरममंतो, हेऊ सयल-कल्लाणाणं, कम्मवण-विहावसू, साहगो सिद्ध-भावस्स, केवलि-पण्णत्तो धम्मो जावज्जीवं मे भगवं सरणं.७
जो अतिशक्तिशाली सुर, असुर व मनुष्यों से पूजित हैं; जो जीव को गुमराह करनेवाले मोह रूपी अंधकार के नाश के लिए सर्य के समान हैं; जो आत्मशक्तियों का घात करने वाले राग और द्वेष रूपी महाखतरनाक
शंका जीवन का विष है, विश्वास अमृत है.
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विषों के लिए (उन्हें हर हालत में पूरी तरह नाश करने वाले) परम मंत्र के समान है। जो सुदेवता के रूप में जन्म आदि सभी प्रकार के कल्याणों का हेतु है, वजह है;
और जो जीव की सर्वोच्च परिणति रूप सिद्ध-भाव का साधक है, सिद्ध भाव को प्राप्त करवाने वाला है, ऐसा केवलियों के द्वारा प्ररूपित समग्र ऐश्वर्य आदि से युक्त श्रुत आदि रूप धर्म यावत्-जीवन मेरे लिए शरण है, आश्रय है.
दुष्कृत गर्दा सरण-मुवगओ य एएसिं गरिहामि दुक्कडं
अरहंत आदि इन चारों की शरण में रहा हुआ मैं अब मेरे समग्र दुष्कृतों की, खराब कार्यों की गर्दा करता हूँ, एकरार करता हूँ, अंदरूनी
असहमति व्यक्त करता हूँ. जण्णं अरहंतेसु वा, सिद्धेसु वा, आयरिएसु वा, उवज्झाएसु वा, साहूसु वा, साहुणीसु वा, अन्नेसु वा धम्मट्ठाणेसु माणणिज्जेसु पूयणिज्जेसु,
मैंने अरहंतों के प्रति, सिद्धों के प्रति, आचार्यों के प्रति, उपाध्यायों के प्रति, साधुओं के प्रति, साध्वियों के प्रति, सामान्य से गुणों में अधिक ऐसे धर्म के स्थानरूप (जिनके हृदय में धर्म का वास है ऐसे) जीवों के प्रति, माननीय जनों के प्रति, पूजनीय लोगों के प्रति
जो भी दुष्कृत किये है; तहा माईसु वा, पिईसु वा, बंधूसु वा, मित्तेसु वा, उवयारीसु वा, ओहेण वा जीवेसु, मग्ग-ट्ठिएसु, अमग्ग-ट्ठिएसु, मग्गसाहणेसु, अमग्ग-साहणेसु,
तथा अनेक जन्मों के माताओं के प्रति, पिताओं के प्रति, बंधुओं के * दुनिया की सर्वाधिक मूल्यवान वस्तु क्या है? समय।
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प्रति, मित्रों के प्रति, उपकारियों के प्रति, सामान्य से सम्यग् दर्शनादि को पा कर मोक्षमार्ग पर रहे हुए जीवों के प्रति, मिथ्यात्व आदि की वजह से जो मोक्षमार्ग से बाहर स्थित है ऐसे जीवों के प्रति, पुस्तक आदि
मोक्षमार्ग के साधनों के प्रति, हथियार आदि उन्मार्ग के साधनों के प्रति जं किंचि वितह-मायरियं अणायरियव्वं अणिच्छियव्वं पावं पावाणुबंधि सुहमं वा बायरं वा मणेण वा वायाए वा काएण वा कयं वा कारियं वा अणुमोइयं वा रागेण वा दोसेण वा मोहेण वा, एत्थ वा जम्मे जम्मतरेसु वा,
जो कोई भी स्व-पर अहितकारी विपरीत आचरण किये है, जो कि आचरण करने योग्य नहीं थे, चाहने योग्य भी नहीं थे, जो पाप का कारण होने से स्वयं पाप थे, पापों की ही रूचि से जन्मे होने के कारण पापों की लंबी परंपरा चलाने वाले पापानुबंधी आचरण थे; फिर भले ही वे सूक्ष्म- झट से ध्यान में न आने वाले थे या बादर- स्पष्ट पता चल जाने वाले थे; मन से, वचन से या काया से; स्वयं किये थे, औरों से करवाये थे, या औरों की अनुमोदना स्वरूप थे; राग से या द्वेष से या मोह से किये थे; इसी जन्म में किये थे या पिछले जन्मों
में किये थे; गरहियमेयं दुक्कडमेयं उज्झियव्वमेयं, विआणियं मए कल्लाणमित्त-गुरुभयवंत-वयणाओ,
वे सब मेरे आचरण गर्हित-निंदित, जुगुप्सित थे; धर्मबाह्य होने से वे सारे के सारे दुष्कृत, गलत कार्य थे; अतः त्यागने छोड़ देने योग्य है, ऐसा
मुझे मेरे कल्याण-मित्र गुरूभगवंत के वचनों से पता चला है. एवमेयं ति रोइयं सद्धाए, अरहंत-सिद्ध-समक्खं गरहामि अहमिणं दुक्कडमेयं उज्झियव्वमेयं
'यह सब ऐसा ही है इस तरह मुझे निर्मल श्रद्धा से दिल में रुचा है,
परमात्मा की भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ ति है.
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और अरहंत व सिद्ध प्रभु के अनंतज्ञान की साक्षी में मानों साक्षात् उनके ही समक्ष मैं इन सब की गर्हा-एकरार करता हूँ कि मेरे ये सारे के
सारे आचरण वे गलत थे, खराब कार्य थे, दुष्कृत थे, त्यागने योग्य थे. एत्थ मिच्छामि दुक्कडं, मिच्छामि दुक्कडं, मिच्छामि दुक्कडं. ८ इन सब का...
मिच्छामि दुक्कडं मिच्छामि दुक्कडं
मिच्छामि दुक्कडं. ये सब मेरे दुष्कृत मिथ्या हो जाय, निष्फल हो जाय, उनका अस्तित्व न
रहें. होउ मे एसा सम्म गरहा. होउ मे अकरणनियमो. १. मेरी यह गर्दा सम्यक गर्दा हो, भाव से सच्ची गर्दी हो. २. इसी गर्दा की वजह से मुझे इन सब दुष्कृतों के पुनः अकरण का, न
करने का नियम हो जाय. बहुमयं ममेयं ति इच्छामि अणुसटिंठ अरहताणं भगवंताणं गुरुणं कल्लाण-मित्ताणं ति.
इन दोनों बातों का मुझे बहुत ही मान है. इसीलिए मैं अरहंत भगवंतों व कल्याणमित्र गुरूओं का (उपरोक्त दोनों बातों को उत्पन्न करने वाले बीज के समान, ऐसा) अनुशासन चाहता हूँ.
प्रणिधान - प्रार्थना होउ मे एएहिं संजोगो. होउ मे एसा सुपत्थणा. होउ मे एत्थ बहुमाणो. होउ मे इओ मोक्खबीयं. ९
मेरी हार्दिक प्रार्थना है कि मुझे इन अनुशासकों का संयोग हो. मेरी यह प्रार्थना, सुप्रार्थना हो, दोष रहित व अवश्य फल देने वाली हो.
कूर आहार हमारे विचारों में भी क्रूरता लाता है.
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मेरा इस प्रार्थना के प्रति अंतःकरण से बहुमान हो. और इसी प्रार्थना के बल से मुझे परंपरा में अवश्य फलने वाले ऐसे कुशलानुबंधी कर्मरूप उत्तम मोक्षबीज की प्राप्ति हो. पत्तेसु एएसु अहं सेवारिहे सिया, आणारिहे सिया, पडिवत्ति-जुत्ते सिया, निरइआर-पारगे सिया. १०
एवं इन अरंहत, गुरू आदि की प्राप्ति होने पर... मैं उनकी सेवा के योग्य होऊँ; मैं उनकी आज्ञा के योग्य होऊँ; मैं उनकी उन सभी आज्ञाओं की प्रतिपत्ति से, स्वीकृति से युक्त बनआज्ञाओं को जीवन में स्वीकारने वाला बनूं... स्वीकारी हुई उन आज्ञाओं
को अतिचार रहित पूरी तरह पालने वाला बनूं... सर्व गुणों व योग्यताओं के लिए बीजसमानः सुकृत अनुमोदना संविग्गो जहासत्तीए सेवेमि सुकडं. (ति)अणुमोएमि सव्वेसिं अरहताणं अणुट्ठाणं, सव्वेसिं सिद्धाणं सिद्धभावं, सव्वेसिं आयरियाणं आयारं, सव्वेसिं उवज्झायाणं सुत्तप्पयाणं, सव्वेसिं साहूणं साहुकिरियं,
संविग्न-मोक्षाभिलाषी बना मैं शक्ति अनुसार सुकृतों की सेवना करता हूँ. मैं मेरे हृदय की चाहना व प्रसन्नता से भरी अनुमोदना करता हूँ... सभी अरहंतो के धर्मदेशना आदि सर्व हितकारी अनुष्ठानों की; सभी सिद्धों के अव्याबाध आदि रूप सिद्धभाव की; सभी आचार्यों के ज्ञानाचार आदि रूप निर्मल-सुंदर आचार धर्म की; सभी उपाध्यायों के विधिपूर्वक आगम आदि सूत्रों के दान की; सभी साधुओं की स्वाध्याय, ध्यान आदि रूप साधु-क्रिया की;
परमात्मा की भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ ति है.
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ए सव्वेसिं सावगाणं मोक्ख-साहण-जोगे, एवं सव्वेसिं देवाणं सव्वेसिं जीवाणं होउ-कामाणं कल्लाणा-सयाणं मग्ग-साहणजोगे. ११
सभी श्रावक-श्राविकाओं के वैयावृत्यादि रूप मोक्ष को साधने वाले योगों की; और इंद्र आदि सभी देवताओं के, सामान्यतः मोक्ष की चाहना वाले आसन्न-भवी - शीघ्र मोक्षगामी, व कल्याणमय शुद्ध आशय वाले सभी जीवों के सामान्यतः हितकारी-कुशल प्रवृत्तिरूप मोक्षमार्ग को साधने वाले, प्राप्त कराने वाले योगों की जगत में जो कुछ भी अनुमोदनीय है उन सब की मैं यथार्थ भाव से अनुमोदना करता हूँ.
प्रणिधिशुद्धि होउ मे एसा अणुमोयणा सम्मं विहिपुव्विगा, सम्मं सुद्धासया, सम्म पडिवत्तिरुवा, सम्म निरइयारा, परमगुणजुत्त-अरहंतादिसामत्थओ.
मेरी यह अनुमोदना... शास्त्रों में बताई गई सम्यक् विधि पूर्वक की हो, बाधक कर्म-मल से रहित ऐसी सम्यक् शुद्ध आशय वाली हो, जीवन में आचरण रूप सम्यक् प्रतिपत्ति-स्वीकार वाली हो, सही रूप से पालन की गई होने से सम्यक् निरतिचार- दोषरहित हो... मेरी शक्ति तो बड़ी सीमित है अतः परम गुणों से युक्त अरिहंत आदि
के सामर्थ्य से मेरी अनुमोदना उपरोक्त प्रकार की हो... अचिंत-सत्तिजुत्ता हि ते भगवंतो वीयरागा सव्वण्णू परमकल्लाणा परम-कल्लाण-हेऊ सत्ताणं.
अहा! अचिंत्य शक्ति से युक्त वे अरहंत आदि भगवंत वीतराग है,
Xअसफलताएँ मात्र यह देखने आती है कि तुम में यदि मत्त्व है तो कितना है?x
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सर्वज्ञ है, परम कल्याणरूप है व जीवों के लिए उचित उपायों के
माध्यम से परम कल्याण के हेतुरूप है. मूढे अम्हि पावे अणाइ-मोह-वासिए, अणभिण्णे भावओ हियाहियाणं अभिण्णे सिया, अहिय-निवित्ते सिया, हिय-पवित्ते सिया, आराहगे सिया, उचिय-पडिवत्तीए सव्वसत्ताणं, सहियं ति इच्छामि सुक्कडं, इच्छामि सुक्कडं, इच्छामि सुक्कडं. १२
और मैं? मैं तो मूढ़ हूँ, पापमय हूँ, उपरोक्त सुंदर बातों को जीवन में उतारने के विषय में अनादि काल से मोह वासित- भ्रमित हूँ. अतः भाव से- सही मायनों में मैं मेरे हित और अहित से अनभिज्ञ हूँ, अनजान हूँ; अरिहंतादि के सामर्थ्य से अब मैं जानकार बनूँ, मेरे अहित से मैं निवृत्त बगैं, हित में मैं प्रवृत्त बगैं; मैं आराधक बनें- सभी जीवों की उचित प्रतिपत्ति से, उन-उन जीवों की लायकात के अनुरूप सेवा से, स्वीकृति से; क्यूँकि इसी में मेरा हित है, अतः मैं तहेदिल सुकृत की...
चाहना करता हूँ चाहना करता हूँ
चाहना करता हूँ.
सूत्र पाठ का फल एवमेयं सम्मं पढमाणस्स सुणमाणस्स अणुप्पेहमाणस्स सिढिलीभवंति परिहायंति खिज्जति असुह-कम्माणुबंधा.
इस विधि से संवेग के साररूप इस सूत्र को स्वयं सम्यक् पढ़ने वाले के, सुनने वाले के तथा अर्थ की गहराई में जा कर चिंतन करने रूप अनुप्रेक्षा करने वाले के... अशुभ कर्मों के अनुबंध अपने फल देने की शक्ति में मंदता आ जाने की
*
पाप तो हर कोई करता है; पश्चाताप करने वाले महान है.
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वजह से शिथिल हो जाते है; उनका ह्रास हो जाता है, वे कम हो जाते है, और विशिष्ट हृदय-भावों के अभ्यास से उनका नाश भी हो जाता है. निरणुबंधे वाऽसुहकम्मे भग्गसामत्थे सुह-परिणामेणं कडगबद्धे विय विसे अप्पफले सिया सुहावणिज्जे सिया, अपुणभावे सिया. १३
और साथ ही अनुबंध रहित बने ये अशुभ कर्म इस सूत्र की आराधना के प्रभाव से उनका सामर्थ्य टूट जाने पर आत्मा के शुभ परिणाम प्रकट होने से कड़े से बाँधे हुए विष की तरह अल्प फल को देने वाले बनते हैं, सुखरूप पूर्णतः नाश हो जाने वाले बनते हैं, और फिर से नहीं बंधने वाले हो जाते हैं.
इस तरह जीव की अनंत दुःखरूपता की सारी जड़ का नाश हो जाता है. तहा आसगलिज्जंति परिपोसिज्जंति निम्मविज्जंति सुहकम्माणुबंधा.
और, शुभ कर्मों के नए अनुबंध उत्पन्न होते हैं, वे कमजोर हो तो पुष्ट- मजबूत हो जाते है और अपने निर्माण को पूर्णतः पाते है. साणुबंधं च सुहकम्मं पगिट्ठ पगिट्ठ-भावज्जियं नियम-फलयं सुप्पउत्ते विय महागए सुहफले सिया, सुहपवत्तगे सिया, परमसुहसाहगे सिया.
सानुबंध शुभकर्म, इस प्रक्रिया से प्रकृष्ट बने, अपने श्रेष्ठतम सामर्थ्य वाले बने; प्रकृष्ट शुभ भावों से अर्जित होने से अवश्य ही फल देने वाले बने हुए सुप्रयुक्त महा औषध की तरह शुभफल देने वाले बनते है, अनुबंध के बल से शुभ के सतत प्रवर्तक बनते है और परंपरा
में परम सुख - मोक्ष सुख के साधक बनते है, देने वाले बनते है. अओ अप्पडिबंधमेयं असुहभाव-निरोहेणं सुहभाव-बीयं ति सुप्पणिहाणं सम्मं पढियव्वं सोयव्वं अणुप्पेहियव्वं ति. १४
अतः चउसरण आदि यह प्रक्रिया नियाणा - निदान की तरह आत्मकल्याण
चरित्र से पतित का तो फिर भी मोक्ष है, श्रद्धा से पतित का नहीं.
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में आगे बढ़ने में बाधक- प्रतिबंधक ऐसा फल देने वाली नहीं होने से अप्रतिबंध- अनिदान स्वरूप है, तथा अशुभ भाव यानि अशुभ अनुबंधों को अटकाने के द्वारा शुभभावों के लिए बीजरूप है. ऐसा जान कर सुंदर प्रणिधान के साथ यह सूत्र आत्मा के प्रशांत भाव से सम्यक् पठन करने योग्य है, श्रवण करने योग्य है एवं इसका अनुप्रेक्षणअनुभावन करने योग्य है.
अंतिम मंगल
नमो नमिय-नमियाणं परमगुरु- वीयरागाणं. नमो सेसनमोक्कारारिहाणं. जयउ सव्वण्णुसासणं. परमसंबोहीए सुहिणो भवंतु जीवा, सुहिणो भवंतु जीवा, सुहिणो भवंतु जीवा.
अन्य समर्थजन भी जिन्हें नमन करते हैं ऐसे देवेन्द्र, महा ऋषि आदि नमितों के द्वारा जो नमित नमन किए गए हैं; ऐसे परम गुरु वीतरागों को नमन, कि जिनके सारे क्लेश नाश हो चुके हैं. अन्य भी शेष नमस्कार योग्यों को - आचार्य, गुणाधिक आदि को नमन. सर्वज्ञों का शासन जय प्राप्त करें!
मिथ्यात्व के नाश पूर्वक परम संबोधि- सम्यक्त्व की प्राप्ति के द्वारा... सभी जीव सुखी हो... सभी जीव सुखी हो...
सभी जीव सुखी हो....
इति पावपडिघायगुणबीजाहाणसुत्तं समत्तं. १५ (१)
पाप प्रतिघात - गुणबीजाधान नाम का प्रथम सूत्र समाप्त हुआ.
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भाव युक्त धर्म पाप को भी पुण्य में बदल देता है.
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• नित्य भावना .
शिवमस्तु सर्व जगतः, परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः ।
दोषाः प्रयांतु नाशं, सर्वत्र सुखी भवन्तु लोकाः ।। मेरे अंदर-बाहर सारे जगत में शांति हो जाओ, मेरे अंदर-बाहर की दुनिया के सारे जीव परस्पर के हित में निरत हो जाओ, मेरे अंदर-बाहर की दुनिया के सारे दोष पूरी तरह नाश हो जाओ, मेरे अंदर-बाहर की दुनिया के सारे जीव सुखी हो जाओ, सारा विश्व सुखी हो जाय.
खामेमि सव्व जीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे । __ मित्ति मे सव्व भूएसु, वेरं मज्झ न केणई ।। मै मेरे सहित सभी जीवों को खमाता हूँ, क्षमा करता हूँ (क्योंकि जिसके साथ वैर है उसका भला मैं कभी नहीं कर सकूँगा. मेरा भी मैं बिगाड़ता रहता हूँ, कहीं खुद ही से तो वैर नहीं हैं न? क्षमा कर दूँ!)
मेरे सहित सभी जीव मुझे क्षमा करें, मैं माफी माँगता हूँ. (मैंने मेरा भी बहोत बिगाड़ा है, शायद सबसे ज्यादा बिगाड़ा है, माफी मांग लूं, खुद से!) ___मेरे सहित समस्त जीवों के साथ मेरी मित्रता है, मै भला चाहता हूँ सब का! (मुझे भी तो मेरे प्यार की, साथ-सहकार व समर्थन की जरूरत है. है न? शायद सबसे ज्यादा! क्यूं न मैं दूं? मैं मेरा मित्र बन जाऊँ तो?)
मेरा मेरे सहित किसी भी जीव के साथ वैर नहीं है. (वैर रखने पर खुद को दुःखी करने के अलावा और क्या होगा?
यह तो खुद ही के साथ और भी वैर हुआ! वैर मुक्त हो कर देख लूँ, बहोत बड़ी राहत हो जाएगी!)
पुरिसा! तुमं चेव तुम मित्तं, किं बहिया मित्तमिच्छसि? हे पुरूष! तू ही तेरा मित्र हैं, क्यूँ बाहर के मित्र की इच्छा करता है?
दुर्भावनाएँ पुण्य को भी पाप बनाने में समर्थ है.
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चित्र-विचित्र जीव संसार हमारे केवलज्ञानी, देवाधिदेव जिनेन्द्र भगवंत ने अपने ज्ञान के माध्यम से जैसा जीव-सृष्टि को देखा, जाना व समझा है तथा समझाया है, वह सत्य ही है; बहुत ही व्यवस्थित है; और उनकी समझावट में पूरी जीव-सृष्टि का वर्णन है।
जो लोग जीव-सष्टि में से किसी जीव विशेष को लेकर अध्ययन करते हैं वे जीव रूपी-दृश्य ही होते है, अरूपी-अदृश्य नहीं। वे जीव संसारी-सकर्मा ही होते है, मुक्त-अकर्मा नहीं। जबकि देवाधिदेव भगवंत के द्वारा प्रदर्शित जीव-सृष्टि में सिद्ध संसारी, सूक्ष्म बादर, रूपी अरूपी, त्रस स्थावर, आदि सभी जीव आ जाते हैं।
भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से जीवों का वर्गीकरण
परमात्मा ने चैतन्य आदि भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से जीवों को कई-कई वर्गों में बाँटा है; जैसे कि
शुद्ध चैतन्य की अपेक्षा से सभी जीव मूलतः एक ही समान है; क्योंकि सभी जीवों में एक सा ही चैतन्य है, एक सा ही उपयोग गुण है; एक समान ही गुण व शक्तियाँ हैं; सभी में शुद्धता, पूर्णता और स्थिरता एक जैसी ही हैं; चाहे वे जीव सिद्ध हों या संसारी।
परमात्मा ने सभी संसारी-सकर्मा अर्थात् कर्मसहित जीवों को दो वर्गों में बाँटा हैं- (१) त्रस, (२) स्थावर।
जो ठंडी, गर्मी, भय, भूख, प्यास आदि किसी भी अच्छे या बुरे निमित के कारण इधर-उधर गति आगति-जावन आवन, हलन-चलन आदि कर सकते हैं, वे जीव त्रसकायिक कहलाते हैं।
'त्रस' नामक नामकर्म के उदय से जीवों को त्रस पर्याय प्राप्त होती है।
स्थावर जीव वे हैं जो ठंडी, गर्मी, सुख, दुःख आदि संयोगों में स्थावरस्थिर ही बने रहते हैं; किसी भी प्रकार से इधर-उधर जावन आवन, हलन चलन आदि नहीं कर सकते।
'स्थावर' नामक नामकर्म के उदय से जीवों को ऐसी स्थावर-स्थिर पर्याय प्राप्त होती है।
क्रोध अक्ल को ना कर देता है.
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वेद की अपेक्षा से सभी संसारी जीवों को तीन वर्गों में बाँटा है (१) स्त्रीवेदी, (२) पुरुषवेदी, (३) नपुंसकवेदी।
यह स्त्री है, या पुरुष या नपुंसक; इसकी पहचान के लिए बाहरी चिन्ह द्रव्यवेद कहलाते हैं; जबकि स्त्री को पुरुष के साथ; पुरुष को स्त्री के साथ और जीव को स्त्री और पुरुष दोनों के साथ जो रमण करने की इच्छा होती है वो क्रमशः स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद कहलाती है।
एकेन्द्रिय से चउरिन्द्रिय जीव, सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचों, सम्मूर्छिम् मनुष्यों एवं नारकी जीवों में नपुंसक-वेद ही पाया जाता है। गर्भज तिर्यंचों और मनुष्यों में तीनों वेद पाए जाते है जबकि चारों प्रकार के देवों में स्त्रीवेद एवं पुरुषवेद पाया जाता है; नवग्रैवेयक और पांच अनुत्तर देवों में अत्यंत सूक्ष्म पुरुष-वेद पाया जाता है।
परमात्मा ने गति की अपेक्षा से भी संसारी जीवों को चार वर्गों में बाँटा हैं - (१) नारक, (२) तिर्यंच, (३) मनुष्य, (४) देव।
जो जीव नरक-गति में हैं वे नारक; जो तिर्यंच गति में हैं वे तिर्यंच; जो मनुष्य गति में है वे मनुष्य तथा जो देव गति में हैं वे देव कहलाते हैं।
'गति' नामक नामकर्म के उदय से प्राप्त होने वाली पर्याय गति कहलाती
चित्र-विचित्र तिर्यंच संसार परमात्मा ने इन्द्रियों की अपेक्षा से सभी संसारी जीवों को पाँच वर्गों में बाँटा हैं - (१) एकेन्द्रिय, (२) द्वीन्द्रिय, (३) तेइन्द्रिय, (४) चउरिंद्रिय, (५) पंचेन्द्रिय ।
आत्मा के चिन्ह स्वरूप हैं इन्द्रियाँ। शरीर के अंगभूत हैं इन्द्रियाँ ।
इन्द्रियाँ पाँच हैं - (१) स्पर्शन इन्द्रिय-त्वचा, (२) रसना इन्द्रिय-जिह्वा, (३) घ्राण इन्द्रिय-नासिका, (४) चक्षु इन्द्रिय-आँख, (५) श्रोत्र इन्द्रिय-कान।
पाँचों इन्द्रियों के संस्थान-बनावट, आकार और विषय भी जुदा जुदा है। पाँचों इन्द्रियों के कुल विषय २३ एवं उन विषयों के उपभेद २४० हैं।
जिन जीवों के पास एक-स्पर्शन इन्द्रिय है, वे एकेन्द्रिय कहलाते हैं। जैसे कि पृथ्वीकाय, अप्काय, तैजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के जीव। इन
करणी-हीन कथनी कमजोर होती है.
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पाँचों निकायों के जीव दो प्रकार के होते हैं - (१) सूक्ष्म, (२) बादर।
जिन जीवों का शरीर अत्यंत सूक्ष्म हो, किसी भी इंद्रिय से किसी भी तरह अग्राह्य हो वे जीव सूक्ष्म कहलाते हैं। सूक्ष्म नामक नामकर्म के उदय में जीवों को ऐसी पर्याय प्राप्त होती है।
जिन जीवों का शरीर बादर-स्थूल होता है, वे जीव बादर कहलाते हैं। बादर नामक नामकर्म के उदय से जीवों को ऐसी पर्याय प्राप्त होती है।
सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव समूचे लोक में व्याप्त हैं, वे स्वभावतः अदृश्यत होते हैं, और उनकी महत्तम आयुष्य मात्र अंतर्मुहूर्त (४८ मिनट से कुछ कम) कालप्रमाण ही होती है।
बादर एकेन्द्रिय जीव चौदह-रज्जु लोक के सीमित क्षेत्र में पाए जाते हैं।
प्रत्येक सूक्ष्म और बादर एकेन्द्रिय जीवों के दो-दो भेद हैं - (१) पर्याप्ता, (२) अपर्याप्ता।
पर्याप्तियाँ छ: है - (१) आहार, (२) शरीर, (३) इन्द्रिय, (४) श्वासोच्छ्वास, (५) भाषा, (६) मन।
एकेन्द्रिय जीवों को पहली चार; द्वीन्द्रिय, त्रीरिन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों को पाँच; सम्मूर्छिम मनुष्यों में चार; एवं संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों को छ: पर्याप्तियाँ प्राप्त होती है।
जो जीव स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण करें, वे पर्याप्ता; और जो जीव स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण न करें; वे जीव अपर्याप्ता कहलाते हैं।
जिन जीवों के पास दो- स्पर्शन और रसना इन्द्रियाँ हैं; वे द्वीन्द्रिय कहलाते हैं। जैसे कि- लट, सीप, अलसिया, शंख कौडी, जलो, कृमि वगैरह। द्वीन्द्रिय जीवों को प्रायः पाँव नहीं होते हैं। ___ जिन जीवों के पास तीन- स्पर्शन, रसना और घ्राण इन्द्रियाँ हैं; वे त्रीरिन्द्रिय कहलाते हैं। जैसे कि-कीड़ी, मोकड़ा, कानखजूरा, घोंघा, खटमल, दीमक, गोबर तथा धान्य में पैदा होने वाले कीड़े वगैरह। त्रीरिन्द्रिय जीवों को प्रायः चार, छ: या उनसे अधिक पाँव होते हैं। ___ जिन जीवों के पास चार- स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु इन्द्रियाँ हैं, वे * जिसके प्रेम में कभी पतझड़ न भाएँ उसका नाम मा.
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चाउरिंद्रिय कहलाते हैं जैसे कि मक्खी मच्छर, भंवरा, टिड्डा, डांस, बिच्छु वगैरह। चउरिंद्रिय जीवों को सामान्यतया छः या आठ पाँव होते हैं।
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द्वीन्द्रिय, त्रीरिन्द्रिय और चउरिंद्रिय जीवों में से कुछ जीवों को मूँछे होती है । द्वीन्द्रिय, त्रीरिन्द्रिय और चउरिंद्रिय जीव विकलेन्द्रिय कहलाते हैं।
विकलेन्द्रिय जीव ऊर्ध्व और अधोलोक में उत्पन्न नहीं होते; मात्र मध्यलोक में ही उत्पन्न होते हैं।
प्रत्येक विकलेन्द्रिय के दो-दो भेद हैं- (१) पर्याप्ता, (२) अपर्याप्ता । जिन जीवों के पास पाँच स्पर्शन, रसना, घाण, चक्षु और श्रोत्र इन्द्रियाँ हैं, वे पंचेन्द्रिय कहलाते हैं। पंचेन्द्रिय जीव चार प्रकार के होते हैं (१) नारक, (२) तिर्यंच, (३) मनुष्य, (४) देव ।
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द्वीन्द्रिय, त्रीरिन्द्रिय, चउरिंद्रिय और पंचेन्द्रिय जीव बादर ही होते हैं। स्थावर और विकलेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा पंचेन्द्रिय जीवों का विकास हर रीति से विशेष यानि कि बहुत अधिक होता है।
परमात्मा ने काय की अपेक्षा से सभी संसारी जीवों को छः वर्गों में बाँटा हैं- (१) पृथ्वीकाय (२) अप्काय (३) तैजस्काय (४) वायुकाय (५) वनस्पतिकाय (६) त्रसकाय. काय अर्थात् राशि या समूह. काय का ही पर्यायवाची शब्द है निकाय ।
पृथ्वीकायिक जीवों की राशि को पृथ्वीकाय, अप्कायिक जीवों की राशि को अष्काय, तैजस्कायिक जीवों की राशि को तैजस्काय वायुकायिक जीवों की राशि को वायुकाय, वनस्पतिकायिक जीवों की राशि को वनस्पतिकाय और जसकायिक जीवों की राशि को त्रसकाय कहा जाता है।
पृथ्वीरूप काया - शरीर को धारण करने वाले जीव पृथ्वीकायिक कहलाते हैं।
स्फटिक मणि, रत्न प्रवाल आदि वस्तुएं जब तक पृथ्वी के उदर में पाई जाती हैं, तब तक वे सचित्त- जीवनी शक्ति से युक्त कहलाती हैं; अतः उनकी गणना पृथ्वीकाय के रूप में की जाती है मगर जब ये वस्तुएँ पृथ्वी के उदर से बाहर निकाली जाती है तो शस्त्र, अग्नि, रसायन आदि के प्रयोग से ये जीवरहित हो जाती है, तब इनकी गणना अचित अजीव जड़ पदार्थों में की जाती है।
जलरूप शरीर को धारण करने वाले जीव अप्कायिक कहलाते हैं । स्थूल प्रेम को साकार होने का मन हुआ तो माँ का सर्जन हुआ.
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अप्कायिक जीवों में कई भेद हैं; जैसे कि भूमि का पानी, आकाश का पानी, हिम, ओले, दर्भ अथवा घास पर होने वाला जल, कुहासा, घनोदधि आदि ।
अग्निरूप शरीर को धारण करने वाले जीव तैजस्कायिक कहलाते हैं। स्थूल तैजस्कायिक जीवों के कई भेद हैं जैसे कि- अंगारा, ज्वाला, चिंगारी, उल्का की अग्नि, विद्युत आदि ।
वायुरूप शरीर को धारण करने वाले जीव वायुकायिक कहलाते हैं। स्थूल वायुकायिक जीवों के कई भेद हैं; जैसे कि- गोल-गोल घूमती हुई तिनके आदि को ऊपर ले जाने वाली वायु, आँधी, धीमे-धीमे बहने वाली वायु, गुंजारव करने वाली वायु, घनवात, तनुवात आदि।
विशेषः- पृथ्वी, पानी, अग्नि और वनस्पति की तरह वायु दिखती नहीं है; मगर ध्वजा एवं पत्तों के हिलने से इसकी प्रतीति अवश्य होती है। वायु में वजन भी पाया जाता है।
वनस्पतिरूप शरीर को धारण करने वाले जीव वनस्पतिकायिक कहलाते हैं। जैसे कि- स्थूल वनस्पति के दो भेद हैं- (१) प्रत्येक (२) साधारण ।
जिस वनस्पति के एक शरीर में एक जीव रहे, वह प्रत्येक वनस्पति और जिस वनस्पति के एक शरीर में अनन्त जीव रहें, वह साधारण वनस्पति कहलाती है । साधारण वनस्पति की अनेक निशानियाँ हैं; जैसे कि काटने के पश्चात् उगने वाली सभी वनस्पतियाँ; सभी प्रकार के कन्द - जिस वनस्पति के अवयव भूमि के अंदर में रहते हों; अंकुर, कोंपल, पंचवर्णी- लाल, पीली, बादली, काली और सफेद रंग की फफुंद शैवाल, हरी हल्दी, अदरक, गाजर आदि
चल फिर सकने योग्य शरीर को धारण करे वाले जीव त्रसकायिक कहलाते है। जैसे कि बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय ।
चारों गतियों में से एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय्, त्रीरिन्द्रिय और चउरिन्द्रिय जीव तो मात्र तिर्यंच-गति में ही पाए जाते हैं; मगर पंचेन्द्रिय जीव चारों गतियों में पाए जाते हैं । तिर्यंचगति में पाए जाने वाले पंचेन्द्रिय जीव तीन प्रकार के होते हैं - (१) जलचर, (२) स्थलचर, (३) खेचर ।
(१) जलचर- जल में चलने वाले जीव जैसे कि- मच्छ, कच्छप, मगर, ग्राह और सुंसुमार आदि ।
दुनिया में सबसे प्रभावशाली पाठशाला- माँ की गोद.
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(२) स्थलचर- स्थल पर चलने-फिरने वाले जीव; चाहे वे एक खुर वाले अश्व आदि हों, चाहे वे दो खुर वाले बैल आदि हों, और चाहे वे गोल पैर वाले हाथी आदि हों, चाहे वे सनख– नख सहित पैर वाले सिंहादि हों।
। स्थलचर जीव तीन प्रकार के होते हैं- (9) चतुष्पद (२) उरपरिसर्प (३) भुजपरिसर्प।
अ. चतुष्पद- चार पैरों वाले पशु। जैसे- गाय, भैंस, घोड़ा, गधा, बकरी, कुत्ता, बिल्ली, शेर आदि।
ब. उरपरिसर्प- छाती के बल पर रेंगने वाले जीव। जैसे- सर्प, अजगर, आसालिक, महोरग आदि।
स. भुजपरिसर्प- भुजाओं के बल पर चलने वाले जीव। जैसे- गोह, चूहा, छिपकली, गिरगिट, नेवला दि।
(३) खेचर- आकाश में उड़ने वाले जीव। ये चार प्रकार के होते हैं। सभी तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव दो प्रकार के होते हैं। (१) संज्ञी, (२) असंज्ञी।
जो जीव समनस्क-दीर्घकालिकी संज्ञा से युक्त हों; वे जीव संज्ञी और जो जीव अमनस्क-दीर्घकालिकी संज्ञा से रहित हों, वे असंज्ञी कहलाते हैं।
सभी संज्ञी और असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव दो प्रकार के होते हैं- (१) पर्याप्ता, (२) अपर्याप्ता।
सच में जैसे जीव अनंत हैं वैसे ही उनकी बातें भी अनंत हैं। उनके विषय में जितना कहें वह कम ही है। हाँ, यह बात निश्चित है कि हम छद्मस्थ जितना जान पाएंगे, उससे अज्ञात व अज्ञेय अनंत गुणा अधिक ही शेष बचेगा। तिर्यंच गति में उत्पन्न होने के कारण
पुत्ताइसु पडिबद्धा, अण्णाण-पमायसंगया जीवा। उप्पज्जति धण्णप्पियवणिउ ब्वेगिदिएसु बहुं ।। भव-भावना १८५।।
पुत्रादिकों के प्रति प्रतिबद्ध-अत्यधिक आसक्त, अज्ञानी और प्रमादी जीव धनप्रिय वणिक् की तरह बार-बार एकेन्द्रियपने में जन्मते और मरते रहते हैं।
जिणधम्मुवहासेणं, कामासत्तीइ हिययसढयाए।
उम्मग्गदेसणाए सया वि केलीकिलत्तेण ।। * लेट गो भौर लेट गोड मुख्य के ये दो मंत्र है.
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कूडक्कयअलिएणं, परपरिवाएण पिसुणयाए य। विगलिंदिएसु जीवा, वच्चंति पियंगुवणिओ व्व।। भव-भावना १८७-१८८ ।।
जिनधर्म के प्रति उपहास के कारण, कामासक्ति, हृदय की शठता, उन्मार्गदेशना, क्रीड़ा-हास्य, कूट-माया पूर्वक लेन-देन, झूठ, परपरिवाद-निंदा, चुगलखोरी से प्रियंगु वणिक की तरह जीव विकलेन्द्रियों- द्वीन्द्रिय, त्रीरिन्द्रिय और चउरिन्द्रियपने में पैदा होते हैं।
कज्जत्थी जो सेवइ मित्तं, कज्जे उ कए विसंवयइ। कूरो मूढमइओ, तिरिओ सो होइ मरिऊणं ।।
जो स्वार्थ सिद्धि के समय तो मित्र के आगे-पीछे घूमता है मगर स्वार्थ पूरा हो जाने पर उसी मित्र की निंदा करता है ऐसा स्वार्थी, क्रूर, मूढमति व्यक्ति मरकर तिर्यंच गति में पैदा होता है। चउहिं ठाणेहिं जीवा तिरिक्खजोणिय आउयत्ताए कम्मं पगरेंति तंजहा-माइल्लताए। नियडिल्लताए। अलिवयणेणं। कूडतूल-कूडमाणेणं ।। स्था. ४/४/३७३।।
चार कारणों से जीव तिर्यंच गति प्रायोग्य आयुष्य कर्म बाँधते हैं-(१) मायाकूड, कपट से, यानि कुटिलता भरे व्यवहार के कारण। (२) निकृति-ढोंग करते हुए दूसरों को ठगने के कारण। (३) अलिक वचन-झूठ बोलने के कारण। (४) कूटतौल-कूटमान-व्यापार, व्यवहार में झूठे माप तौल से।
चित्र-विचित्र नारकी संसार कभी-कभी जीव जाने अंजाने तीव्र-भाव पूर्वक क्रियमाण महाहिंसा, महापरिग्रह, पंचेन्द्रिय जीवों का वध, मासंभक्षण, परस्त्रीगमन, चोरी, अत्यंत आसक्ति आदि घोर पाप-कृत्यों के कारण नरकभूमि प्रायोग्य आयुष्य कर्म को बाँध लेता हैं; परिणामतः उसे नरकभूमि पर जन्म धारण करना पड़ता है। नरकभूमियाँ सात हैं
(१) रत्नप्रभा, (२) शर्कराप्रभा, (३) वालुकाप्रभा, (४) पङ्कप्रभा, (५) धूम्रप्रभा, (६) तमःप्रभा, (७) महातमःप्रभा।
किसी-किसी ग्रंथ में सातों नरक-भूमियों के उपरोक्त नामों को गोत्रनाम के रूप में सूचित किया गया है; और नामों के रूप में निम्न सात नाम दिए हैं * छोटे पाप की उपेक्षा मत करो, उसी में बड़े पाप के बीज पड़े हुए हैं. ४
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(१) घम्मा, (२) वंसा, (३) सेला, (४) अंजना, (५) रिट्ठा, (६) मघा, (७) माघवई। नरकभूमियों का स्वरूप
नरकावासों का आकार बड़ा विचित्र होता है। नरकावास अत्यंत अशुचि पदार्थों से विशेषतः अत्यंत दुर्गंधित चर्बी, मांस और खून के कीचड़ से भरी हुई है। नरकावासों का वर्ण, गंध, स्पर्शादि भी अशुभ है। नरकों में जो भी मांसादि पदार्थ है वे सब परमाधार्मिक देवों के द्वारा विकुर्वित है, बनाए हुए है। चौथी, पाँचवी, छठी और सातवीं नरकभूमियों में परमाधार्मिक देवता नहीं पा जाते हैं अतः वहाँ वैसी विकुर्वित वस्तुएँ तो नहीं हैं मगर यूं ही उन नरकभूमियों में अत्यंत दुःसह्य दुर्गंधि है। तीन प्रकार की वेदना
नारकी जीवों को मुख्यतः तीन रीतियों से वेदना सहनी पड़ती है।
(१) क्षेत्रजन्य वेदना (२) परस्परोदीरित वेदना (३) संक्लिष्ट अध्यवसायी परमाधार्मिक देवों द्वारा दी जाने वाली वेदना।
पहली दो प्रकार की वेदना तो सातों नरक-भूमियों में पैदा होने वाले सभी नारकियों को एवं तीसरे प्रकार की वेदना पहली तीन नरक-भूमियों में पैदा होने वाले नारकी जीवों को भोगनी पड़ती है। नारकी जीवों के दुःखों का संक्षेप में स्वरूप
नारकी जीवों को निमेष मात्र-आँख खोलने और मूंदने के बीच व्यतीत होने वाले काल जितना भी सुख नहीं है। इनका जन्म छोटे कंठ वाली कुंभिओं में होता है तो परमाधार्मिक देवता उन्हें खींच-खींच कर, टुकड़ों के रूप में निकालते हैं। जन्म के समय से लेकर मृत्यु काल तक उन्हें अतिशीत, अतिउष्म, अतितृष्णा, अतिक्षुधा और अतिभय आदि सैंकड़ों प्रकार के दुःख निरंतर भोगते रहने पड़ते
हैं।
सातों नरक-भूमियों में हर शुभ वस्तु भी अशुभ रूप में परिणत हो जाती है। इन्हें भूख, प्यास तो इतनी लगती है कि एक नारकी जीव संपूर्ण संसार के सकल पदार्थ खा लेने पर भी तृप्ति महसूस नहीं कर सकता; सभी सरोवरों,
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धर्म की सुंदरता उसके स्वभावगत है, उधार की नहीं.
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नदियों, समुद्रों का जल पी लेने पर भी उसकी प्यास नहीं बुझती। खुजली होने पर ये छुरी से स्वयं के शरीर को खुजलाते है मगर इससे उनकी खुजलाहट मिटती नहीं बल्कि बढ़ती रहती है। इन्हें शीत वेदना तो बर्फीले हिमालय पर्वत के शिखर से भी अनंतगुणी अधिक सहनी पड़ती है। खैर के अंगारों की उष्णता से अनंतगुणी अधिक उष्णवेदना उन्हें निरंतर सहनी पड़ती है।
पहली नरकभूमि की अपेक्षा दूसरी नरकभूमि में और दूसरी की अपेक्षा तीसरी में; इसी प्रकार उत्तरोत्तर शीतवेदना या उष्णवेदना अनंत गुणी अधिक बढ़ती ही रहती है।
वैक्रिय शरीर होने के कारण नारकी जीव अलग-अलग तरह के भयंकर रूप बनाकर एक-दूसरे को त्रास ही त्रास देते रहते हैं। नारकियों के अंग पारे की तरह बारबार बिखर जाने पर भी पुनः स्वतः जुड़ जाते हैं। वे साँप, बिच्छु, नेवले इत्यादि वज्रमुखी क्षुद्र जीवों का रूप बनाकर एक-दूसरे को काटते रहते हैं। कीड़ेमकोड़े इत्यादि रूपों को धारण करके एक-दूसरे के शरीर में घुस जाते हैं।
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पहली तीन नरक-भूमियों तक तो परमसंक्लिष्ट परिणामी, नरकपाल, परमाधार्मिक देवता भी नारकी जीवों को उनके पाप-कृत्य याद करवाते हुए नानाविध रूप से बेहद कष्ट पहुँचाते हैं। वे उन्हें आकाश में ले जाकर सहसा नीचे की ओर फेंक देते हैं वे नारकियों के अंग प्रत्यंगों को छूरियों से काटते हैं: उनके छोटे छोटे टुकड़े करते हैं। वे नारकियों को रस्सियों से जकड़ जकड़ कर बाँधते हैं; लातों, घूसों से मारते रहते हैं और भयंकर स्थानों पर ले जाकर छोड़ देते हैं। बहुत से पारमाधार्मिक देवता नारकियों की आंते, नसें, कलेजे आदि को खींच खींचकर बाहर निकालते हैं। कुछ परमाधार्मिक देवता भालों के तीखे तीखे अग्रभागों में नारकियों को पिरोते हैं। नारकियों के अंगोपांगों को फोड़ते हैं। लोहे के हथोड़ों से उनके शरीरों को कूटते हैं। गरम-गरम तैल में समोसे की तरह तलते हैं कोल्हू में तिलों की तरह पेलते हैं वे अपनी वैक्रियशक्ति द्वारा खड्ग आकार के पत्रों वाले वन बनाकर बैठे हुए नारकियों पर तलवार जैसे तीखे तीखे पते गिराते है; और उनके अंग-प्रत्यंगों को तिलों के दाने जितने छोटे-छोटे करते रहते हैं परमाधार्मिक देव नारकी देवों को जब कुंमियों में पकाते हैं; तब तो वे जीव पाँच-पाँच सौ योजनों तक उपर उछलते हैं; छटपटाते हुए फिर वहीं आकर गिरते हैं। वे नारकी जीवों को आग जैसी तपी हुई बालु-रेती
जीवन के अंत समय में पाप नहीं सुकृतों को याद कराओ.
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पर फेंकते हैं दौड़ाते हैं, लिटाते हैं, नारकियों के मांस के छोटे-छोटे टुकड़े करके
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भाड़ में चने की तरह भूनते हैं। वे असुर नारकियों को तप हुए सीसे, तांबे, रुधिरादि अशुचि पदार्थों से भरी हुई, उबलती वैतरणी नदी में डुबोते हैं, उन्हें तैरने के लिए विवश करते हैं। वे तपी हुई लौहमयी स्त्री से आलिंगन करवाते हैं आदि, विविध - विविध रीति से निरंतर दुःख ही दुःख देते रहते हैं।
नरक -गति में जाने योग्य जीव के लक्षण
जो घायइ सत्ताई, अलियं जंपेइ, परधणं हरइ । परदारं चिय बच्चइ, बहुपाप - परिग्गहासतो ।। चंडो माणी थद्धो, मायावी निठुरो खरो पावो । पिसुणो संगहसीलो, साहूण निंदओ अहम्मो ।। दुट्ठबुद्धी अणज्जो, बहुपावपरायणो कयग्धो य
बहुदुक्ख सोगपरओ, मरिउं निरयम्मि सो जाइ ।।
जो जीवों की हिंसा करता है, झूठ बोलता है, दूसरों के धन को चुराता है, परादारा गमन करता है, बहुत सारे पाप - कृत्य करता है, परिग्रह में आसक्त रहता है, ऐसा जीव मरकर नरक में जन्म लेता है।
क्रोधी, अभिमानी, स्तब्ध, मायावी, निष्ठुर-कर्कशभाषी खल, पापी, चुगलखोर, संग्रहशील, साधु-निंदक, अधर्मी, दुष्टबुद्धि, अनार्य, बहुत से पाप कार्यों में परायण, कृतघ्नी, बहुत दुःख और शोक करने वाला जीव प्रायः मरकर नरक में पैदा होता है। चउहिं ठाणेहिं जीवा नेरइयाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तंजहा - महारंभयाए । महापरिग्गहयाए। पंचिदियवहेणं कुणिमाहारेणं स्था. ४/४/३७३ ||
चार कारणों से जीव नरकगतिप्रायोग्य आयुष्य कर्म बाँधते हैं: (१) महारंभज्यादा से ज्यादा प्राणियों की हिंसा हो; तीव्र- कषायपूर्वक ऐसी प्रवृत्ति करना । (२) महापरिग्रह– बड़े पैमाने में पदार्थों पर प्रगाढ़ मूर्च्छा, ममता एवं आसक्ति से । (३) पंचेन्द्रिय वध— पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा से । (४) कुणिमाहार - मांसाहार से ।
चित्र विचित्र मनुष्य संसार
जैन- दर्शन जन्म की अपेक्षा से मनुष्य के दो भेद मानता है- (१) गर्भज मनुष्य, (२) संम्मूर्च्छिम मनुष्य ।
जो चीज पच जाती है वह ताकत देती है, नहीं तो रोग. धर्म भी
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माता-पिता के संयोग- शुक्र और रक्त के बिना जन्मग्रहण करना सम्मूर्छिम जन्म कहलाता है।
गर्भ में रहे हुए पुरुष के शुक्र और स्त्री के शोणित-रक्त पुद्गलों को अपने नए शरीर के निर्माण के लिए ग्रहण करना, स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण कर या अपूर्ण रखते हुए एक नए जीवन की शुरूआत करना गर्भज जन्म कहलाता है।
मानव के रूप में जीव जिन क्षेत्रों में जन्म धारण कर सकता है, वे क्षेत्र तीन है; अतः परमात्मा ने क्षेत्र की अपेक्षा से मानव को तीन वर्गों में भी बाँटा है
(१) कर्मभूमिज-कर्मभूमि में जन्म लेने वाले मानव । (२) अकर्मभूमिज-अकर्मभूमि में जन्म लेने वाले मानव । (३) अन्तर्वीपिक-अन्तर्वीपों में जन्म लेने वाले मानव ।
मनुष्य के रूप में जीव मनुष्य क्षेत्र-मात्र अदीद्वीप जंबूद्वीप १ + धातकीखंड १ + अर्ध पुष्करवर द्वीप १/२ = २ १/२ प्रमाण क्षेत्र में ही जन्म धारण कर सकता है। कर्म अकर्म भूमि का स्वरूप
कर्म तीन है - (१) असि, (२) मषी, (३) कृषि।
जिस क्षेत्र में असि अर्थात् तलवार; युद्धादि के लिए नानाविध तलवारादि अस्त्र, शस्त्र बनाना, बनवाना; मषी अर्थात् स्याही; यानि पठन, पाठन, लेखनादि विद्या संबंधी कार्य करना, करवाना; और कृषि अर्थात् खेती; यानि पशुपालन, खेतीवाड़ी वाणिज्य उद्योगादि; और मोक्षानुष्ठान-श्रुत एवं चारित्र रूप धर्म की आराधना आदि हों, उसे कर्मभूमि क्षेत्र कहते हैं। जहाँ ये कर्म न हों उसे अकर्मभूमि क्षेत्र कहा जाता है।
तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेवादि श्लाका-पुरुष एवं विद्याधर-पुरुष कर्मभूमि में ही जन्म धारण करते हैं। मनुष्यों को साधु, संतों एवं सामान्य से जिनालय, जिनबिंबादि का योग भी इसी कर्मभूमि में प्राप्त हो सकता है। जीव मुक्ति के लिए कर्मक्षयप्रधान साधना भी कर्मभूमि पर ही कर सकते हैं; अकर्मभूमि या अंतीपो में नहीं।
अकर्मभूमियों एवं अन्तर्वीपों में युगलिक मनुष्य व युगलिक पशु-पंछी रहते हैं। युगलिक जीव प्रकृति से भद्र और संतुष्ट होते हैं। उनकी आवश्यकताएँ बहुत ही *
मौत के बाद धन माथ नहीं आता, धर्म भाता है.
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अल्प होती हैं। अकर्मभूमियों एवं अन्तर्वीपों में जो मत्तांग, भृत्तांग, त्रुटितांग, दीपांगादि दस प्रकार के कल्पवृक्ष पाए जाते हैं; युगलिक जीव उन्हीं से अपनी आवश्यकताएँ पूर्ण करते हैं। युगल-जोड़े के रूप में जन्म लेने के कारण ये युगलिक कहलाते हैं। योग्य आयु पाकर युगल ही आपस में पति-पत्नी बन जाते है। छ: मास आयु शेष रहने पर युगल एक नए युगल को जन्म देता है एवं कुछ नियत दिनों तक नवजात युगल का पालन-पोषण कर वे एक साथ ही मर जाते है। सम्मूर्छिम मनुष्य जन्म के चौदह अशुचि स्थान
(१) उच्चरेसु-विष्टा में, (२) पासवणेसु-मूत्र में, (३) खेलेसु-कफ में, (४) सिंघाणेसु-नाक के मैल में, (५) वंतेसु-वमन में, (६) पित्तेसु-पित्त में, (७) पूएसु-पीप
और दुर्गंध युक्त बिगड़े घाव से निकले हुए खून में, (८) सोणिएसु-शोणित खून में, (९) सुक्केसु-शुक्रवीर्य में (१०) सुक्केपुग्गलपरिसाडेसु-वीर्य के सूखे हुए पुद्गलों गीले होने में (११) विगयजीवकलेवरेसु - जीव रहित शरीर में (१२) थी-पुरीससंजोएसुस्त्री पुरुष के संयोग (समागम) में, (१३) णगरनिद्धमणेसु-नगर की मोरी में, (१४) सव्वेसु असुइट्ठाणेसु-सब अशुचि स्थानों में सम्मूर्छिम मनुष्य जन्म लेते है। मनुष्यायु बंधन के कारण
चउहिं ठाणेहिं जीवा माणुस्साउयत्ताए कम्मं पगरेंति; तंजहा-पगतिभदत्ताए। पगतिविणीययाए। साणुक्कोसयाए। अमरिच्छताए।। स्था.४/४/३७३ ।।
चार कारणों में जीव मनुष्य गति प्रायोग्य आयुष्य कर्म बाँधते हैं-(१) भद्रतासरल प्रकृति के कारण (२) विनीत प्रकृति के कारण (३) दयामय-व्यवहार के कारण (४) ईर्ष्या न करने के कारण।
अज्जव-मद्दवजुतो, अकोहणो दोसवज्जिओ वाई। न य साहुगुणेसु ठिओ, मरिउं सो माणुसो होइ।।
ऋजुता और मृदुता से युक्त, क्रोध और द्वेष से रहित, सत्यभाषी और जो साधु के योग्य गुणों में स्थित नहीं है (क्योंकि साधु और व्रतधारी श्रावक मरकर देव-गति में जाते हैं, अतः) ऐसा व्यक्ति मरकर मनुष्य बनता है। मनुष्य भव की उत्तमता का कारण
सुर-नारयाण दुण्णि वि, तिरियाण हुंति गइ य चत्तारि। मणुआण पंच गई, तेणं चिअ उतमा मणुआ।। जीवन में हंसते रहना यह अच्छी बात है परंतु हंसीपात्र बने रहना यह बुटी हात है.*
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देवता और नारकी जीव मरणोपरांत-मनुष्य और तिर्यंच गतियों में से ही किसी गति में जन्म ले सकते हैं। तिर्यंच जीव मरणोपरांत चारों गतियों में से किसी गति मे जन्म ले सकते हैं; जबकि मात्र मनुष्य ही पांच- चार गतियों के सिवाय पांचवी-मोक्ष गति में जा सकते हैं। मानव-भव उत्तम है।
चित्र विचित्र देवसंसार ज्यों पाप-कर्मों का दारुण फल भोगने का स्थान है नरक, त्यों ही पुण्यकर्मों के मधुर फल भोगने का स्थान है देवलोक। नरकभूमि में जीव ज्यों नानारूपों से दुःख ही दुःख भोगते हैं; त्यों ही देवलोक में जीव सुख ही सुख भोगते हैं।
नरक-भूमि एवं देवलोक में जन्म लेने वाले जीवों का जन्म उपपात जन्म कहलाता है।
उपपात जन्म- उपपात नामक शय्या पर अथवा कुंभी में पहुँचते ही जीव मात्र अंतर्मुहूर्त प्रमाण काल में ही स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण कर और युवावस्था को प्राप्त कर जो नए जीवन का प्रारंभ करता है; वह उपपात जन्म कहलाता है। देव का जन्म उपपात-शय्या पर एवं नारकी का जन्म कुंभी में होता है।
परमात्मा ने देवों को चार वर्गों में बाँटा है(१) भवनवासी (२) वाणव्यंतर (३) ज्योतिषी (४) वैमानिक।
भवनवासी देवताओं के भेद हैं २५। असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत् कुमारादि दस जातियाँ भवनवासी देवों की और असुरकुमारजातीय अंब, अंबरीष, श्याम, शबलादि १५ परमाधार्मिक देवों की जातियाँ हैं। इन २५ प्रकार के देवों के दो-दो भेद हैं - (१) पर्याप्ता, (२) अपर्याप्ता। भवनवासी देवों का सामान्य परिचय
भवनवासी देवता भवनों एवं आवासों में रहते हैं। असुरकुमार नामक भवनवासी देवता ही भवनों में; शेष नागकुमारादि भवनवासी देवता आवासों में रहते हैं। भवनों एवं आवासों के आकार में अंतर पाया जाता है; जो बाहर से गोल, अंदर से चतुष्कोण और नीचे से कमल की कर्णिका के आकार वाले हों वे भवन कहलाते हैं। तथा देह-प्रमाण बड़े, मणि एवं रत्नों के दीपकों से चारों दिशाओं को प्रकाशित करने वाले मंडप आवस कहलाते हैं। भवनों के चहुं ओर
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प्राण देने में जो या नहीं मिलता वह प्रेम देने मे मिल जाता है.
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गहरी और विस्तीर्ण खाइयाँ और परिखाएँ होती हैं। परमाधार्मिक देवों का सामान्य परिचय
जो पूर्वजीवन में अज्ञान एवं संक्लिष्टपरिणाम पूर्वक क्रूरक्रियाएँ करते हुए पंचाग्नि तप, कायक्लेशादि तप सहन करते रहते हैं; ऐसे जीव अधिकतर मरणोपरांत भवनवासी असुरकुमार जाति में परमाधार्मिक देवों के रूप में जन्म लेते हैं। पापाचारी और क्रूर अध्यवसायी ये असुरजातीय परमाधार्मिक देवता तीसरी नरक तक नारकियों को नाना प्रकार के दुःख कष्ट देते हैं। जैसे यहाँ क्रूर, हिंसक मनुष्य भैंसे, साँढ, मुर्गे आदि को कष्ट पाते देखकर प्रसन्न होते हैं, तालियाँ बजाते हैं, वैसे ही परमाधार्मिक देवता नारकियों को दुःखी देख-देखकर बहुत प्रसन्न होते हैं, तालियाँ बजाते हैं, हर्ष अभिव्यक्त करते हैं। वाणव्यंतर देवों का सामान्य परिचय
वाणव्यंतर देवता वनों, पर्वतों, गुफाओं, विविध प्रकार के भवनों, नगरों एवं आवासों में रहते हैं। तिर्यक्मध्यलोक में भी व्यंतर देवों के नगर हैं। व्यंतर देवों के आवास तीनों लोकों में हैं। बहुत से व्यंतर देवता चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेवादि के सेवक बनकर सेवा करते रहते है। ये वाणव्यंतर देवता पिशाच, भूत, यक्ष, किन्नर, किंपुरुषादि के भेद से आठ प्रकार के होते है। ये देवता मनुष्य क्षेत्रों में इधर उधर घूमते रहते हैं। टूटे, फूटे घरों, जंगलों, वृक्षों एवं शून्य स्थानों में रहते हैं। गंधर्वदेवों के भेद
जो वाणव्यंतर देवता तरह-तरह की राग-रागिणियों के जानकार होते हैं; लगभग गीत-गान में ही मस्त रहते हैं वे गंधर्व देव कहलाते हैं। इनका चित्त बहुत ही चंचल होता है। ये विनोदी प्रकृति के होते हैं। इन्हें हंसी, खेल आदि में विशेष रुचि रहती है। सुंदर-सुंदर आभूषण एवं विशेषतः पुष्पों के आभूषणों को पहन कर वनविहारादि करना; हंसी-मजाक करना; इन्हें अधिक रुचता है। ये अपनी इच्छुसार कामभोगों का सेवन करते हैं। गंधर्व देवों के आणपण्णे, पाणपण्णे, इसिवाई, भूयवाई आदि आठ भेद हैं। तिर्यग्नुंभक देवों का संक्षिप्त स्वरूप
तिर्यग्-मध्यलोक में रहने वाले जृम्भक-स्वेच्छानुसार प्रवृत्ति करने वाले और * मृत्यु यानि प्रभु को जीवन का हिसाब देने का पवित्र दिन।
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निरंतर क्रीड़ा में रत रहने वाले देव तिर्यग्नुंभक देव कहलाते हैं। ये अतिप्रसन्नचित्त रहते हैं। ये अधिकतर मैथुनसेवन में रत रहते हैं। जिन व्यक्तियों पर ये प्रसन्न होते हैं उन्हें तो ये सभी रीति से सुखी, संपन्न बना देते हैं और जिन व्यक्तियों पर ये रुष्ट, कुपित होते हैं तो उन्हें ये कई प्रकार से हानि पहुँचाते रहते हैं। विशेषतः ये अपने नाम के अनुरूप ही प्रमुखरूप से कार्य करते हैं। ये दस प्रकार के होते हैं।
(१) अन्नमुंभक- अपनी शक्ति से भोजन के परिमाण को घटा एवं बढ़ा सकने; सरस या नीरसादि बना सकने वाले देव।
(२) पानāभक- अपनी शक्ति से पेय पदार्थों के परिमाण को घटा एवं बढ़ा सकने; सरस या नीरसादि बना सकने वाले देव ।
(३) वस्त्रजुंभक-अपनी शक्ति से वस्त्रों के परिमाण को घटा एवं बढा सकने वाले देव।
(४) लयनजुंभक- गृहादि की रक्षा करने वाले देव । (५) शयनजुंभक- शय्यादि की रक्षा करने वाले देव । (६) पुष्पज़ुभक– पुष्पों की रक्षा करने वाले देव । (७) फलज़ुभक- फलों की रक्षा करने वाले देव।
(८) पुष्प-फलज़ुभक-पुष्पों एवं फलों की रक्षा करने वाले देव। किसी-किसी आगम में पुष्प-फलजुंभक नाम के बदले मंत्रमुंभक (मंत्रों की रक्षा करने वाले देव) नाम प्राप्त होता है।
(९) अव्यक्तनँभक- सामान्यतः सब पदार्थों की रक्षा करने वाले देव। किसीकिसी आगम में अव्यक्तभक नाम के बदले अधिपतिजूंभक नाम प्राप्त होता है। ज्योतिषी देवों का संक्षिप्त स्वरूप___ चंद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे, इन पांच प्रकार के देवों को ज्योतिषी देव कहा जाता है। इनका निवास मध्यलोक में हैं। मध्यलोक में मेरूपर्वत के समभूभाग से ७९० योजन से लेकर ९०० योजन तक यानि कुल ११० योजन प्रमाण ऊर्ध्व क्षेत्र में लाखों स्फटिकरत्नमय, आधे कबीट्ठ फल के आकार वाले विमानवास
* प्रभु की हर बात जो प्रेम से स्वीकारता है वह स्वयं प्रभुमय बन जाता है.
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वैमानिक देवों का संक्षिप्त स्वरूप
आचार की अपेक्षा से परमात्मा ने वैमानिक देवों को दो वर्गों में बाँटा हैं(१) कल्पोपपन्न (२) कल्पातीत।
जिन देवों में इंद्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश आदि विशेष और सामान्य रूप में व्यवस्था रूप आचार हैं; जिन देवों में छोटे बड़े का भाव है, वे कल्पोपपन्न देव कहलाते हैं; और जिन देवों में इंद्र, सामानिकादि देवों जैसी कोई विशेष और कोई सामान्य जैसी व्यवस्था ही नहीं; सभी देवता स्वयं को अहमिंद्र (मैं ही इंद्र हूँ) ही मानते हैं; वे कल्पातीत देव कहलाते हैं।
बारह देवलोकों में कल्प संबंधी व्यवस्था है; जबकि नव ग्रैवेयक और पाँच अनुत्तर देवों में कल्प संबंधी कोई व्यवस्था ही नहीं; वहाँ व्यवस्था की कोई आवश्यकता भी नहीं है। बारह देवलोकों के नाम
(१) सौधर्म देवलोक (२) ईशान देवलोक (३) सनत्कुमार देवलोक (४) माहेन्द्र देवलोक (५) ब्रह्म देवलोक (६) लातंक देवलोक (७) महाशुक्र देवलोक (८) सहस्रार देवलोक (९) आनत देवलोक (१०) प्राणत देवलोक (११) आरण देवलोक (१२) अच्युत देवलोक।
कल्पातीत देवों के दो भेद हैं - (१) ग्रैवेयक (२) अनुत्तरोपपातिक ग्रैवेयक देवताओं के नव भेद हैं
(१) अधस्तन-अधस्तन (२) अधस्तन-मध्यम (३) अधस्तन-उपरितन (४) मध्यम-अधस्तन (५) मध्यम-मध्यम (६) मध्यम-उपरितन (७) उपरिम-अधस्तन (८) उपरिम-मध्यम (९) उपरितन-उपरितन
अनुत्तरोपपातिक देवों के पाँच भेद है
(१) विजय (२) वैजयंत (३) जयंत (४) अपराजित (५) सर्वार्थसिद्ध । कल्प संबंधी परिचय
(१) इन्द्रः- सामानिक आदि सभी देवों का स्वामी इंद्र कहलाता है। चारों प्रकार के देवों में कुल ६४ इंद्र हैं। बारह देवलोकों में से नवमें और दसवें देवलोक
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जो व्रत, पच्चक्वाण लेता है वह बेवजह के पापों से बच जाता है.
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का इंद्र एक ही होता है; और ग्यारहवें एवं बारहवें देवलोक का भी इंद्र एक ही होता है।
(२) सामानिक:- इंद्रत्व के सिवाय जो आयु आदि विषयों में इंद्र के समान ही हों; वे सामानिक देवता कहलाते हैं। इंद्र के लिए ये माता, पिता, गुरु के समान पूजनीय होते हैं।
(३) त्रायस्त्रिंशः- मंत्री और पुरोहित जैसा कार्य करने वाले देवता। (४) पार्षद्य- इंद्र के मित्र देव।
(५) आत्मरक्षकः- आचार-धर्म के पालनार्थ इंद्र के पीछे खड़े रहने वाले शस्त्रधारी देव।
(६) लोकपालः- सीमा की सुरक्षा करने वाले देव । (७) अनीक:- सोनानायक और सैनिक स्वरूप देव । (८) प्रकीर्णक:- जनता की तरह रहने वाले देव। (९) आभियोगिक:- सेवक के रूप में रहने वाले देव । (१०) अंत्यजः- चांडाल की तरह रहने वाले देव।
देवियों का जन्म दूसरे देवलोक तक ही होता है; अतः दूसरे देवलोक तक के देवी देवता मनुष्यों की तरह ही भोग-विलास में रत रहते हैं। मगर तीसरे
और चौथे; पाँचवे और छठे; सातवें और आठवें; एवं नवमे से बारहवें देवलोक तक के देवों के मन में ज्यों ही विषय-सुख भोगने की इच्छा होती है त्यों ही अपने ज्ञान के माध्यम से उन-उन देवों की इच्छा जानकर; उत्तर-वैक्रिय रूप धारण कर; सभी प्रकार के हाव-भाव में निपुण, उत्तमोत्तम आभूषण वस्त्रादि धारण कर देवियाँ स्वयं उनके समीप पहुँच जाती हैं; और वे देवता उनके साथ क्रमशः स्पर्श, रूप शब्द तथा चिंतन मात्र से तृप्ति का अनुभव करते हैं; वे मनुष्यों की तरह विषय सेवन नहीं करते। कारण स्पष्ट ही है कि ज्यों-ज्यों मन में कामवासना की प्रबलता होती है त्यों-त्यों मन में आवेग बढ़ता है। आवेग जितना अधिक होता है उसे मिटाने के लिए प्रयास भी उतना ही अधिक करना पड़ता है। दूसरे देवलोक के देवों की अपेक्षा तीसरे देवलोक के देवों में और तीसरे की अपेक्षा चौथे देवलोक के देवों में; इस प्रकार उत्तरोत्तर देवलोक के देवों में
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अविरत कुछ भी न करें तो भी पाप बांधता ही रहता है.
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काम-वासना कम होती रहती है। इसीलिए उन्हें काम-वासना से संबंधित सामग्री की आवश्यकता उतनी ही कम पड़ती है। नव ग्रैवेयक और पांच अनुत्तरविमानवासी देवों के मन में तो अत्यंत मंद पुरुषवेद एवं अत्यंत प्रशम-सुख के कारण विषय-वासना संबंधी कोई भाव ही पैदा नहीं हो पाता।
देवी, देवता, भूख, प्यास को अनुव नहीं करते हैं; मगर वे आहारादि ग्रहण करते हैं। देवी, देवता मनुष्य की तरह कवलाहारी नहीं होते; बल्कि आहार की अभिलाषा होते ही उनके देह में शुभकर्मों के प्रभाव के कारण इष्ट, मनोज्ञ, आह्लादक आहार योग्य पुद्गलों का परिणमन स्वतः हो जाता है।
चित्र विचित्र सिद्ध संसार परमात्मा ने एक अपेक्षा से जीवों के दो भेद बताए हैं-(१) सिद्ध (२) संसारी। जो जीव-अकर्मा यानि कर्म रहित है, वे सिद्ध; और जो जीव सकर्मा-कर्मसहित है वे संसारी। सिद्ध और संसारी आत्मा में अंतर
चारों गतियों में पाए जाने वाले एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के सभी जीव संसारी है और ज्ञानावरणीय आदि आठों कर्मों का सर्वथा क्षय कर लोकाग्र में सदा स्थित रहने वाले जीव सिद्ध कहलाते हैं।
संसारी जीव अपने कर्मों के अनुसार संसार यानि चौरासी लाख जीवयोनियों, चारों गतियों में घूमते हैं। सभी संसारी जीवों में कर्मों के कारण ही भिन्नता पाई जाती है; जबकि कर्मों के सर्वथा अभाव के कारण सिद्धात्मा किसी भी योनि और गति में नहीं भटकती अर्थात् जन्म मरण धारण नहीं करती; और सिद्धात्माओं में किसी भी प्रकार की भिन्नता नहीं पाई जाती। ____ संसारी आत्मा को ही कर्मजन्य जन्म, जरा, मरण, सुख, दुःख, शरीर, रोग, शोक, भय, इन्द्रियाँ, वेद, उच्च-नीच, सौभाग्य, दुर्भाग्य, मोह, निद्रा, अंतराय, अज्ञानादि सब स्थितियाँ भोगनी पड़ती हैं, जबकि सिद्धों को कर्मजन्य कुछ भी नहीं भोगना पड़ता।
सभी संसारी आत्माओं में औपाधिक, वैभाविक-पराए गुण या दोष पाए जाते हैं जबकि सिद्धात्माओं में कोई भी औपाधिक, वैभाविक गुण या दोष नहीं पाया
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प्रमाही को दुनिया का मासा धन भी नहीं बचा सकता.
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जाता; सिद्धात्माओं में तो शुद्ध चेतना के जो अनंत-ज्ञान, अनंत-दर्शन, अनंतसुखादि स्वगुण हैं, वे ही गुण पाए जाते हैं।
सभी संसारी आत्माएँ देह और आत्मरूप होती हैं जबकि सभी सिद्धात्माएँ मात्र आत्मरूप होती हैं।
संसारी आत्माएँ अशुद्ध, अबुद्ध और बद्ध होती हैं, जबकि सभी सिद्धात्माएँ पूर्णतः शुद्ध, बुद्ध और मुक्त होती हैं।
नामकर्म के उदय के परिणाम स्वरूप सभी संसारी आत्माएँ सशरीरी होती हैं जबकि नामकर्म के क्षय परिणाम स्वरूप सिद्धात्माएँ अशरीरी होती हैं।
सिद्धात्माएँ अमूर्त होने के कारण सिद्धालय में एक दूसरे में ज्योति में ज्योति की तरह रहती है; मगर हर एक आत्मा का अस्तित्व तो स्वतंत्र ही रहता है। सिद्ध होने के पूर्व की अवस्था की अपेक्षा से सिद्धों के १५ भेद
(१) तीर्थ-सिद्ध- तीर्थंकर भगवंत के द्वारा संस्थापित चतुर्विध संघ और प्रथम गणधर भगवंत तीर्थ कहलाते हैं। इस प्रकार के तीर्थ की मौजूदगी में जो आत्माएँ सिद्ध होती हैं; वे तीर्थ सिद्ध कहलाती हैं।
(२) अतीर्थ सिद्ध- उपरोक्त तीर्थ की उत्पत्ति से पूर्व अथवा तीर्थ का विच्छेदन होने पर जो आत्में सिद्ध बनती हैं, वे अतीर्थ-सिद्ध कहलाती हैं। जैसेमरुदेवी माता तीर्थ की उत्पत्ति से पूर्व ही मोक्ष गई थी। भगवान् श्री सुविधिनाथ स्वामी जी से लेकर भगवान् श्री शांतिनाथ स्वामी जी तक आठ तीर्थंकर भगवंतों के अंतर-काल में सात वार तीर्थ को विच्छेद हुआ था; उस विच्दे काल में जो आत्माएँ सिद्ध बनीं, वे अतीर्थ-सिद्ध कहलाती हैं।
(३) तीर्थंकर-सिद्ध- जो आत्माएं तीर्थंकर पद भोग कर सिद्ध बनीं, वें तीर्थंकर सिद्ध कहलाती हैं।
(४) अतीर्थंकर सिद्ध- तीर्थंकर बने बिना यानि सामान्य केवली बनकर मोक्ष जाने वाली आत्माएँ अतीर्थंकर-सिद्ध कहलाती हैं।
(५) स्वयंबुद्धसिद्ध- जो स्वयं-किसी भी दूसरे के उपदेश और किसी बाह्य निमित्त के बिना तत्त्व को जानते हैं; संयम स्वीकारते हैं; और सकल कर्मों का क्षय करके सिद्धत्व को पाते हैं वे स्वयंबुद्ध-सिद्ध कहलाते हैं।
प्रार्थना यह प्रभु भक्ति का प्रथम चरण है.
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(६) प्रत्येकबुद्धसिद्ध- जो दूसरे के उपदेश के बिना मगर किसी बाह्यसंध्या के रंग, वृद्धत्व आदि निमित्त को पाकर विरत बनते हैं, स्वयं दीक्षा धारण करते हैं या देवता उनको वेश-भूषा देते हैं; और सकल कर्मों का क्षय करके जो सिद्धत्व को प्राप्त करते हैं, वे प्रत्येकबुद्ध-सिद्ध कहलाते हैं।
(७) बुद्धबोधित सिद्ध- जो बुद्ध यानि गुरू, आचार्य आदि के उपदेश से बोध प्राप्त कर चारित्र ग्रहण करते हैं, संयम का पालन करते हुए आठों कर्मो का क्षय करते हैं और सिद्धत्व को प्राप्त करते हैं, वे बुद्धबोधित-सिद्ध कहलाते हैं।
(८) स्त्रीलिंग-सिद्ध- स्त्रीलिंग से कर्मों को क्षय करके जो सिद्धत्व को प्राप्त करते हैं, वे स्त्रीलिंग सिद्ध कहलाते हैं।
यहाँ स्त्रीलिंग शब्द स्त्रीत्व का सूचक है। स्त्रीत्व तीन स्वरूपों में पाया जाता है। (१) वेद (२) शरीर की आकृति (३) वेष।
यहाँ स्त्रीलिंग शब्द में शरीर की आकृति रूप स्त्रीत्व ही मान्य है।
(९) पुरुषलिंग सिद्ध- जो पुरुष शरीर की आकृति में रहते हुए कर्मों का क्षय करते हैं और सिद्धत्व को प्राप्त करते है वे पुरुषलिंग-सिद्ध कहलाते हैं।
(१०) नपुंसकलिंग सिद्ध– नपुंसक शरीर की आकृति में रहते हुए आठों कर्मों का क्षय करने वाले नपुंसकलिंग-सिद्ध कहलाते हैं।
(११) स्वलिंग सिद्ध- जो जिनशासनमान्य रजोहरण, मुखवस्त्रिका आदि लिंग यानि वेशभूषा को धारण कर कर्मों का पूर्णतः क्षय करते हैं और सिद्धत्व को प्राप्त करते हैं वे स्वलिंग सिद्ध कहलाते हैं।
(१२) अन्यलिंग सिद्ध- जो भिन्न-भिन्न परिव्रजाक, तापस, सन्यासी आदि के रूप में रहते हुए कर्मों का सर्वथा क्षय करते हैं और सिद्धत्व को प्राप्त करते हैं, वे अन्यलिंग सिद्ध कहलाते हैं।
(१३) गृहीलिंग सिद्ध- जो गृहस्थ की वेशभूषा में रहते हुए कर्मों का सर्वथा क्षय करते हैं और सिद्धत्व को प्राप्त करते हैं, वे गृहीलिंग सिद्ध कहलाते हैं।
(१४) एक सिद्ध- एक समय में एक ही जीव आठों कर्मों का क्षय करके सिद्धत्व को प्राप्त करता है, वह एकसिद्ध कहलाता है।
(१५) अनेकसिद्ध- एक समय में एक से अधिक सिद्धत्व को पाने वाली आत्माएं अनेक सिद्ध कहलाती हैं। * काले कालं ममाचरेत्! ममय पेममय का काम कर लेना चाहिए.
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सिद्धात्मा के आठ गुण
प्रश्न:- मन में एक प्रश्न बार-बार पैदा होता है कि आत्मा और कर्मों का संयोग कब से ?
उत्तर:- इन दोनों का संबंध अनादि काल से हैं। ज्यों सुवर्ण की खान में मिट्टी और सुवर्ण का संबंध अनादि काल से है, त्यों ही आत्मा और कर्मों का संबंध अनादिकाल से है। हाँ, मिट्टी और सुवर्ण का संबंध अनादिकालीन होने पर भी ज्यों जानकार व्यक्ति कुछ प्रक्रियाओं से दोनों को जुदा जुदा कर देता है वैसे ही सुज्ञ व्यक्ति ज्ञान-पूर्वक क्रिया, ध्यान, व्रत, संयमादि शुद्धिप्रधान प्रक्रियाओं से आत्मा
और कर्मों को जुदा जुदा कर लेता है। आत्म-प्रदेशों से कर्मों के जुदा होते ही सभी विभाव दूर हो जाते हैं; आत्मा स्वभाव में स्थिर हो जाती है। कर्म आत्मा के मूलगुणों को आवृत्त करते हैं; संवर, निर्जरा और क्षय प्रधानक्रियाएँ उन आवरणों को दूर करती हैं, कर्म दूर होते ही आवृत्त गुण स्वतः प्रकट हो जाते हैं। कर्म और गुण ____ कर्म के मूल-ज्ञानावरणीयादि भेद आठ है; और आत्मा के मुख्यतः गुण भी आठ हैं।
(१) ज्ञानावरणीय कर्म- ज्ञान आत्मा का मुख्य गुण है। इस ज्ञान गुण को आवृत्त करने वाला कर्म ज्ञानावरणीय कर्म कहलाता है। ज्ञान अर्थात् विशेष अवबोध । ज्ञानावरणीय कर्म के प्रभाव से आत्मा को पदार्थ बोध में रुकावट पड़ती है, ज्यों ही ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है त्यों ही आत्मा केवलज्ञान को प्राप्त करती है। केवलज्ञान के प्रकट होते ही आत्मा के लिए लोक एवं अलोक में कुछ भी अज्ञात एवं अज्ञेय नहीं रहता।
(२) दर्शनावरणीय कर्म- आत्मा का एक गुण है दर्शन। दर्शन रूप गुण को आवृत्त करने वाला कर्म दर्शनावरणीय कर्म कहलाता है। दर्शन अर्थात् सामान्य अवबोध । दर्शनावरणीय कर्म के प्रभाव से आत्मा की दर्शन शक्ति पूर्णरूपेण प्रकट नहीं हो पाती; ज्यों ही दर्शनावरणीय कर्म का क्षय होता है त्यों ही आत्मा केवलदर्शन को प्राप्त करती है। केवलदर्शन के प्रकट होते ही आत्मा के लिए लोक एवं अलोक में कुछ भी अदृश्य नहीं रहता।
(३) वेदनीय कर्म- आत्मा का गुण है अव्याबाध-बिना बाधा के शाश्वत, सुख * निष्फलता का अनुभव मफलता की कीमत भी समझा सकता है.
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का सदा अनुभव वेदनीय कर्म के कारण जीव अनुकूल एवं प्रतिकूल विषयों के कारण भौतिक, काल्पनिक और अस्थायी सुख दुःख का ही वेदन- करता रहता है; जबकि वेदनीय कर्म के क्षय होने पर जीव अव्याबाध सुख का सदा अनुभव करता रहता है।
(४) मोहनीय कर्म - आत्मा का गुण है क्षायिक सम्यक्त्व । क्षायिक सम्यक्त्व अर्थात् अन॑तानुबंधी चारों कषायों एवं दर्शनमोहनीय कर्म की तीनों प्रकृतियों के क्षय से होने वाला तत्त्वरूचि रूप परिणाम क्षायिक सम्यक्त्व कहलाता है। यह समकीत जीव को एक ही बार प्राप्त होता है और सदा बना रहता है। अर्थात् प्राप्त हो जाने के बाद कभी जाता नहीं है। मोहनीय कर्म समकित गुण का घात करता है। मोहनीय कर्म के क्षय होने पर आत्मा में पूर्ण सम्यक्त्व क्षायिक सम्यक्त्व गुण प्रकट रहता है।
(५) आयुष्य कर्म- आत्मा का गुण है अक्षय स्थिति, सदा एक ही स्वरूप में स्थित रहना; जबकि आयुष्य-कर्म के उदय का परिणाम है नियत काल तक एक गति में रहकर पुनः दूसरी गति में नियत, अमुक समय तक रहना; इस रीति से जन्म मरण और जीवन के चक्कर में जीव घूमता रहता है। आयुष्य कर्म के क्षय होने पर जीव पुनः पुनः कभी भी जन्म, मरण धारण नहीं कर पाता और लोक के अग्रभाग पर सदा के लिए स्थिर रहता है। अक्षय स्थिति के साथ ही उनकी अवगाहना भी अटल रहती है; अतः अटल अवगाहना भी सिद्धात्मा का गुण है।
(६) नामकर्म- आत्मा का गुण हे अरूपीत्व नामकर्म के उदयानुसार जीव को अच्छे बुरे, छोटे बड़े, सुरूप, कुरूप सूक्ष्म बादरादि शरीर की प्राप्ति होती है। कार्मणादि शरीर के मिश्रण से जीव रूपी बन जाता है। नाम कर्म के क्षय से आत्मा अशरीरी बन जाती है: अशरीरी होते ही आत्मा अरूपी बन जाती है। रूप का संबंध शरीर से है।
(७) गोत्र कर्म- आत्मा का गुण है अगुरुलघुत्व यानि न हल्का और न भारी; अशरीरी होने के कारण आत्मा न हल्की और न भारी रहती है। गुरु न होने के कारण आत्मा नीचे नहीं जा सकती और हल्की भी न होने के कारण आत्मा ऊर्ध्वगमन भी नहीं कर सकती। गोत्र कर्म के क्षय के कारण आत्मा में अगुरुलघुत्व गुण प्रकट हो जाता है। अब आत्मा अन्य हल्की या भारी वस्तुओं के व्यवधान दान से धन का क्या होता है। वह बढ़ता है.
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से पूर्णतः मुक्त हो जाती है, सामान्यतः भारी वस्तु के कारण हल्की वस्तु को दब या हट जाना पड़ता है।
(८) अंतराय कर्म- आत्मा अनंत शक्तिमय है, अंतराय कर्म आत्मा की शक्तियों को बाधित करता है। अंतराय कर्म के क्षय होते ही आत्मा स्वतः अपनी शक्तियों को पूर्णरूपेण प्राप्त कर लेती है। सिद्धपद को पाने के उपयोगी सूत्र
एक्को गुणो महंतो, मणुयभवे जो न होइ अन्नत्तो। जं जाइ इओ मोक्खं, जीवो कम्मक्खयं काउं।।
जीव 'मनुजभव में ही कर्मों का क्षय करके मोक्ष में जा सकता है, अन्य भवों में नहीं। मात्र इसी एक विशेषता के कारण मनुजभव अन्य भवों की अपेक्षा श्रेष्ठ है।
जह लंघणेहि खिज्जंति, रसविकारुब्भवा गरयरोगा। तह तिव्वतवेण धुवं, कम्माई सुचिक्कणाई पि।। सुदंसणाचरियं ।।
जिस प्रकार देह में रसविकार के कारण उत्पन्न हुए भयंकर रोग लंघणभोजन न करने से नष्ट हो जाते हैं; उसी प्रकार निश्चित ही तीव्र 'तप' के आसेवन से चिकने-कठोरतम कर्म भी नष्ट हो जाते हैं। कोहं च माणं च तहेव मायं, लोभं चउत्थ अज्झत्थदोसा।।
सूत्रकृतांग १/६/२६ ।। क्रोध, मान, माया, चौथा लोभ; ये अध्यात्म-अंतरात्मा के दोष है। कसाया अग्गिणो वुत्तो, सुय-सील-तवो जलं।। उत्तराध्ययन २३/५३ ।।
कषायों-क्रोध, मान, माया और लोभ को अग्नि एवं श्रुत, शील और तप को जल कहा गया है।
कसायपच्चक्खाणेणं भंते ! जीव किं जणयइ ? कसायपच्चक्खाणेणं वीयरागभावं जणयइ। वीयरागभावं पडिवन्ने य णं जीवे समसुह-दुक्खे भवइ ।। उत्तराध्ययन २९/२६ ।।
हे भगवंत ! कषायों के त्याग से जीव क्या प्राप्त करता है ?
हे देवानुप्रिय ! कषाय के त्याग से जीव वीतरागता को प्राप्त करता है। * जो धीरज रख सकता है वह मनचाहा कार्य कर सकता है.
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और वीतरागता को प्राप्त व्यक्ति सुख और दुःख को एक समान भाव से स्वीकारने वाला बन जाता है; अर्थात् सुख में हर्षित और दुःख में उद्विग्न नहीं होता।
पू. आचार्य श्री धर्मधुरंधरसूरिजी के लेख का संक्षेप
जीव के भव-भ्रमण का इतिहास यह हुई जीव के विविध स्वरूपों की कुछ झलक. जीव यानि और कोई नहीं हमारा अपना ही जीव. अनुत्तर देवलोक और मोक्ष इन दो अवस्थाओं को छोड़ हमारा जीव सभी रूपों को अनंत-अनंत बार जन्म ले चुका है. हर रूप की शक्य उच्च से नीच तक की प्रायः हर दशा को हम अनंती बार पा चुके है.
हर रूप में कम-ज्यादा प्रमाण में अपने-अपने भरपूर दुःख है, और सुख का थोड़ा सा आभास है. सब से बड़ा दुःख तो यह है कि सुखाभास का इस हद तक का हम पर वर्चस्व है कि हमें उसके साथ में रहे हुए ढेर सारे दुःख, वे दुःख के रूप में लगभग लगते ही नहीं है. और लगते भी है तो अत्यंत आवश्यक के रूप में लगते है. अतः हम उन दुःखों के पक्षधर हो कर उनके रक्षक-पोषक के रूप में हर हालत में खड़े रहते हैं.
जीव को महत्तम व तीव्रतम दुःख होता है निगोद में. आत्मगुणों के महत्तम घात (यही सच में सब से पीड़ादायक दुःख है, और जीव मिथ्यात्व, अविरति व अज्ञान नाम की विपरीतता और संवेदन हीनताओं के चलते इस दुःख का, कोमा में गए हुए व्यक्ति की तरह, अहसास भी नहीं कर सकता) से बिल्कुल जडवत् जीवन है वहाँ. अनंतकाल से जीव वहीं पर एक श्वासोश्वास काल में साढ़े सत्रह भव के हिसाब से जन्म-मरण पाता रहा. कोई चारा नहीं. फिर भवितव्यता बलवान हुई, किसी एक जीव ने संसार का अंत किया और मोक्ष को पाया. बस उसी समय यह एक जीव निगोद के अव्यवहार राशि रूप आनादिअनंत चक्र से बाहर निकला और व्यवहार राशि में आया. अब जीव के लिए अन्य एकेन्द्रीय से पंचेंद्रिय तक के रस्ते खुले और निगोद रूप एक धुरी के भ्रमण को छोड़; देव, मनुष्य, तिर्यंच व नरक गति की ८४ लाख प्रकार की जीवों के उत्पन्न होने की योनियों की धुरीयों के बने विराट चक्र का अनंतकालीन भ्रमण प्रारंभ हुआ. * पुस्तकों बिना का जीवन यानि खिड़की बिना का घर.
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उसमें भी निगोद से बाहर निकल कर प्रत्येक वनस्पति से लगाकर तिर्यंच, नरक, देव और मनुष्य गतियों में असंख्य काल तक घूम कर जीव पुनः अनंतकाल के लिए निगोद में चला गया. पुनः भवितव्यता के धक्के से बाहर आया, महत्तम असंख्यकाल तक घूमा और पुनः निगोद में चला गया. यही चक्र अलग-अलग तरीकों से अनंत बार चला और उसी के भाग के रूप में हमारे लिए यह आज भी चल रहा है.
सर्वप्रथम तो अनंत भवों तक जीव को मनुष्य भव ही नहीं मिल पाया. अनंतकाल में एकाध बार मिल भी गया तो आर्यकुल न मिला. आर्यकुल मिला तो जैन धर्म नहीं मिला. ऐसा जन्म भी मिल गया तो जीव के सभी सुखों को दिलाने वाली धर्मगुरू की वाणी का श्रवण नहीं मिला.
वो भी बड़ी दुर्लभता से मिला, तो धर्म की वे हितकारी बातें ही गले नहीं उतरी. और यदि समझ में भी आई तो श्रद्धा नहीं बैठी. श्रद्धा हुई तो उस धर्म का आचरण न हो पाया. और आचरण हुआ भी तो अतिचार भरपूर लगे - निरतिचार न हो पाया.
बीच-बीच में पृथ्वीकाय आदि एकिन्द्रिय की धुरीयों पर असंख्य जन्म जीव बिताता रहा. इसी तरह बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय व चउरिन्द्रिय अपंग व मन-शून्य जन्मों की धुरीयों पर असंख्य काल तक झोले खाता रहा. जीव के हाथ में कुछ भी नहीं था. ठेठ पंचेंद्रियपने में भी जब जीव ने मन सहित का जन्म पाया तब कहीं जा कर उस के लिए धर्म के दरवाजे खुले भी, तो मिथ्यात्व के अंधकार में वे दरवाजे जीव को दिखे ही नहीं.
हमारा यह परम सौभाग्य है कि हम आज तुलनात्मक रूप से बहोत ही अच्छी परिस्थिति में हैं कि हम मनुष्य है, आर्य हैं, जैन है, धर्मश्रवण भी मिलता है, श्रद्धा भी है, और शायद जीवन में यथाशक्य पालना भी है. तो चूकें नहीं और धर्म के माध्यम से जीवन को सफल कर लें.
ध्यान रखें, कि एक बार चूक कर अनंत अंधकार भरे एकेन्द्रिय आदि गति के कूए में कही फिसल नहीं जाओ. वहाँ से बाहर आ पाना जीव के हाथ की बात नहीं हैं.
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मानव के दो महाशत्रु: आलम व अजान /
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पच्चक्खाण प्रभात के पच्चक्खाण
१. नवकारसी उग्गए सूरे नमुक्कार-सहिअं, मुट्ठि-सहि पच्चक्खाइ चउविहंपि आहारंअसणं, पाणं, खाइम, साइमं अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, महत्तरागारेणं, सव-समाहि-वत्तिया-गारेणं वोसिरइ.
२. पोरिसी / साड्ढ-पोरिसी / पुरिमड्ढ | अवड्ढ उग्गए सूरे पोरिसिं | साड्ढ-पोरिसिं / सूरे उग्गए पुरिमड्ढ | अवड्ढ मुट्ठि-सहिअं पच्चक्खाइ, उग्गए सूरे चउविहंपि आहारं- असणं, पाणं, खाइम, साइमं अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, पच्छन्न-कालेणं, दिसामोहेणं, साहु-वयणेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं वोसिरइ.
३. आयंबिल / नीवी / एकासणा / बियासणा उग्गए सूरे नमुक्कार-सहिअं / पोरिसिं | साड्ढ-पोरिसिं । सूरे उग्गए पुरिमड्ढ / अवड्ढ मुट्ठि-सहिअं पच्चक्खाइ उग्गए सूरे चउविहंपि आहारं- असणं, पाणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा गारेणं, पच्छन्न-कालेणं, दिसा-मोहेणं, साहु-वयणेणं, महत्तरा-गारेणं, सव-समाहिवत्तिया-गारेणं, आयंबिलं / निवि विगईओ पच्चक्खाइ अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, लेवा-लेवेणं, गिहत्थ-संसठेणं, उक्खित्त-विवेगेणं, पारिट्ठावणिया-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं, एगासणं बियासणं पच्चक्खाइ तिविहंपि आहारं- असणं, खाइम, साइमं अन्नत्थणाभोगेणं, सहसा-गारेणं, सागरिया-गारेणं, आउंटण-पसारेणं, गुरु-अब्भुट्ठाणेणं, पारिटठावणिया-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव-समाहि-वत्तिया-गारेणं, पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहलेण वा, ससित्थेण वा, असित्थेण वा वोसिरइ. * भूतकाल के भार के साथ भविष्य की गति मुख्यद नहीं होती.
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४. तिविहार उपवास / पाणहार सूरे उग्गए अब्भत्तठं पच्चक्खाइ तिविहंपि आहारं-- असणं, खाइम, साइमं अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, पारिट्ठावणिया-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं, पाणहार पोरिसिं / साड्ढ-पोरिसिं सूरे उग्गए पुरिमड्ढ / अवड्ढ मुट्ठि-सहि पच्चक्खाइ, अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्न-कालेणं, दिसा-मोहेणं, साहु-वयणेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्वसमाहि-वत्तिया-गारेणं, पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहलेण वा, ससित्थेण वा, असित्थेण वा वोसिरइ.
५. चउविहार उपवास सूरे उग्गए अब्भत्तठं पच्चक्खाइ चउब्विहंपि आहारं-- असणं, पाणं, खाइम, साइमं, अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, पारिट्ठावणिया-गारेणं, महत्तरागारेणं, सव-समाहि-वत्तिया-गारेणं वोसिरइ.
शाम के पच्चक्खाण
१. पाणहार पाणहार दिवस-चरिमं पच्चक्खाइ अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, महत्तरागारेणं, सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं वोसिरइ.
२. चउविहार उपवास सूरे उग्गए अब्भत्तढं पच्चक्खाइ चउविहंपि आहारं-- असणं, पाणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव-समाहि-वत्तियागारेणं वोसिरइ.
३. चउबिहार दिवस-चरिमं पच्चक्खाइ चउविहंपि आहारं-- असणं, पाणं, खाइम, साइमं अन्नत्थणा- भोगेणं, सहसा-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव-समाहि-वत्तियागारेणं वोसिरइ.
बहोत मे अच्छे कार्य पहले भसंभव लगते है.
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४.तिविहार दिवस-चरिमं पच्चक्खाइ तिविहंपि आहारं- असणं, खाइम, साइमं अन्नत्थणाभोगेणं, सहसा-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं वोसिरइ.
५. दुविहार दिवस-चरिमं पच्चक्खाइ दुविहंपि आहारं-असणं, खाइमं अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव-समाहि-वत्तिया-गारेणं वोसिरइ.
६. देसावगासिक देसावगासिक देसावगासि उवभोगं परिभोगं पच्चक्खाइ अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव-समाहि-वत्तिया-गारेणं वोसिरइ.
690690699 पच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ? पच्चखाणेणं आसवदारं निरूंभई भगवन्! पच्चक्खाण से जीव को क्या प्राप्त होता है?
गौतम! पच्चक्खाण से जीव (दुःख के कारणरूप ऐसे कर्मों के आगमनरूप) आश्रव के द्वारों को अवरूद्ध कर देता है.
तवेण भंते! किं जणयइ? तवेणं वोदाणं जणयइ भगवन्! तप से जीव क्या प्राप्त करता है?
गौतम! तप से जीव (पूर्व के उपार्जित कर्मों का नाश कर के) व्यवदान (आत्मविशुद्धि केवली अवस्था) को प्राप्त करता है.
वोदाणेणं भंते! किं जणयइ?
वोदाणेणं अकिरियं जणयइ. अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिनिव्वाएइ, सव्वदुक्खाणमंतं करेइ.
भगवन्! व्यवदान से जीव क्या प्राप्त करता है?
गौतम! व्यवदान से जीव (मन-वचन-काया के योगों की) अक्रियता को प्राप्त करता है. अक्रियता वाला हो जाने के बाद वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है और सर्व दःखों का अंत कर देता है..
को फेक्टरी कभी बंद न कहो। मन की आईस फेक्टरी और जबान की मुगट फेक्टसी.X
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२
१.
प्रतिज्ञा
२२ अभक्ष्य व अनन्तकाय में से निम्नोक्त या सभी का त्याग करता हूँ।
फल साग सब्जी वनस्पि.... से ज्यादा नहीं खाऊँगा ।
सातवाँ भोगोपभोग परिमाण व्रत
२.
३. चौदह नियम धारूँगा ।
४.
८०
जयणा-दवाइ व बीमारी में जयणा रखता हूँ।
पन्द्रह कर्मादान में से का त्याग ।
********
२२ अभक्ष्य कौन से होते है
२२ अभक्ष्यों के नाम निम्नोक्त है। जो त्याग करने हो उन की धारणा कर दीजिये।
(१) मांस (२) शराब (३) मक्खन (छाश के बहार का) (४) बरफ (६) ओला (७) कच्ची मिट्टी (८) रात्रि भोजन महीने में... दिन (९) बहु बीज वाले अंजीर, खस खस (१०) मुरब्बा व छंदा के सिवाय आचार-अथाणे (११) कच्चे दही के साथ कठोर धान्य चने आदि (१२) तुच्छ फल बोर, पिलु, निंबोडी, सीताफल (१३) चलित रस- जिसका स्वाद वगैरह सड़ने आदि के कारण बदल गया हो अथवा चौमासे में १५ दिन, उनाले में २० दिन व सियाले में ३० दिन से ज्यादा दिन का मिष्टान्न आदि (१४) विष-सोमल, अफीम आदि (१५) बासी ऐसे रोटी, पुडी, सीरा, लापसी, मालपुआ (१६) बेंगन (१७) अज्ञातफल (१८) पीपल व पिपली के फल (१९) बड़ के फल (२०) गुलर के फल (२१) उदुंबर के फल (२२) अनन्तकाय ।
निम्नोक्त अनन्तकाय में से जिनकी धारणा की है उनको त्याग दिया है। आलू, प्याज, लहसून, सकरकंद, गाजर, गिलोह, कोमल पत्ते, कोमल इमली, हरी हल्दी, अदरख, थोर, कुंवारपाटा, भूमि स्फोटक, सुरण, मूले शतावरी आदि ।
कर्मादान
जो त्याग करने हो उनकी धारणा कर दिजीए ।
(१) अंगार कर्म- कुम्हार व भडभुजे का व्यापार, ईंटें, चुना, कोयला आदि (२) वनकर्म- हरे पत्ते, शाक, फूल, लकड़ें, फल आदि वनस्पति (३) शकट कर्म- बैल
ज्यादा देने से बड़ी उदारता है : समय पर देना.
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गाड़ी, हल आदि तैयार करवाना (४) भाटक कर्म- बैलगाड़ी वगैरह किराये से घूमाना (५) स्फोटक कर्म- कुए, तालाब, सुरंग वाव आदि (६) दंतवाणिज्य- हाथी के दांत आदि (७) लक्खवाणिज्य- लाख, गोंद आदि (८) रसवाणिज्य- घी, गुड़ आदि (९) विष वाणिज्य- अफीम, सोमल आदि (१०) केश वाणिज्य- ऊन, पंख, बाल आदि (११) वस्त्र पीलन कर्म- मील, जीन, चक्की, घाणी आदि (१२) निलांछन कर्म- नपुंसक बनाना, नाक, कान आदि अंग छेदने (१३) दवदान कर्म- वन आदि में आग लगाना (१४) जल शोषण कार्य- तालाब, सरोवर आदि सुकाना (१५) असति पोषण- कुत्ते, बिल्ली, तोता आदि व असती का पोषण करना। चौदह नियम
सचित्त दव्व विगइ वाणह, तंबोल वत्थ कुसुमेसु।
वाहण सयण विलेवण, बंभ, दिसि न्हाण भत्तेसु।। १ ।। चौदह नियम रोज धार लेने चाहिये किन्तु रोज न धार सकें, तो जीवनभर के लिये निम्नोक्त नियम धार सकते हैं। उसके बाद अपनी अनुकूलता से उनमें से प्रतिदिन या समय-समय पर कम भी कर सकते हैं। १. सचित्त- बोने से उगे, वह अनाज, फल, कच्चा पानी, नमक, हरी वनस्पति, पान,
दातुन । १५ या... से ज्यादा नहीं। २. द्रव्य- सारे दिन में अलग-अलग स्वादवाली चीजें मुंह में डाली जाए, वे सब ।
जैसे सचित्त व विगई के सिवाय की रोटी, शाक, दूध, घी, तेल, गुड़, सोपारी
चूर्ण आदि। ४० या... से ज्यादा नहीं। ३. विगई- दूध, दही, घी, तेल, गुड़ व कडाह (घी-तेल में तली हुई भजीया आदि
वस्तु या घी में सेक कर बनाये गये सिरा लापसी आदि)। कच्ची या पक्की एक विगई का... त्याग। उपनाह- जुतें, बूट, चप्पल सेंडल, स्लीपर, मोजा आदि। ५ या.... से ज्यादा का
त्याग, खरीदते वक्त जयणा। ५. तंबोल- पान, सोपारी, इलायची, लवींग इत्यादि-मुखवास ग्राम १०० या... से
ज्यादा नहीं। ६. वस्त्र- पहनने व ओढ़ने के कपड़े। वस्त्र ३० या... से ज्यादा नहीं। धर्म कार्य में व खरीदी में जयणा।
चापलूसी मरल है, प्रक्षामा कठिन है.
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७. कुसुम- सुंघने की वस्तु, घी, तेल, सेन्ट, इत्र आदि २० किलो या... से ज्यादा
नहीं। सारा बर्तन न सूंघे। ८. वाहन-रेलगाड़ी, मोटर, घोडागाड़ी, बैलगाड़ी, जहाज, हवाई जहाज आदि १०
या... से ज्यादा नहीं। ९. शयन- पलंग, बिस्तर, दरी आदि की संख्या। ५० या.... से ज्यादा नहीं। १०. विलेपन- शरीर पर लगाने की वस्तुए। जैसे कि तेल, इत्र, साबुन, वेसलीन
आदि का वजन । १ किलो या... से ज्यादा नहीं। ११. ब्रह्मचर्य- (१) दिन में पालना, रात्रि में अपनी धारणा, ५ तिथि, १२ तिथि, महिने
में.... दिन (२) परस्त्री त्याग। १२. दिशा- उत्तर, दक्षिण, पूर्व पश्चिम, उपर नीचे व ४ विदिशा इन दिशा में नियम
करना । १००० या.... किलो मिटर से सभी दिशाओं में ज्यादा नहीं.... १३. स्नान- संपूर्ण शरीर का स्नान पानी से करना । ५ स्नान या.... से ज्यादा नहीं। १४. आहार-पानी- भोजन व पानी का अन्दाज से वजन धारना। १५ किलो या.... से
ज्यादा नहीं। नीचे के नियम भी धारने चाहिये१. पृथ्वीकाय- पृथ्वी रूप सचित्त शरीर या उसके अचित्त शरीर का प्रमाण। जैसे मिट्टी, नमक, चुना, सुरमा, साबुन, पत्थर, पापड़, खार, साजी खार आदि खाने व वापरने का प्रमाण । २० किलो या.... से ज्यादा नहीं। घर काम की जयणा । इसी प्रकार नीचे भी समझें। अप्काय- पानी रूप सचित्त शरीर या उसके निर्जीव शरीर का प्रमाण। पीने व वापरने का पानी (१५ बाल्टी या........ से ज्यादा नहीं तेउकाय- अग्नि रूप सचित्त शरीर वाले या निर्जीव शरीर का प्रमाण। बिजली व गैसे के चूल्हे, दूसरे चूल्हे, भट्टी, स्टोव, इलेक्ट्रीक लटू आदि व पंखे के स्वीच व बेटरी रेडियो आदि का प्रमाम। १० घर के चूल्हें व २० घर के स्वीच आदि। वायुकाय- हाथ पंखे, इलेक्ट्रीक पंखे, एयर कंडीशन, वेक्यूम क्लीनर, कुंकणी, झूले आदि की संख्या। १५ पंखे आदि या... से ज्यादा नहीं।
अभिमान यह अपमान को बुलावा है.
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५. वनस्पतिकाय- सचित्त या अचित्त वनस्पति का प्रमाण | संख्या से या वजन से
धारना। ३० संख्या से या २० किलो से ज्यादा नहीं। ६. त्रसकाय- चलते फिरते जीव को मारने की बुद्धि से नहीं मारना। १. असिकर्म- तलवार, बन्दूक, चाकू, छूरी, कैंची सुई वगैरह का प्रमाण । ३० या...
से ज्यादा नहीं। २. मसिकर्म- स्याही, कलम, पेन्सील, होल्डर, पेन, चोक, बोल पेन की संख्या
धारना। २० या...... से ज्यादा नहीं ३. कृषिकर्म- खेती के साधन हल, पावड़ा, कोदाली गेंती आदि का प्रमाण धारना।
२० से या.... से ज्यादा नहीं।
सुबह शाम वापिस याद करना, अर्थात् जितना कम हुआ हो, उतना लाभ हुआ इस प्रकार चिन्तन करना।
इसके सिवाय सातवें व्रत में फूल गोभी, पत्ता गोभी, मूले के पत्ते का त्याग। दही व छाछ या इससे बनाये हुए परोठे आदि दो रात्रि के बाद नहीं खाना। आठ महीने पान भाजी त्याग, आर्द्रा नक्षत्र के बाद आम त्याग, फाल्गुन १५ के बाद खजूर-खारिक आदि त्याग व आषाढ १५ से सभी प्रकार का मेवा त्याग । उसी दिन तोड़ कर निकाली गई बादाम की गिरी खा सकते है।
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भोजन से सम्बन्धित पाँच अतिचार | १. सचित्त- कंद-मूल आदि का त्याग पहले किया हो उनको अनजानपने में भोगने ।
से यह अतिचार लगता है अथवा जिन वस्तुओं में त्रस जीवों का वध होता हो वे।। । २. सचित्त सम्बन्धित- जिसमें सचित्त वस्तु का सम्बन्ध जुड़ा हो, जैसे खजूर,
आम आदि फलों में गुठली आदि होने से वे सचित्त सम्बन्धित है। ३. अपक्व आहार- अग्नि संस्कार के बिना किया कच्चा आहार। ४. दुष्पक्व- जो वनस्पति आदि आधी पकी आधी कच्ची हो। ५. तुच्छ आहार- ऐसी वनस्पति या फल जिसमें खाने का भाग कम हों और .
फेंकने का भाग अधिक हो, जैसे सीताफल आदि। | भोजन सम्बन्धी ये पाँच अतिचार श्रावक के लिए वर्जनीय हैं। - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - --
जिसकी जीभ रफ, उसका जीवन टफ.
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चेन्नई : जनवरी ता. | सूर्यो- | सूर्यास्त | नव- | पोरसी | साढ़-| पुरी- | अवड्ढ़| सुबह की शाम की
दय कारसी पोरसी| मढ़ दोघडी चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी। घं-मि | घं-मि | घं-मि |घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि 6:31 17:53/7:19/9:21 |10:4612:1215:02 7:19 | 8:07/8:55 17:0516:1715:29
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सद्गुणी भौहों के दुर्गुणों को देखता नहीं फिटता.
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फरवरी : चेन्नई ता. | सूर्यो- सूर्यास्त | नव- पोरसी | साढ-| पुरी- | अवड्ढ| सुबह की
शाम की दय कारसी पोरसी| मढ़ दोघडी |चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी। घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि
6:35 |18:09/7:23/9:28 | 10:5512:22 15:157:23 | 8:119:59 17:2116:3315:45 02 6:35 18:09/7:23/9:28 | 10:5512:22/15:16 7:23 | 8:119:59 17:2116:3315:45 03 6:35 18:10/7:239:28 |10:55/12:22 15:16 7:23|8:118:59 17:2216:3415:46 046:34 18:10/7:22/9:28 | 10:55/12:22/15:16 7:2210|8:58 17:2216:3415:46
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धन की मूर्छ उतरनी प्रारंभ होती है तब श्रावकपने की शुरुआत होती है.
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चेन्नई : मार्च ता. | सूर्यो- | सूर्यास्त | नव- पोरसी | साढ़-| पुरी- अवठ्ठ| सुबह की । शाम की
दय कारसी पोरसी| मढ़ दोघडी चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी। घं-मि | घं-मि | घं-मि |घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि
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6:21 18:18 7:09 9:20 | 10:50/12:20/15:107:09 | 7:57 8:45 17:3016:4245:54 | 6:21 18:18| 7:09/9:20 10:50/12:1915:197:09 | 7:57 8:45 17:30/16:4215:54
6:20|18:18|7:08 | 9:20|10:49/12:1915:197:08 | 7:56 8:44 17:30/16:4215:54 09 6:10|18:18|7:07/9:19/10:4912:1915:197:07 | 7:558:43 17:30 16:4215:54 106:1018:10/7:07/9:19/10:49/12:1915:18|7:07 | 7:55/8:43 17:30/16:4215:54 116:18|18:18|7:06/9:18 10:40|12:18 15:18| 7:067548:42 17:30/16:4215:54 12 |6:18 |18:19/7:06/9:18|10:48|12:18 15:18 7:067:54 8:42 17:3116:4315:55 136:17 |18:19/7:05/9:17|10:48 12:18 15:18 7:05/7:53|8:41 17:3116:43/15:55 146:16 |18:10/7:04/9:17|10:47/12:18 15:18 7:04 | 7:52 8:40 17:3116:43/15:55 15 6:16 |18:107:049:16|10:47 12:17 15:18 7:04| 7:52 8:40 17:3116:43 15:55
6:15 |18:19/7:03/9:16/10:46/12:17 15:18|7:03 | 7:518:39 17:3116:43|15:55 17 6:14|18:10/7:02/9:15/10:46/12:17 15:18/7:02/7:50/8:38 17:3116:43|15:58 18614/18:10/7:02/9:15 10:46/12:10/15:107:02 | 7:50/838 17:3116:43|15:55 1916:13|18:10/7:019:1510:45/12:16/15:18 7:01|7:40|8:37 17:3116:43|15:55 206:12 18:19/7:00 9:14| | 10:45/12:16/15:17 7:007:48| 8:36 17:3116:43|15:55 216:12 |18:19/7:00/9:14|10:45/12:15 15:17 7:00/7:48| 8:36 17:3116:43/15:55 22 6:11 18:19/6:59/9:13/10:44/12:15 15:17 6:59 | 7:47 8:35 17:3116:43/15:55 23 6:10|18:10/6:58|9:13/10:44/12:15 15:17 6:58| 7:46 8:34 17:3116:43|15:55 246:10/18:10/6:58|9:12/10:43|12:15 15:17/658| 7:46 8:34 17:3116:43|15:58 2016:09/18:20/6:07/9:12/10:43|12:14/15:17/6677:45| 8:33 17:3216:44|15:56 26/6:08/18:206:5619:11 10:43/12:14/15:17 6:567:448:32 17:3216:44 15:56 27 16:08|18:20/6:5619:11/10:42/12:14/15:17 6:56| 7:448:32 17:32 16:44|15:56 28 16:07 |18:206:55|9:10|10:42/12:13 15:17 6:557:438:31 17:3216:44|15:56 29/6:06/18:20/6:54 9:10/10:41|12:13 15:16 6:54 | 7:42| 8:30 17:32 16:4415:56 30|6:06/18:20/6:549:09/10:41/12:13 15:16 6:547:42| 8:30 17:32 16:4415:56 316:05 18:20/6:53/9:09/10:41/12:1215:16/6:53 | 7:418:29 17:3216:4415:56
16
इष्ट देव को भजने में उनका पुण्य अपना पुण्य बनता है.
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80888
अप्रैल : चेन्नई ता. | सूर्यो- सूर्यास्त | नव- पोरसी | साढ़-| पुरी- | अवड्ढ सुबह की
शाम की दय कारसी पोरसी| मढ़ दोघडी चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी।
घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि 01 6:04|18:20/6:52/9:00 |10:40/12-1215:16/6:52 | 7:40|8:28 17:3216:4415:561
6:04|18:20/6:02/9:00|10:40/12:12 15:16/652 | 7:408:20 17:3216:4415:56
6:03|18:20/6:51/9:07/10:39/12:12/15:16681|7:39/8:27 17:32 16:4415:56 046:02 18:20/6:50/9:07 10:39/12:11 15:16/6:507:38|8:26 17:3216:4415:56
6:02 18:20/6:50/9:06 | 10:39/12:11/15:16 6:50/7:38| 8:26 17:3216:4415:561 6:01 18:20/6:49/9:06/10:38|12:11 15:16 6:49 | 7:37| 8:25 17:3216:4415:56 |6:00 18:20/6:48|9:05 |10:38|12:10/15:156:48 | 7:36 8:24 17:3216:4415:56
6:00|18:21/6:48|9:05 |10:38|12:10 15:156:48 | 7:36/8:24 17:3316:45/15:57 09 | 5:59 18:21/6:47/9:05 |10:37 12:10 15:156:47 | 7:35/8:23 17:33 16:4515:57 10550|18:21/6:47/9:04|10:37/12:10/15:156:47 | 7:35/8:23 17:3316:4515:57 115:58|18:21/6:46/9:04/10:37/12:0915:156:46/7:348:22 17:3316:4515:57 12 |5:57 |18:21/6:45|9:03/10:36/12:0915:156:45 | 7:33|8:21 17:3316:4515:57 13 5:57 |18:21/6:45|9:03 10:36/12:09/15:156:45 | 7:33|8:21 17:3316:4515:57 14 |5:56 |18:21/6:449:02 | 10:35/12:09/15:156:44 | 7:328:20 17:33/16:4515:57 15 5:56 |18:21/6:44|9:02 |10:35/12:0815:156:447:328:20 17:3316:4515:57
5:55 18:21/6:43/9:02/10:35/12:08/15:156:43/7:318:1917:3316:4515:57 17 B:54|18:21/6:429:01/10:35/12:00 15:156:427:308:18 17:3316:4515:57 18|5:54|18:22/6:429:01/10:34/12:08/15:156:427:30|8:18|17:3416:4615:58 195:53|18:22|6:419:00|10:34/12:07 15:156:41|7:29/8:17 17:3416:4615:58 20|5:53 |18:22|6:41|9:00/10:34/12:07 15:146:41|7:29 8:17 17:3416:4615:58 215:52|18:226:40/9:00|10:33/12:07/15:146:407:28| 8:16 17:34/16:46/15:58 22 5:52 |18:226:40|8:5910:33/12:07/15:146:407:28| 8:16 17:3416:4615:58 23 |5:51/18:226:39|8:59/10:33/12:0715:146:39/7:27/8:15 17:3416:46|15:58 24|5:5118:22|6:39/859/10:33|12:06/15:14639/7:27 8:15/17:34/16:46/15:58 26 5:50|18:22/6:30/858|10:32/12:06 15:14638| 7:26/8:14 17:3416:4615:58 26 5:50|18:23/6:38| 8:58| 10:32/12:06 15:146:38 | 7:26/8:14 17:3516:47|15:59 27 | 5:49/18:23/6:37 8:58|10:32/12:06 15:146:377:25/8:13 17:35/16:4715:59 28 | 5:49/18:23/6:37|8:57|10:32/12:06/15:146:37| 7:25/8:13 17:3516:47|15:59
5:48 | 18:23/6:36 8:57|10:31/12:06/15:146:36| 7:248:12 17:35/16:47|15:59 305:48 | 18:23/6:36 8:57|10:31/12:06 15:146:36/7:248:12 17:35/16:47|15:59
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29
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दुर्जनों के मरदार बनने के बजाय मज्जनों का दाम बनना अच्छा.
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चेन्नई : मई ता. | सूर्यो- सूर्यास्त | नव- पोरसी | साळ-| पुरी- | अवड्ढ सुबह की
शाम की दय कारसी पोरसी| मढ़ दोघडी चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी। घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि 5:47 18:23/6:35/8:56/10:31 12:05/15:146:35 | 7:23|8:11 17:3516:4715:59
5:47 |18:24/6:30/8:56|10:31/12:05 15:15/6357:23|8:11 17:3616:4816:00 035:47 18:24/6:30/8:56|10:31/12:05 15:15/6:307:238:11 17:3616:4816:00 04|5:46/18:246:34/8:56/10:30/12:05 15:156:34 | 7:228:10 17:3616:4816:00 05 | 5:4618:246348:55|10:30/12:05/15:156:34| 7:228:10 17:3616:4816:00 06 5:45 18:256:338:55 | 10:30/12:05/15:156:33 | 7:21 8:09 17:3716:4916:01 07 5:45 |18:256:33|8:55 |10:30/12:05/15:156:33 | 7:21/8:09 17:3716:4916:01 08 5:45 18:25/6:33|8:55 |10:30/12:05 15:156:33 | 7:218:09 17:3716:4916:01 09 5:44|18:25/6:32/8:55|10:30/12:05 15:156:327:2048:08 17:3716:4916:01 108:44|18:25/6:328:54|10:30/12:06 15:156:32|7:20|8:00 17:3716:4916:01 11 5:44|18:26/6:32/8:54|10:30/12:05/15:156:32/7:20|8:00 17:3816:50/16:02 12|5:44|18:26/6:32/8:54 10:29/12:05/15:156:32| 7:20| 8:00 17:3816:5016:02 13 5:43 |18:26/6:31/8:54|10:29/12:05/15:156:31 | 7:19/8:07 17:3816:5016:02 14 5:4318:26/6:31/8:54|10:29/12:05/15:16 6:31 | 7:19/8:07 17:3816:50/16:02 15 5:43 |18:27/6:318:54|10:29/12:05/15:16 6:31 | 7:19/8:07 17:3916:5116:03
5:43|18:27/6:318:54|10:29/12:05/15:16/6:31 | 7:19/8:07 17:3916:5116:03 17
| 5:42 |18:27/6:308:54|10:29/12:00 15:10/6:30/7:18| 8:06 17:3916:51/16:03 18|5:42 |18:28/6:30/8:53|10:29/12:05/15:16/6:307:18| 8:06 17:40/16:52/16:04 195:42|18:28/6:30/8:53|10:29/12:05 15:16/6:30/7:13|8:06 17:40/16:5216:04 205:42 |18:28/6:308:53 |10:29/12:05/15:16 6:30| 7:18| 8:06 17:4016:5216:04 21 5:42 |18:28/6:30/8:53 | 10:29/12:0515:17 6:30 7:18| 8:06 17:40 16:52/16:04 22 5:41 18:29/6:29/8:53|10:29/12:05 15:17 6:29 | 7:17 8:05 17:4116:5316:05 23 | 5:41 |18:29/6:29/8:53|10:29/12:05 15:17 6:29 | 7:17 8:05 17:4116:5316:05 24|5:41/18:29/6:29/8:53|10:29/12:06 15:17/6:29/7:17 8:00 17:4116:53/16:08 20|5:41 18:306:29/8:5310:29/12:05 15:17 6:29/7:17 8:00 17:4216:54/16:06 26 | 5:41 |18:30/6:29/8:53|10:29/12:05/15:18 6:29/7:17 8:05 17:4216:5416:06 27 | 5:41 18:30/6:29/8:53|10:29/12:06/15:18| 6:297:17 8:05 17:4216:5416:06 28 | 5:41 |18:306:29/8:53|10:29/12:06 15:18 6:29/7:17 8:05 17:4216:5416:06
|5:41 18:31/6:29/8:53|10:30 12:06 15:18 6:29 | 7:17 8:05 17:4316:5516:07 30 | 5:41 18:31/6:29/8:53|10:30/12:06 15:18 6:29| 7:17 8:05 17:4316:5516:07 315:41 18:31/6:29 8:53 10:30 12:06/15:10 6:29 | 7:17 8:05 17:43/16:55/16:07
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श्रद्धा फलदायी होती है, मान्यता नहीं.
w
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ता.
जुन : चेन्नई
सूर्यो- सूर्यास्त नव- पोरसी साड्ढ पुरी अवड्ढ दय कारसी पोरसी मड्ढ | दोघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
सुबह की शाम की चारघडी छःघडी दोघडी चारघडी छःघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
01 5:41 18:32 6:29 8:54 10:30 12:06 15:19 6:29 7:17 8:05 17:44 16:56 16:08 02 5:41 18:32 6:29 8:54 03 5:41 18:32 6:29 8:54 04 5:41 18:33 6:29 8:54 5:41 18:33 6:29 8:54 10:30 12:07 15:20 6:29 7:17 8:05 17:45 16:57 16:09
10:30 12:06 15:19 6:29 10:30 12:07 15:19 6:29 10:30 12:07 15:20 6:29
7:17 8:05 17:44 16:56 16:08 7:17 8:05 17:44 16:56 16:08 7:17 8:05 17:45 16:57 16:09
05
06
5:41 18:33 6:29 8:54 10:31 12:07 15:20 6:29 7:17 8:05 17:45 16:57 16:09
07
5:41 18:33 6:29 8:54 10:31 12:07 15:20 6:29 7:17 8:05 17:45 16:57 16:09
08
5:41 18:34 6:29 8:54 10:31 12:07 15:21 6:29 7:17 8:05 17:46 16:58 16:10 09 5:41 18:34 6:29 8:54 10:31 12:08 15:21 6:29 7:17 8:05 17:46 16:58 16:10 7:17 8:05 17:46 16:58 16:10
10:31 12:08 15:21 6:29 10:31 12:08 15:21 6:30
12
10 5:41 18:34 6:29 8:55 11 5:42 18:35 6:30 8:55 7:18 8:06 17:47 16:59 16:11 5:42 18:35 6:30 8:55 10:32 12:08 15:22 6:30 7:18 8:06 17:47 16:59 16:11 5:42 18:35 6:30 8:55 10:32 12:08 15:22 6:30 7:18 8:06 17:47 16:59 16:11 5:42 18:35 6:30 8:55 10:32 12:09 15:22 6:30 7:18 8:06 17:47 16:59 16:11 5:42 18:36 6:30 8:56 10:32 12:09 15:22 6:30 7:18 8:06 17:48 17:00 16:12
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29 5:45 18:38 6:33 8:59 30 5:46 18:39 6:34 8:59
10:35 12:12 15:25 6:33 10:35 12:12 15:25 6:34
7:21 8:09 17:50 17:02 16:14 7:21 8:09 17:50 17:02 16:14 7:22 8:10 17:51 17:03 16:15
7:18 8:06 17:48 17:00 16:12 7:19 8:07 17:48 17:00 16:12 7:19 8:07 17:48 17:00 16:12 7:19 8:07 17:49 17:01 16:13 7:19 8:07 17:49 17:01 16:13
मेरे प्रभु का सामर्थ्य प्रभाव सर्वत्र व्यापक है ऐसी प्रतीति यह श्रद्धा है.
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चेन्नई : जुलाई
सूर्यो- सूर्यास्त नव- पोरसी साड्ढ पुरी अवड्ढ पोरसी मड्ढ दोघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
दय
कारसी घं-मि घं-मि घं-मि
सुबह की शाम की चारघडी छःघडी दोघडी चारघडी छःघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
01 5:46 18:39 6:34 8:59 10:36 12:12 15:26 6:34 7:22 8:10 17:51 17:03 16:15
02 5:46 18:39 6:34 8:59 03 5:46 18:39 6:34 9:00 04 5:47 18:39 6:35 9:00 5:47 18:39 6:35 9:00 06 5:47 18:39 6:35 9:00 07 5:47 18:39 6:35 9:00 08 5:48 18:39 6:36 9:01 09 5:48 18:39 6:36 9:01 10 5:48 18:39 6:36 9:01 11 5:49 18:39 6:37 9:01 12 5:49 18:39 6:37 9:01 13
10:36 12:12 15:26 6:34 10:36 12:13 15:26 6:34 10:36 12:13 15:26 6:35 10:36 12:13 15:26 6:35 10:37 12:13 15:26 6:35 10:37 12:13 15:26 6:35 10:37 12:13 15:26 6:36 10:37 12:14 15:26 6:36 10:37 12:14 15:27 6:36 10:38 12:14 15:27 6:37
7:22 8:10 17:51 17:03 16:15 7:22 8:10 17:51 17:03 16:15 7:23 8:11 17:51 17:03 16:15 7:23 8:11 17:51 17:03 16:15 7:23 8:11 17:51 17:03 16:15 7:23 8:11 17:51 17:03 16:15 7:24 8:12 17:51 17:03 16:15 7:24 8:12 17:51 17:03 16:15 7:24 8:12 17:51 17:03 16:15 7:25 8:13 17:51 17:03 16:15 7:25 8:13 17:51 17:03 16:15 7:25 8:13 17:51 17:03 16:15
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14 5:49 18:39 6:37 9:02 10:38 12:14 15:27 6:37 15 5:50 18:39 6:38 9:02 10:38 12:14 15:27 6:38 7:26 8:14 17:51 17:03 16:15
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7:26 8:14 17:51 17:03 16:15 7:26 8:14 17:51 17:03 16:15 7:27 8:15 17:51 17:03 16:15 7:27 8:15 17:51 17:03 16:15 7:27 8:15 17:50 17:02 16:14 7:27 8:15 17:50 17:02 16:14 7:28 8:16 17:50 17:02 16:14 7:28 8:16 17:50 17:02 16:14 7:28 8:16 17:50 17:02 16:14 7:28 8:16 17:49 17:01 16:13 7:29 8:17 17:49 17:01 16:13 7:29 8:17 17:49 17:01 16:13 7:29 8:17 17:49 17:01 16:13 7:29 8:17 17:48 17:00 16:12 7:29 8:17 17:48 17:00 16:12 7:30 8:18 17:48 17:00 16:12
ता.
05
astuct ast
दुकान
में समय पूछने जाओ तो भी पाँव तो काले होंगे ही.
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05
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09
अगस्त : चेन्नई ता. | सूर्यो- | सूर्यास्त | नव- पोरसी | साढ़-| पुरी- | अवड्ढ़| सुबह की
शाम की दय । कारसी| पोरसी| मढ़ दोघडी |चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी
घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि| घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि 01 5:54|18:36/6:42/9:04/10:39/12:15 15:25/6:42 | 7:308:18 17:4817:0016:12 02 5:54|18:356:429:04/10:30/12:15 15:25/6:427:30/8:18 17:47 16:5916:11
5:54|18:35/6:42/9:04/10:39/12:15 15:256:427:308:10 17:47 16:5916:11 04 5:54|18:346:42/9:04|10:39/12:14 15:246:42 | 7:308:18 17:4616:5816:10
5:55 |18:346:43/9:04 10:39/12:1415:246:43 | 7:318:19 17:4616:5816:10 5:55 |18:346:43/9:05 |10:39/12:14 15:246:43 | 7:318:19 17:4616:5816:10
5:55 18:33/6:43/9:05 |10:3912:14/15:246:43 | 7:318:19 17:4516:5716:09 08 5:50|18:33/6:43/9:00/10:39/12:14/15:23/6:43/7:31|8:1917:4516:57 16:09
| 5:50|18:32/6:43/9:00|10:30/12:14 15:236:43/7:318:19 17:4416:5616:08 105:55/18:32|6:43/9:05/10:39/12:14 15:23/6:437:318:19 17:4416:5616:08 115:56 |18:326:44|9:05 |10:39/12:14 15:23/6:44| 7:328:20 17:4416:5616:08 12 |5:56 |18:31/6:449:05/10:39/12:13 15:226:44 | 7:328:20 17:4316:5516:07 13 5:56 /18:31/6:449:05/10:3912:13 15:226:44| 7:328:20 17:4316:5516:07 14 5:56 |18:30/6:449:04/10:39/12:13 15:226:44 | 7:328:20 17:4216:54/16:06 15
5:56 |18:30/6:449:04|10:39/12:13 15:21/6:44 | 7:328:20 17:4216:5416:06 5:56/18:29/6:449:04/10:39/12:13 15:21/6:447:328:20 17:41 16:53/16:08
| 5:56/18:28| 6:44/9:04/10:38/12:12/15:20/6:44| 7:328:20 17:40/16:5216:04 18|5:56 18:28 6:449:04 10:38|12:1215:206:447:328:20 17:40/16:52/16:04 195:57 18:27 6:45|9:04 10:38|12:1215:206:45/7:33/8:21 17:3916:5116:03 20|5:57 |18:27/6:45|9:04/10:38/12:1215:19/6:45| 7:33|8:21 17:3916:5116:03 21 |5:57|18:26/6:45|9:04/10:3812:11 15:19/6:45 | 7:33|8:21 17:3816:50|16:02 5:57|18:26/6:45|9:04/10:38/12:11 15:186:45 | 7:33|8:21 17:3816:50|16:02
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16
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22
कोयले की दलाली करोगे तो हाथ काले होंगे ही.
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चेन्नई : सीतम्बर
अवड्ढ
सुबह की
दय
पुरी शाम की पोरसी मड्ढ | दोघडी चारघडी छःघडी दोघडी चारघडी छःघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
सूर्यो- सूर्यास्त नव- पोरसी साड्ढ कारसी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि 01 5:57 18:19 6:45 9:03 10:36 12:08 15:14 6:45 7:33 8:21 17:31 16:43 15:55 02 5:57 18:19 6:45 9:03 10:35 12:08 15:13 6:45 03 5:57 18:18 6:45 9:03 10:35 12:08 15:13 6:45 04 5:57 18:17 6:45 9:02 10:35 12:07 15:12 6:45 5:57 18:17 6:45 9:02 10:35 12:07 15:12 6:45
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5:57 18:16 6:45 9:02
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5:57 18:15 6:45 9:02 5:57 18:15 6:45 9:02
10:34 12:07 15:11 6:45 10:34 12:06 15:11 6:45 10:34 12:06 15:10 6:45
08
7:33 8:21 17:31 16:43 15:55 7:33 8:21 17:30 16:42 15:54 7:33 8:21 17:29 16:41 15:53 7:33 8:21 17:29 16:41 15:53 7:33 8:21 17:28 16:40 15:52 7:33 8:21 17:27 16:39 15:51 7:33 8:21 17:27 16:39 15:51 09 5:57 18:14 6:45 9:02 10:34 12:06 15:10 6:45 7:33 8:21 17:26 16:38 15:50 10 5:57 18:13 6:45 9:01 10:33 12:05 15:09 6:45 7:33 8:21 17:25 16:37 15:49 11 5:57 18:12 6:45 9:01 10:33 12:05 15:09 6:45 7:33 8:21 17:24 16:36 15:48 12 5:57 18:12 6:45 9:01 10:33 12:05 15:08 6:45 7:33 8:21 17:24 16:36 15:48 13 5:57 18:11 6:45 9:01 10:33 12:04 15:08 6:45 7:33 8:21 17:23 16:35 15:47 14 5:57 18:10 6:45 9:01 10:32 12:04 15:07 6:45 7:33 8:21 17:22 16:34 15:46 15 5:57 18:10 6:45 9:01 10:32 12:04 15:07 6:45 7:33 8:21 17:22 16:34 15:46 16 5:57 18:09 6:45 9:00 10:32 12:03 15:06 6:45 7:33 8:21 17:21 16:33 15:45 17 5:57 18:08 6:45 9:00 10:31 12:03 15:06 6:45 7:33 8:21 17:20 16:32 15:44 18 5:57 18:07 6:45 9:00 10:31 12:02 15:05 6:45 7:33 8:21 17:19 16:31 15:43 19 5:57 18:07 6:45 9:00 10:31 12:02 15:04 6:45 7:33 8:21 17:19 16:31 15:43 20 5:57 18:06 6:45 9:00 10:31 12:02 15:04 6:45 7:33 8:21 17:18 16:30 15:42 21 5:57 18:05 6:45 8:59 10:30 12:01 15:03 6:45 7:33 8:21 17:17 16:29 15:41 22 5:58 18:05 6:46 8:59 7:34 8:22 17:17 16:29 15:41 23 5:58 18:04 6:46 8:59 7:34 8:22 17:16 16:28 15:40 24 5:58 18:03 6:46 8:59 7:34 8:22 17:15 16:27 15:39 25 5:58 18:02 6:46 8:59 7:34 8:22 17:14 16:26 15:38 26 5:58 18:02 6:46 8:59 10:29 12:00 15:01 6:46 7:34 8:22 17:14 16:26 15:38
10:30 12:01 15:03 6:46 10:30 12:01 15:02 6:46 10:30 12:00 15:02 6:46
10:29 12:00 15:01 6:46
27 5:58 18:01 6:46 8:58 10:29 11:59 15:00 6:46 7:34 8:22 17:13 16:25 15:37
28
5:58 18:00 6:46 8:58 10:29 11:59 15:00 6:46 7:34 8:22 17:12 16:24 15:36
29
5:58 18:00 6:46 8:58 10:28 11:59 14:59 6:46 7:34 8:22 17:12 16:24 15:36
30 5:58 17:59 6:46 8:58 10:28 11:58 14:59 6:46 7:34 8:22 17:11 16:23 15:35
ता.
जैसा संग, वैसा हंग.
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ता.
९३
01
सूर्यो- सूर्यास्त नव- पोरसी दय कारसी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि 5:58 17:58 6:46 8:58 10:28 11:58 14:58 6:46 7:34 8:22 17:10 16:22 15:34 02 5:58 17:58 6:46 8:58 10:28 11:58 14:58 6:46 03 5:58 17:57 6:46 8:58 10:27 11:57 14:57 6:46 04 5:58 17:56 6:46 8:57 10:27 11:57 14:57 6:46 7:34 8:22 17:08 16:20 15:32 5:58 17:56 6:46 8:57 10:27 11:57 14:56 6:46 7:34 8:22 17:08 16:20 15:32
7:34 8:22 17:10 16:22 15:34
7:34 8:22 17:09 16:21 15:33
05
06
5:58 17:55 6:46 8:57 10:27 11:56 14:56 6:46 7:34 8:22 17:07 16:19 15:31
07
5:58 17:54 6:46 8:57 10:27 11:56 14:55 6:46
7:34 8:22 17:06 16:18 15:30
08
7:34 8:22 17:06 16:18 15:30
5:58 17:54 6:46 8:57 10:26 11:56 14:55 6:46 09 5:58 17:53 6:46 8:57 10:26 11:56 14:54 6:46 7:34 8:22 17:05 16:17 15:29
10:26 11:55 14:54 6:46 10:26 11:55 14:53 6:46 10:26 11:55 14:53 6:46
10 5:58 17:52 6:46 8:57 11 5:58 17:52 6:46 8:57 12 5:58 17:51 6:46 8:57 5:59 17:51 6:47 8:57 10:26 11:55 14:53 6:47 14 5:59 17:50 6:47 8:56 10:25 11:54 14:52 6:47 15 5:59 17:49 6:47 8:56 10:25 11:54 14:52 6:47 16 5:59 17:49 6:47 8:56 10:25 11:54 14:51 6:47 7:35 8:23 17:01 16:13 15:25
7:34 8:22 17:04 16:16 15:28 7:34 8:22 17:04 16:16 15:28 7:34 8:22 17:03 16:15 15:27 7:35 8:23 17:03 16:15 15:27 7:35 8:23 17:02 16:14 15:26
7:35 8:23 17:01 16:13 15:25
7:35 8:23 17:00 16:12 15:24
8:56 8:56
17 5:59 17:48 6:47 10:25 11:54 14:51 6:47 18 5:59 17:48 6:47 10:25 11:53 14:51 6:47 7:35 8:23 17:00 16:12 15:24 19 5:59 17:47 6:47 8:56 10:25 11:53 14:50 6:47 7:35 8:23 16:59 16:11 15:23 20 6:00 17:47 6:48 8:56 10:25 11:53 14:50 6:48 7:36 8:24 16:59 16:11 15:23
7:36 8:24 16:58 16:10 15:22
21 6:00 17:46 6:48 8:56 10:25 11:53 14:50 6:48 22 6:00 17:46 6:48 8:56 10:25 11:53 14:49 6:48
7:36 8:24 16:58 16:10 15:22
23 6:00 17:45 6:48 8:56 10:24 11:53 14:49 6:48 7:36 8:24 16:57 16:09 15:21
7:36 8:24 16:57 16:09 15:21
7:36 8:24 16:56 16:08 15:20
24 6:00 17:45 6:48 8:56 10:24 11:53 14:49 6:48 25 6:00 17:44 6:48 8:56 10:24 11:52 14:48 6:48 26 6:01 17:44 6:49 8:56 10:24 11:52 14:48 6:49 7:37 8:25 16:56 16:08 15:20 27 6:01 17:43 6:49 8:57 10:24 11:52 14:48 6:49 7:37 8:25 16:55 16:07 15:19
7:37 8:25 16:55 16:07 15:19
28 6:01 17:43 6:49 8:57 10:24 11:52 14:48 6:49 29 6:01 17:43 6:49 8:57 10:24 11:52 14:47 6:49 30 6:02 17:42 6:50 8:57 10:24 11:52 14:47 6:50 7:38 8:26 16:54 16:06 15:18
7:37 8:25 16:55 16:07 15:19
31 6:02 17:42 6:50 8:57 10:24 11:52 14:47 6:50
7:38 8:26 16:54 16:06 15:18
13
अक्तुम्बर : चेन्नई शाम की | दोघडी चारघडी छःघडी दोघडी चारघडी छःघडी
सुबह की
घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
साड्ढ पुरी अवड्ढ पोरसी मड्ढ घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
शांति, निर्मलता व स्थिरता ये मन के उत्तम लक्षण है.
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888888
चेन्नई : नवम्बर ता. | सूर्यो- | सूर्यास्त | नव- | पोरसी | साढ़-| पुरी- | अवड्ढ सुबह की
शाम की दय कारसी पोरसी| मढ़ दोघडी चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी।
घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि 01 6:02 17:42|6:50/8:57 |10:24|11:52 14:47 6:50/7:38| 8:26 16:5416:0615:18
6:03 17:41/6:51/8:87|10:26/11:52 14:47/681|7:39/8:27 16:5316:0515:17 6:03 17:41/6:51/067|10:2611:5214:46681|7:39/8:27 16:5316:0515:17 |6:03 17:41/6:518:5a 10:25/11:5214:46/6:51/7:39827 16:5316:0515:17 6:0317:40/6:518:58|10:25/11:52/14:46 6:51|7:39| 8:27 16:5216:0415:16 6:04 17:40|6:528:58 | 10:25/11:52/14:46 6:52 | 7:408:28 16:5216:0415:16 | 6:04 |17:40/6:528:58 | 10:25/11:52/14:46 6:52 | 7:40|8:28 16:5216:0415:16
6:05 |17:40/6:53/8:58|10:25/11:5214:46 6:53 | 7:418:29 16:5216:0415:16 09 6:05 17:39/6:53/8:59/10:25/11:52 14:46/6:53 | 7:418:29 16:5116:03/15:15 10|6:05/17:39/6:53/8:59/10:26/11:5214:46/663/7:418:2916:5116:03/15:15 116:06/17:30/6:548:59 |10:26/11:5214:46 6:54/7:42| 8:30 16:5116:03 15:15 12 |6:06/17:39/6:548:59 |10:26/11:53 14:46/6:54| 7:42| 8:30 16:5116:03/15:15 13 6:06 |17:39/6:549:00 10:26/11:53 14:46 6:54| 7:42| 8:30 16:5116:03/15:15 146:07 |17:396:55|9:00/10:26/11:5314:46 6:557:438:31 16:5116:03/15:15
6:07 17:39/6:55|9:00|10:27 11:5314:46 6:557:438:31 16:5116:03/15:15 16 6:08 | 17:39/6:56/9:00|10:27|11:5314:46/6:567:448:32 16:5116:03/15:15 17 6:08|17:39/6:56/9:01/10:27/11:5314:46/6:56/7:448:32 16:5116:03/15:15 1816:09/17:30/6:57 9:01/10:27 11:5414:46 6:577:45/8:33 16:5116:03/15:15 106:09/17:30|6:57|9:01 |10:2811:54/14:466677:458:33 16:50 16:02/15:14 206:10|17:38/6:58|9:02 10:28 11:54/14:46 6:58| 7:46 8:34 16:50 16:0215:14 21 6:10/17:30/6:58|9:02 |10:28/11:54/14:46 6:58| 7:46 8:34 16:5116:03/15:15 22 6:11 |17:39/6:59/9:03/10:29/11:5514:47 6:59 | 7:47 8:35 16:5116:03/15:15 23|6:11/17:39/6:59/9:03 |10:29/11:5514:47 6:59/7:47| 8:35 16:5116:03/15:15 2416:12/17:39/7:00/9:03/10:29/11:55/14:477:00/7:4883616:5116:03/15:15 206:12/17:30/7:00/9:04/10:30/11:56 14:47 7:00/7:40|8:3616:5116:03/15:15 26 6:1317:39/7:01 9:04/10:30/11:56 14:47 7:017:498:37 16:5116:03/15:15 27 6:13|17:39/7:01/9:05/10:30/11:5614:48| 7:01 | 7:49 8:37 16:5116:03/15:15 28 |6:14|17:39/7:02/9:05 |10:31/11:5614:48 7:02 | 7:50/8:38 16:5116:03/15:15 29 6:14|17:39/7:029:05/10:31/11:5714:48 7:02 | 7:50/8:38 16:5116:03/15:15 30|6:15 | 17:40/7:03/9:06/10:32/11:5714:48 7:03 | 7:518:3916:5216:04/15:16|
15
दुर्भाग्य कोई डंडे नहीं मारता, वह दुर्बुछिह देता है.
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ता.
सुबह की
शाम की
सूर्यो- सूर्यास्त नव- पोरसी साड्ढ पुरी दय कारसी पोरसी मड्ढ घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
| दोघडी चारघडी छःघडी दोघडी चारघडी छःघडी
घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
6:15 17:40 7:03 9:06 10:32 11:57 14:49 7:03 7:51 8:39 16:52 16:04 15:16
10:32 11:58 14:49 7:04 10:33 11:58 14:49 7:04 10:33 11:59 14:50 7:05
01 02 6:16 17:40 7:04 9:07 7:52 8:40 16:52 16:04 15:16 03 6:16 17:40 7:04 9:07 7:52 8:40 16:52 16:04 15:16 04 6:17 17:41 7:05 9:08 7:53 8:41 16:53 16:05 15:17 05 6:17 17:41 7:05 9:08 10:34 11:59 14:50 7:05 7:53 8:41 16:53 16:05 15:17 06 6:18 17:41 7:06 9:09 10:34 12:00 14:50 7:06 7:54 8:42 16:53 16:05 15:17 7:54 8:42 16:53 16:05 15:17 7:55 8:43 16:54 16:06 15:18 7:56 8:44 16:54 16:06 15:18 7:56 8:44 16:54 16:06 15:18
07 6:18 17:41 7:06 9:09 10:35 12:00 14:51 7:06 08 6:19 17:42 7:07 9:10 10:35 12:00 14:51 7:07 09 6:20 17:42 7:08 9:10 10:36 12:01 14:51 7:08 10 6:20 17:42 7:08 9:11 10:36 12:01 14:52 7:08 11 6:21 17:43 7:09 9:11 10:36 12:02 14:52 7:09 7:57 8:45 16:55 16:07 15:19 12 6:21 17:43 7:09 9:12 10:37 12:02 14:53 7:09 7:57 8:45 16:55 16:07 15:19 13 6:22 17:44 7:10 9:12 10:37 12:03 14:53 7:10 14 6:22 17:44 7:10 9:13 10:38 12:03 14:54 7:10 7:58 8:46 16:56 16:08 15:20 15 6:23 17:44 7:11 9:13 10:38 12:04 14:54 7:11 7:59 8:47 16:56 16:08 15:20 16 6:23 17:45 7:11 9:14 10:39 12:04 14:54 7:11 7:59 8:47 16:57 16:09 15:21 8:00 8:00 8:01
7:58 8:46 16:56 16:08 15:20
17 6:24 17:45 7:12 9:14 10:39 12:05 14:55 7:12 8:48 16:57 16:09 15:21 18 6:24 17:46 7:12 9:15 10:40 12:05 14:55 7:12 8:48 16:58 16:10 15:22 19 6:25 17:46 7:13 9:15 10:40 12:06 14:56 7:13 8:49 16:58 16:10 15:22 20 6:25 17:47 7:13 9:16 10:41 12:06 14:56 7:13 8:01 8:49 16:59 16:11 15:23
21
22
6:26 17:47 7:14 9:16 10:41 12:07 14:57 7:14 8:02 8:50 16:59 16:11 15:23 6:26 17:48 7:14 9:17 10:42 12:07 14:57 7:14 8:02 8:50 17:00 16:12 15:24 6:27 17:48 7:15 9:17 10:42 12:08 14:58 7:15 8:03 8:51 17:00 16:12 15:24 24 6:27 17:49 7:15 10:43 12:08 14:58 7:15 8:03 8:51 17:01 16:13 15:25 25 10:43 12:09 14:59 7:16
23
9:18 9:18 8:04 8:52 17:01 16:13 15:25 26 6:28 17:50 7:16 9:19 10:44 12:09 14:59 7:16 8:04 8:52 17:02 16:14 15:26
6:28 17:49 7:16
6:29 17:50 7:17 9:19 10:44 12:10 15:00 7:17 8:05 8:53 17:02 16:14 15:26
27 28 6:29 17:51 7:17 9:20 8:05 8:53 17:03 16:15 15:27 29 6:30 17:51 7:18 9:20 8:06 8:54 17:03 16:15 15:27 30 6:30 17:52 7:18 9:21 10:46 12:11 15:01 7:18 8:06 8:54 17:04 16:16 15:28
10:45 12:10 15:00 7:17 10:45 12:11 15:01 7:18
31
6:30 17:52 7:18 9:21 10:46 12:11 15:02 7:18 8:06 8:54 17:04 16:16 15:28
दिसम्बर : चेन्नई
अवड्ढ
अज्ञान का मूल अहंकार है, अहंकार का कारण अज्ञान है.
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बेंग्लोर : जनवरी
अवड्ढ
ता. सूर्यो- सूर्यास्त नव- पोरसी साड्ढ पुरी दय कारसी पोरसी मड्ढ घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
सुबह की शाम की | दोघडी चारघडी छःघडी दोघडी चारघडी छःघडी घं-मि घं-मि
घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
8:19 9:07 17:19 16:31 15:43
01 6:41 18:04 7:29 9:32 10:57 12:22 15:13 7:29 8:17 9:05 17:16 16:28 15:40 02 6:42 18:04 7:30 9:32 10:58 12:23 15:14 7:30 8:18 9:06 17:16 16:28 15:40 03 6:42 18:05 7:30 9:33 10:58 12:23 15:14 7:30 8:18 9:06 17:17 16:29 15:41 04 6:42 18:05 7:30 9:33 10:58 12:24 15:15 7:30 8:18 9:06 17:17 16:29 15:41 05 6:43 18:06 7:31 9:33 10:59 12:24 15:15 7:31 8:19 9:07 17:18 16:30 15:42 06 6:43 18:06 7:31 9:34 10:59 12:25 15:16 7:31 8:19 9:07 17:18 16:30 15:42 07 6:43 18:07 7:31 9:34 08 6:44 18:08 7:32 9:35 8:20 9:08 17:20 16:32 15:44 09 6:44 18:08 7:32 9:35 11:00 12:26 15:17 7:32 8:20 9:08 17:20 16:32 15:44 10 6:44 18:09 7:32 9:35 11:01 12:26 15:18 7:32 8:20 9:08 17:21 16:33 15:45 11 6:44 18:09 7:32 9:36 11:01 12:27 15:18 7:32 8:20 9:08 17:21 16:33 15:45 6:45 18:10 7:33 9:36 11:02 12:27 15:18 7:33 8:21 9:09 17:22 16:34 15:46 6:45 18:10 7:33 9:36 11:02 12:28 15:19 7:33 8:21 9:09 17:22 16:34 15:46 6:45 18:11 7:33 9:36 11:02 12:28 15:19 7:33 8:21 9:09 17:23 16:35 15:47
11:00 12:25 15:16 7:31 11:00 12:26 15:17 7:32
12
13
14
15 6:45 18:11 7:33 9:37 11:03 12:28 15:20 7:33 8:21 9:09 17:23 16:35 15:47 16 6:45 18:12 7:33 9:37 11:03 12:29 15:20 7:33 8:21 9:09 17:24 16:36 15:48 17 6:45 18:13 7:33 9:37 11:03 12:29 15:21 7:33 8:21 9:09 17:25 16:37 15:49 6:46 18:13 7:34 9:37 11:03 12:29 15:21 7:34 8:22 9:10 17:25 16:37 15:49
18
19
6:46 18:14 7:34 9:38 11:04 12:30 15:22 7:34
8:22 9:10 17:26 16:38 15:50
20 6:46 18:14 7:34 9:38 11:04 12:30 15:22 7:34 8:22 9:10 17:26 16:38 15:50 21 6:46 18:15 7:34 9:38 11:04 12:30 15:22 7:34 8:22 9:10 17:27 16:39 15:51
22 6:46 18:15 7:34 9:38 11:04 12:31 15:23 7:34 8:22 9:10 17:27 16:39 15:51 23 6:46 18:16 7:34 9:38 11:05 12:31 15:23 7:34 8:22 9:10 17:28 16:40 15:52 24 6:46 18:16 7:34 9:39 11:05 12:31 15:24 7:34 8:22 9:10 17:28 16:40 15:52 25 6:46 18:17 7:34 9:39 11:05 12:31 15:24 7:34 8:22 9:10 17:29 16:41 15:53 6:46 18:17 7:34 9:39 11:05 12:32 15:24 7:34 8:22 9:10 17:29 16:41 15:53 27 6:46 18:18 7:34 9:39 11:05 12:32 15:25 7:34 8:22 9:10 17:30 16:42 15:54
26
28
6:46 18:18 7:34 9:39 11:05 12:32 15:25 7:34 8:22 9:10 17:30 16:42 15:54 29 6:46 18:19 7:34 9:39 11:06 12:32 15:25 7:34 8:22 9:10 17:31 16:43 15:55
30 6:46 18:19 7:34 9:39 31 6:46 18:19 7:34 9:39
11:06 12:32 15:26 7:34 11:06 12:33 15:26 7:34
8:22 9:10 17:31 16:43 15:55 8:22 9:10 17:31 16:43 15:55
भूखे को भोजन की तरह योग्य को ही उपदेश देना सार्थक है.
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९७
ar.
फरवरी : बेंग्लोर
पोरसी साड्ढ पुरी अवड्ढ पोरसी मड्ढ घं-मि घं-मि घं-मि
दोघडी घं-मि
सुबह की शाम की चारघडी छःघडी दोघडी चारघडी छःघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
01
सूर्यो- सूर्यास्त नवदय कारसी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि 6:46 18:20 7:34 9:39 11:06 12:33 15:26 7:34 8:22 9:10 17:32 16:44 15:56 02 6:45 18:20 7:33 9:39 11:06 12:33 15:27 7:33 8:21 9:09 17:32 16:44 15:56 03 6:45 18:21 7:33 9:39 11:06 12:33 15:27 7:33 8:21 9:09 17:33 16:45 15:57 04 6:45 18:21 7:33 9:39 11:06 12:33 15:27 7:33 8:21 9:09 17:33 16:45 15:57 05 6:45 18:21 7:33 9:39 11:06 12:33 15:27 7:33 8:21 9:09 17:33 16:45 15:57 06 6:45 18:22 7:33 9:39 11:06 12:33 15:28 7:33 8:21 9:09 17:34 16:46 15:58 07 6:44 18:22 7:32 9:39 11:06 12:33 15:28 7:32 8:20 9:08 17:34 16:46 15:58 08 6:44 18:23 7:32 9:39 11:06 12:33 15:28 7:32 8:20 9:08 17:35 16:47 15:59 09 6:44 18:23 7:32 9:39 11:06 12:33 15:28 7:32 8:20 9:08 17:35 16:47 15:59 10 6:44 18:23 7:32 9:38 11:06 12:33 15:28 7:32 8:20 9:08 17:35 16:47 15:59 11 6:43 18:24 7:31 9:38 11:06 12:33 15:29 7:31 8:19 9:07 17:36 16:48 16:00 12 6:43 18:24 7:31 9:38 11:06 12:33 15:29 7:31 8:19 9:07 17:36 16:48 16:00 13 6:43 18:24 7:31 9:38 11:06 12:33 15:29 7:31 8:19 9:07 17:36 16:48 16:00 14 6:42 18:25 7:30 9:38 11:06 12:33 15:29 7:30 8:18 9:06 17:37 16:49 16:01 15 6:42 18:25 7:30 9:38 11:05 12:33 15:29 7:30 8:18 9:06 17:37 16:49 16:01 16 6:42 18:25 7:30 9:37 11:05 12:33 15:29 7:30 8:18 9:06 17:37 16:49 16:01 17 6:41 18:25 7:29 9:37 11:05 12:33 15:29 7:29 8:17 9:05 17:37 16:49 16:01 18 6:41 18:26 7:29 9:37 11:05 12:33 15:29 7:29 8:17 9:05 17:38 16:50 16:02 19 6:40 18:26 7:28 9:37 11:05 12:33 15:29 7:28 8:16 9:04 17:38 16:50 16:02 20 6:40 18:26 7:28 9:36 11:05 12:33 15:30 7:28 8:16 9:04 17:38 16:50 16:02 6:39 18:26 7:27 9:36 11:05 12:33 15:30 7:27 8:15 9:03 17:38 16:50 16:02 6:39 18:27 7:27 9:36 11:04 12:33 15:30 7:27 8:15 9:03 17:39 16:51 16:03 8:15 9:03 17:39 16:51 16:03
21
22
23
6:39 18:27 7:27 9:36 11:04 12:33 15:30 7:27
24 6:38 18:27 7:26 9:35 11:04 12:33 15:30 7:26 8:14 9:02 17:39 16:51 16:03 25 6:38 18:27 7:26 9:35 8:14 9:02 17:39 16:51 16:03 26 6:37 18:27 7:25 9:35 8:13 9:01 17:39 16:51 16:03 27 6:37 18:28 7:25 9:34 8:13 9:01 17:40 16:52 16:04 28 6:36 18:28 7:24 9:34 11:03 12:32 15:30 7:24 8:12 9:00 17:40 16:52 16:04
11:04 12:32 15:30 7:26 11:03 12:32 15:30 7:25 11:03 12:32 15:30 7:25
29
6:35 18:28 7:23 9:34 11:03 12:32 15:30 7:23 8:11 8:59 17:40 16:52 16:04
मरने के लिए कोई उम्र छोटी नहीं होती और पढ़ने के लिए कोई उम्र बड़ी नहीं होती.
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बेंग्लोर : मार्च ता. | सूर्यो- | सूर्यास्त | नव- पोरसी | साढ़- पुरी- | अवठ्ठ| सुबह की
शाम की | कारसी| पोरसी| मढ़| दोघडी | चारघडी छघडी दोघडी चारघडी छाघडी घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि
6:30|18:28/7:23/9:33|11:02/12:31 15:307:23|8:11|8:59 17:4016:5216:04 02 16:3418:20/71229:33|11:02/12:31 15:307:22 | 8:10/858 17:4016:5216:04 03 16:3418:2017:22/9:32|11:02/12:31 15:30/7:228:10a58 17:4016:5216:04
6:33 |18:28/7:219:32|11:01/12:31 15:307:21|8:098:57 17:4016:5216:04 05 16:3318:29/7:219:32|11:01/12:31 15:307:21 | 8:09/8:57 17:4116:5316:05 06 6:32 18:29/7:20/9:31 | 11:01 12:30/15:307:20|8:08| 8:56 17:4116:5316:05 07 6:31 18:29/7:109:31 |11:00|12:30/15:307:19 8:07 8:55 17:4116:5316:05 08 6:31 |18:29/7:10/9:30|11:00/12:30/15:297:19/8:07/8:50 17:41 16:03/16:00 09 |
|6:30|18:29/7:10/9:30|11:00/12:30/15:29/7:108:06/8:54 17:4116:5316:05 10|6:30|18:29/7:18|9:29 |10:59/12:2915:29/7:18 | 8:06/8:54 17:41 16:5316:05 116:29 18:297:17 9:29 | 10:59/12:29/15:29/7:17| 8:05/8:53 17:4116:5316:05 12 | 6:28 |18:29/7:16/9:29/10:59/12:29/15:29/7:16 8:048:52 17:4116:5316:05 13|6:28 |18:29/7:16/9:28 | 10:58/12:2915:29/7:16| 8:048:52 17:4116:5316:05 146:27 |18:30/7:15|9:28/10:58|12:28 15:29/7:15| 8:038:51 17:4216:54/16:06
6:26 |18:30/7:14/9:27|10:58/12:28 15:29/7:14 | 8:028:50 17:4216:5416:06
| 6:26/18:30/7:149:27/10:57/12:28 15:297:148:028:50 17:4216:5416:06 17
6:25 |18:30/7:13/9:26/10:57 12:27/15:29/7:13|8:018:49 17:4216:54/16:06 18 | 6:24|18:30/7:12/9:26/10:5612:27 15:29/7:12 | 8:00|8:48 17:4216:5416:06 1916:24|18:307:12/9:25/10:56/12:27 15:28 7:12 | 8:00|8:48 17:4216:5416:06 206:23 /18:30/7:119:25 | 10:56/12:27/15:28|7:11|7:59/8:47 17:4216:5416:06 216:22 | 18:30/7:10/9:24/10:55/12:2615:28 7:10/7:58 8:46 17:4216:54/16:06 22 6:22 18:307:109:24/10:55/12:26/15:28 7:107:508:46 17:4216:5416:06
6:21/18:30/7:09/9:23|10:5512:26 15:287:09/7:578:45 17:4216:54/16:06 6:20|18:30/7:08|9:23|10:54/12:25/15:287:08|7:56/8:44/17:4216:54/16:06
|18:30/7:08|9:22|10:54/12:25/15:28 7:08 | 7:56/8:44 17:4216:5416:06 6:10|18:30/7:07 9:22/10:53/12:25 15:28|7:07 | 7:55/8:43 17:4216:5416:06 27 6:18|18:30/7:06/9:21 | 10:53/12:24/15:27 7:06 | 7:54 8:42 17:4216:5416:06 28 6:18 |18:31/7:06/9:21/10:53/12:24 15:27 7:067:548:42 17:43/16:5516:07 29 6:17|18:31/7:05|9:21 | 10:52/12:2415:27 7:00 | 7:53|8:41 17:43/16:5516:07 30|6:16/18:31/7:04/9:20/10:52/12:24/15:27 7:04/7:528:40/17:43/16:55/16:07 31 6:16 |18:31/7:049:2010:51/12:2315:27 7:04 | 7:528:40|17:43/16:55/16:07
15
16
23
24
*
जो समय पर भटकना जानता है उसे आपत्ति नहीं भाती.
*
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अप्रैल : बेंग्लोर सुबह की शाम की चारघडी छःघडी दोघडी चारघडी छःघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि 7:51 8:39 17:43 16:55 16:07 02 6:15 18:31 7:03 9:19 7:51 8:39 17:43 16:55 16:07 03 6:14 18:31 7:02 9:18 7:50 8:38 17:43 16:55 16:07 04 6:13 18:31 7:01 9:18 10:50 12:22 15:27 7:01 7:49 8:37 17:43 16:55 16:07 05 6:13 18:31 7:01 9:17 10:49 12:22 15:26 7:01 7:49 8:37 17:43 16:55 16:07 06 6:12 18:31 7:00 9:17 10:49 12:22 15:26 7:00 7:48 8:36 17:43 16:55 16:07 07 6:11 18:31 6:59 9:16 10:49 12:21 15:26 6:59 7:47 8:35 17:43 16:55 16:07 08 6:11 18:31 6:59 9:16 10:48 12:21 15:26 6:59 7:47 8:35 17:43 16:55 16:07 09 6:10 18:31 6:58 9:15 10:48 12:21 15:26 6:58 7:46 8:34 17:43 16:55 16:07
सूर्यो- सूर्यास्त नव- पोरसी दय कारसी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि 01 6:15 18:31 7:03 9:19 10:51 12:23 15:27 7:03 10:51 12:23 15:27 7:03 10:50 12:22 15:27 7:02
10 6:09 18:31 6:57 9:15 10:48 12:20 15:26 6:57 7:45 8:33 17:43 16:55 16:07 11 6:09 18:32 6:57 9:14 10:47 12:20 15:26 6:57 7:45 8:33 17:44 16:56 16:08 12 6:08 18:32 6:56 9:14 10:47 12:20 15:26 6:56 7:44 8:32 17:44 16:56 16:08
7:44 8:32 17:44 16:56 16:08
13 6:08 18:32 6:56 9:14 10:47 12:20 15:26 6:56 14 6:07 18:32 6:55 9:13 10:46 12:19 15:26 6:55 7:43 8:31 17:44 16:56 16:08 15 6:06 18:32 6:54 9:13 10:46 12:19 15:26 6:54 7:42 8:30 17:44 16:56 16:08 16 6:06 18:32 6:54 9:12 10:46 12:19 15:25 6:54 7:42 8:30 17:44 16:56 16:08 17 6:05 18:32 6:53 9:12 10:45 12:19 15:25 6:53 7:41 8:29 17:44 16:56 16:08 18 6:05 18:32 6:53 9:12 10:45 12:18 15:25 6:53 7:41 8:29 17:44 16:56 16:08 19 6:04 18:32 6:52 9:11 10:45 12:18 15:25 6:52 7:40 8:28 17:44 16:56 16:08 20 6:04 18:32 6:52 9:11 10:44 12:18 15:25 6:52 7:40 8:28 17:44 16:56 16:08 21 6:03 18:33 6:51 9:10 10:44 12:18 15:25 6:51 7:39 8:27 17:45 16:57 16:09 22 6:03 18:33 6:51 9:10 10:44 12:18 15:25 6:51 7:39 8:27 17:45 16:57 16:09 23 6:02 18:33 6:50 9:10 10:44 12:17 15:25 6:50 7:38 8:26 17:45 16:57 16:09 24 6:02 18:33 6:50 9:09 10:43 12:17 15:25 6:50 7:38 8:26 17:45 16:57 16:09 25 6:01 18:33 6:49 9:09 10:43 12:17 15:25 6:49 7:37 8:25 17:45 16:57 16:09 26 6:01 18:33 6:49 9:09 10:43 12:17 15:25 6:49 7:37 8:25 17:45 16:57 16:09
7:36 8:24 17:45 16:57 16:09
27 6:00 18:33 6:48 9:08 10:43 12:17 15:25 6:48 28 6:00 18:34 6:48 9:08 10:42 12:17 15:25 6:48 7:36 8:24 17:46 16:58 16:10 29 5:59 18:34 6:47 9:08 10:42 12:16 15:25 6:47 7:35 8:23 17:46 16:58 16:10 30 5:59 18:34 6:47 9:08 10:42 12:16 15:25 6:47 7:35 8:23 17:46 16:58 16:10
ता.
अवड्ढ
साड्ढ पुरी पोरसी मड्ढ | दोघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
सुकृत करने के बाद कभी उसकी निंदा मत करो.
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e
बेंग्लोर : मई
१००
ता. सूर्यो- सूर्यास्त नव- पोरसी साड्ढ कारसी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
दय
पुरी अवड्ढ पोरसी मड्ढ घं-मि घं-मि
| दोघडी घं-मि घं-मि
सुबह की शाम की चारघडी छःघडी दोघडी चारघडी छःघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
01
02 5:58 18:34 6:46 9:07 03 5:57 18:35 6:45 9:07 04 5:57 18:35 6:45 9:07 5:57 18:35 6:45 9:06 5:56 18:35 6:44 9:06
5:58 18:34 6:46 9:07 10:42 12:16 15:25 6:46 7:34 8:22 17:46 16:58 16:10 7:34 8:22 17:46 16:58 16:10 7:33 8:21 17:47 16:59 16:11 7:33 8:21 17:47 16:59 16:11 7:33 8:21 17:47 16:59 16:11 7:32 8:20 17:47 16:59 16:11 7:32 8:20 17:47 16:59 16:11 10:41 12:16 15:26 6:44 7:32 8:20 17:48 17:00 16:12
10:42 12:16 15:25 6:46 10:41 12:16 15:25 6:45 10:41 12:16 15:25 6:45 10:41 12:16 15:25 6:45 10:41 12:16 15:25 6:44
05
06
07
10:41 12:16 15:26 6:44
5:56 18:35 6:44 9:06 08 5:56 18:36 6:44 9:06 09 5:55 18:36 6:43 9:05 10:41 12:16 15:26 6:43 7:31 8:19 17:48 17:00 16:12
10 5:55 18:36 6:43 9:05 10:40 12:16 15:26 6:43 7:31 8:19 17:48 17:00 16:12 11 5:55 18:36 6:43 9:05 10:40 12:16 15:26 6:43 7:31 8:19 17:48 17:00 16:12 12 5:54 18:37 6:42 9:05 10:40 12:16 15:26 6:42 7:30 8:18 17:49 17:01 16:13 13 5:54 18:37 6:42 9:05 10:40 12:16 15:26 6:42 14 5:54 18:37 6:42 9:05 10:40 12:16 15:26 6:42 15 5:54 18:37 6:42 9:05 10:40 12:16 15:26 6:42 16 5:53 18:38 6:41 9:05 10:40 12:16 15:27 6:41 17 5:53 18:38 6:41 9:04 10:40 12:16 15:27 6:41 18 5:53 18:38 6:41 9:04 10:40 12:16 15:27 6:41 19 5:53 18:38 6:41 9:04 10:40 12:16 15:27 6:41 20 5:53 18:39 6:41 9:04 10:40 12:16 15:27 6:41 21 5:53 18:39 6:41 9:04 10:40 12:16 15:27 6:41
7:30 8:18 17:49 17:01 16:13 7:30 8:18 17:49 17:01 16:13 7:30 8:18 17:49 17:01 16:13 7:29 8:17 17:50 17:02 16:14 7:29 8:17 17:50 17:02 16:14 7:29 8:17 17:50 17:02 16:14 7:29 8:17 17:50 17:02 16:14 7:29 8:17 17:51 17:03 16:15 7:29 8:17 17:51 17:03 16:15
22
5:52 18:39 6:40 9:04 10:40 12:16 15:28 6:40
7:28 8:16 17:51 17:03 16:15
23 5:52 18:40 6:40 9:04 10:40 12:16 15:28 6:40 7:28 8:16 17:52 17:04 16:16 24 5:52 18:40 6:40 9:04 10:40 12:16 15:28 6:40 7:28 8:16 17:52 17:04 16:16 25 5:52 18:40 6:40 9:04 10:40 12:16 15:28 6:40 7:28 8:16 17:52 17:04 16:16 26 5:52 18:40 6:40 9:04 10:40 12:16 15:28 6:40 7:28 8:16 17:52 17:04 16:16
5:52 18:41 6:40 9:04 10:40 12:16 15:29 6:40 7:28 8:16 17:53 17:05 16:17
27 28 5:52 18:41 6:40 9:04 29 5:52 18:41 6:40 9:04 30 5:52 18:42 6:40 9:04 31
10:40 12:16 15:29 6:40 7:28 8:16 17:53 17:05 16:17 10:40 12:17 15:29 6:40 7:28 8:16 17:53 17:05 16:17 10:41 12:17 15:29 6:40 7:28 8:16 17:54 17:06 16:18 5:52 18:42 6:40 9:04 10:41 12:17 15:29 6:40 7:28 8:16 17:54 17:06 16:18
पाप करे के बाद कभी उसकी प्रशंसा मत करो.
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888
08
जुन : बेंग्लोर ता. | सूर्यो- | सूर्यास्त | नव- पोरसी| साडढ-| पुरी- अबढ़| सुबह की । शाम की
दय कारसी पोरसी| मढ़ दोघडी |चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी। घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि
5:52 |18:42|6:40/9:04|10:41 12:17 15:30/6:407:28 | 8:16 17:5417:0616:18 02 5:52|18:43/6:40/9:00|10:41 12:17 15:30/640/7:20|8:10 17:5517:0716:19 03 5:52|18:43/6:40/9:00|10:41/12:17 15:30/6:407:28| 8:16 17:55 17:0716:19 045:52 |18:43/6:40/9:05 10:41/12:18 15:30/6:40/7:28/8:10 17:55 17:0716:19
5:52 |18:43/6:409:05 | 10:41/12:18/15:316:40 | 7:28 | 8:16 17:5517:0716:19 5:52 18:446:40/9:05 | | 10:41/12:1815:316:40/7:28| 8:16 17:5617:0816:20 5:52 |18:446:40/9:05 10:42/12:18/15:316:40 | 7:28| 8:16 17:56 17:0816:20
5:52|18:446:40/9:05 |10:4212:18 15:316:40/7:28| 8:16 17:5617:0816:20 09 5:52 18:456:409:05 | 10:42|12:18/15:32 6:407:28/8:16 17:57 17:0916:21 108:52 18:45/6:40/9:06 10:42 12:1915:32 6:407:28/8:10/17:87 17:0916:21 115:53|18:45| 6:41/9:06 10:4212:1915:32 6:417:29/8:17 17:57 17:09/16:21 12 |5:53 |18:456:41/9:06 10:42/12:1915:326:41 | 7:29| 8:17 17:57 17:0916:21 135:53 18:46 6:419:06 |10:43/12:19 15:336:41 | 7:29/8:17 17:58 17:10 16:22 14|5:53 |18:46 6:41|9:06 |10:43/12:1915:33/6:41 | 7:29/8:17 17:58 17:10 16:22 15 5:53|18:46 6:419:06/10:43/12:20 15:336:41 | 7:29| 8:17 17:5817:10 16:22
5:53 18:47 6:419:07 | 10:43/12:20/15:33/6:41 | 7:29/8:17 17:5917:11/16:23 17 5:53|18:47/6:419:07/10:43/12:20 15:336:41|7:29/8:17 17:5917:11/16:23 18|5:54|18:47/6:429:07/10:44/12:20/15:346:42| 7:308:18 17:5917:11/16:23 195:54|18:47/6:42/9:07 10:44/12:21/15:346:427:30|8:18|17:59 17:11/16:23 205:54|18:47 6:42/9:07|10:44|12:21 15:346:42 | 7:30/8:18 17:59 17:11/16:23 215:54 18:48| 6:42/9:08 | 10:44/12:21 15:346:42 | 7:30/8:18 18:00/17:12|16:24
5:55 |18:48| 6:43|9:08 | 10:45/12:21 15:35/6:43 | 7:318:1918:00/17:12/16:24 23 |5:55/18:48|6:43|9:08|10:45/12-21/15:356:43/7:318:19 18:00/17:1216:24 24 5:50|18:48/6:43/9:08|10:45/12:2215:356:43/7:318:19/18:00/17:12/16:24 26 5:50|18:43|6:43/9:09/10:45 12:22 15:356:43/7:318:10 18:00 17:12/16:24 26 5:55/18:40/6:43/9:09/10:45/12:22 15:356:43 | 7:318:19|18:01 17:13/16:25 27 5:56/18:49/6:449:09/10:46/12:2215:36 6:44 | 7:328:20 18:01 17:13/16:25 28 |5:56 | 18:49/6:44/9:09 | 10:46/12:2215:36 6:44| 7:328:2018:01 17:13/16:25 29 5:56 | 18:49/6:44/9:09/10:46/12:23 15:36/6:44 | 7:328:20 18:01 17:13/16:25 305:57 | 18:49/6:45|9:10/10:46/12:23 15:36/6:457:33 8:21 18:01 17:13/16:25
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अहंकार दुर्गुणों का पिता है, नकाता मद्गुणों की माता है.
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बेंग्लोर : जुलाई ता. | सूर्यो- | सूर्यास्त | नव- पोरसी | साढ़-| पुरी- | अवड्ढ़| सुबह की
शाम की | दय । कारसी| पोरसी| मढ़ दोघडी |चारघडी छघडी दोघडी चारघडी छाघडी
घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि 01 5:57|18:49/6:45|9:10/10:47 12:23/15:36/6:45 | 7:33|8:21 18:01 17:1316:25
5:57|18:40/6:45|9:10/10:47/12:23/15:36/6:45 | 7:33|8:21 18:01 17:1316:25 5:57|18:50/6:45|9:10/10:47/12:23 15:37/6:45 | 7:33|8:21 18:02 17:14/16:261
5:58 18:50/6:46/9:11 | 10:47/12:24/15:37 6:46 | 7:348:22 18:0217:1416:26 05 5:58|18:50/6:46/9:11 10:47/12:24/15:37 6:46/7:348:22 18:0217:1416:26 06 5:58 18:50/6:46911 10:48|12:24/15:37/6:46 | 7:348:22 18:0217:1416:26
| 5:58|18:50/6:46/9:11 10:48/12:2415:37 6:46 | 7:348:22 18:02 17:14/16:26 08 5:59|18:50/6:47/9:12/10:48|12:24/15:376:47/7:35/8:23 18:02 17:14/16:26
B:59 18:50/6:47/9:12/10:48/12:24/15:37 6:47| 7:35/8:23 18:02 17:14/16:26 10|5:59/18:50/6:47/9:12/10:48|12:25 15:37 6:47 7:35/8:23 18:02 17:14/16:26 116:00|18:50/6:48|9:12 |10:48|12:25/15:376:48| 7:36 8:24 18:0217:14/16:26 12 6:00|18:50/6:48| 9:12|10:49/12:25/15:37 6:48 | 7:36 8:24 18:02 17:1416:26 13|6:00|18:50/6:48|9:13|10:49/12:25/15:37 6:48 | 7:36 8:24 18:0217:14/16:26 146:00|18:50/6:48|9:13 |10:49/12:25/15:37 6:48 | 7:36 8:24 18:02 17:14/16:26 15 |6:01 18:50/6:49/9:13|10:49/12:2515:37 6:49 | 7:37 8:25 18:02 17:14/16:26 166:01 18:50/6:499:13|10:49/12:25/15:37 6:49/7:37/8:23 18:02 17:1416:26 17 16:0118:40|6:40/9:13/10:49/12:25/15:37/6:49/7:37/8:25 18:01/17:13/16:25 18 | 6:02 18:49/6:50/9:13 | 10:49/12:25/15:37/6:507:38| 8:26 18:01 17:13/16:25 196:02 |18:49/6:509:14/10:50/12:25/15:37 6:50/7:38| 8:26 18:01 17:1316:25 206:02 18:49/6:509:14 | 10:50/12:26/15:37 6:507:38 8:26 18:01 17:13/16:25 21 6:02 |18:49/6:50/9:14/10:50/12:2615:37 6:50| 7:38| 8:2618:01 17:13/16:25
6:03 |18:49/6:519:14/10:50/12:2615:37/6:51 | 7:39/8:27 18:01 17:13/16:25 6:03/18:40|6:519:14/10:50/12:26/15:376517:39/8:27 18:01 17:13/16:25
|6:03|18:40|6:519:14|10:50/12:26/15:37651|7:39/8:27 18:00 17:12/16:24 25/6:03/18:40|6:519:14/10:50/12:26/15:37/6:51|7:39/8:27 18:00/17:12 16:24 26 6:0418:48| 6:52/9:15 10:50/12:2615:37 6:52 | 7:40|8:28 18:00 17:12/16:24 27 16:04|18:486:52 9:15 | 10:50/12:2615:37 6:52 | 7:40|8:28 18:00 17:12|16:24 28 | 6:04|18:47/6:52 9:15 |10:50/12:2615:37 6:52 | 7:40|8:28 17:5917:11/16:23 29 6:04/18:47/6:529:15/10:50/12:26/15:366:52 | 7:40|8:28 17:59/17:11/16:23 30|6:04/18:47/6:52/9:10/10:50/12:26/15:36/6:52|7:40|8:2817:59/17:11/16:23 31 |608 |18:47| 6:53/9:15/10:50/12:2615:36/683 | 7:41/ 0:2917:59/17:11/16:23
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अपेक्षा जितनी ज्यादा, भांति उतनी ज्यादा.
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अगस्त : बेंग्लोर ता. | सूर्यो- | सूर्यास्त | नव- | पोरसी | साढ़-| पुरी- | अवड्ढ़| सुबह की
शाम की दय । कारसी| पोरसी| मढ़ दोघडी |चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि 6:05 |18:46/6:53/9:15 |10:50/12:25/15:36/6:53 | 7:41|8:29 17:5817:1016:22
6:05 18:46/6:53/9:15 | 10:50/12:25/15:36/6:53/7:418:29 17:5817:1016:22 03 16:05/18:45/6:539:15 | 10:50/12:25/15:356:53/7:418:29 17:57 17:0916:21
6:05 18:45/6:539:15 |10:50/12:25/15:356:53 | 7:418:29 17:5717:0916:21 |6:06/18:456:54/9:15/10:50/12:25 15:356:54 | 7:428:30 17:57 17:0916:21
6:06 18:446:549:15 | 10:50|12:25/15:356:547:42 8:30 17:56 17:0816:20 07 6:06 18:446:549:15 10:50/12:25/15:346:547:42 8:30 17:5617:0816:20 08 6:06/18:446:549:10|10:50/12:25 15:346:54/7:428:30 17:5617:08/16:20 09 16:06/18:43/6:54/9:15/10:50/12:25 15:346:547:428:30 17:55/17:07/16:19 10|6:06/18:43/6:54/9:15/10:50/12:25 15:346:547:428:30 17:55 17:07/16:19 11 6:07 |18:426:55|9:15 |10:50/12:2415:33/6:557:43|8:31 17:54 17:0616:18 12|6:07 |18:42|6:55|9:15 |10:50/12:24/15:336:55 | 7:43|8:31 17:5417:0616:18 136:07 18:416:559:15 | 10:50/12:24/15:336:557:438:31 17:53 17:0516:17 146:07 |18:41/6:55|9:15/10:50/12:24/15:326:55 | 7:438:31 17:5317:0516:17 15 6:07 |18:406:55|9:15 |10:4912:24/15:326:55 | 7:438:31 17:52 17:0416:16
16:07/18:40/6:509:15/10:49/12:23 15:32655/7:43|831 17:5217:0416:16
|6:07 |18:30/6:55|9:15 | 10:49/12:23/15:31/6:557:43|8:31 17:5117:03/16:15 18 |6:07 18:306:559:15 | 10:49 12:2315:316:557:438:31 17:51/17:03/16:15 1916:07 18:386:55|9:15/10:49/12:23 15:306:55/7:43|8:31 17:50 17:02/16:14 20|6:07 |18:38/6:55|9:15/10:49/12:23 15:306:55| 7:438:31 17:50 17:02/16:14 21 |6:08|18:37/6:56/9:15/10:49/12:2215:306:56| 7:448:32 17:49 17:01 16:13
6:08 | 18:36/6:56/9:15/10:48/12:2215:29/6:56/7:448:32 17:48 17:00/16:12 23|6:08|18:36/6:56/9:15 | 10:48/12:22 15:29/6:567:448:32 17:48 17:00/16:12 24 |6:08/18:356:56/9:15/10:48|12:21 15:28/6:56/7:448:32 17:47 16:5916:11 25 6:00 18:30 6:56 9:15 10:40/12:21 15:20 6:56 7:44832 17:47 16:5916:11 26 |6:08 18:346:56/9:14 10:48 12:21 15:27 6:56/7:448:32 17:4616:58/16:10 27 |6:08 | 18:33/6:56/9:14|10:47/12:21 15:27 6:56 | 7:448:32 17:4516:57 16:09 28 |6:08 | 18:33/6:56/9:14|10:47/12:2015:27/6:567:448:32 17:45/16:5716:09
6:08 | 18:326:56/9:14|10:47/12:20 15:26/6:567:448:32 17:44/16:56/16:08 30|6:08| 18:31/6:56/9:14/10:47/12:20 15:26 6:56/7:448:32 17:43/16:55/16:07 31 |6:08 | 18:31/6:56/9:1410:47/12:1915:20/656 7:448:32|17:43 16:08/16:07
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किसी सच्चे मंत को मित्र बनाओ जो हमेशा तुम्हारा हित को.
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बेंग्लोर : सीतम्बर ता. | सूर्यो- सूर्यास्त | नव- | पोरसी | साढ़-| पुरी- | अबढ़ _सुबह की
शाम की दय कारसी पोरसी| मढ़ दोघडी चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी।
घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि 01 6:08 |18:30/6:56/9:14|10:4612:1915:256:56/7:448:32 17:4216:546:06
6:00|18:29/6:56/9:13|10:4612:1915:24/6:56/7:448:32 17:4116:5346:08 6:08|18:29/6:56/9:13|10:4612:18 15:24/6:56/7:448:32 17:4116:5346:08 6:08|18:28| 6:56/9:13 |10:46/12:18 15:23/6:56/7:448:32 17:4016:5216:04 |6:08 | 18:27/6:569:13 | 10:45/12:1815:236:56 | 7:448:32 17:3916:5116:03 6:08 18:27/6:56 19:13 |10:45/12:17 15:22 6:56 | 7:448:32 17:3916:5116:03 6:08 18:26/6:56/9:13 10:45/12:17 15:226:56 | 7:448:32 17:3816:5016:02 6:08 |18:25/6:56/9:13|10:45 12:17 15:216:567:448:32 17:37 16:4916:01
6:08 | 18:25/6:56/9:12|10:44/12:16/15:216:56| 7:448:32 17:3716:4916:01 10|6:08|18:24/6:56/9:12/10:44|12:16/15:20/656/7:448:32 17:3616:4816:00 11 |6:08|18:23|6:56/9:12/10:44/12:16/15:19/656/7:448:32 17:3516:47/15:59 12 |6:08 |18:23|6:56/9:12/10:44|12:15/15:19/6:56| 7:448:32 17:3516:4715:59 13|6:08 18:22|6:56/9:12 | 10:43/12:15 15:18 6:56/7:448:32 17:3416:4615:58 146:08 |18:21/6:56/9:11 10:43/12:15 15:18 6:56 7:448:32 17:3316:45/15:57 15 6:08 |18:206:56/9:11 10:43/12:14/15:17/6:56| 7:448:32 17:3216:4415:56 16 6:08 | 18:20/6:56/9:11/10:43/12:1415:176:567:448:32 17:3216:4415:56 17 |
|6:08|18:10/6:56/9:11/10:42/12:14 15:16/6:56/7:448:32 17:3116:43/15:55 10|6:08|18:10/6:56/9:11/10:42|12:13 15:16/6:567:448:32 17:30/16:42/15:54 106:00|18:18| 6:56/9:11/10:42|12:13 15:156:56/7:448:32 17:30/16:4215:54 20|6:08|18:17 6:56/9:10|10:41/12:13 15:156:56 | 7:448:32 17:2916:41 15:53 2146:08 |18:16/6:56/9:10/10:41 12:1215:146:56/7:448:32 17:2816:40/15:52 22 |6:08 18:156:56/9:10/10:41/12:1215:146:56 7:448:32 17:27 16:3915:51 23
|6:08|18:156:56/9:10|10:41/12:11/15:136:567:448:32 17:2716:3915:51 246:08/18:1468619:10/10:40/12:11/15:13/65617:448:32 17:2616:38|15:50 20|6:08|18:13/6:56/9:10/10:40/12:11 15:126:567:448:32 17:26/16:37|15:49 26/6:08/18:13/6:56/9:09/10:40/12:10 15:12 6:567:448:32 17:25/16:37|15:49 27 |
|6:08/18:126:56/9:09/10:40/12:10 15:116:56| 7:448:32 17:2416:3615:48 28 |6:08/18:11/6:5619:09/10:30/12:10 15:10 6:567:448:32 17:2316:3515:47 29 6:08 | 18:10/6:56/9:09/10:3912:09 15:10/6:56| 7:448:32 17:2216:3415:46 30|6:08 | 18:10/6:56/9:09/10:39/12:0915:096567:448:32 17:2216:3415:46
भालम अमावस्या है, पुरुषार्थ पूर्णिमा है.
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१०५)
ता.
अक्तुम्बर : बेंग्लोर
सुबह की
सूर्यो- सूर्यास्त नव- पोरसी दय कारसी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
साड्ढ पुरी अवड्ढ पोरसी मड्ढ घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
शाम की | दोघडी चारघडी छःघडी दोघडी चारघडी छःघडी
घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
01 6:08 18:09 6:56 9:09 10:39 12:09 15:09 6:56 7:44 8:32 17:21 16:33 15:45
7:45 8:33 17:20 16:32 15:44
9:08 9:08
02 6:09 18:08 6:57 03 6:09 18:08 6:57 7:45 8:33 17:20 16:32 15:44 04 6:09 18:07 6:57 9:08 7:45 8:33 17:19 16:31 15:43 05 6:09 18:06 6:57 9:08 10:38 12:08 15:07 6:57 7:45 8:33 17:18 16:30 15:42
10:38 12:08 15:08 6:57 10:38 12:08 15:08 6:57 10:38 12:08 15:07 6:57
06 6:09 18:06 6:57 9:08 10:38 12:07 15:07 6:57 07 6:09 18:05 6:57 9:08 10:37 12:07 15:06 6:57 08 6:09 18:04 6:57 9:08 10:37 12:07 15:06 6:57 09 6:09 18:04 6:57 9:08 10:37 12:06 15:05 6:57 10 6:09 18:03 6:57 9:08 10:37 12:06 15:05 6:57 11 6:09 18:03 6:57 9:07 10:37 12:06 15:04 6:57 12 6:09 18:02 6:57 9:07 10:36 12:06 15:04 6:57 13 6:09 18:01 6:57 9:07 10:36 12:05 15:03 6:57 14 6:09 18:01 6:57 9:07 10:36 12:05 15:03 6:57 15 6:10 18:00 6:58 10:36 12:05 15:03 6:58 16 6:10 18:00 6:58 10:36 12:05 15:02 6:58 17 6:10 17:59 6:58 10:36 12:04 15:02 6:58 18 6:10 17:59 6:58 10:36 12:04 15:01 6:58 19 6:10 17:58 6:58 9:07 10:36 12:04 15:01 6:58 20 6:10 17:58 6:58 9:07 10:35 12:04 15:01 6:58 7:46 8:34 17:10 16:22 15:34
7:45 8:33 17:18 16:30 15:42 7:45 8:33 17:17 16:29 15:41 7:45 8:33 17:16 16:28 15:40 7:45 8:33 17:16 16:28 15:40 7:45 8:33 17:15 16:27 15:39 7:45 8:33 17:15 16:27 15:39 7:45 8:33 17:14 16:26 15:38 7:45 8:33 17:13 16:25 15:37
7:45 8:33 17:13 16:25 15:37
9:07 9:07 9:07 9:07
7:46 8:34 17:12 16:24 15:36 7:46 8:34 17:12 16:24 15:36 7:46 8:34 17:11 16:23 15:35 7:46 8:34 17:11 16:23 15:35
7:46 8:34 17:10 16:22 15:34
21 6:10 17:57 6:58 9:07 10:35 12:04 15:00 6:58 7:46 8:34 17:09 16:21 15:33 22 6:11 17:57 6:59 9:07 10:35 12:04 15:00 6:59 7:47 8:35 17:09 16:21 15:33 23 6:11 17:56 6:59 9:07 10:35 12:03 15:00 6:59 7:47 8:35 17:08 16:20 15:32 24 6:11 17:56 6:59 9:07 10:35 12:03 14:59 6:59 7:47 8:35 17:08 16:20 15:32 25 6:11 17:55 6:59 9:07 10:35 12:03 14:59 6:59 7:47 8:35 17:07 16:19 15:31 26 6:11 17:55 6:59 9:07 10:35 12:03 14:59 6:59 7:47 8:35 17:07 16:19 15:31
7:48 8:36 17:06 16:18 15:30
7:48 8:36 17:06 16:18 15:30
27 6:12 17:54 7:00 9:07 10:35 12:03 14:59 7:00 28 6:12 17:54 7:00 9:07 10:35 12:03 14:58 7:00 29 6:12 17:54 7:00 9:07 10:35 12:03 14:58 7:00 7:48 8:36 17:06 16:18 15:30 30 6:12 17:53 7:00 9:08 10:35 12:03 14:58 7:00 7:48 8:36 17:05 16:17 15:29 7:49 8:37 17:05 16:17 15:29
31 6:13 17:53 7:01 9:08 10:35 12:03 14:58 7:01
मलाई बिन दूध निकम्मा, भलाई बिन जीवन निकम्मा.
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१०६
बेंग्लोर : नवम्बर
दय
सुबह की शाम की चारघडी छःघडी दोघडी चारघडी छःघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
7:49 8:37 17:05 16:17 15:29
ता. सूर्यो- सूर्यास्त नव- पोरसी साड्ढ पुरी अवड्ढ कारसी पोरसी मड्ढ | दोघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि 01 6:13 17:53 7:01 9:08 10:35 12:03 14:58 7:01 02 6:13 17:52 7:01 9:08 10:35 12:03 14:57 7:01 03 6:14 17:52 7:02 10:35 12:03 14:57 7:02 04 6:14 17:52 7:02 10:35 12:03 14:57 7:02 05 6:14 17:51 7:02 9:08 10:36 12:03 14:57 7:02 06 6:14 17:51 7:02 9:09 10:36 12:03 14:57 7:02 7:50 8:38 17:03 16:15 15:27
9:08
7:49 8:37 17:04 16:16 15:28 7:50 8:38 17:04 16:16 15:28 7:50 8:38 17:04 16:16 15:28
9:08
7:50 8:38 17:03 16:15 15:27
07 6:15 17:51 7:03 9:09 10:36 12:03 14:57 7:03 7:51 8:39 17:03 16:15 15:27 08 6:15 17:51 7:03 9:09 10:36 12:03 14:57 7:03 7:51 8:39 17:03 16:15 15:27 09 6:16 17:50 7:04 9:09 10:36 12:03 14:57 7:04 7:52 8:40 17:02 16:14 15:26 10 6:16 17:50 7:04 9:10 10:36 12:03 14:57 7:04 7:52 8:40 17:02 16:14 15:26 11 6:16 17:50 7:04 9:10 10:36 12:03 14:57 7:04 7:52 8:40 17:02 16:14 15:26 12 6:17 17:50 7:05 9:10 10:37 12:03 14:57 7:05 7:53 8:41 17:02 16:14 15:26 13 6:17 17:50 7:05 9:10 10:37 12:03 14:57 7:05 7:53 8:41 17:02 16:14 15:26 14 6:18 17:50 7:06 9:11 10:37 12:04 14:57 7:06 7:54 8:42 17:02 16:14 15:26 15 6:18 17:50 7:06 9:11 10:37 12:04 14:57 7:06 7:54 8:42 17:02 16:14 15:26 16 6:18 17:50 7:06 9:11 10:38 12:04 14:57 7:06 7:54 8:42 17:02 16:14 15:26 17 6:19 17:49 7:07 9:11 10:38 12:04 14:57 7:07 7:55 8:43 17:01 16:13 15:25 18 6:19 17:49 7:07 9:12 10:38 12:04 14:57 7:07 7:55 8:43 17:01 16:13 15:25 19 6:20 17:49 7:08 9:12 10:38 12:05 14:57 7:08 7:56 8:44 17:01 16:13 15:25 20 6:20 17:49 7:08 9:13 10:39 12:05 14:57 7:08 7:56 8:44 17:01 16:13 15:25 21 6:21 17:49 7:09 9:13 10:39 12:05 14:57 7:09 7:57 8:45 17:01 16:13 15:25 22 6:21 17:50 7:09 9:13 10:39 12:05 14:57 7:09
7:57 8:45 17:02 16:14 15:26
23 6:22 17:50 7:10 9:14 10:40 12:06 14:58 7:10 7:58 8:46 17:02 16:14 15:26 24 6:22 17:50 7:10 25 6:23 17:50 7:11
10:40 12:06 14:58 7:10 10:40 12:06 14:58 7:11 26 6:23 17:50 7:11 9:15 10:41 12:07 14:58 7:11
9:14 9:14
7:58 8:46 17:02 16:14 15:26 7:59 8:47 17:02 16:14 15:26 7:59 8:47 17:02 16:14 15:26
27 6:24 17:50 7:12 9:15 10:41 12:07 14:58 7:12 8:00 8:48 17:02 16:14 15:26 28 6:24 17:50 7:12 9:16 10:41 12:07 14:59 7:12 8:00 8:48 17:02 16:14 15:26 29 6:25 17:50 7:13 9:16 10:42 12:08 14:59 7:13 8:01 8:49 17:02 16:14 15:26 30 6:25 17:51 7:13 9:17 10:42 12:08 14:59 7:13 8:01 8:49 17:03 16:15 15:27
टी.वी. जीवन को खराब करने की मशीन है.
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ता.
दिसम्बर : बेंग्लोर
सूर्यो- सूर्यास्त नव- पोरसी दय कारसी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
साड्ढ पुरी अवड्ढ पोरसी मड्ढ | दोघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
सुबह की शाम की चारघडी छःघडी दोघडी चारघडी छःघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
01 6:26 17:51 7:14 9:17 10:43 12:08 15:00 7:14 02 6:26 17:51 7:14 9:18 10:43 12:09 15:00 7:14 03 6:27 17:51 7:15 9:18 10:44 12:09 15:00 7:15 04 6:27 17:51 7:15 9:18 05
8:02 8:50 17:03 16:15 15:27 8:02 8:50 17:03 16:15 15:27 8:03 8:51 17:03 16:15 15:27 8:03 8:51 17:03 16:15 15:27 6:28 17:52 7:16 9:19 10:44 12:10 15:01 7:16 8:04 8:52 17:04 16:16 15:28
10:44 12:09 15:00 7:15
6:29 17:52 7:17 9:19 10:45 12:10 15:01 7:17 8:05 8:53 17:04 16:16 15:28
06 07 6:29 17:52 7:17 9:20 10:45 12:11 15:02 7:17 08 6:30 17:53 7:18 9:20 10:46 12:11 15:02 7:18 09 6:30 17:53 7:18 9:21 10:46 12:12 15:02 7:18 10 6:31 17:53 7:19 9:21 10:47 12:12 15:03 7:19 11 6:31 17:54 7:19 9:22 10:47 12:13 15:03 7:19 12 6:32 17:54 7:20 9:22 10:48 12:13 15:04 7:20 13 6:32 17:55 7:20 9:23 10:48 12:13 15:04 7:20 14 6:33 17:55 7:21 9:23 10:49 12:14 15:04 7:21 15 6:33 17:55 7:21 9:24 10:49 12:14 15:05 7:21 16 6:34 17:56 7:22 9:24 10:50 12:15 15:05 7:22 17 6:35 17:56 7:23 9:25 10:50 12:15 15:06 7:23 18 6:35 17:57 7:23 9:25 10:51 12:16 15:06 7:23 19 6:36 17:57 7:24 9:26 10:51 12:16 15:07 7:24 20 6:36 17:58 7:24 9:26 10:52 12:17 15:07 7:24
8:05 8:53 17:04 16:16 15:28 8:06 8:54 17:05 16:17 15:29 8:06 8:54 17:05 16:17 15:29 8:07 8:55 17:05 16:17 15:29 8:07 8:55 17:06 16:18 15:30 8:08 8:56 17:06 16:18 15:30 8:08 8:56 17:07 16:19 15:31 8:09 8:57 17:07 16:19 15:31 8:09 8:57 17:07 16:19 15:31 8:10 8:58 17:08 16:20 15:32 8:11 8:59 17:08 16:20 15:32 8:11 8:59 17:09 16:21 15:33 8:12 9:00 17:09 16:21 15:33 8:12 9:00 17:10 16:22 15:34
21
6:37 17:58 7:25 9:27 10:52 12:17 15:08 7:25 8:13 9:01 17:10 16:22 15:34
6:37 17:59 7:25 9:27 10:53 12:18 15:08 7:25 8:13 9:01 17:11 16:23 15:35
6:38 17:59 7:26 9:28 10:53 12:18 15:09 7:26 8:14 9:02 17:11 16:23 15:35
23 24 6:38 18:00 7:26 9:28 8:14 9:02 17:12 16:24 15:36 25 6:38 18:00 7:26 9:29 8:14 9:02 17:12 16:24 15:36 26 6:39 18:01 7:27 9:29 10:55 12:20 15:10 7:27 8:15 9:03 17:13 16:25 15:37
10:54 12:19 15:09 7:26 10:54 12:19 15:10 7:26
27
6:39 18:01 7:27 9:30 10:55 12:2015:11 7:27 8:15 9:03 17:13 16:25 15:37 28 6:40 18:02 7:28 9:30 10:56 12:21 15:11 7:28 8:16 9:04 17:14 16:26 15:38
29 6:40 18:02 7:28 9:31 10:56 12:21 15:12 7:28 8:16 9:04 17:14 16:26 15:38 30 6:41 18:03 7:29 9:31 10:57 12:22 15:12 7:29 8:17 9:05 17:15 16:27 15:39 8:17 9:05 17:15 16:27 15:39
31 6:41 18:03 7:29 9:32 10:57 12:22 15:13 7:29
9019
22
प्रार्थना से ईश्वर नहीं, प्रार्थना करने वाला बदलता है.
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8000
मदुरै : जनवरी ता. | सूर्यो- सूर्यास्त | नव- पोरसी | साढ़-| पुरी- | अवड्ढ़| सुबह की
शाम की दय कारसी पोरसी| मढ़ दोघडी चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी। घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि
6:34|18:07 7:22/9:27 10:5412:20/15:147:22 | 8:108:58 17:1916:3115:43 02 |6:34|18:07/7:229:27 | 10:54/12:21/15:147:22 | 8:108:58 17:1916:3115:43 03|6:34|18:00/7:22/9:20|10:56/12:21 15:15/7:228:10/858 17:2016:3215:44 046:35 18:08|7:23/9:28 | 10:55/12:22 15:157:23 | 8:11|8:59 17:2016:3215:44
6:35 |18:09/7:23/9:29/10:5512:2215:16 7:23|8:11|8:59 17:2116:3315:45 06 6:36 18:10/7:249:29/10:56/12:23 15:16 7:248:12/9:00 17:2216:3415:46
6:36 |18:10/7:24/9:29/10:56 12:23 15:17 7:24| 8:12/9:00 17:2216:3415:46 6:36 |18:11|7:24|9:30|10:57 12:23 15:17 7:24| 8:12/9:00 17:2316:3515:47
6:37 18:11|7:259:30 | 10:57 12:24/15:17 7:258:13/9:01 17:2316:3515:47 10|6:37|18:12/7:25/9:31 |10:57/12:24/15:107:25 | 8:13/9:01 17:2416:36/15:40 116:37 |18:12/7:25/9:31 10:58/12:25 15:18| 7:25 | 8:13/9:01 17:24/16:36/15:48 12 6:37 |18:13/7:25|9:31 |10:58|12:25/15:19 7:25 | 8:13/9:01 17:2516:3715:49 13 6:38 | 18:13/7:26/9:32 | 10:58|12:25 15:197:26 | 8:14/9:02 17:2516:3715:49 146:38 |18:147:26/9:32 10:59/12:2615:20/7:26 | 8:149:02 17:2616:3815:50 15 6:38 |18:147:26/9:32 |10:59/12:2615:20 7:26/8:149:02 17:2616:38|15:50 16 |6:30|18:15/7:26/9:32/10:59/12:27/15:21|7:268149:02 17:27 16:3915:51 17 16:39|18:15/7:27/9:33|11:00/12:27 15:21|7:27|8:15|9:03 17:27/16:3915:51 18 | 6:39/18:16/7:27/9:33 | 11:00/12:27 15:21|7:27 | 8:15|9:03 17:28/16:40|15:52 19 6:39/18:16/7:27 9:33 | 11:00/12:28 15:227:27 | 8:15|9:03 17:2816:40|15:52 20|6:39 |18:17 7:27|9:33 |11:01 12:28 15:22 7:27| 8:15|9:03 17:2916:41 15:53 216:39 18:17 7:27 9:34|11:01/12:2815:23 7:27 8:15 9:03 17:29/16:41/15:53 22 6:39 |18:18|7:27|9:34|11:01/12:28 15:237:27| 8:15|9:03 17:30/16:42|15:54 23|6:39 18:18|7:27|9:34|11:01/12:29 15:237:27| 8:15|9:03 17:30/16:4215:54 246:39/18:18|7:27/9:34|11:02/12:29 15:24/7:27| 8:15/9:03 17:30/16:42 15:54 206:40|18:10/7:28/9:34|11:02/12:2915:247:28 | 8:16/9:04 17:3116:43|15:55 26/6:40|18:10/7:28|9:34|11:02/12:29 15:247:28 | 8:16/9:04 17:3116:43/15:55 27 16:40|18:20/7:28| 9:35/11:02/12:30 15:257:28 | 8:16/9:04 17:32 16:4415:56 28 16:40|18:20/7:28| 9:35 | 11:02/12:30 15:25/7:28 | 8:16/9:04 17:32 16:4415:56 29/6:40|18:21/7:28 | 9:35 | 11:02/12:30 15:257:28 | 8:16/9:04 17:33/16:4515:57 306:40|18:21|7:20/9:30|11:03/12:30 15:26/7:20|8:10/9:04/17:33/16:45/15:57 316:40|18:21/7:28/9:30 11:03/12:30/15:26/7:20 | 816/9:04/17:33/16:45/15:07
पढ़ना तो सभी जानते हैं, क्या पढ़ना यह विरले ही जानते हैं.
४
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01
88888
फरवरी : मदुरै ता. | सूर्यो- सूर्यास्त | नव- पोरसी | साड्ढ-| पुरी- | अवड्ढ| सुबह की
शाम की दय कारसी पोरसी| मढ़ दोघडी चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी। घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि
6:39 18:22/7:27/9:35 |11:03/12:31 15:26 7:27 | 8:15|9:03 17:3416:4615:58 02 6:39 18:22/7:27/9:35 |11:03/12:31 15:26/7:27 | 8:15|9:03 17:3416:4615:58
6:39 18:22/7:27 9:35 |11:03/12:31 15:27 7:27 | 8:15|9:03 17:3416:4615:58 04 6:3918:23/7:27/9:35 | 11:03/12:31/15:27 7:27 :15|9:03 17:3516:4715:59 06 16:39/18:23/7:27/9:35/11:03/12:31/15:277:27|8:15|9:03 17:3516:4715:59
16:39 18:23/7:27 9:30 11:03/12:31/15:27 7:27 | 8:15|9:03 17:3516:4715:59 07 6:39 18:24/7:27 9:35 11:0312:31 15:27 7:27 | 8:15 9:03 17:3616:4816:00
6:39 |18:24/7:27|9:35 |11:03/12:31 15:28 7:27 | 8:15|9:03 17:3616:4816:00 09 6:38 | 18:24/7:26/9:35 | 11:03/12:31 15:28|7:26| 8:149:02 17:3616:4816:00 10|6:38|18:24/7:26/9:38|11:03/12:31 15:28/7:268149:02 17:3616:4816:00 11 16:38|18:25/7:26/9:38 | 11:03/12:31/15:28/7:268149:02 17:3716:49/16:01 12 16:38|18:25/7:26/9:35/11:03/12:31/15:28 7:26814/9:02 17:3716:49/16:01 13|6:37 |18:25/7:25|9:34|11:03/12:31 15:28 7:25 | 8:13/9:01 17:3716:4916:01 146:37 |18:25/7:25|9:34|11:03 12:31 15:28 7:25 | 8:13/9:01 17:3716:4916:01 15 |6:37 |18:26/7:259:34|11:03/12:31 15:28 7:25 | 8:13/9:01 17:3816:5016:02
6:37 |18:26/7:25|9:34 | 11:03 12:31 15:28 7:25/8:13/9:01 17:3816:50/16:02 17 | 6:36 |18:26/7:24/9:34|11:02/12:31/15:29/7:24 | 8:12 9:00 17:3816:50/16:02 18|6:30|18:26/7:24/9:34|11:02/12:31 15:29/7:24/12/9:00|17:3816:50|16:02 1916:30|18:26/7:24| 9:33|11:02/12:31/15:29/7:248:12/9:00 17:30/16:50/16:02 206:35 |18:26/7:23/9:33/11:02/12:31 15:297:23|8:11 8:59 17:3816:50/16:02 21 6:35 18:27 7:23/9:33 | 11:02/12:31 15:29 7:23|8:11 8:59 17:3916:5116:03 22 6:35 |18:27 7:23/9:33|11:02/12:31 15:29/7:23|8118:59 17:39/16:5116:03 23 16:34|18:27/7:22/9:32|11:01 12:31 15:29/7:22| 8:108:58 17:3916:5116:03 24 | 6:34|18:27/7:22/9:32|11:01 12:30 15:297:22| 8:108:58|17:3916:5116:03 256:33|18:27/7:21/9:32|11:01/12:30 15:29/7:21|8:09/887 17:30/16:51/16:03 26 6:33|18:27/7:21/9:32|11:01/12:30 15:29/7:21|8:09/8:57 17:3916:5116:03 27633|18277219:31 | 11:01/12:3015:297:218:00/857 17:39/16:51/16:03 28 16:32|18:27/7:20/9:31 | 11:00/12:30 15:29 7:208:08| 8:56 17:39/16:5116:03 29 6:32 18:27 7:20 9:31 11:00 12:3015:28 7:20 8:08 8:56 17:3916:51/16:03
16
शिक्षण माँ के चरणों में से प्रारंभ होता हैं.
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मदुरै : मार्च ता. | सूर्यो- | सूर्यास्त| नव- पोरसी | साळ-| पुरी- | अवठ्ठ| सुबह की
शाम की | कारसी| पोरसी| मढ़| दोघडी |चारघडी छःघडी दोघडी चारघडी छाघडी घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
6:31 |18:28/7:109:30/11:00/12:2915:28/7:19/8:07/8:55 17:4016:5216:04 02 16:31/18:28|7:10/9:30|11:00/12:2915:28 7:108:07/8:55 17:4016:5216:04 03 16:30 18:20 71109:30|10:59/12:29 15:28 7:108:06/8:54 17:4016:5216:04
6:30 18:28 7:18/9:29 | 10:59/12:29/15:28/7:18 | 8:06/8:54 17:4016:52h6:04 05 6:29/18:28/7:17 9:29/10:59/12:28 15:28 7:17 | 8:058:53 17:4016:5216:04 06 6:29 18:28 7:17 9:28 | | 10:58/12:28/15:28 7:17 8:05/8:53 17:4016:5216:04 07 |6:28 |18:287:169:28 | 10:58|12:28 15:28 7:1618:048:52 17:4016:52h6:0a 08 6:28 |18:28/7:16/9:20|10:58/12:20/15:29/7:168048:52 17:4016:5216:04
6:27 18:28/7:15|9:27/10:57/12:28 15:28/7:108:038:51 17:4016:5216:04 10|6:27 |18:28/7:15/9:27 10:57/12:27/15:28 7:15 | 8:03/8:51 17:40 16:5216:04 116:26/18:28/7:149:27 | 10:57/12:27 15:27 7:148:02| 8:50 17:4016:5216:04 12 6:26 |18:28/7:149:26 | 10:56/12:27/15:27 7:148:028:50 17:4016:5216:04 13|6:25 |18:28/7:13/9:26/10:56/12:2615:27 7:13 | 8:018:49 17:4016:5216:04
6:24|18:28/7:12/9:25/10:56/12:2615:27 7:12 | 8:00/8:48 17:4016:5216:04 6:24|18:28/7:12/9:25/10:55/12:2615:27 7:12 | 8:00|8:48 17:4016:5216:04 6:23|18:28/7:119:24/10:55/12:26/15:27 7:11 | 7:59/8:47 17:4016:5216:04
|6:23|18:28/7:119:24/10:55/12:25/15:27 7:11|7:59/8:47 17:40/16:5216:04 18 | 6:22|18:28|7:10/9:24|10:54/12:25/15:267:10/7:58| 8:46 17:4016:5216:04 19 | |6:22 |18:28/7:10/9:23 |10:54/12:25/15:267:107:58| 8:46 17:40/16:52|16:04 20|6:21 18:287:09/9:23 |10:54/12:24/15:267:09 | 7:57 8:45 17:4016:5216:04 21 6:20|18:28/7:08 | 9:22/10:53|12:24/15:26/7:08 | 7:56 8:44 17:4016:52/16:04 22
6:20 18:20/7:009:2210:53 12:24 18:26 7:007:56 8:44 17:4016:02/16:04 23|6:10/18:28/7:07 9:21 | 10:52/12:24/15:267:07 | 7:55/8:43|17:40/16:52|16:04 246:10|18:20/7:07/9:21/10:52 12:23 15:257:07/7:558:43|17:4016:5216:04 25 6:18 | 18:28/7:06/9:21 10:52/12:23 15:257:06/7:548:42 17:40/16:52|16:04 26 6:18 |18:28/7:06/9:20/10:51/12:23 15:257:06 | 7:548:42 17:4016:5216:04 27 6:17|18:28/7:05|9:20|10:51/12:22 15:25/7:05/7:53|8:41 17:40/16:52|16:04 28 |6:16/18:28/7:04/9:19/10:51/12:2215:257:047:528:40 17:40/16:5216:04 29616/18:28/7:04/9:10|10:50/12:22 15:20/7:04/7:528:40/17:40/16:52|16:04 30|6:10|18:28/7:03/9:10|10:50/12:21/15:257:03/7:518:39/17:40/16:5216:00 31 |6:15 /18:28| 7:03 | 9:18 | 10:50/12:21 15:24/7:03 | 7:518:39/17:40/16:52/16:04
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17
मौत : भीषण है.
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888888
अप्रैल : मदुरै ता. | सूर्यो- सूर्यास्त | नव- पोरसी | साढ़-| पुरी- | अवड्ढ सुबह की
शाम की दय कारसी पोरसी| मढ़ दोघडी चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी।
घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि 01 6:14 18:28/7:02/9:17 |10:49/12:21 15:24/7:02 | 7:50|8:38 17:4016:5216:04
6:14|18:28/7:02/9:17|10:49/12:21/15:24/7:02 | 7:808:30 17:4016:5216:04 03|6:13|18:27/7:01/9:17 10:48|12:20/15:24/7:01/7:49/8:37 17:3916:5116:03
6:12 |18:27/7:00/9:16/10:40|12:20/15:247:00/7:48| 8:30 17:3916:5116:03 6:12|18:27 7:009:16/10:48/12:20/15:24/7:00/7:48| 8:36 17:3916:5116:03 | 6:11 18:27 6:59/9:15 10:47/12:1915:236:59 | 7:47 8:35 17:3916:5116:03 6:11 18:27 6:59/9:15 10:47/12:1915:23 6:59 | 7:47 8:35 17:3916:5116:03 6:10|18:27 6:58|9:15 |10:47/12:1915:23|6:58 | 7:46| 8:34 17:3916:5116:03
6:10|18:27/6:58|9:14|10:46/12:19 15:23/6:58 | 7:46 8:34 17:3916:5116:03 10|6:09/18:27/6:57 9:14|10:46/12:18 15:23/6677:45/8:33 17:3916:5116:03, 11 6:0918:27/6:57/9:13|10:46/12:1815:23/6:577:45| 8:33 17:3916:5116:03 12 |6:08 |18:27 6:56/9:13|10:45/12:18 15:23/6:56| 7:448:32 17:3916:5116:03 13|6:08 |18:27/6:569:13|10:45/12:18 15:226:56| 7:448:32 17:3916:5116:03 146:07 18:27/6:55|9:12/10:45/12:17 15:226:557:438:31 17:3916:5116:03 15 6:07 18:27/6:55|9:12/10:44/12:17 15:226:55/7:43|8:31 17:3916:5116:03
6:06 18:28/6:54 9:11 | 10:44/12:17/15:22/6:547:42| 8:30 17:40 16:5216:04 17 16:06/18:28/6:549:11/10:44/12:17 15:226:54/7:428:30 17:40/16:52|16:04 1816:0518:28/6:539:11/10:44|12:16 15:226:537:418:29/17:40/16:5216:04 19 |6:0518:20|6:53/9:10|10:43/12:16/15:226:537:418:29 17:40 16:5216:04 206:0418:28/6:52/9:10/10:43 12:1615:226:52 | 7:40|8:28 17:40 16:5216:04 216:04 18:28/6:52/9:10|10:43/12-1615:22 6:52 | 7:40|8:28 17:40/16:52|16:04 22 6:03 18:28/6:51/9:09/10:42/12:1615:22 6:51| 7:39/8:27 17:40/16:5216:04 23
16:03/18:28/6:519:09 | 10:42/12:15 15:226:51|7:39/8:27 17:4016:52|16:04 24 16:02/18:28/6:50/9:09/10:42/12:15 15:226:50/7:30|8:26/17:40|16:52|16:04 26 16:02/18:28/6:50/9:08|10:42/12:15 15:216:50/7:38| 8:26/17:40/16:52|16:04 26 16:02 | 18:28/6:50/9:08 | 10:41/12:15 15:216:50/7:38| 8:26/17:40/16:5216:04 27 16:01/18:28/6:49/9:0B | 10:41/12:15 15:216:49| 7:37 8:25 17:40/16:5216:04 28 6:01 |18:28/6:49/9:00 | 10:41 12:15 15:216:49 | 7:37 8:25 17:40/16:5216:04 29 |6:00|18:28/6:48 | 9:07 10:41/12:1415:216:48 | 7:36/8:24 17:40/16:52|16:04 306:00|18:28/6:48|9:07|10:41/12:1415:216:48 | 7:36/8:24 17:40/16:5216:04
16
धर्म : एकांत विशुद्ध है.
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मदुरै : मई ता. | सूर्यो- | सूर्यास्त | नव- पोरसी | साढ़-| पुरी- | अबढ़| सुबह की शाम की
दय कारसी पोरसी| मड्ढ दोघडी | चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी। घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि 6:00|18:29/6:48|9:07 10:41 12:14 15:216:48 | 7:36/8:24 17:4116:5316:05
5:59 |18:29/6:47/9:07 10:40/12:14 15:21/6:47 | 7:30/8:23 17:411683hoos 03 5:50|18:29/6:47/9:00|10:40/12:14/15:21/6:477:30|8:23 17:4116:5316:00 04 5:50|18:29/6:47/9:06/10:40/12:14 15:21/6:47 | 7:35/8:23 17:4116:5316:05 05 | 5:58 18:29/6:4619:0610:40/12:14/15:216:46 | 7:348:22 17:4116:5316:05
| 5:58 18:29/6:46/9:06 | 10:40/12:14/15:21 6:46 | 7:348:22 17:4116:5316:05 | 5:58 18:29/6:46/9:06 10:40/12-14 15:216:46 | 7:348:22 17:4116:5316:05
5:58 |18:30/6:46/9:06 10:40|12:14 15:226:467:348:22 17:4216:5416:06
| 5:57 18:30/6:45|9:05 |10:39/12:13 15:226:45 | 7:33|8:21 17:4216:5416:06 108:57|18:30/6:45|9:00|10:39/12-13 15:226:45 | 7:33/8:21 17:4216:54/16:06 11 5:57|18:30/6:45|9:05/10:30/12:13 15:226:45/7:33|8:21 17:4216:5416:06 12 |5:57 |18:30/6:45|9:05/10:39/12:13 15:22 6:45 | 7:33|8:21 17:4216:5416:06 13 5:56 |18:30/6:44 9:05/10:3912:13 15:226:44| 7:32| 8:20 17:4216:5416:06 14|5:56 |18:316:44/9:05 |10:39/12-13 15:226:44| 7:328:20 17:4316:5516:07 15 5:56 | 18:31/6:44/9:05/10:39/12:13 15:226:44 | 7:328:20 17:4316:5516:07
5:56 |18:31/6:44/9:05 |10:39/12:13 15:226:447:328:20 17:4316:5516:07 17 5:56/18:31/6:44/9:05/10:39/12:13 15:226:44/7:328:20 17:43/16:55/16:07 18|5:56/18:31/6:44/9:05/10:30/12:13 15:226:447:328:20 17:4316:5516:07 195:55 18:32|6:43/9:04|10:30/12:14 15:23/6:43/7:318:19 17:4416:56 16:08 205:55 |18:326:43/9:04 | 10:3912:14/15:236:43 | 7:318:19 17:4416:5616:08 215:55 18:326:43 |9:04 10:39/12:1415:23 6:43 | 7:318:10 17:4416:56/16:08 22 5:55 |18:326:43|9:04|10:39/12:1415:236:437:318:1917:4416:5616:08 23 5:55 18:336:439:04 | 10:39/12:14/15:236:43/7:318:19 17:4516:5716:09 24|5:55/18:33/6:43/9:04/10:39/12:14/15:23/6:43/7:318:19/17:4516:57 16:09 20|5:56/18:33/6:43/9:04/10:30/12:14/15:246:43/7:318:10 17:4516:57 16:09 2615:55 18:336:439:04/10:39/12:14/15:246:43/7:318:19 17:4516:57 16:09 27 | | 5:55 18:346:439:05/10:30/12:14/15:246:43 | 7:318:19 17:4616:5816:10 28 | 5:55 18:34/6:43/9:05 | 10:30/12:14/15:246:43 | 7:318:19 17:46/16:58/16:10 29 5:55 18:346:43/9:05/10:40 12:14/15:246:43 | 7:318:19 17:4616:58|16:10 30 | 5:55 /18:346:43/9:05/10:40/12:15 15:246:43 | 7:318:19 17:4616:58 16:10 31 5:55 |18:35/6:43/9:05/10:40/12:15 15:256:43 | 7:31/8:10 17:47 16:59/16:11
16
मौत: मब ममाप्त कर देने वाली है.
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06 |
जुन : मदुरै ता. | सूर्यो- | सूर्यास्त | नव- पोरसी| साडढ-| पुरी- अबढ़| सुबह की
शाम की दय कारसी पोरसी| मढ़ दोघडी |चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी। घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि
5:55 18:356:43/9:05 |10:40/12:15 15:256:43 | 7:318:19 17:4716:5916:11 02 5:55 18:30/6:43/9:00|10:40/12:15 15:25/6:43/7:318:19 17:4716:5916:11 035:53|18:35/6:43/9:00|10:40/12:15 15:25/6:43/7:31/8:19 17:47168916:11 045:55 18:36/6:43/9:00|10:40/12:15 15:2616:437:318:19 17:4817:0016:12 05 5:55 18:36/6:43/9:05 10:40/12:16/15:26/6:43/7:31/8:1917:4817:0016:12
5:55 18:36/6:439:06 | 10:41/12:16/15:26/6:43 | 7:31] 8:19 17:4817:0016:12
5:55 |18:37/6:43/9:06 10:41/12:16/15:26 6:43 | 7:318:19 17:4917:0116:13 08 5:55 |18:37 6:43/9:06 | 10:41 12:1615:26/6:43 | 7:318:19 17:4917:01 16:13 09 5:56 18:37 6:449:06 | 10:41 12:16/15:27/6:447:32 8:20 17:49 17:0116:13 10 :56/18:37/6:44/9:06/10:41/12:17 15:27/6:447:328:20 17:49 17:01 16:13, 115:56 |18:38| 6:44/9:06 10:42|1217/15:27/6447:328:20 17:50 17:02/16:14 12 |5:56 18:38| 6:449:06 | 10:42/12:17/15:27 6:447:32| 8:20 17:5017:02/16:14 13 5:56 /18:38| 6:44/9:07 10:42|12:17 15:28 6:44| 7:328:20 17:50 17:02 16:14 14|5:56 |18:38| 6:44/9:07 |10:42|12:17/15:28/6:44| 7:328:20 17:50 17:02/16:14 15 5:57|18:39/6:45|9:07|10:42 12:18 15:28 6:45 | 7:33|8:21 17:51 17:03/16:15
5:57 18:39/6:45 9:07 | 10:43/12:18/15:28/6:45 | 7:33/8:21 17:51 17:03/16:15 17 | 5:67|18:39/6:45|9:07 | 10:43/12:18 15:29/6:457:33|8:21 17:51 17:03/16:15 18|5:57 18:30/6:45|9:00|10:43|12:18 15:29/6:457:33/8:21 17:51 17:03/16:15 195:57|18:40/6:45|9:00|10:43/12:18 15:29/6:457 :33|8:21 17:52 17:04/16:16 205:58|18:406:46/9:08 | 10:43|12:19 15:29/6:46 | 7:348:22 17:5217:0416:16 215:58 | 18:406:46/9:08 | 10:44/12:1915:29/6:46 | 7:348:22 17:5217:0416:16
5:58 18:40/6:46/9:09 | 10:44/12:1915:30/6:46| 7:348:22 17:5217:04/16:16 |5:58|18:406:4619:09/10:44/12:1915:306:46/7:348:22 17:52|17:0416:16
6A619:09/10:44/12:20 18:306:4617:348:22 17:53/17:08/16:17 25580|18:41/6:47/9:09/10:44/12:20 15:306:47/7:358:23|17:53/17:05/16:17 26 5:59/18:41/6:47/9:09/10:45/12:20 15:306:47| 7:35/8:23|17:5317:05/16:17 27 5:59/18:416:479:10/10:45/12:20 15:316:47 | 7:35/8:23 17:53 17:05/16:17 28 | 5:59 18:416:47 9:10|10:45/12:20 15:316:47 | 7:35/8:23 17:53 17:05/16:17
6:00|18:416:48| 9:10/10:45/12:21 15:316:48 | 7:36 8:24 17:53 17:05/16:17 306:00|18:426:48|9:10/10:46/12:21/15:316:48 | 7:36 8:24 17:54/17:06/16:18
16
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धर्म : सर्व जीवों के लिए सर्व प्रकार मे हितकाटी है.
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मदुरै जुलाई
ता.
998
दय कारसी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
सूर्यो- सूर्यास्त नव- पोरसी साड्ढ पुरी अवड्ढ पोरसी मड्ढ दोघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
सुबह की शाम की चारघडी छःघडी दोघडी चारघडी छःघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
01 6:00 18:42 6:48 9:11 10:46 12:21 15:31 6:48 7:36 8:24 17:54 17:06 16:18
02 6:00 18:42 6:48 9:11 10:46 12:21 15:32 6:48 7:36 8:24 17:54 17:06 16:18 03 6:01 18:42 6:49 9:11 10:46 12:21 15:32 6:49 7:37 8:25 17:54 17:06 16:18 04 6:01 18:42 6:49 9:11 10:46 12:21 15:32 6:49 7:37 8:25 17:54 17:06 16:18 05 6:01 18:42 6:49 9:11 10:47 12:22 15:32 6:49 7:37 8:25 17:54 17:06 16:18 06 6:01 18:42 6:49 9:12 10:47 12:22 15:32 6:49 7:37 8:25 17:54 17:06 16:18 07 6:02 18:42 6:50 9:12 10:47 12:22 15:32 6:50 7:38 8:26 17:54 17:06 16:18
08 6:02 18:42 6:50 9:12 09 6:02 18:42 6:50 9:12 10 6:02 18:42 6:50 9:12 11 6:03 18:43 6:51 9:13 10:48 12:23 15:33 6:51
10:47 12:22 15:32 6:50 10:47 12:22 15:32 6:50 10:47 12:22 15:32 6:50
7:38 8:26 17:54 17:06 16:18 7:38 8:26 17:54 17:06 16:18 7:38 8:26 17:54 17:06 16:18 7:39 8:27 17:55 17:07 16:19
12 6:03 18:43 6:51 9:13 10:48 12:23 15:33 6:51 7:39 8:27 17:55 17:07 16:19
13
14 6:03 18:42 6:51 9:13 15 6:04 18:42 6:52 9:13 16 6:04 18:42 6:52 9:13 17 6:04 18:42 6:52 9:14 10:48 12:23 15:33 6:52 18 6:04 18:42 6:52 9:14 10:49 12:23 15:33 6:52 7:40 8:28 17:54 17:06 16:18
6:03 18:43 6:51 9:13 10:48 12:23 15:33 6:51 10:48 12:23 15:33 6:51 10:48 12:23 15:33 6:52 10:48 12:23 15:33 6:52
7:39 8:27 17:55 17:07 16:19 7:39 8:27 17:54 17:06 16:18 7:40 8:28 17:54 17:06 16:18 7:40 8:28 17:54 17:06 16:18 7:40 8:28 17:54 17:06 16:18
19 6:05 18:42 6:53 9:14 10:49 12:23 15:33 6:53 7:41 8:29 17:54 17:06 16:18
20 6:05 18:42 6:53 9:14 10:49 12:23 15:33 6:53 7:41 8:29 17:54 17:06 16:18 21 6:05 18:42 6:53 9:14 10:49 12:23 15:33 6:53 7:41 8:29 17:54 17:06 16:18 22 6:05 18:42 6:53 9:14 10:49 12:24 15:33 6:53 7:41 8:29 17:54 17:06 16:18 23 6:05 18:42 6:53 9:14 10:49 12:24 15:33 6:53 7:41 8:29 17:54 17:06 16:18 24 6:06 18:42 6:54 9:15 10:49 12:24 15:33 6:54 7:42 8:30 17:54 17:06 16:18 25 6:06 18:41 6:54 9:15 10:49 12:24 15:33 6:54 7:42 8:30 17:53 17:05 16:17 26 6:06 18:41 6:54 9:15 10:49 12:24 15:32 6:54 7:42 8:30 17:53 17:05 16:17
27 6:06 18:41 6:54 9:15 10:49 12:24 15:32 6:54 7:42 8:30 17:53 17:05 16:17 28 6:06 18:41 6:54 9:15 10:49 12:24 15:32 6:54 7:42 8:30 17:53 17:05 16:17 29 6:06 18:41 6:54 9:15 10:49 12:24 15:32 6:54 7:42 8:30 17:53 17:05 16:17 30 6:07 18:40 6:55 9:15 10:49 12:23 15:32 6:55 7:43 8:31 17:52 17:04 16:16 31 6:07 18:40 6:55 9:15 10:49 12:23 15:32 6:55 7:43 8:31 17:52 17:04 16:16
मौत : अज्ञात आगमन वाली है.
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११५)
ता.
सूर्यो- सूर्यास्त नव- पोरसी साड्ढ पुरी अवड्ढ दय कारसी पोरसी मड्ढ दोघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
अगस्त : मदुरै सुबह की शाम की चारघडी छःघडी दोघडी चारघडी छःघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
01 6:07 18:40 6:55 9:15 10:49 12:23 15:32 6:55 7:43 8:31 17:52 17:04 16:16
02 6:07 18:40 6:55 9:15 7:43 8:31 17:52 17:04 16:16 03 6:07 18:39 6:55 9:15 7:43 8:31 17:51 17:03 16:15 04 6:07 18:39 6:55 9:15 7:43 8:31 17:51 17:03 16:15 05 6:07 18:39 6:55 9:15 10:49 12:23 15:31 6:55 7:43 8:31 17:51 17:03 16:15
10:49 12:23 15:31 6:55 10:49 12:23 15:31 6:55 10:49 12:23 15:31 6:55
06 6:07 18:38 6:55 9:15 10:49 12:23 15:31 6:55 7:43 8:31 17:50 17:02 16:14 07 6:08 18:38 6:56 9:15 10:49 12:23 15:30 6:56 7:44 8:32 17:50 17:02 16:14 08 6:08 18:38 6:56 9:15 10:49 12:23 15:30 6:56 7:44 8:32 17:50 17:02 16:14 09 6:08 18:37 6:56 9:15 10:49 12:23 15:30 6:56 7:44 8:32 17:49 17:01 16:13 10 6:08 18:37 6:56 9:15 10:49 12:22 15:30 6:56 7:44 8:32 17:49 17:01 16:13 11 6:08 18:37 6:56 9:15 10:49 12:22 15:29 6:56 7:44 8:32 17:49 17:01 16:13 12 6:08 18:36 6:56 9:15 10:49 12:22 15:29 6:56 7:44 8:32 17:48 17:00 16:12 13 6:08 18:36 6:56 9:15 10:48 12:22 15:29 6:56 7:44 8:32 17:48 17:00 16:12 14 6:08 18:35 6:56 9:15 10:48 12:22 15:29 6:56 7:44 8:32 17:47 16:59 16:11 15 6:08 18:35 6:56 9:15 10:48 12:21 15:28 6:56 7:44 8:32 17:47 16:59 16:11 16 6:08 18:34 6:56 9:15 10:48 12:21 15:28 6:56 7:44 8:32 17:46 16:58 16:10 17 6:08 18:34 6:56 9:15 10:48 12:21 15:28 6:56 7:44 8:32 17:46 16:58 16:10 18 6:08 18:34 6:56 9:14 10:48 12:21 15:27 6:56 7:44 8:32 17:46 16:58 16:10
7:44 8:32 17:45 16:57 16:09
7:44 8:32 17:45 16:57 16:09
19 6:08 18:33 6:56 9:14 10:48 12:21 15:27 6:56 20 6:08 18:33 6:56 9:14 10:47 12:20 15:26 6:56 21 6:08 18:32 6:56 9:14 10:47 12:20 15:26 6:56 7:44 8:32 17:44 16:56 16:08 22 6:08 18:32 6:56 9:14 10:47 12:20 15:26 6:56 7:44 8:32 17:44 16:56 16:08 7:44 8:32 17:43 16:55 16:07 7:44 8:32 17:43 16:55 16:07 7:44 8:32 17:42 16:54 16:06 7:44 8:32 17:41 16:53 16:05 7:44 8:32 17:41 16:53 16:05
23 6:08 18:31 6:56 9:14 10:47 12:20 15:25 6:56 24 6:08 18:31 6:56 9:14 10:47 12:19 15:25 6:56 25 6:08 18:30 6:56 9:14 10:46 12:19 15:25 6:56 26 6:08 18:29 6:56 9:13 10:46 12:19 15:24 6:56 27 6:08 18:29 6:56 9:13 10:46 12:19 15:24 6:56 28 6:08 18:28 6:56 9:13 10:46 12:18 15:23 6:56 7:44 8:32 17:40 16:52 16:04 29 6:08 18:28 6:56 9:13 10:45 12:18 15:23 6:56 7:44 8:32 17:40 16:52 16:04 30 6:08 18:27 6:56 9:13 10:45 12:18 15:22 6:56 7:44 8:32 17:39 16:51 16:03 31 6:08 18:27 6:56 9:13 10:45 12:17 15:22 6:56 7:44 8:32 17:39 16:51 16:03
धर्म : महापुरूषों द्वारा सेवित है.
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888888
12
मदुरै : सीतम्बर ता. | सूर्यो- | सूर्यास्त | नव- पोरसी | साढ़-| पुरी- | अबढ़| सुबह की शाम की
दय कारसी पोरसी| मड्ढ दोघडी | चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी।
घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि 01 6:08 | 18:26/6:56/9:12 |10:45/12:17 15:226:56/7:448:32 17:3816:5016:02
6:00|18:26/6:56/9:12|10:44/12:17 15:21/656/7:448:32 17:3816:5016:02 6:08|18:25/6:56/9:12/10:44/12:16 15:21/656/7:448:32 17:3716:4916:01 6:00|18:246:56/9:12 |10:44/12:16/15:20/6:56/7:448:32 17:3616:4816:00 6:08 18:24/65619:12/10:44/12:16/15:20/6:567:448:32 17:3616:4816:00 6:08 |18:23|6:56/9:11 10:43/12:15 15:19/6:56| 7:448:32 17:3516:4715:59 |6:07 18:23/6:55 9:11 | 10:43/12:15 15:19/6:55 | 7:43|8:31 17:3516:4715:59 6:07 18:22|6:55|9:11 10:43/12:15 15:18| 6:557:438:31 17:3416:4615:58
6:07 18:21/6:55|9:11 10:43/12:14 15:18/6:557:43|8:31 17:3316:4515:57 106:07 18:21/6:53/9:11 10:42|12:14/15:17/6507:438:31 17:33 16:4515:57 116:07 18:20|6:55/9:10 10:42|1214/15:17/655/7:43|831 17:32 16:44/15:561
16:07 |18:10/6:55|9:10/10:42/12:13 15:16 6:557:43|8:31 17:3116:43/15:55 13 6:07 |18:19/6:55|9:10 10:41 12:13 15:16 6:557:43|8:31 17:3116:43/15:55 146:07 18:18| 6:55|9:10|10:41/12-13 15:156:55 | 7:438:31 17:30/16:4215:54 15 6:07 18:18 6:55|9:10/10:41 12:1215:156:55| 7:43|8:31 17:3016:42|15:54 16 6:07 |18:17/6:55|9:09/10:41 12:1215:146:55 | 7:438:31 17:2916:41 15:53 17 |
| 6:07/18:16/6:55|9:09/10:40/12:11 15:146:557:43|8:31 17:2816:40|15:52 1816:07 18:16/6:55|9:09/10:40|12:11 15:13655/7:438:31 17:2816:40/15:52 19 6:06/18:15/6:54/9:09/10:40/12:11 15:13/6:54/7:428:30 17:27 16:3915:51 20|6:06 |18:146:549:08 | 10:3912:10 15:126:547:428:30 17:2616:3815:501 21 6:06 |18:14/6:54 9:08 | 10:39/12:10 15:126:547:42| 8:30 17:2616:38|15:50 22 6:06/18:13/6:54/9:08 | 10:39/12:10 15:116:54| 7:42| 8:30 17:2516:37|15:49 23 |6:06 |18:13/6:549:08 | 10:39/12:09/15:116:547:428:30 17:2516:3715:49 24 16:06/18:126:54/9:00|10:38|12:0915:10/6847:42| 8:30/17:2416:36/15:48 2016:06/18:11/6:54/9:07/10:38|12:09/15:10/6:547:428:30 17:2316:30/15:47 26 16:06/18:11/6:549:07/10:38/12:08 15:10 6:547:42| 8:30 17:23/16:3515:47 27 | 16:06/18:10/6:54 9:07 10:37/12:08/15:096:547:42| 8:30 17:2216:3415:46 28 16:06/18:00/6:549:07 |10:37|12:00 15:09 6:547:42| 8:30/17:21 16:33/15:45 29 6:06/18:09/6:54|9:07|10:37 12:07 15:08| 6:54| 7:42| 8:30 17:21 16:33/15:45 306:00|18:00/6:54/9:06/10:37/12:07 15:08/6:547:428:30 17:20/16:32|15:44
मौत: अनिवारणीय है.
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01
8888
अक्तुम्बर : मदुरै ता. | सूर्यो- सूर्यास्त | नव- पोरसी | साढ़-| पुरी- | अवड्ढ सुबह की
शाम की दय कारसी पोरसी| मढ़ दोघडी चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी। घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि 6:06 |18:08| 6:54/9:06/10:36/12:07 15:07 6:54 | 7:428:30 17:2016:3215:44
|6:06 18:07/6:54/9:06/10:30/12:06/15:07 6:547:428:30 17:1916:3118:43 03 6:06/18:07/6:54/9:06/10:36/12:06 15:06654/7:428:30 17:1916:3115:43 046:05 |18:06/6:53/9:06 10:30/12:06/15:06/6:53/7:41/8:29 17:1816:3015:42 05 6:05 |18:056:53/9:05 |10:35/12:05/15:056:53 | 7:418:29 17:1716:2915:41
6:05 18:05/6:53/9:05 | | 10:35/12:05/15:056:53 | 7:41|8:29 17:1716:29/15:41 |6:05 |18:04/6:53/9:05 10:35/12:05/15:056:53 | 7:418:29 17:1616:2815:40
6:05 |18:04/6:53/9:05 |10:35/12:05/15:046:53 | 7:418:29 17:1616:2815:40 09 5:05 18:03/6:53/9:05 | | 10:35/12:04/15:046:537:418:29 17:1516:27 15:39 10|6:08/18:03/6:53/9:00|10:34/12:04/15:03/663/7:418:29 17:1516:27|15:39 116:05/18:02|6:53/9:05/10:34/12:04/15:03/6:53/7:418:29 17:1416:2615:38 12 6:05/18:026:53/9:04|10:34/12:03 15:03/6:53 | 7:418:29 17:1416:2615:38 13 6:05 |18:01 6:53/9:04/10:34/12:03 15:02 6:53 | 7:418:29 17:1316:2515:37 146:05 |18:01 6:53/9:04|10:34/12:03 15:02 6:53 | 7:418:29 17:1316:25/15:37 15 6:05 18:00/6:539:04 | 10:33|12:03 15:01 6:53 | 7:418:29 17:1216:24/15:36
6:06/18:00/6:54 9:04|10:33/12:03 15:01 6:54| 7:42| 8:30 17:1216:24/15:36 17 6:06/17:59/684/9:04/10:33/12:02/15:01 6:547:428:30 17:11/16:23|15:35 1816:06/17:50/6:54/9:04/10:33|12:02 15:00/6:547:428:30|17:11 16:23|15:35 19 |6:06/17:50|6:54/9:04|10:33|12:02 15:00/6:547:428:30 17:10/16:2215:34 206:06 | 17:58| 6:549:04 10:33/12:0215:006:547:428:30 17:10/16:22/15:34 21 6:06/17:57 6:549:04 10:33 12:0214:59 6:547:42 8:30 17:0916:21/15:33 22 6:06/17:57 6:54 9:04 10:33/12:01/14:59 6:547:428:30 17:09/16:21/15:33 23|6:06/17:576:549:04 | 10:33/12:01/14:59/6:547:428:30 17:09/16:21/15:33 24 16:06/17:56/6:54/9:04/10:32/12:0114:5965417:42| 8:30 17:08/16:20|15:32 20|6:06/17:56/6:549:04/10:32/12:01 14:586547:428:30 17:08/16:20|15:32 26 6:06/17:556:54|9:04 | 10:32/12:01 14:58 6:54| 7:428:30 17:07 16:1915:31 27 16:07/17:5516:55|9:04/10:32/12:01 14:58 6:55| 7:43|8:31 17:07 16:1915:31 28 6:07 17:556:55 9:04 | 10:32/12:01/14:58 6:557:438:31 17:07/16:1915:31 29 16:07 | 17:546:55|9:04/10:32/12:01 14:58 6:557:43|8:31 17:06 16:18|15:30 306:07 | 17:546:55|9:04|10:32/12:01 14:57 6:557:438:31 17:06 16:18|15:30 316:07 17:546:559:04/10:3212:01/14:57 6:55 | 7:438:31 17:06/16:18/15:30
16
धर्म : दोषरहित है.
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888888
08
मदुरै : नवम्बर ता. | सूर्यो- | सूर्यास्त | नव- पोरसी | साढ़-| पुरी- | अबढ़| सुबह की शाम की
दय कारसी पोरसी| मढ़ दोघडी चारघडी छाघडी दोघडी चारघडी छाघडी।
घं-मि | घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि | घं-मि घं-मि घं-मि | घं-मि 01 6:08|17:546:56/9:04/10:32|12:01 14:57 6:56/7:448:32 17:0616:1815:30
6:08| 17:53/6:56/9:04/10:32|12:01/14:67/656/7:448:32 17:0816:1715:29 6:08|17:53/6:56/9:04/10:32|12:01 14:07/656/7:448:32 17:0516:1715:29 |6:08|17:53/6:56/9:04|10:32/12:01/14:57656/7:448:32 17:0516:1715:29 6:08 |17:53/6:56/9:0510:33/12:01 14:57 6:567:448:32 17:0516:1715:29 6:00 17:53 6:57 9:05 | 10:33/12:01/14:57 6:57 | 7:45| 8:33 17:0516:1715:29 |6:09 |17:526:57|9:05 |10:33/12:01 14:57 6:577:458:33 17:0416:16/15:28
6:09 17:52|6:57 9:05 10:33/12:01 14:57 6:57 | 7:45/8:3 096:10 17:526:58 9:05 | 10:33/12:01/14:56/6:58| 7:4618:34 17:0416:1615:28 106:10/17:52|6:58|9:00|10:33|12:01 14:56/658|7:46/8:34 17:0416:16/15:28 116:10/17:526:58|9:06 |10:33/12:01/14:56658| 7:46/8:34 17:04/16:1615:28 12 6:11 17:52|6:59/9:06/10:34/12:01 14:57 6:59| 7:47 8:35 17:0416:1615:28 13 6:11 17:52|6:59/9:06/10:34/12:01 14:57 6:59| 7:47| 8:35 17:0416:1615:28 146:11 17:526:59/9:06/10:34/12:01 14:57 6:59| 7:47 8:35 17:0416:1615:28 15 6:12/17:52| 7:00/9:07 | 10:34/12:0214:57 7:00/7:48| 8:36 17:0416:1615:28 16 6:12|17:52/7:00/9:07 10:3412:0214:57 7:00/7:48| 8:36 17:0416:1615:28 17 6:12/17:52/7:00/9:07|10:3512:02 14:87 7:00/7:48| 8:36 17:04/16:16 15:28 1816:13|17:52/7:01/9:07/10:35/12:02 14:57 7:01|7:49/8:37 17:04/16:16 15:28 101612717827011000|10:35/12:02/14:577:017:400837 17:0416:1615:28 206:14 17:52| 7:02 9:08 10:35/12:0314:57 7:02/7:508:38 17:0416:1615:28 216:14|17:527:029:08 | 10:36 12:03 14:57 7:027:50|8:38 17:0416:1615:28 22 6:14|17:52/7:02/9:09/10:36/12:03 14:58 7:02 | 7:508:38 17:0416:1615:28 23|6:15/17:52/7:03/9:09/10:36/12:03 14:587:03 | 7:518:39 17:0416:1615:28 246:15/17:527:03/9:10/10:37/12:04/14:58 7:03 | 7:518:39/17:0416:16/15:28 2016:16/17:52/7:04/9:10/10:37/12:04/14:58|7:047:528:40 17:0416:16/15:28 26 16:1617:53/7:049:10|10:3712:04/14:597:047:528:40 17:05116:1715:29 27 6:17|17:53/7:05|9:11/10:38 12:05/14:597:05 | 7:53|8:41 17:05/16:17 15:29 28 6:17|17:53/7:05|9:11 10:38/12:05/14:597:05/7:538:41 17:05/16:17|15:29 29 6:18 |17:53/7:06/9:12/10:38/12:05 14:597:06 | 7:548:42 17:05/16:17 15:29 30|6:18 | 17:53/7:06/9:12/10:39/12:06 15:007:007:548:42 17:05/16:17|15:29|
मौत: फिर-फिट भाने वाली है.
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११९
ता.
दिसम्बर : मदुरै
शाम की
सूर्यो- सूर्यास्त नव- पोरसी साड्ढ पुरी अवड्ढ दय कारसी पोरसी मड्ढ दोघडी घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
सुबह की चारघडी छःघडी दोघडी चारघडी छःघडी
घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि घं-मि
7:55 8:43 17:06 16:18 15:30
10:40 12:07 15:00 7:07 10:40 12:07 15:01 7:08 10:41 12:07 15:01 7:08
7:56 8:44 17:06 16:18 15:30 7:56 8:44 17:07 16:19 15:31
01 6:19 17:54 7:07 9:12 10:39 12:06 15:00 7:07 7:55 8:43 17:06 16:18 15:30 02 6:19 17:54 7:07 9:13 03 6:20 17:54 7:08 9:13 04 6:20 17:55 7:08 9:14 05 6:21 17:55 7:09 9:14 10:41 12:08 15:01 7:09 7:57 8:45 17:07 16:19 15:31 06 6:21 17:55 7:09 9:15 10:41 12:08 15:02 7:09 7:57 8:45 17:07 16:19 15:31 07 6:22 17:56 7:10 9:15 10:42 12:09 15:02 7:10 7:58 8:46 17:08 16:20 15:32 08 6:22 17:56 7:10 10:42 12:09 15:02 7:10 7:58 8:46 17:08 16:20 15:32 09 6:23 17:56 7:11 10:43 12:09 15:03 7:11 7:59 8:47 17:08 16:20 15:32 10 6:23 17:57 7:11 10:43 12:10 15:03 7:11 6:24 17:57 7:12 9:17 10:44 12:10 15:04 7:12 12 6:24 17:57 7:12 9:18 10:44 12:11 15:04 7:12 8:00 8:48 17:09 16:21 15:33
9:16 9:16 9:17
7:59 8:47 17:09 16:21 15:33
11
8:00 8:48 17:09 16:21 15:33
13 6:25 17:58 7:13 9:18 10:45 12:11 15:05 7:13 8:01 8:49 17:10 16:22 15:34 14 6:25 17:58 7:13 9:19 10:45 12:12 15:05 7:13 8:01 8:49 17:10 16:22 15:34 15 6:26 17:59 7:14 9:19 8:02 8:50 17:11 16:23 15:35 16 6:26 17:59 7:14 9:20 8:02 8:50 17:11 16:23 15:35 17 6:27 18:00 7:15 9:20 8:03 8:51 17:12 16:24 15:36 18 6:27 18:00 7:15 9:21 8:03 8:51 17:12 16:24 15:36 19 6:28 18:01 7:16 9:21 8:04 8:52 17:13 16:25 15:37 20 6:28 18:01 7:16 9:22 10:48 12:15 15:08 7:16 8:04 8:52 17:13 16:25 15:37
10:46 12:12 15:05 7:14 10:46 12:13 15:06 7:14 10:47 12:13 15:06 7:15 10:47 12:14 15:07 7:15
10:48 12:14 15:07 7:16
21 6:29 18:02 7:17 9:22 10:49 12:15 15:08 7:17 8:05 8:53 17:14 16:26 15:38
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धर्म: परमानंद का हेतु है.
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मफल जीवन तो वह है जो इस भव व पर भव दोनों को मफल करें.
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धर्ममय, परोपकार परायण व न्याय-नीतिमय जीवन जीते हुए
हमारे जीवन को उज्जवल बनानेवाले जीवंत-तीर्थ सुश्रावक श्री हुकमीचंदजी मेघाजी खींवेसरा, मांडाणी सुश्राविका श्रीमती गंगादेवी हुकमीचंदजी खींवसरा, मांडाणी
दुप्पडियारो मायपियरो माता-पिता के उपकारो का बदला चुकाना अत्यंत कठिन है... प्रभु महावीर.
श्रद्धावनत् नरपतकुमार, यशवंतकुमार, अरविंदकुमार, प्रवीणकुमार,
अभिषेककुमार, जिनेन्द्रकुमार, राहुल, पूजन, हर्ष खीवेसरा
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COOOOPS
कुमारी आचल यन
श्रीमती निर्मला
विी यशवंतकुमार
रावतकुमार
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________________ महापुरुष के जिस शब्द या वाक्य से तुम्हारी जिन्दगी बदल जाये बस ! वह शब्द और वाक्य ही तुम्हारा "गुरुमंत्र