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ए सव्वेसिं सावगाणं मोक्ख-साहण-जोगे, एवं सव्वेसिं देवाणं सव्वेसिं जीवाणं होउ-कामाणं कल्लाणा-सयाणं मग्ग-साहणजोगे. ११
सभी श्रावक-श्राविकाओं के वैयावृत्यादि रूप मोक्ष को साधने वाले योगों की; और इंद्र आदि सभी देवताओं के, सामान्यतः मोक्ष की चाहना वाले आसन्न-भवी - शीघ्र मोक्षगामी, व कल्याणमय शुद्ध आशय वाले सभी जीवों के सामान्यतः हितकारी-कुशल प्रवृत्तिरूप मोक्षमार्ग को साधने वाले, प्राप्त कराने वाले योगों की जगत में जो कुछ भी अनुमोदनीय है उन सब की मैं यथार्थ भाव से अनुमोदना करता हूँ.
प्रणिधिशुद्धि होउ मे एसा अणुमोयणा सम्मं विहिपुव्विगा, सम्मं सुद्धासया, सम्म पडिवत्तिरुवा, सम्म निरइयारा, परमगुणजुत्त-अरहंतादिसामत्थओ.
मेरी यह अनुमोदना... शास्त्रों में बताई गई सम्यक् विधि पूर्वक की हो, बाधक कर्म-मल से रहित ऐसी सम्यक् शुद्ध आशय वाली हो, जीवन में आचरण रूप सम्यक् प्रतिपत्ति-स्वीकार वाली हो, सही रूप से पालन की गई होने से सम्यक् निरतिचार- दोषरहित हो... मेरी शक्ति तो बड़ी सीमित है अतः परम गुणों से युक्त अरिहंत आदि
के सामर्थ्य से मेरी अनुमोदना उपरोक्त प्रकार की हो... अचिंत-सत्तिजुत्ता हि ते भगवंतो वीयरागा सव्वण्णू परमकल्लाणा परम-कल्लाण-हेऊ सत्ताणं.
अहा! अचिंत्य शक्ति से युक्त वे अरहंत आदि भगवंत वीतराग है,
Xअसफलताएँ मात्र यह देखने आती है कि तुम में यदि मत्त्व है तो कितना है?x