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सर्वज्ञ है, परम कल्याणरूप है व जीवों के लिए उचित उपायों के
माध्यम से परम कल्याण के हेतुरूप है. मूढे अम्हि पावे अणाइ-मोह-वासिए, अणभिण्णे भावओ हियाहियाणं अभिण्णे सिया, अहिय-निवित्ते सिया, हिय-पवित्ते सिया, आराहगे सिया, उचिय-पडिवत्तीए सव्वसत्ताणं, सहियं ति इच्छामि सुक्कडं, इच्छामि सुक्कडं, इच्छामि सुक्कडं. १२
और मैं? मैं तो मूढ़ हूँ, पापमय हूँ, उपरोक्त सुंदर बातों को जीवन में उतारने के विषय में अनादि काल से मोह वासित- भ्रमित हूँ. अतः भाव से- सही मायनों में मैं मेरे हित और अहित से अनभिज्ञ हूँ, अनजान हूँ; अरिहंतादि के सामर्थ्य से अब मैं जानकार बनूँ, मेरे अहित से मैं निवृत्त बगैं, हित में मैं प्रवृत्त बगैं; मैं आराधक बनें- सभी जीवों की उचित प्रतिपत्ति से, उन-उन जीवों की लायकात के अनुरूप सेवा से, स्वीकृति से; क्यूँकि इसी में मेरा हित है, अतः मैं तहेदिल सुकृत की...
चाहना करता हूँ चाहना करता हूँ
चाहना करता हूँ.
सूत्र पाठ का फल एवमेयं सम्मं पढमाणस्स सुणमाणस्स अणुप्पेहमाणस्स सिढिलीभवंति परिहायंति खिज्जति असुह-कम्माणुबंधा.
इस विधि से संवेग के साररूप इस सूत्र को स्वयं सम्यक् पढ़ने वाले के, सुनने वाले के तथा अर्थ की गहराई में जा कर चिंतन करने रूप अनुप्रेक्षा करने वाले के... अशुभ कर्मों के अनुबंध अपने फल देने की शक्ति में मंदता आ जाने की
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पाप तो हर कोई करता है; पश्चाताप करने वाले महान है.
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