SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९ वजह से शिथिल हो जाते है; उनका ह्रास हो जाता है, वे कम हो जाते है, और विशिष्ट हृदय-भावों के अभ्यास से उनका नाश भी हो जाता है. निरणुबंधे वाऽसुहकम्मे भग्गसामत्थे सुह-परिणामेणं कडगबद्धे विय विसे अप्पफले सिया सुहावणिज्जे सिया, अपुणभावे सिया. १३ और साथ ही अनुबंध रहित बने ये अशुभ कर्म इस सूत्र की आराधना के प्रभाव से उनका सामर्थ्य टूट जाने पर आत्मा के शुभ परिणाम प्रकट होने से कड़े से बाँधे हुए विष की तरह अल्प फल को देने वाले बनते हैं, सुखरूप पूर्णतः नाश हो जाने वाले बनते हैं, और फिर से नहीं बंधने वाले हो जाते हैं. इस तरह जीव की अनंत दुःखरूपता की सारी जड़ का नाश हो जाता है. तहा आसगलिज्जंति परिपोसिज्जंति निम्मविज्जंति सुहकम्माणुबंधा. और, शुभ कर्मों के नए अनुबंध उत्पन्न होते हैं, वे कमजोर हो तो पुष्ट- मजबूत हो जाते है और अपने निर्माण को पूर्णतः पाते है. साणुबंधं च सुहकम्मं पगिट्ठ पगिट्ठ-भावज्जियं नियम-फलयं सुप्पउत्ते विय महागए सुहफले सिया, सुहपवत्तगे सिया, परमसुहसाहगे सिया. सानुबंध शुभकर्म, इस प्रक्रिया से प्रकृष्ट बने, अपने श्रेष्ठतम सामर्थ्य वाले बने; प्रकृष्ट शुभ भावों से अर्जित होने से अवश्य ही फल देने वाले बने हुए सुप्रयुक्त महा औषध की तरह शुभफल देने वाले बनते है, अनुबंध के बल से शुभ के सतत प्रवर्तक बनते है और परंपरा में परम सुख - मोक्ष सुख के साधक बनते है, देने वाले बनते है. अओ अप्पडिबंधमेयं असुहभाव-निरोहेणं सुहभाव-बीयं ति सुप्पणिहाणं सम्मं पढियव्वं सोयव्वं अणुप्पेहियव्वं ति. १४ अतः चउसरण आदि यह प्रक्रिया नियाणा - निदान की तरह आत्मकल्याण चरित्र से पतित का तो फिर भी मोक्ष है, श्रद्धा से पतित का नहीं.
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy