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में आगे बढ़ने में बाधक- प्रतिबंधक ऐसा फल देने वाली नहीं होने से अप्रतिबंध- अनिदान स्वरूप है, तथा अशुभ भाव यानि अशुभ अनुबंधों को अटकाने के द्वारा शुभभावों के लिए बीजरूप है. ऐसा जान कर सुंदर प्रणिधान के साथ यह सूत्र आत्मा के प्रशांत भाव से सम्यक् पठन करने योग्य है, श्रवण करने योग्य है एवं इसका अनुप्रेक्षणअनुभावन करने योग्य है.
अंतिम मंगल
नमो नमिय-नमियाणं परमगुरु- वीयरागाणं. नमो सेसनमोक्कारारिहाणं. जयउ सव्वण्णुसासणं. परमसंबोहीए सुहिणो भवंतु जीवा, सुहिणो भवंतु जीवा, सुहिणो भवंतु जीवा.
अन्य समर्थजन भी जिन्हें नमन करते हैं ऐसे देवेन्द्र, महा ऋषि आदि नमितों के द्वारा जो नमित नमन किए गए हैं; ऐसे परम गुरु वीतरागों को नमन, कि जिनके सारे क्लेश नाश हो चुके हैं. अन्य भी शेष नमस्कार योग्यों को - आचार्य, गुणाधिक आदि को नमन. सर्वज्ञों का शासन जय प्राप्त करें!
मिथ्यात्व के नाश पूर्वक परम संबोधि- सम्यक्त्व की प्राप्ति के द्वारा... सभी जीव सुखी हो... सभी जीव सुखी हो...
सभी जीव सुखी हो....
इति पावपडिघायगुणबीजाहाणसुत्तं समत्तं. १५ (१)
पाप प्रतिघात - गुणबीजाधान नाम का प्रथम सूत्र समाप्त हुआ.
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भाव युक्त धर्म पाप को भी पुण्य में बदल देता है.