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अप्कायिक जीवों में कई भेद हैं; जैसे कि भूमि का पानी, आकाश का पानी, हिम, ओले, दर्भ अथवा घास पर होने वाला जल, कुहासा, घनोदधि आदि ।
अग्निरूप शरीर को धारण करने वाले जीव तैजस्कायिक कहलाते हैं। स्थूल तैजस्कायिक जीवों के कई भेद हैं जैसे कि- अंगारा, ज्वाला, चिंगारी, उल्का की अग्नि, विद्युत आदि ।
वायुरूप शरीर को धारण करने वाले जीव वायुकायिक कहलाते हैं। स्थूल वायुकायिक जीवों के कई भेद हैं; जैसे कि- गोल-गोल घूमती हुई तिनके आदि को ऊपर ले जाने वाली वायु, आँधी, धीमे-धीमे बहने वाली वायु, गुंजारव करने वाली वायु, घनवात, तनुवात आदि।
विशेषः- पृथ्वी, पानी, अग्नि और वनस्पति की तरह वायु दिखती नहीं है; मगर ध्वजा एवं पत्तों के हिलने से इसकी प्रतीति अवश्य होती है। वायु में वजन भी पाया जाता है।
वनस्पतिरूप शरीर को धारण करने वाले जीव वनस्पतिकायिक कहलाते हैं। जैसे कि- स्थूल वनस्पति के दो भेद हैं- (१) प्रत्येक (२) साधारण ।
जिस वनस्पति के एक शरीर में एक जीव रहे, वह प्रत्येक वनस्पति और जिस वनस्पति के एक शरीर में अनन्त जीव रहें, वह साधारण वनस्पति कहलाती है । साधारण वनस्पति की अनेक निशानियाँ हैं; जैसे कि काटने के पश्चात् उगने वाली सभी वनस्पतियाँ; सभी प्रकार के कन्द - जिस वनस्पति के अवयव भूमि के अंदर में रहते हों; अंकुर, कोंपल, पंचवर्णी- लाल, पीली, बादली, काली और सफेद रंग की फफुंद शैवाल, हरी हल्दी, अदरक, गाजर आदि
चल फिर सकने योग्य शरीर को धारण करे वाले जीव त्रसकायिक कहलाते है। जैसे कि बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय ।
चारों गतियों में से एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय्, त्रीरिन्द्रिय और चउरिन्द्रिय जीव तो मात्र तिर्यंच-गति में ही पाए जाते हैं; मगर पंचेन्द्रिय जीव चारों गतियों में पाए जाते हैं । तिर्यंचगति में पाए जाने वाले पंचेन्द्रिय जीव तीन प्रकार के होते हैं - (१) जलचर, (२) स्थलचर, (३) खेचर ।
(१) जलचर- जल में चलने वाले जीव जैसे कि- मच्छ, कच्छप, मगर, ग्राह और सुंसुमार आदि ।
दुनिया में सबसे प्रभावशाली पाठशाला- माँ की गोद.