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________________ कंठः कपालः तीर्थकर पद पुन्यथी, त्रिभुवन जन सेवंत, त्रिभुवन तिलक समा प्रभु, भाल तिलक जयवंत. सोळ पहोर प्रभु देशना, कंठे विवर वर्तुल, मधुर ध्वनि सुरनर सुणे, तिणे गळे तिलक अमूल. ७ हृदयः हृदय कमल उपशम बळे, बाल्या राग ने रोष, हिम दहे वन खंडने, हृदय तिलक संतोष. नाभिः रत्नत्रयी गुण उजळी, सकल सुगुण विश्राम, नाभि कमळनी पूजना, करतां अविचल धाम. उपसंहारः उपदेशक नव तत्त्वना, तिणे नव अंग जिणंद, पूजो बहुविध रागथी, कहे शुभवीर मुणींद. नवांगी पूजा करते समय करने योग्य भावना १. अंगूठे पर पूजा करते समय भावना करें कि हे प्रभु! युगलिकों ने आपश्री के चरण के अंगूठे का अभिषेक कर विनय प्रदर्शित कर आत्मकल्याण किया, उसी प्रकार संसार सागर से तारने वाले आपके चरण के अंगूठे की पूजा करने से मुझ में भी विनय, नम्रता और पवित्रता का प्रवाह बहो. २. जानु (घुटना) पर पूजा करते समय भावना करें कि हे प्रभु! इन घुटनों के बल पर खड़े रहकर आपने अप्रमत्तपने से साधना कर केवलज्ञान प्राप्त किया. इन घुटनों के बल पर देश-विदेश विचरण कर अनेक भव्य आत्माओं का कल्याण किया. आपके घुटनों की पूजा करते हुए मेरा प्रमाद दूर हो और मुझे अप्रमत्तता से आराधना कर आत्मकल्याण करने की शक्ति संप्राप्त हों. हाथ पर पूजा करते समय भावना करें कि हे प्रभु! दीक्षा लेने से पहले आपने इन हाथों से स्वेच्छापूर्वक लक्ष्मी, अलंकार, वस्त्र आदि का एक वर्ष तक दान दिया. केवलज्ञान के बाद इन हाथों से अनेक मुमुक्षुओं को रजोहरण का दान दिया. आपके हाथों की पूजा करने से मेरी कृपणता, लोभवृत्ति का नाश हो, और यथाशक्ति दान देने के भाव मुझे पैदा हो. ४. कंधे पर पूजा करते समय भावना करें कि हे प्रभु! अनंत ज्ञान और अनंत शक्ति के स्वामी हे प्रभ! भजाबल से आपने स्वयं *मत्य बोलने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि पहले जो हम बोले थे वह याद पने का श्रम नहीं करना पड़ता.
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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