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________________ संसार सागर पार किया फिर भी आप में मान, अहंकार का किंचित् अंश दिखायी नहीं देता. आपने इन कंधों से अभिमान को दूर भगाया, इसी प्रकार इन कंधों की पूजा करने से मेरे भी अहंकार का नाश हो और नम्रता गुण का मुझ में वास हों. ५. मस्तक शिखा पर पूजा करते समय भावना करें कि हे प्रभु! आत्मसाधना और परहित में सदा लयलीन ऐसे आपने लोकाग्र में सिद्धशीला पर सदा के लिये वास किया. आपके शरीर के सबसे ऊपर रही हुई मस्तक शिखा के पूजन से मुझे ऐसा बल संप्राप्त हो कि मैं भी प्रतिक्षण आत्मसाधना और परहित के चिंतन में लीन रहकर शीघ्र ही लोक के अंत में निवास कर आप जैसा हो सकूँ. ललाट पर पूजा करते समय भावना करें कि हे प्रभु! तीर्थंकर नामकर्म- पुण्य के प्रभाव से तीनों लोक में आप पूजनीय हैं. आप तीन लोक की लक्ष्मी के तिलक समान है. आपके ललाट की पूजा के प्रभाव से मुझे ऐसा बल मिलो कि जिससे मैं ललाट के लेख अर्थात् कर्मानुसार संप्राप्त सुख में राग या दुःख में द्वेष न करूँ, अविरत आत्मसाधना करते हुए मैं आपकी तरह पुण्यानुबंधी पुण्य का स्वामी बनूँ. ७. कंठ में तिलक करते हुए भावना करे कि हे प्रभु! आपने इस कंठ में से जग-उद्धारक वाणी प्रगट करके जगत पर अनुपम करुणा एवं उपकार किया है. आपके कंठ की पूजा से मैं इस वाणी की करुणा को ग्रहण करने वाला बनूं और मुझ में ऐसी शक्ति प्रगट हो कि जिससे मेरी वाणी से मेरा और सब का भला हो. हृदय पर पूजा करते समय भावना करे कि हे प्रभु! राग-द्वेष आदि दोषों को जलाकर आपने इस हृदयमें उपशमभाव छलकाया है. निःस्पृहता, कोमलता और करुणाभरित आपके हृदय की पूजा के प्रभाव से मेरे हृदय में भी सदा निःस्पृहता-प्रेम-करुणा और मैत्री आदि भावना का प्रपात बहता रहे. मेरा हृदय भी सदा उपशम भाव से भरपूर रहो. ९. नाभि पर पूजा करते समय भावना करे कि हे प्रभु! आपने अपने श्वासोच्छवास को नाभि में स्थिर कर, मन को आत्मा के शुद्ध के जीवन का wfण कोणे? जीना अच्छा लगे वैसा, या देखना भी पद न आए वै०१/ मम ही wofs .x
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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