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________________ NO श्री विमलनाथ भगवान चैत्यवंदन आत्मिक सिद्धि आठ जे, आठ वसुना भोगी; आत्मवसु प्रगटावीने, निर्मल थया अयोगी. करी विमल निज आतमा, थया विमल जिनराज; प्रभु पेठे निज विमलता, करवी ए छे काज. आत्मविमलता जे करे ए, स्वयं विमल ते थाय; विमल प्रभु आलंबने, विमलपणुं प्रगटाय. प्रभुजी. प्रभु.१. प्रभु.२. स्तवन मुज अवगुण मत देखो. राग दशाथी तुं रहे न्यारो, हुं मन रागे वालुं । द्वेष रहित तुं समता भीनो, द्वेष मारग हं चालू. मोह लेश फरस्यो नहि तुंही, मोह लगन मुज प्यारी. तुं अकलंकी कलंकित हुं तो, ए पण रहेणी न्यारी. तुं हि निरागी भाव-पद साधे, हुं आशा-संग विलुद्धो. तुं निश्चल हुं चल, तुं सूद्धो हुं आचरणे ऊंधो. तुज स्वभावथी अवला मारा, चरित्र सकल जग जाण्या. एहवा अवगुण मुज अति भारी, न घटे तुज मुख आण्या. प्रेम नवल जो होय सवाई, विमलनाथ मुख आगे. कान्ति कहे भवरान उतरतां, तो वेला नवि लागे. प्रभु.३. प्रभु.४. प्रभु.५ स्तुति विमल जिन जुहारो, पाप संताप वारो, श्यामांब मल्हारो, विश्व कीर्ति विफारो, योजन विस्तारो, जास वाणी प्रसारो, गुणगण आधारो, पुण्यना ए प्रकारो OM
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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