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________________ ७१ (६) प्रत्येकबुद्धसिद्ध- जो दूसरे के उपदेश के बिना मगर किसी बाह्यसंध्या के रंग, वृद्धत्व आदि निमित्त को पाकर विरत बनते हैं, स्वयं दीक्षा धारण करते हैं या देवता उनको वेश-भूषा देते हैं; और सकल कर्मों का क्षय करके जो सिद्धत्व को प्राप्त करते हैं, वे प्रत्येकबुद्ध-सिद्ध कहलाते हैं। (७) बुद्धबोधित सिद्ध- जो बुद्ध यानि गुरू, आचार्य आदि के उपदेश से बोध प्राप्त कर चारित्र ग्रहण करते हैं, संयम का पालन करते हुए आठों कर्मो का क्षय करते हैं और सिद्धत्व को प्राप्त करते हैं, वे बुद्धबोधित-सिद्ध कहलाते हैं। (८) स्त्रीलिंग-सिद्ध- स्त्रीलिंग से कर्मों को क्षय करके जो सिद्धत्व को प्राप्त करते हैं, वे स्त्रीलिंग सिद्ध कहलाते हैं। यहाँ स्त्रीलिंग शब्द स्त्रीत्व का सूचक है। स्त्रीत्व तीन स्वरूपों में पाया जाता है। (१) वेद (२) शरीर की आकृति (३) वेष। यहाँ स्त्रीलिंग शब्द में शरीर की आकृति रूप स्त्रीत्व ही मान्य है। (९) पुरुषलिंग सिद्ध- जो पुरुष शरीर की आकृति में रहते हुए कर्मों का क्षय करते हैं और सिद्धत्व को प्राप्त करते है वे पुरुषलिंग-सिद्ध कहलाते हैं। (१०) नपुंसकलिंग सिद्ध– नपुंसक शरीर की आकृति में रहते हुए आठों कर्मों का क्षय करने वाले नपुंसकलिंग-सिद्ध कहलाते हैं। (११) स्वलिंग सिद्ध- जो जिनशासनमान्य रजोहरण, मुखवस्त्रिका आदि लिंग यानि वेशभूषा को धारण कर कर्मों का पूर्णतः क्षय करते हैं और सिद्धत्व को प्राप्त करते हैं वे स्वलिंग सिद्ध कहलाते हैं। (१२) अन्यलिंग सिद्ध- जो भिन्न-भिन्न परिव्रजाक, तापस, सन्यासी आदि के रूप में रहते हुए कर्मों का सर्वथा क्षय करते हैं और सिद्धत्व को प्राप्त करते हैं, वे अन्यलिंग सिद्ध कहलाते हैं। (१३) गृहीलिंग सिद्ध- जो गृहस्थ की वेशभूषा में रहते हुए कर्मों का सर्वथा क्षय करते हैं और सिद्धत्व को प्राप्त करते हैं, वे गृहीलिंग सिद्ध कहलाते हैं। (१४) एक सिद्ध- एक समय में एक ही जीव आठों कर्मों का क्षय करके सिद्धत्व को प्राप्त करता है, वह एकसिद्ध कहलाता है। (१५) अनेकसिद्ध- एक समय में एक से अधिक सिद्धत्व को पाने वाली आत्माएं अनेक सिद्ध कहलाती हैं। * काले कालं ममाचरेत्! ममय पेममय का काम कर लेना चाहिए.
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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