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________________ सिद्धात्मा के आठ गुण प्रश्न:- मन में एक प्रश्न बार-बार पैदा होता है कि आत्मा और कर्मों का संयोग कब से ? उत्तर:- इन दोनों का संबंध अनादि काल से हैं। ज्यों सुवर्ण की खान में मिट्टी और सुवर्ण का संबंध अनादि काल से है, त्यों ही आत्मा और कर्मों का संबंध अनादिकाल से है। हाँ, मिट्टी और सुवर्ण का संबंध अनादिकालीन होने पर भी ज्यों जानकार व्यक्ति कुछ प्रक्रियाओं से दोनों को जुदा जुदा कर देता है वैसे ही सुज्ञ व्यक्ति ज्ञान-पूर्वक क्रिया, ध्यान, व्रत, संयमादि शुद्धिप्रधान प्रक्रियाओं से आत्मा और कर्मों को जुदा जुदा कर लेता है। आत्म-प्रदेशों से कर्मों के जुदा होते ही सभी विभाव दूर हो जाते हैं; आत्मा स्वभाव में स्थिर हो जाती है। कर्म आत्मा के मूलगुणों को आवृत्त करते हैं; संवर, निर्जरा और क्षय प्रधानक्रियाएँ उन आवरणों को दूर करती हैं, कर्म दूर होते ही आवृत्त गुण स्वतः प्रकट हो जाते हैं। कर्म और गुण ____ कर्म के मूल-ज्ञानावरणीयादि भेद आठ है; और आत्मा के मुख्यतः गुण भी आठ हैं। (१) ज्ञानावरणीय कर्म- ज्ञान आत्मा का मुख्य गुण है। इस ज्ञान गुण को आवृत्त करने वाला कर्म ज्ञानावरणीय कर्म कहलाता है। ज्ञान अर्थात् विशेष अवबोध । ज्ञानावरणीय कर्म के प्रभाव से आत्मा को पदार्थ बोध में रुकावट पड़ती है, ज्यों ही ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है त्यों ही आत्मा केवलज्ञान को प्राप्त करती है। केवलज्ञान के प्रकट होते ही आत्मा के लिए लोक एवं अलोक में कुछ भी अज्ञात एवं अज्ञेय नहीं रहता। (२) दर्शनावरणीय कर्म- आत्मा का एक गुण है दर्शन। दर्शन रूप गुण को आवृत्त करने वाला कर्म दर्शनावरणीय कर्म कहलाता है। दर्शन अर्थात् सामान्य अवबोध । दर्शनावरणीय कर्म के प्रभाव से आत्मा की दर्शन शक्ति पूर्णरूपेण प्रकट नहीं हो पाती; ज्यों ही दर्शनावरणीय कर्म का क्षय होता है त्यों ही आत्मा केवलदर्शन को प्राप्त करती है। केवलदर्शन के प्रकट होते ही आत्मा के लिए लोक एवं अलोक में कुछ भी अदृश्य नहीं रहता। (३) वेदनीय कर्म- आत्मा का गुण है अव्याबाध-बिना बाधा के शाश्वत, सुख * निष्फलता का अनुभव मफलता की कीमत भी समझा सकता है.
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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