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________________ वीतराग तारी मीठी मीठी, वाणीमां जादु भर्या, तेथी ज तारा शरणमां, बाळक बनी आवी चडया. बहुकाळ आ संसार सागरमां, प्रभु! हुं संचर्यो; थई पुण्यराशि एकठी, त्यारे जिनेश्वर तुं मळ्यो; पण पापकर्म भरेल में, सेवा सरस नव आदरी, शुभ योगने पाम्या छतां, में मूर्खता बहु ये करी. शत कोटी कोटी वार वंदन, नाथ मारा हे तने, हे तरण तारण नाथ तुं, स्वीकार मारा नमनने; हे नाथ शुं जादु भर्या, अरिहंत अक्षर चारमां, आफत बधी आशिष बने, तुज नाम लेता वारमा. सागर दयाना छो तमे, करुणा तणा भंडार छो, ने पतितोने तारनारा, विश्वना आधार छो; तारे भरोसे जीवननैया, आज में तरती मूकी, कोटी कोटी वंदन करूं, जिनराज तुज चरणे झूकी. 690699069 दर्शनं देव-देवस्य, दर्शनं पाप-नाशनम्. दर्शनं स्वर्ग-सोपानं, दर्शनं मोक्ष-साधनम्. अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम. तस्मात् कारुण्य-भावेन, रक्ष रक्ष जिनेश्वर!. मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमः प्रभुः; मंगलं स्थूलभद्राद्या, जैनो धर्मोस्तु मंगलम्. पूर्णानन्द-मयं महोदय-मयं, कैवल्य-चिट्टङ्मयम्; रूपातीत-मयं स्वरूप-रमणं, स्वाभाविकी-श्रीमयम्. ज्ञानोद्योत-मयं कृपा-रस-मयं, स्याद्वाद-विद्यालयमा श्री सिद्धाचल-तीर्थराज-मनिशं, वन्देह-मादीश्वरम्. २४ धर्म मे दूर भागते हो/ कौन? तुम या कुसंस्कार?
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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