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जिनालय में ध्यान में रखने योग्य सूचनाएँ १. पूजा करते समय पुरुषों को दुपट्टे से ही आठ तहवाला मुखकोश बाँधना
चाहिये. रूमाल का प्रयोग उचित नहीं हैं. आठ तहवाला मुखकोश बाँधे बिना गर्भगृह में प्रवेश नहीं किया जा सकता. गर्भगृह में दोहे ऊँची आवाज से
न बोलकर मन में बोलने चाहिये. २. पूजा करने का हाथ पानी से धोकर धूप से धूप कर पवित्र करने के बाद
गर्भगृह की देहली, शरीर या कपड़ों से न छू कर सीधी पूजा करने का
आग्रह रखना चाहिये. ३. पूजा करते समय घड़ी पहनना उचित नहीं है. हाथ की अंगुलीयों पर अंगुठी
तथा शरीर पर आभूषण अवश्य पहनें. ४. पंचधातु के प्रभुजी को एक हाथ से न पकड़ते हुए दोनों हाथ से
बहुमानपूर्वक थाली में लेना चाहिये. ५. दूध के पक्षाल की धारा प्रभुजी की मस्तक शिखा से ही करनी चाहिये.
नवांगी पूजा की तरह प्रत्येक अंग पर करने का विधान नहीं है.. प्रभुजी के अंगलूछने मुलायम एवं स्वच्छ होने चाहिये. प्रभुजी के अंग लुछणियों को, मोर पिंछी को, पाट लुछणियों आदि सामग्री को अलग ही रखें. देव-देवी
आदि हेतु न वापरे, प्रभु की सामग्री प्रभु के उपयोग में ही लेवें. ७. पूजा का क्रम इस प्रकार है- पहले मूलनायकजी, फिर दूसरे भगवान तथा
सिद्धचक्रजी का गट्टा, फिर गुरूमूर्ति. अंत में देव-देवियों के मस्तक पर
दाये अंगूठे से बहुमान के रूप में एक ही तिलक करना चाहिये. ८. पूजा करते समय प्रभुजी को नाखून न छुए और नाखून को केसर न लगे तथा
पूजा करने के बाद नाखून में केसर न रह जाय इसका खास ध्यान रखना चाहिये. भगवान के दाये अंगूठे पर सकल संघ की ओर से मात्र एक तिलक किया जा सकता है. नव अंग के सिवाय प्रभुजी की हथेली में, लंछन में या परिकर
में रहे हुए हाथी-घोड़े-वाघ की पूजा करने का विधान नहीं हैं. १०. पूजा करने की अंगूली या हथेली सिवाय कोई भी अंग या पूजा के वस्त्र
का प्रभुजी को स्पर्श होना उचित नहीं है. प्रभुजी की गोद में सिर रखना या छूना नहीं चाहिये.
भाहार शुब्दों, मत्वशुद्धिः