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ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय
श्रीमते जिनेन्द्राय अक्षतं यजामहे स्वाहा. (२७ डंके बजाये )
(सूचना- अक्षत पूजा में चावल की सिद्धशिला की ढेरी, उसके बाद दर्शनज्ञान - चारित्र की ढेरी और अंत में स्वस्तिक की ढेरी करनी चाहिये. आलंबन करने में पहले स्वस्तिक और अंत में सिद्धशिला करे.) स्वस्तिक करते समय बोलने के दोहे
अक्षत पूजा करतां थकां सफळ करूं अवतार; फळ मागुं प्रभु आगळे, तार तार मुज तार. सांसारीक फल मांगीने रझळ्यो बहु संसार; अष्ट कर्म निवारवा, मांगुं मोक्षफळ सार
चिहुंगति भ्रमण संसारमां जन्म मरण जंजाळ; पंचमगति विण जीवने, सुख नहि त्रिहुं काळ. तीन ढेरी और सिद्धशीला करते समय बोलने का दोहा
दर्शन-ज्ञान-वारित्रनां, आराधनाथी सार
सिद्धशिलानी उपरे, हो मुज वास श्रीकार.
७. नैवेद्य पूजा
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नैवेद्य पूजा का रहस्य
हे प्रभो! मैंने विग्रह गति में आहार बिना का अणाहारी पद अनन्त बार किया है, लेकिन अभी तक मेरी आहार की लोलुपता नहीं मिटी है. आहार से निद्रा बढ़ती है. इसलिए आहार संज्ञा को तोड़ने के लिए और सात भय से मुक्त होने के लिए उत्तम नैवेद्य से पूजा करता हूँ.
नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः
न करी नैवेद्य पूजना, न धरी गुरुनी शीखः, लेशे परभवे अशाता, घर घर मांगशे भीख !
पुण्य से अर्थ मिलता है, धर्म से परमार्थ....
ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा- मृत्यु- निवारणाय
श्रीमते जिनेन्द्राय नैवेद्यं यजामहे स्वाहा. (२७ डंके बजाये )