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________________ श्री मल्लिनाथ भगवान चैत्यवंदन मल्ल बनी भवरणविषे, जीत्या राग ने द्वेष; मल्लि प्रभु तेथी थया, टाळ्या सर्वे क्लेश.. रागद्वेष न जेहने, परमातम ते जाण; देह छतां वैदेही ते, केवली छे भगवान्. मल्लिनाथ प्रभु ध्याईने ए, भावमल्लता पामी; कर्म करो प्रारब्धथी, बनी अंतर निष्कामी. स्तवन मल्लिजिन सहज स्वरूपनुं, वर्णन कहो केम थायरे; वैखरी वर्णन शुं करे, कंइ परामांही परखायरे. परमब्रह्म पुरुषोत्तम, अनंगी अनाशी सदायरे; विमल परम वितरागता, अक्षय अचल महारायरे. निर्भयदेशना वासी जे, अजर अमर गुणखाणरे; सहज स्वतंत्र आनन्दमां, भोगवो शिव निर्वाणरे. चेतन असंख्यप्रदेशमां, वीर्य अनंत प्रदेशरे; छती शुं सार्मथ्य भावथी, वापरो समये निःक्लेशरे. त्रिभुवनमुकुट शिरोमणि, परम महोदय धर्मरे; जगगुरु परमबंधु विभु, सादि-अनन्त सुशर्मरे. अलख अगोचर दिनमणि, अविचल पुरुष पुराणरे; सत्य एक देव! तुं जगधणी, धारुं हुं शिर तुज आणरे. मल्लिजिन शुद्ध आलंबने, सेवक जिनपणुं पायरे; बुद्धिसागर रस रंगमां, भेटिया चिद्घनरायरे. १ २ ३ मल्लि० १ मल्लि० २ मल्लि० ३ मल्लि० ४ मल्लि० ५ मल्लि० ६ मल्लि० ७ स्तुति मल्लिनाथ घट जेहना, सर्व मल्लने जीत; आतममल्ल जे जाणतो, शुद्धधर्म प्रतीते; हारे न जगमां कोईथी, कोई तेने न मारे; मोहशत्रुने मारतो, तेने देव छे व्हारे. १
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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