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गाड़ी, हल आदि तैयार करवाना (४) भाटक कर्म- बैलगाड़ी वगैरह किराये से घूमाना (५) स्फोटक कर्म- कुए, तालाब, सुरंग वाव आदि (६) दंतवाणिज्य- हाथी के दांत आदि (७) लक्खवाणिज्य- लाख, गोंद आदि (८) रसवाणिज्य- घी, गुड़ आदि (९) विष वाणिज्य- अफीम, सोमल आदि (१०) केश वाणिज्य- ऊन, पंख, बाल आदि (११) वस्त्र पीलन कर्म- मील, जीन, चक्की, घाणी आदि (१२) निलांछन कर्म- नपुंसक बनाना, नाक, कान आदि अंग छेदने (१३) दवदान कर्म- वन आदि में आग लगाना (१४) जल शोषण कार्य- तालाब, सरोवर आदि सुकाना (१५) असति पोषण- कुत्ते, बिल्ली, तोता आदि व असती का पोषण करना। चौदह नियम
सचित्त दव्व विगइ वाणह, तंबोल वत्थ कुसुमेसु।
वाहण सयण विलेवण, बंभ, दिसि न्हाण भत्तेसु।। १ ।। चौदह नियम रोज धार लेने चाहिये किन्तु रोज न धार सकें, तो जीवनभर के लिये निम्नोक्त नियम धार सकते हैं। उसके बाद अपनी अनुकूलता से उनमें से प्रतिदिन या समय-समय पर कम भी कर सकते हैं। १. सचित्त- बोने से उगे, वह अनाज, फल, कच्चा पानी, नमक, हरी वनस्पति, पान,
दातुन । १५ या... से ज्यादा नहीं। २. द्रव्य- सारे दिन में अलग-अलग स्वादवाली चीजें मुंह में डाली जाए, वे सब ।
जैसे सचित्त व विगई के सिवाय की रोटी, शाक, दूध, घी, तेल, गुड़, सोपारी
चूर्ण आदि। ४० या... से ज्यादा नहीं। ३. विगई- दूध, दही, घी, तेल, गुड़ व कडाह (घी-तेल में तली हुई भजीया आदि
वस्तु या घी में सेक कर बनाये गये सिरा लापसी आदि)। कच्ची या पक्की एक विगई का... त्याग। उपनाह- जुतें, बूट, चप्पल सेंडल, स्लीपर, मोजा आदि। ५ या.... से ज्यादा का
त्याग, खरीदते वक्त जयणा। ५. तंबोल- पान, सोपारी, इलायची, लवींग इत्यादि-मुखवास ग्राम १०० या... से
ज्यादा नहीं। ६. वस्त्र- पहनने व ओढ़ने के कपड़े। वस्त्र ३० या... से ज्यादा नहीं। धर्म कार्य में व खरीदी में जयणा।
चापलूसी मरल है, प्रक्षामा कठिन है.