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________________ श्री मुनिसुव्रतस्वामि भगवान चैत्यवंदन मुनिसुव्रत जिन वीशमा, कच्छपनुं लंछन, पद्मा माता जेहनी सुमित्र नृप नंदन. राजगृही नयरी धणी, वीश धनुष शरीर, कर्म निकाचित रेणु व्रज, उद्दाम समीर. त्रीस हजार वरसतणुं ए, पाली आयु उदार, पद्मविजय कहे शिव लह्या, शाश्वत सुख निरधार. स्तवन मुनिसुव्रत जिन वंदतां, अति उल्लसित तन मन थाय रे; वदन अनोपम निरखतां, मारां भव भवनां दुःख जाय रे; मारां भव भवनां दुःख जाय, जगतगुरु जागतो सुखकंद रे; सुखकंद अमंद आनंद, परमगुरु दीपतो सुखकंद रे. निशदिन सुतां जागतां, हैडाथी न रहे दूर रे; जब उपकार संभारीए, तव उपजे आनंदपूर रे. प्रभु उपकार गुणे भर्या, मन अवगुण एक न माय रे; गुणगुण अनुबंध हुआ, ते तो अक्षयभाव कहाय रे. अक्षय पद दीए प्रेम जे, प्रभुनुं ते अनुभवरूप रे; अक्षर-स्वर-गोचर नहि, ए तो अकल अमाय अरूप रे. अक्षर थोडा गुण घणा, सज्जनना ते न लिखाय रे; वाचकयश कहे प्रेमथी, पण मनमांहे परखाय रे. १ २ ३ १ २ ३ ४ ५ स्तुति मुनिसुव्रत नामे, जे भवि चित्त कामे; सवि संपत्ति पामे, स्वर्गनां सुख जामे; दुर्गति दुःख वामे, नवि पडे मोह भामे; सवि कर्म विरामे, जई वसे सिद्धि धामे.
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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