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चिरंतनाचार्यविरचितं
पञ्चसूत्रकम् महर्षि चिरंतनाचार्य कृत पंचसूत्र और उसकी आचार्य श्री हरिभद्रसूरि कृत टीका, दोनों ही अनुपम, अलौकिक है. जीव की अत्यंत प्रारंभिक कक्षा से ले कर अध्यात्म जगत के सर्वोच्च शिखरों को सर करने का ‘अत्यंत प्रभावी मार्गदर्शन इसमें दिया हुआ है. प्रभावी यानी प्रभावी! बताई प्रक्रिया को बताए ढंग से करो और क्रमशः परिणाम आएगा ही... और आस्था दृढ़ होती चली जाती है.
यूँ तो पांचों के पांच सूत्र (अध्याय) अलग अलग भूमिका के लोगों के लिए अपनी-अपनी विशेषताएँ लिए हुए हैं, फिर भी पाप-प्रतिघात-गुणबीजाधान नाम का प्रथम सूत्र तो गज़ब का है. खास कर प्रारंभिक कक्षा के जीवों के लिए, और उसमें भी आज के तनाव, भय व कटुता के संक्लेशों से भरे अशांत जीवों के लिए तो यह सूत्र वाकई अमृत रस का काम करता है.
इस सूत्र की सबसे बड़ी खासीयत यह है कि यह मात्र सतही स्तर पर ही परिवर्तन, शांति व आनंद नहीं लाता, किंतु ठेठ जड़ों तक जा कर गहराई से काम करता है, और हमेशा के लिए जीव की योग्यता को ही बदल कर धर देता है. यह मात्र तात्कालिक इक्का-दुक्का परिणामों तक काम नहीं करता, परंतु अंतिम परिणति तक की, परिणामों (results) की सारी परंपरा को ही, जीव की योग्यता को पलटने के माध्यम से, नियंत्रित कर देता है. मात्र अशुभ कर्मों को ही नहीं पलटता, बल्कि जिनकी वजह से जीव अनंत बार दुःख पाता है वैसे अशुभ अनुबंधों को भी पलट देता है.
और यही इसकी अनन्य खासीयत है, जो इसे बिल्कुल अलग कक्षा में ले जाती है. बड़ी दुर्लभ है यह प्रक्रिया! और सरल भी इतनी ही है. सोने में मानो सुगंध...
जहाँ हमारा सामर्थ्य व पुण्य कम पड़ता हो वहाँ शक्तिशाली व पुण्यवान का आसरा बड़ा काम आता है. अरिहंत आदि चार का शरण यही काम करता है. हमारे सारे दुःखों की जड़ है पाप में खुशी व पाप की रूचि. जीव को इन्हीं की आदत अनादि से है. इन्हीं से पाप का बंध व अनुबंध दोनों ही होते रहते
जानी के पास भावाह मुक्त खुले मन जाने पर जिजामात होती है व पूरा फायदा मिलता है.*