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________________ माता-पिता के संयोग- शुक्र और रक्त के बिना जन्मग्रहण करना सम्मूर्छिम जन्म कहलाता है। गर्भ में रहे हुए पुरुष के शुक्र और स्त्री के शोणित-रक्त पुद्गलों को अपने नए शरीर के निर्माण के लिए ग्रहण करना, स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण कर या अपूर्ण रखते हुए एक नए जीवन की शुरूआत करना गर्भज जन्म कहलाता है। मानव के रूप में जीव जिन क्षेत्रों में जन्म धारण कर सकता है, वे क्षेत्र तीन है; अतः परमात्मा ने क्षेत्र की अपेक्षा से मानव को तीन वर्गों में भी बाँटा है (१) कर्मभूमिज-कर्मभूमि में जन्म लेने वाले मानव । (२) अकर्मभूमिज-अकर्मभूमि में जन्म लेने वाले मानव । (३) अन्तर्वीपिक-अन्तर्वीपों में जन्म लेने वाले मानव । मनुष्य के रूप में जीव मनुष्य क्षेत्र-मात्र अदीद्वीप जंबूद्वीप १ + धातकीखंड १ + अर्ध पुष्करवर द्वीप १/२ = २ १/२ प्रमाण क्षेत्र में ही जन्म धारण कर सकता है। कर्म अकर्म भूमि का स्वरूप कर्म तीन है - (१) असि, (२) मषी, (३) कृषि। जिस क्षेत्र में असि अर्थात् तलवार; युद्धादि के लिए नानाविध तलवारादि अस्त्र, शस्त्र बनाना, बनवाना; मषी अर्थात् स्याही; यानि पठन, पाठन, लेखनादि विद्या संबंधी कार्य करना, करवाना; और कृषि अर्थात् खेती; यानि पशुपालन, खेतीवाड़ी वाणिज्य उद्योगादि; और मोक्षानुष्ठान-श्रुत एवं चारित्र रूप धर्म की आराधना आदि हों, उसे कर्मभूमि क्षेत्र कहते हैं। जहाँ ये कर्म न हों उसे अकर्मभूमि क्षेत्र कहा जाता है। तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेवादि श्लाका-पुरुष एवं विद्याधर-पुरुष कर्मभूमि में ही जन्म धारण करते हैं। मनुष्यों को साधु, संतों एवं सामान्य से जिनालय, जिनबिंबादि का योग भी इसी कर्मभूमि में प्राप्त हो सकता है। जीव मुक्ति के लिए कर्मक्षयप्रधान साधना भी कर्मभूमि पर ही कर सकते हैं; अकर्मभूमि या अंतीपो में नहीं। अकर्मभूमियों एवं अन्तर्वीपों में युगलिक मनुष्य व युगलिक पशु-पंछी रहते हैं। युगलिक जीव प्रकृति से भद्र और संतुष्ट होते हैं। उनकी आवश्यकताएँ बहुत ही * मौत के बाद धन माथ नहीं आता, धर्म भाता है.
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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