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श्री चंद्रप्रभस्वामि भगवान
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चैत्यवंदन अनंत चंद्रनी ज्योतिथी, अनंत ज्ञानथी ज्योतः चंद्रप्रभु प्रणमुं स्तवं, करता जग उद्योत असंख्य चंद्रो भानओ इन्द्रो जेने ध्याय 'परब्रह्म चंद्रप्रभु, जगमां सत्य सुहाय. शुद्धप्रेमथी वंदतां ए, असंख्यचंद्रनो नाथ, बुद्धिसागर आतमा, टाळे पुद्गल साथ.
स्तवन 'देखण दे रे सखि मने देखण दे, चन्द्रप्रभु मुखचंद उपशम रसनो कंद सखि०, सेवे सुरनर इंद गत कलिमल दुःख दंद, सखि मुने देखण दे। सुहम निगोदे न देखियो सखि०, बादर अतिहि विशेष पुढवी आउ न पेखियो सखि०, तेउ वाउ न लेश वनस्पति अति घण दीहा सखि०, दीठो नहींय दीदार बि-ति-चउरिंदि जललिहा सखि०, गतसन्नि पण धार 'सुर-तिरि-निरय निवासमां सखि०, मनुज अनारज साथ अपज्जत्ता प्रतिभासमां सखि०, चतुर न चढीयो हाथ एम अनेक थल जाणिये सखि०, दरिसण विणु जिनदेव। आगमथी मति आणीये सखि०, कीजे निर्मल सेव। निर्मल साधु भगति लही सखि०, योग-अवंचक होय किरिया-अवंचक तिम सही सखि०, फळ-अवंचक जोय प्रेरक अवसर जिनवरु सखि०, मोहनीय क्षय थाय। कामितपूरक सुरतरु सखि०, आनंदघन प्रभुपाय
सखि० सखि० सखि०१ सखि० सखि०२ सखि० सखि०३ सखि सखि०४ सखि० सखि०५ सखि सखि०६ सखि० सखि०७
स्तुति
चंद्रप्रभु विभु उपदेशे, जैनधर्म ते साचो; नय सापेक्षाए खरो, तेमां भव्यो राचो आत्मज्ञान ने ध्यानथी, करो आत्मनी शुद्धि, शुद्धातम चंद्रप्रभु, थातां आनंद ऋद्धि. १
KUROMOTORON ANA
KORORUNKOMAOOR
SEAR