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________________ श्री अजितनाथ भगवान चैत्यवंदन अजित अजित पद आपता, भव्यजीवने जेह; पुरुषार्थने भाखता, हेतु मुख्य छे तेह.। जड-परिणामी यत्नथी, जड साथे छे बन्ध; शुद्धात्मिक परिणामना, पुरुषार्थे नहि बन्ध. । पुरुषार्थ शिरोमणि ए, सहजयोग शिरदार; शुद्धातम उपयोग छे, अजित निर्धार. स्तवन प्रीतलडी बंधाणी रे अजित जिणंदरों, प्रभु पाखे क्षण एके मन न सुहाय जो; ध्याननी ताली रे लागी नेहशुं, जलद घटा जिम शिव सुत वाहन दाय जो. प्रीत.१. नेह घेखें मन मारूं रे प्रभु अलजे रहे, तन मन धन ए कारणथी प्रभु मुज जो; । मारे तो आधार रे साहिब रावलो, अंतरगतनी प्रभु आगल कहुं गुंज जो. प्रीत.२. साहेब ते साचो रे जगमां जाणीए, सेवकनां जे सहजे सुधारे काज जो; एहवे रे आचरणे केम करीने रहुं, बिरुद तमारं तारण तरण जहाज जो. प्रीत.३. तारकता तुज माहे रे श्रवणे सांभली, ते भणी हुं आव्यो छु दीनदयाल जो; तुज करुणानी लहेरे रे मुज कारज सरे, शुं घणुं कहीए जाण आगल कृपाल जो. प्रीत.४. करुणा दृष्टि कीधी रे सेवक उपरे, भव भव भावट भांगी भक्ति प्रसंग जो; मन वांछित फलीयां रे तुज आलंबने, कर जोडीने मोहन कहे मनरंग जो. प्रीत.५. स्तुति विजया सुत वंदो, तेजथी ज्युं दिणंदो, शीतलताए चंदो, धीरताए गिरीदो; मुख जिम अरविंदो, जास सेवे सुरिंदो लहो परमाणंदो, सेवतां सुख कंदो. १ 4
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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