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________________ १५ १४. फिर क्रमशः चंदन पूजा, पुष्प पूजा करें. १५. प्रभुजी को मुकुट, हार आदि आभूषण चढ़ाने रूप आभूषण पूजा करें. १६. गर्भगृह के बाहर खड़े रहकर धूप पूजा और दीपक पूजा करें. पंखा ढोले, दर्पण में प्रभुजी का दर्शन करें. १७. चामर नृत्य करें. १८. क्रमशः अक्षत पूजा, नैवेद्य पूजा और फल पूजा करें.. १९. नाद पूजा के रूप में घंटनाद करें. २०. योग्य स्थान पर अवस्थात्रिक भायें. २१. तीन बार दुपट्टे से भूमि की 'प्रमार्जना' कर... तिसरी निसीहि बोलकर चैत्यवंदन करें. २२. दिशात्याग, आलंबन मुद्रा और प्रणिधान त्रिक का पालन करें. २३. चैत्यवंदन पूरा करने के बाद 'पच्चक्खाण' लें. २४. विदा होते समय स्तुति बोले. २५. अक्षत, नैवेद्य, फल, बाजोट, पूजा के उपकरण योग्य स्थान पर रखें. २६. अंत में प्रभुदर्शन तथा पूजन से संप्राप्त हर्ष को व्यक्त करने के लिये धीरे से 'घंट' बजायें. २७. प्रभुजी को पीठ न हो वैसे जिनालय से बाहर निकले. २८. न्हवण ( स्नात्र) जल लें. २९. चौतरे पर बैठकर आँखें बंद कर तीन नवकार का स्मरण कर हृदय में भक्तिभावों को स्थिर करें. ३०. आज जो सुकृत हुआ है उसके आनंद के साथ और प्रभु विरह के दुःख के साथ गृह के प्रति गमन करें. गाय का शुद्ध घी नित्य मंदिर में समर्पित करना. घी के दीये से- (१) अज्ञान दूर होता है (२) प्रभु को जो अंजन किया होता है वह तेज घटता नहीं है (३) शुद्ध प्राण ऊर्जा से साधक पुष्ट | होता है. लाईट सुविधा जनक होगी, फायदे जनक हरगीज नहीं. | | अनुबंध की ' में बंध यह बड़ी सामान्य चीज है. तुलना
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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