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________________ 30 ي अशांति मन के भीतर ही है, जो सब से ज्यादा परेशान कर रही है. मन की अशांति हेतु हकीकत में बाहरी निमित्त बहोत कम या नगण्य प्रभाव धराते है, संस्कार व नजरिया ज्यादा असर धराते है. गहराई से सोचें! बात समझ में आ जाएगी. मन के शांत होते ही यह देखा गया है कि बाहरी संजोग असर होते चले जाते है, और कई बार तो वे पलट भी जाते है, या उनका फल पलट जाता है. दुःख व संक्लेश मुक्ति की तरह जीवन में सुख व प्रसन्नता बढ़ाने के लिए भी इसी प्रक्रिया का उपयोग किया जा सकता है. इस हेतु अरिहंत आदि के इस तरह के गुणों एवं सुकृत अनुमोदना के उन अंशों पर ज्यादा भार देना होगा. अलग-अलग मनोदशाओं में अलग-अलग शब्द महत्त्वपूर्ण लगेंगे. नई-नई मंजिलों की यात्रा जारी रखें. पठन व भावन की रीतः मूल व उसके साथ अर्थ को शांत-चित्त, एकएक शब्द व वाक्य हृदय की संवेदनाओं को झंकृत करे, इस तरह धीरे-धीरे पढ़ें. एक बार अर्थ चित्त में भावित हो जाय, तब मात्र मूल का अर्थ जो कि अर्थ के बीच ही जरा बड़े व काले अक्षरों में दिया गया है, उसे पढ़ें, और उन भावों की स्पर्शना करें. एक अलग ही संवेदना होगी. आवश्यक लगे वहाँ विस्तृत अर्थ भी बीच-बीच में देख सकते हैं. मूल प्राकृत शब्दों के साथ भी अर्थ को बैठाने का प्रयास करें. एक बार अर्थ बैठ जाय, फिर मात्र प्राकृत पाठ से ही मन को भावित करने का प्रयास करें. आनंद अलग ही होगा. अर्थ चिंतन-भावन के समय बीच-बीच में खुद के अंदर से भी यदि कोई भाव-संवेदन उठते हैं, तो उनका भी संवेदन कर के आगे बढ़ें. आपके अंतःकरण की जो पुकार होगी वैसे आप आगे बढ़ेंगे. सौंप दे अपने आप को अरिहंत आदि के अचिन्त्य सामर्थ्य के हवाले... इस सारी प्रक्रिया के हवाले... मार्गदर्शन, सहयोग मिलता चलेगा; पुरुषार्थ जारी रखें... हमारे लिए प्रभु की सदाकाल आज्ञा है पुरुषार्थ की. මංගලං * ग्रह पीड़ा के निवारण बहुत है, पूर्वाग्रह का कोई उपाय नहीं.
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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