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________________ प्रथमं पापप्रतिघात-गुणबीजाधानसूत्रम् णमो वीतरागाणं सवण्णूणं देविंद-पूइयाणं जहट्ठिय-वत्थुवाईणं तेलोक्कगुरुणं अरुहंताणं भगवंताणं. नमस्कार हो... नमस्कार का भाव यह चाबी है. आगे के भगवंताणं तक के शब्द के साथ इसे बड़ी प्रबलता से जोड़ना है. शेष सारे सूत्र में प्रवेश में इससे सरलता रहेगी. वीतरागों को... जो सभी तरह की आसक्तियों और नाराजगीयों से पूर्णतः मुक्त है, किसी बात के मजबूर नहीं; सर्वज्ञों को... जो विश्व के जड़-चेतन सब की, हर बात की सभी सच्चाईयों को जानते है; जिन्हें स्वयं को भी महासमर्थ व समृद्धिशाली असंख्य देव नमते है, वैसे देवेन्द्रों से परम उल्लास पूर्वक पूजितों को; हर वस्तु को जैसी है वैसी ही - यथास्थित बताने वालों को; तीन लोक के सही में हितकारी गुरूओं को; अब पुनः नये जन्म का बंधन धारण नहीं करने वाले अरुहंतों को; परम शक्ति, ऐश्वर्य और तेज को धारण करने वाले भगवंतों को... नमस्कार हो... नमस्कार हो... नमस्कार हो... जे एवमाइक्खंति- इह खलु अणाइजीवे, अणादिजीवस्स भवे अणादि-कम्मसंजोग-णिव्वत्तिए; दुक्खरुवे, दुक्खफले, दुक्खाणुबंधे. १ मेरे ये परम हितकारी प्रभु इस तरह से बताते हैं कि, १. इस जगत में जीव सच ही अनादि काल से है, हमेशा से रहा हुआ है. २. जीव के तरह-तरह के जन्म-मरणमय भव भी अनादि से है. ३. जीव का यह भव-संसार अनादि के कर्म संजोगों की वजह से है. * घर में मब सेट है, मगर व्यक्ति स्वयं अपसेट है। उफ।।
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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