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________________ १८ अष्टप्रकारी पूजा तीन लोक के नाथ एसे तीन जगत के देव, परमकृपालु, जिनेश्वर परमात्मा की पूजा करते समय सात प्रकार से शुद्धि रखने का खास ध्यान रखना चाहिये. ये सात शुद्धि निम्नोक्त है- (१) अंगशुद्धि, (२) वस्त्रशुद्धि, (३) मनःशुद्धि, (४) भूमिशुद्धि, (५) उपकरण शुद्धि, (६) द्रव्यशुद्धि, (७) विधिशुद्धि. प्रभु एक पूजा अनेक.... १. जलपूजा २. चंदन पूजा ३. पुष्प पूजा ४. धूप पूजा ५. दीपक पूजा ६. अक्षत पूजा ७. नैवेद्य पूजा ८. फल पूजा अष्टप्रकारी पूजा के स्थान तीन पूजा... जिनबिंब के उपर दो पूजा... जिनबिंब के आगे तीन पूजा... रंगमंडप में गर्भगृह के बाहर... चौकी के ऊपर... पूजात्रिक अंग पूजा- जलपूजा, चंदनपूजा, पुष्पपूजा. परमात्मा के अंग को स्पर्श कर जो पूजा की जाती है उसे अंग पूजा कहते हैं. जीवन में आते विघ्नों के नाश करने वाली और महाफल देने वाली इस पूजा को विघ्नोपशमिनी पूजा कहते हैं. अग्र पूजा- धूप पूजा, दीपक पूजा, अक्षत पूजा, नैवेद् पूजा, फल पूजा. परमात्मा की सन्मुख खड़े रहकर जो पूजा की जाय वह अग्र पूजा कहलाती है. मोक्षमार्ग की साधना में सहायक ऐसी सामग्री का अभ्युदय प्राप्त करानेवाली इस पूजा को अभ्युदयकारिणी पूजा कहते हैं. भाव पूजा- स्तुति, चैत्यवंदन, स्तवन, गीत, गान, नृत्य... जिसमें किसी द्रव्य की जरूरत नहीं है, ऐसी आत्मा को भावविभोर करनेवाली पूजा को भाव पूजा कहते हैं. मोक्षपद की प्राप्ति अर्थात् संसार से निवृत्ति देने वाली इस पूजा को निवृत्तिकारिणी पूजा कहते हैं. Rकाण और बलाला, कोणों के व्यीय का बना मेक है. वेळाला है तो सफलता व निष्फलता में यह स्पष्ट किया जाएगा.X
SR No.009725
Book TitleAradhana Ganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaysagar
PublisherSha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
Publication Year2011
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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